4 लाख साल पुराने वायरस को जिंदा कर रहा रूस:इसे झेलने के लिए इंसानों की इम्यूनिटी काफी नहीं; आ सकती है कोरोना जैसी महामारी

3 महीने पहलेलेखक: अनुराग आनंद
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रूस में 4 लाख साल पुराने वायरस को जिंदा किया जा रहा है। इस पर साइबेरिया शहर की नोवोसिबिर्स्क में एक बायोवेपंस लैब काम कर रही है। इस लैब के साइंटिस्ट का कहना है कि इसी वायरस की वजह से हिमयुग के मैमथ और प्राचीन गैंडों का अस्तित्व खत्म हो गया था।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि आखिर रूस को 4 लाख साल पुराने इस वायरस को फिर से जिंदा करने की जरूरत क्यों पड़ी और ये दुनिया में कैसे तबाही ला सकता है?

4 लाख साल पुराना वायरस क्या है और इसने कैसे तबाही मचाई
द सन की रिपोर्ट मुताबिक लाखों साल पहले मरे मैमथ और गैंडों के शव रूस के याकुटिया नाम की जगह पर मिले हैं। इस जगह का तापमान -55 डिग्री से भी कम है।

यही वजह है कि 4 लाख सालों से बर्फ के नीचे दबे होने की वजह से इन जानवरों का मृत शरीर सुरक्षित है। रिसर्च के दौरान साइंटिस्ट को मैमथ के शरीर से ये खतरनाक वायरस मिला है।

ऐसा माना जा रहा है कि हिम युग में इन वायरसों की वजह से महामारी फैली थी। इसमें सैकड़ों बड़े जानवर एक साथ मारे गए थे।

ये 4 लाख साल पुराने मैमथ का कंकाल है, जिस पर रूस में रिसर्च किया जा रहा है।
ये 4 लाख साल पुराने मैमथ का कंकाल है, जिस पर रूस में रिसर्च किया जा रहा है।

रूस के लैब में इस वायरस को क्यों किया जा रहा है जिंदा?
साइबेरिया शहर के नोवोसिबिर्स्क में एक बायोवेपंस लैब है। रूस में इस लैब को लोग ‘वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर ऑफ वायरोलॉजी’ के नाम से भी जानते हैं।

इसी लैब में साइंटिस्ट इस वायरस को जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि हिम युग में मैमथ और और प्राचीन गैंडों की मौत के लिए ये वायरस जिम्मेदार थे।

ऐसे में इस खतरनाक संक्रामक वायरस के बारे में जानने के लिए ही एक बार फिर से इसे जिंदा किया जा रहा है।

रूस के रिसर्च पर दुनिया को एक और महामारी की चेतावनी
आमतौर पर किसी देश में जब इस तरह के रिसर्च होते हैं तो दुनिया भर के साइंटिस्ट्स के बीच इसकी जानकारी होती है। हर देश दूसरे देश की साइंस और टेक्नोलॉजी की मदद लेकर अपने रिसर्च को अंजाम देते हैं।

जंग शुरू होने के बाद से ही रूसी साइंटिस्ट्स से दुनिया के बाकी देशों के वैज्ञानिक संपर्क में नहीं हैं। यही वजह है कि यूरोपीय देशों को इस बात की चिंता सता रही है कि रूस अपने लैब में इस वायरस को बायोवेपंस का रूप दे सकता है।

यहां बात बायोवेपंस की हुई है तो एक ग्राफिक्स में इसके बारे में भी जान लीजिए....

लंदन के किंग्स कॉलेज के बॉयो सिक्योरिटी एक्सपर्ट फिलिपा लेंट्जोस ने चेतावनी दी है कि ये वायरस जिंदा होकर किसी तरह से लैब के बाहर आता है तो दुनिया में एक और महामारी आ सकती है। उन्होंने कहा कि ये बेहद जोखिम भरा यानी आग से खेलने जैसा है।

इस मैमथ की मौत खतरनाक वायरस की वजह से लाखों साल पहले हुई थी। अब इस पर रिसर्च किया जा रहा है।
इस मैमथ की मौत खतरनाक वायरस की वजह से लाखों साल पहले हुई थी। अब इस पर रिसर्च किया जा रहा है।

‘ये वायरस इतने ताकतवर कि इंसानों के शरीर झेल नहीं पाएंगे’
ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी फ्रांस में नेशनल सेंटर ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर जीन मिशेल क्लेवेरी ने कहा है कि रूस जो रिसर्च कर रहा है वो बहुत जोखिम भरा है।

उन्होंने कहा कि इस वायरस से अगर संक्रमण फैलता है तो इंसान शरीर का इम्यून सिस्टम इतना मजबूत नहीं है कि इसे झेल पाएंगे। इसकी वजह यह है कि हमारे शरीर ने 4 लाख साल पुराने वायरस का कभी सामना नहीं किया है।

इसके साथ ही एक्सपर्ट ने चेतावनी दी है कि रूस इस प्री-हिस्टोरिक समय के वायरस के साथ खिलवाड़ कर रहा है, जो जानवर और मनुष्यों के बीच संक्रमण के जरिए एक जानलेवा महामारी फैला सकता है।

इससे पहले मिला था 48 हजार साल पुराना जोंबी वायरस
1 दिसंबर 2022 को रूस के इसी याकुटिया क्षेत्र में एक झील के नीचे 48,500 साल पुराना जोंबी वायरस मिला था। फ्रांसीसी रिसर्चर ने इस वायरस को खोजने का दावा किया था।

साइंटिस्ट्स का कहना था कि जोंबी वायरस में 13 तरह के नए रोगाणु मिले हैं। ये सभी रोगाणु 48 हजार साल से ज्यादा समय से बर्फ में जमे थे, इसके बावजूद इनमें संक्रमण फैलाने की क्षमता बरकरार है।

इस वायरस को लेकर bioRxiv डिजिटल लाइब्रेरी में एक रिसर्च प्रकाशित हुई है। रिसर्च में शामिल साइंटिस्ट्स का कहना है कि झील में दफन ये वायरस बाहर निकलकर वातावरण में फैल सकते हैं और फिर इंसानों और जानवरों को बीमार कर सकते हैं।

अब यहां बात वायरस की हो रही है तो खबर में आगे जानते हैं कि आखिर वायरस होता क्या है, ये कहां से और कब आया, इसका बिहेवियर क्या होता है…

वायरस कैसे फैलता है और इसका बिहेवियर क्या है?

खांसने, छीकने या नाक और मुंह से निकली छोटी बूंदों से वायरस एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे के शरीर में पहुंचता है। वायरस के चारों ओर एक प्रोटीन की लेयर होती है।

प्रोटीन के इसी लेयर के जरिए ये शरीर के बाकी कोशिकाओं को संक्रमित करता है। वायरस कई तरह के होते हैं, लेकिन इनमें तीन चीजें एक जैसी होती हैं-

1. ये बेहद छोटे यानी 200 नैनोमीटर व्यास से भी छोटे होते हैं।

2. खुद का क्लोन यानी नया रूप बनाकर संक्रमण फैलाना वायरस का सामान्य व्यवहार होता है।

3. अभी तक कोई ऐसा वायरस नहीं है, जो अपने पास राइबोसोम रखता हो। राइबोसोम हमारे शरीर के कोशिका के कोशिका द्रव में स्थित एक बहुत ही बहुत सूक्ष्म कण हैं।

वायरस अपना नया वैरिएंट्स कैसे बनाता है?
किसी भी वायरस में समय के साथ बदलाव होते हैं, ताकि वो नेचर में सर्वाइव कर सके। जहां ज्यादातर वायरस अपने गुणों को बहुत ज्यादा नहीं बदलते, वहीं कुछ वायरस ऐसे भी होते हैं जिनमें वैक्सीन और इलाज से लड़ने के कारण बदलाव हो जाते हैं।

इस तरह वायरस के नए वैरिएंट्स बनते हैं, जो हमारे लिए खतरा पैदा करते हैं। लोगों के लिए एक वैरिएंट कितना खतरनाक है, इस आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) उसे 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' (VoC), यानी एक चिंताजनक वैरिएंट घोषित करता है।

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