नासा ने आज धरती को बचाने के लिए अपनी तरह का पहला ‘डार्ट मिशन’ लॉन्च कर दिया है। भारतीय समयानुसार दोपहर 11.50 बजे स्पेसक्राफ्ट ने कैलिफोर्निया के वेंडनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से उड़ान भरी। ये स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में जाकर एक उल्कापिंड से टकराएगा। टक्कर के बाद यह पता लगाया जा सकेगा कि किसी उल्कापिंड की गति और दिशा को कितना बदला जा सकता है, जिससे वो धरती से न टकराए।
समझते हैं, नासा का ये मिशन क्या है? काम कैसे करेगा? जिस उल्कापिंड से टकराएगा वो क्या है? मिशन की पूरी टाइमलाइन क्या है? और इससे आपकी जान कैसे बच सकती है?...
सबसे पहले नासा का मिशन समझिए
नासा ने इस मिशन को DART (डबल एस्ट्रॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट) नाम दिया है। मिशन में नासा ये पता करने की कोशिश करेगा कि अंतरिक्ष से पृथ्वी की ओर आ रही किसी उल्कापिंड को धरती से टकराने से किस तरह रोका जा सकता है।
मिशन के तहत नासा ने एक स्पेसक्राफ्ट बनाया है। ये स्पेसक्राफ्ट डिडिमोस नाम के एक उल्कापिंड से टकराएगा। इसके बाद पता लगाया जाएगा कि टकराने की वजह से डिडिमोस की गति और दिशा में क्या बदलाव आया है। इस आधार पर ये गणना की जाएगी कि किसी भी उल्कापिंड की दिशा और गति को कितना बदल सकते हैं। मिशन की लागत करीब 2 हजार करोड़ रुपए है।
स्पेसक्राफ्ट जिस उल्कापिंड से टकराएगा उसके बारे में भी जान लीजिए
स्पेसक्राफ्ट डिडिमोस नामक एक उल्कापिंड से टकराएगा। डिडिमोस दो हिस्सों वाला एक उल्कापिंड है, जिसका सबसे पहले पता 1996 में लगाया गया था। इस उल्कापिंड का बड़ा हिस्सा करीब 780 मीटर में फैला है, जिसका नाम डिडिमोस है। वहीं, छोटा हिस्सा करीब 160 मीटर में फैला है, जिसे डिमोर्फस कहा जाता है। फिलहाल छोटा हिस्सा (डिमोर्फस) बड़े हिस्से (डिडिमोस) की परिक्रमा कर रहा है।
हालांकि, डिडिमोस धरती से कभी नहीं टकराएगा, इस वजह से इससे हमें कोई खतरा नहीं है। यही कारण है कि नासा ने अपने मिशन के लिए इसे चुना है, ताकि भविष्य में अगर कोई ऐसा उल्कापिंड धरती की ओर आया तो उसे कैसे दूर रखा जा सकता है।
साथ ही मिशन के लिए डिडिमोस को चुनने की एक वजह ये भी है कि 2003 में ये धरती के करीब से गुजरा था। 2022 में ये दोबारा धरती के पास से गुजरेगा।
पूरा मिशन काम कैसे करेगा, ये समझते हैं?
ये मिशन कितना अहम?
आपको लग रहा होगा कि रफ्तार और दिशा में इतने छोटे बदलाव से क्या ही फर्क पड़ेगा, लेकिन समझने वाली बात ये है कि अंतरिक्ष में उल्कापिंड सालों तक इधर-उधर घूमते रहते हैं। अगर रफ्तार और दिशा में थोड़ा भी बदलाव हो रहा है, तो समय के साथ ये बदलाव बड़ा होता जाएगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्पीड और दिशा में छोटे से बदलाव से ही या तो उल्कापिंड धरती से टकराएगा ही नहीं या फिर टकराएगा तो भी हमें तैयारी करने का थोड़ा समय मिल सकता है, जिससे नुकसान को कम किया जा सकेगा।
ये मिशन कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर कोई 100 मीटर का उल्कापिंड भी धरती से टकराता है, तो यह एक पूरे महाद्वीप पर तबाही मचा सकता है।
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