'दारा शिकोह सच्चे हिंदुस्तानी और भारतीयता के प्रतीक थे।'
मुगल बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह को लेकर ये बयान करीब तीन साल पहले 2019 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी RSS के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने दिया था।
संघ पिछले कई सालों से औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह को ‘सच्चा मुसलमान’ बताते हुए उनके जीवन और शिक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश में लगा है। हाल ही में संघ ने दारा के ऊपर रिसर्च प्रोजेक्ट भी शुरू किया है। आने वाले दिनों में संघ दारा के विचारों को आगे बढ़ाने के और भी नए प्रोजेक्ट शुरू करेगा। मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र है।
ऐसे में चलिए समझते हैं कि आखिर कौन थे दारा शिकोह? संघ क्यों दारा शिकोह को बता रहा है सच्चा मुसलमान और करवा रहा है उन पर रिसर्च?
दारा शिकोह पर रिसर्च के लिए AMU, जामिया जैसे संंस्थानों में संघ का प्रोजेक्ट
2017 में संघ प्रचारक चमल लाल की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में दारा शिकोह पर चर्चा हुई थी। इसके बाद 2019 में दारा शिकोह प्रोजेक्ट का काम संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल को सौंपा गया। गोपाल इस संबंध में कई बैठकें और वर्कशॉप आयोजित कर चुके हैं।
अब दारा शिकोह के जीवन और शिक्षाओं के प्रचार के लिए संघ ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत दारा शिकोह के कामों पर रिसर्च होगी और उनकी किताबों को अलग-अलग लैंग्वेजेज में ट्रांसलेट किया जाएगा।
हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी AMU ने अपने दारा शिकोह सेंटर के तहत आपसी संवाद के लिए पैनल बनाने की घोषणा की है। इस पैनल में हिंदू इतिहास और आस्था पर रिसर्च करने वाले मुस्लिम और ईसाई विद्वानों और शिक्षाविदों को शामिल किया गया है। जल्द ही जामिया मिलिया इस्लामिया, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी भी इसी तरह का पैनल बनाने जा रहा है।
नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को दारा शिकोह पर रिसर्च में RSS की मदद के लिए जोड़ा गया है। साथ ही भारत इस्लामिक कल्चरल सेंटर को इस मामले पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ संपर्क बढ़ाने का काम सौंपा गया है।
दारा शिकोह की कब्र की तलाश के लिए सरकार ने बनाई थी कमेटी
2020 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने दारा शिकोह की कब्र की तलाश के लिए पुरात्तविदों की एक 7 सदस्यीय कमेटी बनाई थी। माना जाता है कि 1659 में दारा शिकोह की हत्या के बाद उसे औरंगजेब ने दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे में दफन करवाया था। हुमायूं के विशाल मकबरे में 140 कब्रें हैं और वहां मकबरे के बीच में स्थित हुमायूं की कब्र को छोड़कर किसी और कब्र की पहचान मुश्किल है।
संघ क्यों दारा शिकोह के प्रचार में जुटा है?
पिछले कुछ सालों के दौरान सरकार ने दारा शिकोह के प्रचार में तेजी दिखाई है। 2016 में दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया गया था। 2017 में राष्ट्रपति भवन के पास के डलहौजी रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया गया था।
इस एक्सप्लेनर में आगे बढ़ने से पहले चलिए एक पोल में हिस्सा लेते हैं...
अब जानते हैं दारा शिकोह कौन थे, क्यों उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने वाला कहा जाता है?
4 पॉइंट्स में जानते हैं कि आखिर दारा शिकोह थे कौन?
अब बात दारा शिकोह की
दारा शिकोह को बेहद उदार और गैर-रूढ़िवादी मुसलमान माना जाता है। दारा की इस्लाम के साथ ही विशेष तौर पर हिंदू धर्म में गहरी रुचि थी। दारा न केवल इस्लाम बल्कि हिंदू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों का भी सम्मान करते थे। वह सभी धर्मों को समानता की नजर से देखते थे। ऐसा कहा जाता है कि कई हिंदू मंदिरों के लिए दारा ने दान भी किया था।
दारा ने हिंदू और इस्लाम हिंदू धर्म में समानताएं खोजने का प्रयास किया। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 52 उपनिषदों और महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक किताबों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद कराया था। ताकि हिंदुओं के उपनिषदों को मुस्लिम विद्वान भी पढ़ सकें। साथ ही उन्होंने हिंदू उपनिषदों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार में भी मदद की थी।
दरअसल, दारा शिकोह द्वारा उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराने का फायदा ये हुआ कि ये यूरोप तक पहुंचा और वहां से उनका लैटिन भाषा में भी अनुवाद हुआ, इससे उपनिषदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होने में मदद मिली।
दारा शिकोह की सबसे प्रसिद्ध किताब , मजमा-उल-बहरीन ('द कॉन्फ्लुएंस ऑफ द टू सीज') यानी 'दो सागरों का मिलन है।' इस किताब में और वेदांत और सूफीवाद का तुलनात्मक अध्ययन है।
2. शाहजहां ने घोषित किया था उत्तराधिकारी, युद्ध से ज्यादा फिलॉसफी में थी रुचि
शाहजहां हमेशा से चाहते थे कि दारा शिकोह ही उनके उत्तराधिकारी बने, लेकिन ये कभी हो नहीं सका।1652 में शाहजहां ने दरबार में एक खास आयोजन किया और दारा को तख्त पर बैठाया और उन्हें शाहे-ए-बुलंद इकबाल यानी बादशाह का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
इतिहासकारों का मानना है कि दारा शिकोह की रुचि युद्ध से ज्यादा फिलॉसफी और सूफीवाद में थी।
3. दारा, औरंगजेब से कैसे हारे उत्तराधिकार की जंग
1657 में शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद मुगल साम्राज्य में उत्तराधिकार की जंग छिड़ गई। दारा को सबसे बड़ी चुनौती मिली छोटे भाई औरंगजेब से। 30 मई 1658 को दारा शिकोह और उसके दो छोटे भाइयों औरंगजेब और मुराद बख्श के बीच आगरा से 13 किलोमीटर दूर 'समुगढ़ की जंग' हुई। इस युद्ध में दारा की हार हुई।
जीत के बाद औरंगबेज ने आगरा के किले पर कब्जा जमा लिया और 8 जून 1658 को अपने पिता शाहजहां को गद्दी से हटाते हुए उन्हें आगरा में जेल में डाल दिया। मार्च 1659 में दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच फिर जंग हुई। अमजेर के पास हुई देवरई की जंग में दारा को फिर से शिकस्त मिली।
4. औरंगजेब ने बंदी बनाकर दारा शिकोह को दिल्ली की सड़कों पर घुमाया
युद्ध में हराने के बाद औरंगजेब ने दारा को जंजीरों में जकड़कर दिल्ली की सड़कों पर घुमाया था। इतिहासकारों का कहना है कि दारा शिकोह जनता में बहुत लोकप्रिय थे और औरंगजेब ऐसा करके ये दिखाना चाहता था कि केवल जनता में लोकप्रिय होने से कोई हिंदुस्तान का बादशाह नहीं बन सकता।
दारा के साथ औरंगबेज ने जो रोंगटे खड़े करने वाला सलूक किया, उसका जिक्र कई इतिहासकारों ने किया है।
कुछ ही दिनों बाद 30 अगस्त 1659 को औरंगजेब ने दारा का सिर धड़ से अलग करवा दिया। औरंगजेब ने दारा का सिर एक थाली में सजाकर आगरा में कैद शाहजहां को कीमती तोहफा कहकर भिजवाया था। जब शाहजहां ने थाली से कपड़ा हटाया तो दारा का कटा सिर देखकर उनकी चीख निकल गई। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, दारा के धड़ को दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे के पास दफन किया गया था, जबकि उनके सिर को औरंगजेब ने आगरा में ताजमहल के पास दफन करवाया था।
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