दुनिया के 75 देशों में फैले मंकीपॉक्स वायरस ने भारत में दस्तक दे दी है। 14 जुलाई को केरल के कोल्लम जिले से देश का पहला मंकीपॉक्स केस सामने आया। मरीज हाल ही में UAE से केरल लौटा था। दुनिया में अब तक मंकीपॉक्स के 11 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। भारत में इस वायरस के मिलने से टेंशन बढ़ गई है।
चलिए समझते हैं कि आखिर क्या है मंकीपॉक्स? क्या हैं इसके लक्षण और इससे बचाव कैसे हो सकता है?
सबसे पहले मंकीपॉक्स के लक्षण को जान लेते हैं…
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, चेचक, खसरा, बैक्टीरियल स्किन इंफेक्शन, खुजली, और दवाओं से होने वाली एलर्जी मंकीपॉक्स से अलग होती है। साथ ही मंकीपॉक्स में लिंफ नोड्स में सूजन होती है, जबकि चेचक में ऐसा नहीं होता है।
इसका इनक्यूबेशन पीरियड (इंफेक्शन से सिम्प्टम्स तक का समय) आमतौर पर 7-14 दिनों का होता है, लेकिन यह 5-21 दिनों का भी हो सकता है।
मंकीपॉक्स के 95% मरीजों में चेहरे पर होते हैं दाने
स्किन पर दाने आमतौर पर बुखार आने के दो दिनों के अंदर दिखाई देते हैं। 95% मामलों में ज्यादातर दाने चेहरे पर निकलते हैं। 75% केसेज में दाने हथेली और पैरों के तलवों में होते हैं। जबकि 70% केसेज में ये ओरल म्यूकस झिल्ली को प्रभावित करता है। साथ ही ये आंखों और प्राइवेट पार्ट्स एरिया में भी देखने को मिलता है।
मंकीपॉक्स होने के बाद स्किन फटने का स्टेज 2 से 4 सप्ताह के बीच रह सकता है। पहले ये दाने पानी और फिर मवाद से भर जाते हैं, और फिर इन पर पपड़ी पड़ जाती है। यह काफी पेनफुल स्टेज होता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मरीजों को आंखों में दर्द या धुंधला दिखाई दे, सांस लेने में तकलीफ हो और कम पेशाब हो तो अलर्ट हो जाना चाहिए और खुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए।
अब इस खबर में आगे बढ़ने से पहले चलिए एक पोल में हिस्सा लेते हैं...
मंकीपॉक्स से कैसे हो सकता है बचाव, हेल्थ मिनिस्ट्री की गाइडलाइन जारी
मंकीपॉक्स के लिए इम्वाम्यून वैक्सीन मौजूद
अमेरिका की नेशनल हेल्थ एंजेसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी CDC ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि मंकीपॉक्स के संक्रमण के लिए अभी कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन दवा के साथ इसे रोका जा सकता है। मार्केट में पहले से ऐसी दवाएं मौजूद हैं जो मंकीपॉक्स के इलाज में इस्तेमाल के लिए अप्रूव्ड हैं और बीमारी के खिलाफ प्रभावी रही हैं। जैसे- सिडोफोविर, एसटी-246 और वैक्सीनिया इम्युनोग्लोबुलिन का इस्तेमाल मंकीपॉक्स के संक्रमण में किया जाता है।
मंकीपॉक्स की रोकथाम और उपचार के लिए JYNNEOSTM वैक्सीन भी उपलब्ध है जिसे इम्वाम्यून या इम्वेनेक्स के नाम से भी जाना जाता है। इस वैक्सीन को डेनिश दवा कंपनी बवेरियन नॉर्डिक बनाती है। अफ्रीका में इसके इस्तेमाल के पिछले आंकड़े बताते हैं कि यह मंकीपॉक्स को रोकने में 85% प्रभावी है।
मंकीपॉक्स का नया पैटर्न क्या है?
पहली बार मंकीपॉक्स 1958 में खोजा गया था। तब रिसर्च के लिए रखे दो बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण सामने आए थे। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कॉन्गों में 9 साल के बच्चे में पाया गया। आम तौर पर ये बीमारी रोडेंट्स यानी चूहे गिलहरी और नर बंदरों से फैलती है।
मंकीपॉक्स और चेचक एक ही वायरस फैमिली से हैं। WHO और दुनिया भर की नेशनल हेल्थ एजेंसियों के पास चेचक से लड़ने का दशकों का अनुभव है, जिसे 1980 में दुनिया से खत्म घोषित कर दिया गया था। उसका अनुभव मंकीपॉक्स के इलाज में काम आ सकता है।
इतने सालों में यह बीमारी कभी भी बड़े पैमाने पर अफ्रीका के बाहर नहीं गई, लेकिन इस बार बिना अफ्रीका की ट्रैवल हिस्ट्री के विकसित देशों में मंकीपॉक्स के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसी नए पैटर्न की वजह से दुनिया घबराई हुई है।
यूरोप में सामने आए हैं मंकीपॉक्स के 80% से ज्यादा केस
मंकीपॉक्स का इस बार का प्रसार बहुत असामान्य है, क्योंकि ये नॉर्थ अमेरिका और यूरोपियन देशों में तेजी से फैल रहा है, जहां आमतौर पर ये वायरस नहीं पाया जाता है। यूरोप मंकीपॉक्स के प्रसार का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है। इस साल अब तक मंकीपॉक्स के कंफर्ड केसेज में से 80% से ज्यादा केस यूरोपीय देशों से आए हैं। अमेरिका के 37 राज्यों में अब तक मंकीपॉक्स के 750 से ज्यादा केसेज सामने आए हैं।
पहले कब-कब हुआ मंकीपॉक्स आउटब्रेक?
क्या ये महामारी में बदल सकता है?
यूरोप में WHO की पैथागन थ्रेट टीम के प्रमुख रिचर्ड पेबॉडी के मुताबिक मंकीपॉक्स आसानी से नहीं फैलता और इससे फिलहाल कोई जानलेवा गंभीर बीमारी नहीं हो रही। इसके आउटब्रेक को लेकर कोविड-19 जैसे बड़े वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है। लोग संक्रमण से बचाव के लिए सेफ सेक्स करें, हाइजीन का ध्यान रखें और नियमित तौर पर हाथ धोते रहें।
UK हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी का भी मानना है कि इसके देशभर में फैलने का रिस्क बहुत कम है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि मंकीपॉक्स का वायरस म्यूटेट होकर और ज्यादा खतरनाक वैरिएंट विकसित कर रहा है। यह कोविड नहीं है। यह हवा में नहीं फैलता और हमारे पास इसे रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है।
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