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भास्कर एक्सप्लेनर:भारत में नए फंगस की दस्तक से दहशत; जानिए कितना घातक है ये नया फंगल इंफेक्शन, क्या हैं लक्षण और बचाव

2 वर्ष पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय
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भारत में जानलेवा फंगस की एंट्री हो गई है। दिल्ली एम्स में फंगस के एक नए स्ट्रेन से मौत दो मरीजों की मौत के बाद डॉक्टरों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। एम्स के डॉक्टरों ने इन दोनों मरीजों में एस्परगिलस लेंटुलस (Aspergillus lentulus) नामक फंगल इंफेक्शन होने की पुष्टि की थी। इस इंफेक्शन की वजह से मौत होने का भारत में ये पहला मामला है।

समझते हैं, यह नया फंगल इंफेक्शन क्या है? कितना खतरनाक है? इससे पीड़ित मरीजों में किस तरह के लक्षण देखे जाते हैं? इससे बचाव के क्या तरीके हैं? और इसका इलाज क्यों मुश्किल है? पूरा मामला बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल के डॉक्टर वसंत नागवेकर से बात की है।

क्या होता है फंगल इंफेक्शन?

आसान भाषा में समझें तो फंगस (कवक) के कारण होने वाले इंफेक्शन को फंगल इंफेक्शन कहते हैं। दरअसल फंगस सूक्ष्मजीव होते हैं जो आपके घर के अंदर, बाहर और वातावरण में हर जगह मौजूद रहते हैं। फंगल इंफेक्शन से बच्चे, जवान, पुरुष, महिलाएं, कोई भी संक्रमित हो सकता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल भी सकता है। अब तक फंगस की करीब 700 प्रजातियों के बारे में पता चल चुका है।

भारत में दस्तक देने वाला फंगस का नया स्ट्रेन एस्परगिलस लेंटुलस क्या है?

  • एस्परगिलस लेंटुलस फंगस की नई प्रजाति है। हालांकि, एस्परगिलस की कई फंगस पहले से मौजूद हैं, लेकिन एस्परगिलस लेंटुलस सबसे खतरनाक है क्योंकि इस पर दवाओं का असर नहीं होता है।
  • WHO के मुताबिक, दुनिया भर में वैसे तो फंगस की 10 लाख से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन एक दशक पहले तक इनमें से केवल 300 फंगस ही बीमारी पैदा करती थीं। हालांकि, अब ऐसी फंगस की संख्या बढ़कर 700 तक पहुंच गई है। एम्स में सामने आया एस्परगिलस लेंटुलस इंफ्केशन भी ऐसे ही फंगस की प्रजाति है।
  • एस्परगिलस लेंटुलस का मामला भले ही हाल ही में भारत में सामने आया हो, लेकिन मेडिकल जगत को इसके बारे में पहली बार 2005 में पता चला था। उसके बाद से दुनिया के कई देशों में इंसानों में इस खतरनाक फंगल इंफेक्शन के मामले सामने आ चुके हैं।

कितना खतरनाक है एस्परगिलस लेंटुलस?

सबसे बड़ी समस्या यह है कि एस्परगिलस लेंटुलस की पहचान जल्द नहीं हो पाती है, जिससे मरीज की हालत बिगड़ती चली जाती है। साथ ही एंटी-फंगल दवाओं के इस पर असर नहीं होने से यह ज्यादा घातक है।

एस्परगिलस खास तौर पर फेफड़ों को संक्रमित करता है और तेजी से पूरे फेफड़े में फैल जाता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है और मल्टी-ऑर्गन फेल्योर की वजह से व्यक्ति की मौत हो जाती है।

एम्स में जिन दो मरीजों की मौत इस फंगल इंफेक्शन से हुई, उन्हें एंटी फंगल दवाएं जैसे Amphotericin B और Liposomal दी गई थीं, लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों मरीजों की मल्टी ऑर्गन फेल्योर से मौत हो गई।

इस इंफेक्शन से पीड़ित मरीजों में किस तरह के लक्षण देखे जाते हैं?

  • एस्परगिलस के मरीजों में शुरुआत में खांसी, बुखार, सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण नजर आते हैं।
  • साथ ही इंफेक्शन की वजह से एलर्जी या फेफड़ों और शरीर के दूसरे अंगों में संक्रमण हो सकता है।
  • एस्परगिलस फंगस इंफेक्शन की शुरुआत में त्‍वचा पर लाल चकत्ते, बुखार, सिरदर्द या थकान जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं।

आप इस इंफेक्शन से खुद का बचाव किस तरह कर सकते हैं?

  • एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड का इस्तेमाल केवल डॉक्टर की सलाह पर ही करें। बिना जाने ही एंटीबायोटिक्स और स्टेरॉयड का उपयोग फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ाती है।
  • डायबिटीज, किडनी, लिवर, फेफड़े की बीमारी से पीड़ित लोगों या कैंसर की वजह से कीमो करा रहे लोगों में भी फंगल इंफेक्शन का खतरा अधिक रहता है।
  • धूल से भरी हुई जगहों से बचने की कोशिश करें, जैसे कि कंस्ट्रक्शन साइट। साथ ही मास्क का उपयोग करें।
  • मिट्टी, खाद इत्यादि से जुड़े काम करते समय ग्लव्स का इस्तेमाल करें, ताकि एस्परगिलस के संक्रमण से बचा जा सके।
  • बागवानी या इस तरह का कोई भी काम करने से पहले फुल पैंट, फुल शर्ट और जूते पहनें, ताकि फंगल इंफ्केशन का खतरा कम किया जा सके।

कैसे होता है एस्परगिलस इंफेक्शन?

एस्परगिलस फंगल इंफेक्शन आमतौर पर काफी कम होता है, यह केवल उन लोगों को होता है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, या जिन लोगों का किसी भी तरह का कोई ट्रांसप्लांट हुआ हो, या फेफड़ों की बीमारी से ग्रसित लोगों में एस्परगिलस की वजह से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने का खतरा अधिक रहता है।

क्यों मुश्किल है फंगल इंफेक्शन का इलाज?

  • देश में फंगस से होने वाले इंफेक्शन की जांच और उनका इलाज करने वाले अस्पतालों की संख्या गिनी-चुनी है, इसलिए समय पर इलाज मिलना मुश्किल है।
  • एंटी-फंगल की दवाओं की सीमित संख्या भी इसके मरीजों के इलाज में मुश्किलें खड़ी करती हैं। एस्परगिलस लेंटुलस जैसे फंगल इंफेक्शन पर तो इन दवाओं का असर तक नहीं होता है।
  • एंटी-फंगल की दवाओं की संख्या न केवल सीमित है बल्कि वह बहुत महंगी भी हैं, यही वजह है कि फंगल इंफेक्शन से पीड़ित गरीबों के लिए इसका इलाज कराना मुश्किल होता है।
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