इमरान की दो मांग- चुनाव और आर्मी पर कंट्रोल:3 लोगों पर हमले की साजिश का शक; रैली नहीं चाहती थी पाक आर्मी

7 महीने पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय
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'छह महीने से मैं देख रहा हूं कि देश में एक क्रांति जन्म ले रही है। सवाल सिर्फ ये है कि ये बैलेट बॉक्स के जरिए आसानी से होगी या रक्तपात के जरिए विनाशकारी होगी?'

31 अक्टूबर को इमरान खान के इस बयान के तीन दिन बाद ही उनके लॉन्ग मार्च पर हमला हुआ है। इमरान के पैर में गोली लगी है और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है। तीन दिन पहले इस रैली में एक महिला पत्रकार की कुचलकर मौत हो गई थी।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि आखिर पूर्व पाक प्रधानमंत्री ऐसा क्या कर रहे हैं, जिससे उनकी जान पर बन आई है और इस पूरे घमासान में पाक सेना किस तरफ खड़ी है?

इमरान ने तीन लोगों पर लगाया उन पर हमले की साजिश का आरोप
इमरान खान ने उनके ऊपर गुरुवार (3 नवंबर) को गोली चलाए जाने के बाद इसके लिए तीन लोगों को जिम्मेदार ठहराया है। इमरान की ओर से उनकी पार्टी PTI के नेता असद उमर और मिलन असमल इकबाल ने बयान जारी करते हुए कहा कि इमरान का मानना है कि तीन लोगों की वजह से ये हमला किया गया। ये लोग हैं शाहबाज शरीफ (प्रधानमंत्री), राना सनाउल्ला (गृह मंत्री) और मेजर जनरल फैसल (ISI)। लाहौर से इस्लामाबाद तक का लॉन्ग मार्च शुरू करने के बाद से ही इमरान शाहबाज शरीफ और सेना दोनों की आलोचना के निशाने पर रहे हैं।

इमरान ने लाहौर से शुरू किया था हकीकी आजादी मार्च

इमरान ने 28 अक्टूबर को पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब की राजधानी लाहौर से देश की राजधानी इस्लामाबाद की ओर एक विशाल मार्च शुरू किया है। इस मार्च का मकसद शाहबाज शरीफ सरकार को उखाड़ फेंकना है और जल्द नए चुनाव कराना है। इस मार्च का नाम हकीकी आजादी मार्च-II है और इमरान खान इसके जरिए पाकिस्तानियों को रियासते-मदीना या ‘असली आजादी’ दिलाने का वादा कर रहे हैं। इस रैली को 4 नवंबर को इस्लामाबाद पहुंचना था, लेकिन काफी धीमी गति से आगे बढ़ने की वजह से माना जा रहा है कि ये अब 10 नवंबर को इस्लामाबाद पहुंच पाएगी।

लाहौर से इस्लामाबाद तक के लॉन्ग मार्च के दौरान अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करते इमरान खान।
लाहौर से इस्लामाबाद तक के लॉन्ग मार्च के दौरान अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करते इमरान खान।

इमरान की दो मांग- चुनाव और आर्मी पर कमान

इमरान अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े हुए हैं। पहला अगले साल की शुरुआत में चुनाव कराए जाएं और नई सरकार को ये अधिकार दिया जाए कि सेना के नए प्रमुख का फैसला सरकार का मुखिया करेगा। दरअसल, इमरान को यकीन है कि पााकिस्तान में नई सरकार के मुखिया यानी प्रधानमंत्री वही बनेंगे।

वर्तमान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल इस साल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है। इमरान अपने करीबी और बहावलपुर के कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को अगला सेना प्रमुख बनाना चाहते थे। लेकन इमरान के लिए मुश्किल ये है कि हमीद अगले साल 30 अप्रैल को रिटायर हो रहे हैं।

इसलिए उन्हें सरकार को पंगु बनाने और उसे गिराने की कोशिशों के लिए शक्ति प्रदर्शन के लिए जनता की सामूहिक लामबंदी का सहारा लेना पड़ा। पाकिस्तान की राजनीति में शक्ति प्रदर्शन के जरिए असुविधाजनक राजनेताओं को सत्ता से उखाड़ने का खेल नया नहीं है। सेना अतीत में कई बार ऐसा कर चुकी है।

कभी इमरान थे सेना की पसंद, अब एक धड़ा उनसे खफा

2018 में इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने में पाकिस्तानी सेना ने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद इमरान और सेना के बीच खाई चौड़ी होती गई। अप्रैल 2022 में जब इमरान को पद छोड़ना पड़ा तो माना गया कि सेना भी इमरान के खिलाफ खड़ी थी। सत्ता गंवाने के बाद इमरान खुलकर सेना के खिलाफ खड़े हो गए हैं।

सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को सार्वजनिक तौर पर निशाना बनाए जाने को लेकर सेना इमरान से नाराज है। इमरान ने बाजवा को गद्दार और मीर जाफर और मीर सादिक तक कह दिया। मीर जाफर और मीर सादिक भारतीय इतिहास में अपने मालिकों को धोखा देने के लिए जाने जाते हैं। मीर जाफर ने जहां सिराजुद्दौला को धोखा देकर अंग्रेजों का साथ दिया तो वहीं मीर सादिक ने यही काम टीपू सुल्तान के साथ किया था।

इमरान खान और उनकी पार्टी PTI से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स से सेना के खिलाफ लगातार हो रही आलोचना का जवाब देने पाक सेना खुद सामने आई, जो आमतौर पर ऐसे मामलों में कमेंट्स से बचती है। 27 अक्टूबर को सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए इमरान की आलोचना की। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस यानी ISI के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम ने इमरान पर असंवैधानिक मांग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इमरान चाहते हैं कि सेना शाहबाज सरकार को बर्खास्त करके समय से पहले चुनावों का ऐलान कर दे।

27 अक्टूबर को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ISI चीफ लेफ्टिनेंट नदीम अंजुम (बाएं) और ISI के PR डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल बाबर इफ्तिरखार ने इमरान खान की कड़ी आलोचना की।
27 अक्टूबर को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ISI चीफ लेफ्टिनेंट नदीम अंजुम (बाएं) और ISI के PR डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल बाबर इफ्तिरखार ने इमरान खान की कड़ी आलोचना की।

ISI ने ये स्पष्ट कर दिया कि उसने 'इमरान प्रोजेक्ट' को समेटने का फैसला किया है। इमरान खान के सेना के टॉप लीडरशिप के साथ गुप्त बातचीत से जुड़े सवाल पर नाराजगी जताते हुए जनरल नदीम अंजुम ने कहा कि इमरान एक तरफ चाहते हैं कि सेना उन्हें सत्ता पाने में मदद करे तो वहीं दूसरी ओर वह जनरल बाजवा को सार्वजनिक तौर पर टारगेट कर रहे हैं।

अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में कीनिया में पाकिस्तानी पत्रकार अरशद शरीफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इमरान ने इसे टारगेटेड किलिंग बताते हुए इसका आरोप सेना पर लगाया था। पाकिस्तानी सेना ने इमरान के इस आरोप को भी खारिज किया।

माना जाता है कि पाकिस्तानी सेना की इमरान से नाराजगी के बावजूद सेना में अब भी एक धड़ा ऐसा है, जो इमरान का समर्थन कर रहा है।

इमरान की रैली नहीं होने देना चाहती थी पाक आर्मी

ISI के DG नदीम अंजुम ने इमरान और उनके समर्थकों को उनके लंबे मार्च को लेकर चेतावनी जारी करते हुए कहा कि कानून-व्यवस्था संभालने के लिए सेना शाहबाज सरकार की मदद करेगी। खास बात ये है कि सेना को इमरान को चेतावनी उनकी 28 अक्टूबर को शुरू विशाल मार्च से एक दिन पहले दी गई थी। इसके पहले शाहबाज सरकार और सेना के बीच हुई गुप्त बातचीत से कोई समाधान नहीं निकल सका और इमरान को रैली करने से रोका नहीं जा सका।

जानकारों का मानना है कि सेना इमरान की आलोचना से इसलिए चिंतित है क्योंकि वह आम जनता को ये समझाने में सफल रहे हैं कि देश की आंतरिक और बाहरी नीतियों पर असल में सेना का ही नियंत्रण है।

इमरान युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं, ऐसे में हाल के दिनों में उनकी सेना के खिलाफ अपील का सबसे ज्यादा असर युवाओं पर ही दिखा है। सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाला युवा वर्ग सेना के खिलाफ जमकर मैसेज शेयर कर रहा है। युवा वर्ग सेना के खिलाफ 'ये जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है' जैसे नारे लगा रहा है।

इमरान खान के आक्रामक रुख ने न केवल शाहबाज शरीफ बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिए भी मुश्किलें खड़ी करने का काम किया है।
इमरान खान के आक्रामक रुख ने न केवल शाहबाज शरीफ बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिए भी मुश्किलें खड़ी करने का काम किया है।

सत्ता गंवाने के बावजूद क्यों लोकप्रिय हैं इमरान खान

जानकारों का मानना है कि भले ही पद पर रहने के दौरान इमरान आर्थिक संकट से निपटने में नाकाम रहे थे, लेकिन जब इस साल अप्रैल में अपनी सत्ता गंवाने के बाद पीछे उन्होंने अमेरिकी साजिश की बात की तो इससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ। पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से जनता वर्तमान सरकार के खिलाफ और इमरान के साथ होती चली गई है।

इमरान की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण अक्टूबर में हुए उपचुनाव भी हैं, जिनमें 8 नेशनल असेंबली सीटों पर हुए चुनावों में से 6 पर इमरान की PTI ने जीत हासिल की। इन नतीजों को सत्ताधारी मुस्लिम लीग नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की गठबंधन वाली सरकार के लिए झटका माना जा रहा है।

इससे पहले जुलाई में हुए उपचुनावों में पंजाब की 20 में से 15 सीटें जीतते हुए इमरान की PTI ने प्रांत की सत्ता में वापसी की थी। पंजाब आबादी और राजनीतिक रसूख दोनों के लिहाज से पाकिस्तान का सबसे अहम प्रांत माना जाता है।

पाकिस्तान में इमरान खासकर युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। उनकी इमेज राजनीतिक व्यक्ति के बजाय एक ऐसे महान क्रिकेटर की है, जिसने 1992 में पाकिस्तान को उसका एकमात्र वर्ल्ड कप जिताया था। साथ ही इमरान की छवि बेहद साफ-सुथरी है, जो PPP के भुट्टो-जरदारी और शरीफ परिवार से एकदम उलट है, जिन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं।

साथ ही इमरान जिस पठान या पश्तून समुदाय से आते हैं, वो 18% आबादी के साथ पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। पाकिस्तान में पठानों की आबादी 3.5 करोड़ से ज्यादा है।

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