काशी की ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह मस्जिद के बाद अब औरंगाबाद के खुल्दाबाद में मुगल शासक औरंगजेब का मकबरा विवादों में है। औरंगजेब पर ही काशी में विश्वनाथ मंदिर को ढहाकर ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्म स्थान पर बने केशव राय मंदिर को गिराकर ईदगाह मस्जिद बनवाने का आरोप है।
हालांकि, ज्ञानवापी और ईदगाह मस्जिद की तरह खुल्दाबाद में जमीन को लेकर कोई विवाद नहीं है। यहां किसी मंदिर को ढहाए जाने की बात नहीं है। बात सिर्फ औरंगजेब की है, जिसे मराठा इतिहास में सबसे बड़ा विलेन माना जाता है। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बीच AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी का अचानक औरंगजेब की कब्र पर पहुंचने से विवाद बढ़ गया है।
इसी के बाद MNS ने औरंगजेब की कब्र को नष्ट करने की धमकी दी है। वहीं मकबरे को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी ASI ने पांच दिनों के लिए बंद कर दिया है, जबकि उद्धव सरकार ने यहां सुरक्षा बढ़ा दी है। MNS ने उद्धव सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संभाजीराजे के हत्यारे की कब्र की सुरक्षा बढ़ाना शर्मनाक है। BJP और राज ठाकरे की MNS इसी बहाने उद्धव की हिंदुत्ववादी राजनीति पर सवाल उठाए हैं।
जानते हैं कि औरंगाबाद के खुल्दाबाद में मौजूद कब्र को क्यों नष्ट करने की धमकी दी जा रही है? महाराष्ट्र की राजनीति से इसका क्या संबंध है? औरंगजेब कौन था और विश्वनाथ मंदिर और कृष्ण मंदिर के ढहाए जाने का क्या मामला है?
इन सवालों के जवाब जानने से पहले पोल में हिस्सा लेते हैं...
आखिर औरंगजेब की कब्र की तुलना ज्ञानवापी मस्जिद से क्यों हो रही है?
काशी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बीच 13 मई को AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी अचानक औरंगाबाद पहुंच गए। इस दौरान ओवैसी औरंगाबाद से 30 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में स्थित मुगल शासक औरंगजेब की कब्र पर चादर और फूल भी चढ़ाए। MNS ने इसे AIMIM की भड़काने वाली साजिश बताया। साथ ही MNS और BJP औरंगजेब को लेकर हमलावर रुख अपना लिया है।
अब औरंगजेब की कब्र की तुलना ज्ञानवापी मस्जिद से की जाने लगी है। इसके बाद 17 मई को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, यानी MNS के प्रवक्ता गजानन काले ने ट्वीट कर कहा कि शिवाजी की भूमि पर औरंगजेब के कब्र की क्या जरूरत है? इसे नष्ट किया जाए, ताकि इनकी औलादें यहां माथा टेकने नहीं आएं। MNS नेता ने शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे का जिक्र करते हुए कहा कि बाल ठाकरे ने भी यही बात कही थी। आप बाला साहेब की बातों को सुनेंगे कि नहीं।
बाला साहेब ठाकरे ने औरंगाबाद का नाम बदलने का कैंपेन चलाया था
देखा जाए तो हिंदुत्व के मुद्दे पर औरंगाबाद में विवाद कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यह विवाद कई दशकों से चला आ रहा है। शिवसेना के संस्थापक और महाराष्ट्र के CM उद्धव ठाकरे के पिता बाला साहेब ठाकरे औरंगाबाद शहर का नाम संभाजीनगर कराने के लिए कैंपेन चला चुके हैं। संभाजीराजे भोसले मराठा किंग छत्रपति शिवाजी के बेटे थे। औरंगजेब शासन के महाराष्ट्र में विस्तार की राह में शिवाजी एक कांटे की तरह थे। शिवाजी ने कई लड़ाइयों में औरंगजेब की सेना को हराया था। 1689 में औरंगजेब ने संभाजीराजे को पकड़ लिया था और खूब प्रताड़ित करने के बाद उनकी हत्या कर दी थी। इसी के बाद से मराठा इतिहास में औरंगजेब को एक विलेन की तरह देखा जाता है।
औरंगजेब कौन था, जिसपर भारत के मंदिरों को ढहाने का आरोप है?
मुगल शासकों में सिर्फ एक शख्स था, जो भारतीयों के बीच जगह बनाने में कामयाब नहीं हो पाया वो था आलमगीर औरंगजेब। आम लोगों के बीच औरंगजेब की छवि हिंदुओं से नफरत करने वाले धार्मिक उन्माद से भरे कट्टरपंथी बादशाह की रही है। क्रूरता की मिसाल ऐसी कि जिसने अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने बड़े भाई दारा शिकोह की भी हत्या कर दी। साथ ही अपने बुर्जुग पिता शाहजहां तक को उनके जीवन के आखिरी साढ़े सात सालों तक आगरा के किले में कैदी बना कर रखा।
औरंगजेब ने 15 करोड़ लोगों पर करीब 49 साल तक राज किया। उनके शासन के दौरान मुगल साम्राज्य इतना फैला कि पहली बार करीब-करीब पूरे उपमहाद्वीप को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को दोहाद में अपने दादा जहांगीर के शासनकाल में हुआ था। औरंगजेब शाहजहां का तीसरा बेटा था। शाहजहां के चार बेटे थे और इन सभी की मां मुमताज महल थीं। बाकी मुगल बादशाहों की तरह औरंगजेब भी बचपन से ही धाराप्रवाह हिंदी बोलता था। औरंगजेब ने अपने 87 साल के जीवन में 36 साल औरंगाबाद में बिताए और यहीं वो दफन भी हो गया।
औरंगजेब पर भारत की कई प्रमुख मंदिरों को ढहाने का आरोप है। इनमें मथुरा में कृष्ण जन्मस्थल पर बना केशव राय मंदिर और काशी का विश्वनाथ मंदिर प्रमुख है। इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब ने ही 1669 में काशी का विश्वनाथ मंदिर ढहा कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। वहीं 1670 में मथुरा का केशव राय मंदिर ढहा कर वहां पर ईदगाह मस्जिद बनवाई थी।
औरंगजेब की कब्र कच्ची क्यों है?
औरंगजेब ने 1670 में लाहौर में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाई थी। इस बादशाही मस्जिद में 60,000 लोग बैठ सकते थे। औरंगजेब ने अपनी पहली पत्नी दिलरस बानो बेगम के लिए औरंगाबाद में ही एक बड़ा मकबरा बनवाया था। इसे बीबी का मकबरा या दक्कन का ताज भी कहा जाता है।
हालांकि, औरंगजेब की 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में मौत हुई थी। इसके बाद उसके पार्थिव शरीर को खुल्दाबाद में उनके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन के पास एक कोने मेंं साधारण या कच्ची कब्र में दफनाया गया था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि जिस व्यक्ति ने इतनी बड़ी-बड़ी इमारते बनवाईं, उसे कच्ची कब्र ही क्यों नसीब हुई। इसका कारण भी खुद औरंगजेब ही था।
औरंगजेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मौत के बाद उसे उसके गुरु सूफी संत सैयद जेनुद्दीन के पास ही दफनाया जाए। औरंगजेब ने आगे लिखा कि जितना पैसा उसने अपनी मेहनत से कमाया है, उससे ही उसका मकबरा बनवाया जाए। औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए टोपियां सिला करता था और हाथ से कुरान शरीफ लिखा करता था। औरंगजेब की मौत के वक्त उसके द्वारा कमाए गए 14 रुपए और 12 आने थे। इसी पैसे से औरंगजेब का मकबरा बनवाया गया था।
देखा जाए तो पहले के बादशाहों के मकबरों में भव्यता का पूरा ध्यान रखा जाता था और सुरक्षा के इंतजाम भी होते थे। हालांकि, औरंगजेब का मकबरा सिर्फ लकड़ी से बना था। 1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने मकबरे के इर्द-गिर्द संगमरमर की ग्रिल बनवाई और इसकी सजावट कराई। औरंगजेब का मकबरा इस समय ASI के संरक्षण में है और एक राष्ट्रीय स्मारक है।
देखा जाए तो ऊपर की बातें अब इतिहास का हिस्सा हैं। हालांकि, बड़ा सवाल है कि औरंगाबाद का खुल्दाबाद एक बार फिर से क्यों धधक रहा है। खैर, इस सवाल के भी कई जवाब हैं।
1. देशभर में अलग-अलग विचारधारा वाले राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए अपने आसपास एक ज्ञानवापी मस्जिद की तलाश कर रहे हैं। महाराष्ट्र में MNS प्रमुख राज ठाकरे ने पुणे में इस तरह के 2 स्थानों की खोज भी कर ली है।
2. महाराष्ट्र में औरंगाबाद समेत कुछ सबसे प्रभावशाली म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव इस साल के अंत में होने हैं।
3. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने 12 मई को खुल्दाबाद में औरंगजेब के मकबरे का दौरा किया। हालांकि, इससे पहले कि मामला और गर्माता ASI ने संवेदनशील मकबरे को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया।
MNS औरंगजेब के मकबरे के लिए क्यों शिवसेना पर निशाना साध रही है?
राज ठाकरे की MNS की ओर से औरंगजेब की कब्र को नष्ट किए जाने की धमकी देने के बाद 19 मई को ASI ने इसे अगले 5 दिनों के लिए बंद कर दिया। इसके साथ ही औरंगाबाद की पुलिस ने परिसर के आसपास सुरक्षा भी बढ़ा दी है। MNS के प्रवक्ता गजानन काले ने सुरक्षा बढ़ाए जाने पर उद्धव सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह फैसला शिवाजी के भक्तों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
काले ने कहा कि जिस व्यक्ति ने छत्रपति संभाजी की बेरहमी से हत्या कर दी, उसकी कब्र के चारों ओर सुरक्षा बढ़ाना शर्मनाक है। उद्धव पर MNS का हमला अकबरुद्दीन के मकबरे की यात्रा के तुरंत बाद हुआ और यह मस्जिदों से लाउडस्पीकरों को हटाने का आदेश नहीं देने के लिए सरकार की आलोचना के साथ सहज रूप से जुड़ा हुआ था।
शिवसेना भी खुल्दाबाद में औरंगजेब के मकबरे पर अकबरुद्दीन के जाने से नाखुश थी और इसी आलोचना भी की थी। मराठा इतिहास में औरंगजेब से बड़ा खलनायक कोई नहीं है और छत्रपति शिवाजी महाराज से बड़ा कोई नायक नहीं है। ऐसे में किसी भी राजनीतिक दल के लिए अकबरुद्दीन के मकबरे पर जाने का बचाव करना मतलब अपनी राजनीति को खत्म करने जैसा होगा।
क्या पहले भी औरंगाबाद कम्युनल हॉटस्पॉट का केंद्र रहा है?
औरंगाबाद में 32% मुस्लिम, 68% हिंदू आबादी हैं। देखा जाए तो औरंगाबाद हमेशा से कम्युनल हॉटस्पॉट का केंद्र रहा है। ब्रिटिश शासन से आजादी के समय औरंगाबाद रजाकारों की रियासत का हिस्सा था। 1947 और सितंबर 1948 के बीच रजाकारों ने कई बार हिंदुओं पर हमले किए। शहर अभी भी हिंदू और मुस्लिम क्षेत्रों में बंटा है। हिंदू और मुस्लिमों के बीच गुलमंडी डिवाइडिंग लाइन है। इसके एक ओर हिंदू और दूसरी ओर मुस्लिम रहते हैं।
बाल ठाकरे ने 80 के दशक में पार्टी की मजबूती के लिए मुस्लिम विरोधी दुष्प्रचार के जरिए औरंगाबाद में जमकर ध्रुवीकरण किया। इसके चलते यहां पर 1984, 1985, 1987 और 1988 में लगतार दंगे हुए। वहीं म्युनिसिपल कारपोरेशन चुनावों में AIMIM के उदय के साथ ही विभाजन और गहरा गया है।
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