भास्कर एक्सप्लेनर:ओमिक्रॉन से गंभीर मरीज और मौतें कम, ब्रिटेन-अमेरिका में भी डेल्टा से बढ़े केसेज; फिर क्यों खतरनाक नया वैरिएंट?

एक वर्ष पहले

24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में मिला ओमिक्रॉन अब तक 80 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। कई यूरोपीय देशों, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और UK में केसेज फिर से रफ्तार पकड़ने लगे हैं। ब्रिटेन में रोजाना कोरोना के रिकॉर्ड नए मरीज सामने आ रहे हैं।

हालांकि, ओमिक्रॉन को लेकर अभी स्टडी जारी है; लेकिन ये कितना खतरनाक है, कितनी तेजी से फैल रहा है और इस पर वैक्सीन के असर को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं।

इससे सवाल उठ रहे हैं कि जब ओमिक्रॉन इतना ही खतरनाक है, तो मौतें कम क्यों हो रही हैं? ओमिक्रॉन तेजी से फैल रहा, लेकिन मरीजों में गभीर लक्षण क्यों नहीं है? एक तरफ वैक्सीन को ओमिक्रॉन पर कारगर नहीं माना जा रहा है, तो दूसरी तरफ सरकार बूस्टर डोज देने की तैयारी कर रही है। आज के एक्सप्लेनर में इसी तरह के सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं…

क्या दुनियाभर में नए केसेज ओमिक्रॉन की वजह से ही बढ़ रहे हैं?

  • ओमिक्रॉन सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में 24 नवंबर को मिला था। जब ओमिक्रॉन डिटेक्ट हुआ तब वहां रोजाना 300-400 केसेज मिल रहे थे। अब दक्षिण अफ्रीका में रोजाना 26-28 हजार केसेज मिल रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका में मिल रहे 98% नए केसेज के पीछे ओमिक्रॉन ही वजह है।
  • ब्रिटेन में रोजाना करीब 90 हजार के आसपास मामले आ रहे हैं। हालांकि, यहां नए केसेज की वजह पहले से मौजूद डेल्टा वैरिएंट ही है। केवल 2.4% नए केसेज ओमिक्रॉन की वजह से आ रहे हैं।
  • इसी तरह अमेरिका में भी रोजाना 1 लाख से ज्यादा केसेज आ रहे हैं। अमेरिका में एनालाइज किए गए कुल सैंपल में से केवल 3% ही ओमिक्रॉन के हैं। बाकी 97% केसेज के पीछे डेल्टा वैरिएंट ही जिम्मेदार है।

यानी, ओमिक्रॉन भले ही तेजी से फैल रहा है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर जिन देशों में ज्यादा केसेज हैं उसकी वजह पहले से मौजूद डेल्टा वैरिएंट ही है।

ओमिक्रॉन को इतना खतरनाक बताया जा रहा तो मौतें कम क्यों हो रही?

  • ओमिक्रॉन पर हॉन्ग-कॉन्ग यूनिवर्सिटी की स्टडी कहती है कि रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में ओमिक्रॉन डेल्टा या ओरिजिनल स्ट्रेन के मुकाबले 70 गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। हालांकि, लंग टिश्यू में ये 50-60 गुना तेजी से ही फैलता है। यानी, ओमिक्रॉन का फेफड़ों पर इतना गंभीर असर नहीं होता है। इसी कारण ओमिक्रॉन की वजह से लोगों में गंभीर लक्षण भी नहीं देखे जा रहे हैं।
  • एक्सपर्ट्स इसे डार्विन की नेचुरल सिलेक्शन थ्योरी से भी जोड़ते हैं। वायरस खुद को जिंदा रखने के लिए अपने आप में बदलाव करता रहता है। खतरनाक स्ट्रेन की वजह से मरीज की मौत हो जाती है और वायरस भी मर जाता है। इसलिए खुद को ज्यादा से ज्यादा समय तक जीवित रखने के लिए वायरस खुद में बदलाव मरीजों में केवल हल्के लक्षण पैदा कर रहा है, ताकि उसे लंबे समय तक एक होस्ट बॉडी मिले।

वैक्सीन को ओमिक्रॉन पर कम प्रभावी बताया जा रहा है, तो बूस्टर डोज क्यों दे रहे हैं?

ओमिक्रॉन पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस को लेकर अलग-अलग स्टडीज में कहा गया है कि वैक्सीन ओमिक्रॉन पर कम इफेक्टिव है। उसके बाद से ही ओमिक्रॉन से निपटने के लिए लोगों को बूस्टर डोज दिए जा रहे हैं। फाइजर और मॉडर्ना जैसी वैक्सीन कंपनियां भी बूस्टर डोज को ओमिक्रॉन पर ज्यादा कारगर बता चुकी हैं। सवाल उठता है कि जब वैक्सीन कारगर नहीं है, तो बूस्टर डोज क्यों दिए जा रहे हैं? समझते हैं…

  • आपके शरीर में एंटीबॉडी बिल्कुल न होना और कम होना दो अलग-अलग बातें हैं। एंटीबॉडी नहीं होगी तो सबसे ज्यादा खतरा होगा; लेकिन एंटीबॉडी भले ही कम हो वो वायरस को रोकने में कारगर होगी। स्टडीज में सामने आया है कि वैक्सीन लेने के 9 महीने बाद शरीर में एंटीबॉडी कम होने लगती है। इसलिए शरीर में एंटीबॉडी लेवल बनाए रखने के लिए बूस्टर डोज दिया जा रहा है।
  • ओमिक्रॉन के खिलाफ वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भले ही कम हो लेकिन T-सेल पर कोई असर नहीं पड़ता। T सेल हमारे इम्यून सिस्टम का पार्ट है, जो इंफेक्शन से निपटने का काम करती है। T सेल इंफेक्टेड सेल्स को नष्ट कर देती हैं, जिससे कि इंफेक्शन की रफ्तार धीमी हो जाती है।
  • फिलहाल जो वैक्सीन दी जा रही है वो चीन में मिले वायरस के ओरिजिनल स्ट्रेन को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन अब वायरस ने खुद में बदलाव किए हैं इसलिए जरूरी है कि वैक्सीन में भी बदलाव किए जाएं। फाइजर और मॉडर्ना का दावा है कि वो वैक्सीन को नए वैरिएंट के हिसाब से बदल रही हैं। दोनों ही कंपनियां इससे पहले डेल्टा वैरिएंट के हिसाब से भी अपनी वैक्सीन में मामूली बदलाव कर चुकी हैं। बूस्टर डोज दिए जाने के पीछे एक तर्क ये भी दिया जा रहा है।

तो क्या वाकई ओमिक्रॉन खतरनाक है?

  • हॉन्ग-कॉन्ग यूनिवर्सिटी की स्टडी में शामिल रहे एसोसिएट प्रोफेसर डॉ माइकल चैन ची वाई ने कहा है कि वायरस भले ही खुद बहुत ही कम गंभीर हो, लेकिन तेजी से फैल रहा है। एक तेजी से फैलता वायरस गंभीर बीमारी और मौत की वजह बन सकता है।
  • ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में ही 26-32 म्यूटेशन है। स्पाइक प्रोटीन से ही वायरस शरीर में प्रवेश के रास्ते खोलता है। इसकी तुलना में डेल्टा के स्पाइक प्रोटीन में 18 म्यूटेशन हुए थे।
  • क्लिनिकल इंफेक्शियस डिसीज ऑफ ऑक्सफोर्ड एकेडमिक ने ओमिक्रॉन के दो स्ट्रेन (HKU691 और HKU344-R346K) के स्पाइक प्रोटीन पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस जानने के लिए स्टडी की थी। स्टडी के मुताबिक, फाइजर से वैक्सीनेटेड केवल 24% सैंपल ही HKU344-R346K स्ट्रेन को न्यूट्रलाइज करने में कारगर रहे थे। वहीं, केवल 20% सैंपल ही HKU691 स्ट्रेन को न्यूट्रलाइज करने में कारगर थे।
  • ओमिक्रॉन के रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन में भी 10 म्यूटेशन हो चुके हैं, जबकि डेल्टा वैरिएंट में केवल 2 ही म्यूटेशन हुए थे। रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन वायरस का वह हिस्सा है जो इंसान के शरीर के सेल के सबसे पहले संपर्क में आता है। इन वजहों से ओमिक्रॉन को खतरनाक माना जा रहा है।