हरियाणा के खेल मंत्री और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह पर एक महिला कोच ने यौन शोषण के संगीन आरोप लगाए हैं। इस मामले में पुलिस ने संदीप सिंह के खिलाफ 5 धाराओं में केस दर्ज किया है, जिसमें दो गैर-जमानती हैं। संदीप सिंह ने पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सभी आरोपों को खारिज किया, फिर इस्तीफा दे दिया।
ये वही संदीप सिंह हैं, जो कभी भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे और दुनिया के सबसे तेज ड्रैग-फ्लिकर में से एक रहे। गोली लगने के बाद भी उन्होंने खेल में वापसी की। राजनीति में आए तो पहला ही चुनाव जीते और मंत्री बन गए। अब महिला कोच के सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोपों से घिरे हैं। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे संदीप सिंह के राइज एंड फॉल की पूरी कहानी...
1986 में जन्मे संदीप सिंह के बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह हॉकी प्लेयर थे। उनके हॉकी किट से संदीप सिंह को लगाव था, लेकिन छूने की इजाजत नहीं थी। उनके बड़े भाई को जूते-कपड़े मिलते, यहां-वहां जाने को मिलता था। घरवालों ने कहा अगर तुम्हें भी ये सब चाहिए तो हॉकी खेलना पड़ेगा।
अपने परफेक्ट ड्रैग फ्लिक की बदौलत संदीप बने फ्लिकर सिंह
संदीप ने जूनियर खेलते हुए ही काफी नाम बना लिया। उनके ड्रैग फ्लिक की बड़ी डिमांड थी। ड्रैग फ्लिक हॉकी में पेनाल्टी कॉर्नर से स्कोर करने का एक तरीका है। इसकी शुरुआत कॉर्नर से अटैक की ओर धकेली गई गेंद से होती है।
2003 में इंडियन हॉकी टीम में सिलेक्ट हुए। 2004 में एथेंस ओलिंपिक का हिस्सा बने। वो यहां दुनिया के सबसे कम उम्र के हॉकी प्लेयर थे। 2005 में जूनियर वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा कुल 10 गोल किए। 2006 में जर्मनी में होने वाले हॉकी वर्ल्ड कप की सीनियर टीम का हिस्सा बने। इस टूर्नामेंट से ठीक पहले संदीप सिंह को गोली लग गई।
चलती ट्रेन में लगी गोली लगी, शरीर के निचले हिस्से में पैरालिसिस हो गया
2006 के सीनियर वर्ल्ड कप की तैयारियों के बीच एक हफ्ते का ब्रेक था। 22 अगस्त 2006 को संदीप अपने दोस्त के साथ चंडीगढ़ से घर के लिए कालका शताब्दी एक्सप्रेस में बैठ कर निकले। संदीप की सीट के ठीक पीछे रेलवे पुलिस फोर्स का एक जवान बैठा था। वो अपनी बंदूक साफ कर रहा था, तभी गलती से गोली चल गई।
संदीप सिंह एक इंटरव्यू में बताते हैं, ‘बैठते ही अचानक से धमाका हुआ और मेरे आस-पास सब कुछ सुन्न हो गया। किसी को कुछ समझ में आता तभी एक जवान 9 एमएम की पिस्टल लिए आया और कहने लगा कि मुझसे गलती से चल गई। इसके बाद ऐसा लगा जैसे मेरे कमर में किसी ने गर्म लोहे की राड घुसा दी हो’।
गोली संदीप के रीढ़ की हड्डी में लगी थी और उनके शरीर का 40% हिस्सा काम करना बंद कर चुका था। उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती किया गया।
संदीप इस घटना को गेम चेंजर मानते हैं। उन्होंने अपने भाई से हॉकी स्टिक मांगी और अपने बिस्तर के पास रख लिया। संदीप बताते हैं, 'गोली लगने के बाद शरीर के सभी ऑर्गेन डैमेज हो गए थे। सिर्फ लिक्विड दिया जाता था, इसलिए मेरा वजन कम होने लगा। मैं जब होश में आया तो परेशान था, लेकिन मैंने तय किया कि ये मेरे लिए नहीं बना है। मेरे लिए हॉकी फील्ड बनी है और मुझे खेलना है।’
सबको लगा करियर खत्म, लेकिन 2 साल में संदीप मैदान में थे
संदीप सिंह के शरीर का निचला हिस्सा सुन्न पड़ा रहता था। उनके पास सिर्फ एक हॉकी थी। वो बताते हैं, 'सोने के लिए दवाइयां दी जाती थीं, फिर भी मैं 1-2 घंटे ही सो पाता था। मेरे दिमाग में सिर्फ हॉकी चलती रहती थी। मुझे खेलना था और वो सारे रिकॉर्ड बनाने थे जो मुझसे अभी नहीं बने थे। जिस हॉकी स्टिक से मैं दुनिया का बेस्ट ड्रैग फ्लिक मारता था, उसके सहारे चलने की कोशिश करनी पड़ रही थी।'
जब तबीयत में कुछ सुधार हुआ तो भारतीय हॉकी फेडरेशन की तरफ से रिहैबिटेशन के लिए विदेश गए। वहां 6 -7 महीने इलाज हुआ और भारत से व्हीलचेयर पर गए संदीप उधर से अपने पैरों पर देश लौटे।
संदीप तब एयर इंडिया में नौकरी करते थे और उनकी टीम के लिए खेलते थे। उन्होंने वहां लगातार बेहतर किया और फिट होते रहे। देश के भीतर कई मैंचों में खेलते रहने के बाद संदीप सिंह ने भारतीय हॉकी फेडरेशन का दरवाजा खटखटाया और दो सालों बाद उन्हें एक मौका दिया गया। मौका था- सुल्तान अजलान शाह कप। ये वही टूर्नामेंट था जिसमें चार साल पहले संदीप सिंह सबसे चर्चित और युवा खिलाड़ी थे। इस में संदीप सिंह ने कुल 8 गोल किए और टॉप स्कोरर रहे और टीम के कप्तान बनाए गए।
जन्मदिन की रात बनाए तीन रिकॉर्ड
साल भर के भीतर 2009 में टीम ने सुल्तान अजलान शाह कप में 13 साल बाद जीत दर्ज की। इसमें सबसे अधिक गोल संदीप सिंह ने किए और फिर प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट भी बने।
2010 में उन्हें अर्जुन ऑवार्ड मिला। साल 2011 में संदीप सिंह को वर्ल्ड हॉकी फेडरेशन ने दुनिया के टॉप 5 प्लेयर्स के सूची में शामिल किया। 2012 के लंदन ओलिंपिक के लिए संदीप सिंह से बहुत उम्मीदें थीं। क्वालिफाई मैच के फाइनल में फ्रांस के खिलाफ संदीप सिंह ने एक के बाद एक कई विश्व रिकॉर्ड बनाए।
145 किमी प्रति घंटे की ड्रैग फ्लिक के साथ ही एक ही मैच में इंटरनेशनल लेवल पर फाइनल में 5 गोल कर दिया। संदीप ने अपने आइडल धनराज पिल्ले का एक टूर्नामेंट में 121 गोल मारने का रिकॉर्ड भी उसी दिन तोड़ दिया। संयोग ही रहा कि ये मैच 27 फरवरी को था और इसी दिन संदीप सिंह का जन्मदिन भी है।
रिटायरमेंट के बाद मूवी बनी, फिर राजनीति में आए
200 से ज्यादा अंतर्राराष्ट्रीय मैचों में संदीप सिंह ने 150 से ज्यादा गोल किए। उन्होंने आखिरी इंटरनेशनल मैच 2016 में खेला। उनकी लाइफ पर 2018 में ‘सूरमा’ नाम की फिल्म भी बनी, जिसमें संदीप का किरदार दिलजीत दोसांझ ने निभाया।
संदीप ने 2019 में राजनीति में एंट्री मारी। उन्हें हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पिहोवा से टिकट दिया। पहले ही चुनाव में संदीप ने धमाकेदार जीत दर्ज की। उन्होंने दिग्गज कांग्रेसी नेता हरमोहिंदर सिंह चट्ठा के बेटे मंदीप सिंह चट्ठा को हराया। संदीप को मनोहर लाल खट्टर की सरकार में खेल मंत्री और मुद्रण मंत्री बनाया गया।
राजनीति के माहिर खिलाड़ी नहीं, मंत्रियों का भी साथ नहीं मिला
वह पहली बार चुनाव लड़े, जीते और मंत्री भी बन गए। हॉकी में उनकी उपलब्धियों को देख उन्हें खेल मंत्रालय सौंप दिया। इस फैसले से कुछ सीनियर मंत्री नाराज भी हुए। यही वजह है कि जब वह महिला कोच के आरोपों से घिरे तो कैबिनेट के साथियों का भी साथ नहीं मिल पाया।
सरकार के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार संदीप सिंह पहले से ही मनोहर कैबिनेट के नान- परफॉर्मर मंत्री कहे जा रहे थे। विभागों के विलय के बाद संदीप सिंह के पास से एक महकमा भी जा चुका है। इसके बाद संभावित कैबिनेट फेरबदल में भी उनकी कुर्सी जाने का खतरा बताया जा रहा था। ऐसे में अचानक वह महिला कोच के विवाद में घिर गए हैं।
संदीप सिंह महिला कोच के आरोप और खेल विभाग छोड़ने तक क्या-क्या हुआ?
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