यूक्रेन पर रूसी हमले के 316 दिन हो चुके हैं। रूस की सेना को यूक्रेन में कई जगहों पर हार का सामना करना पड़ा है। इस बीच पुतिन की खराब तबीयत की भी खबरें आती रहती हैं। ऐसे समय में रूस में एक नया नेता उभर रहा है। यह कोई और नहीं बल्कि पुतिन का रसोइया येवगेनी प्रिगोजिन है।
येवगेनी को राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का उत्तराधिकारी बताया जा रहा है। इसके संकेत इन 4 बातों से मिलते हैं...
हॉट डॉग स्टॉल लगाने से येवगेनी के पुतिन का शेफ बनने की कहानी…
9 साल जेल में रहने के बाद बिजनेस शुरू किया
येवगेनी प्रिगोजिन का जन्म 1 जून 1961 को सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ। पुतिन की तरह येवगेनी सेंट पीटर्सबर्ग में पले-बढ़े। रूसी कोर्ट के डॉक्यूमेंट के मुताबिक, येवगेनी को 1981 में मारपीट, डकैती और धोखाधड़ी में दोषी ठहराया गया था और 13 साल की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि सोवियत यूनियन के पतन के 9 साल बाद येवगेनी को रिहा कर दिया गया। येवगेनी ने जेल से बाहर आने के बाद बिजनेस करने का फैसला किया। सबसे पहले हॉट डॉग का स्टॉल लगाना शुरू किया। इसके बाद अमीर लोगों के लिए एक रेस्तरां खोला।
येवगेनी ने अपने पार्टनर्स के साथ मिलकर डॉक की गई बोट पर एक रेस्तरां खोला। इसे जल्द ही काफी पॉपुलैरिटी मिली और यह सेंट पीटर्सबर्ग का सबसे फैशनेबल डाइनिंग स्पॉट बन गया। पॉपुलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि पुतिन खुद वर्ल्ड लीडर्स के साथ इस रेस्तरां में गए। पुतिन ने 2001 में फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक और उनकी पत्नी और 2002 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की मेजबानी की। 2003 में पुतिन ने अपना बर्थडे भी इसी रेस्तरां में मनाया।
रेस्तरा में जब भी इस तरह का बड़ा आयोजन होता, येवगेनी बड़े मेहमानों के आस-पास ही रहते। कई बार तो वह खाली प्लेटों को भी साफ करते थे। पुतिन ने भी इसे नोटिस किया था। सेंट पीटर्सबर्ग की मैगजीन गोरोड 812 से बातचीत में एक बार येवगेनी ने बताया कि राष्ट्रपति पुतिन ने देखा कि कैसे मैंने एक कियोस्क से अपना बिजनेस शुरू किया। साथ ही मैं एक वेटर की तरह ही अपने रेस्टोरेंट में काम किया करता था।
पुतिन के संपर्क में आने के बाद येवगेनी ने कॉनकॉर्ड कैटरिंग की शुरुआत की। इसके बाद येवगेनी को रूस के स्कूलों और सेना को खिलाने के लिए बड़े गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट मिलने लगे। उन्हें राष्ट्रपति के भोज की मेजबानी करने का अवसर भी मिला। इसी के बाद से उन्हें पुतिन का रसोइया या शेफ कहा जाने लगा। एंटी-करप्शन फाउंडेशन के मुताबिक, पिछले 5 सालों में येवगेनी को 3.1 अरब डॉलर यानी 26 हजार करोड़ रुपए के गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट मिले हैं।
2016 के अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने का आरोप
अपने रेस्तरां और कैटरिंग के बिजनेस से बड़ी संपत्ति बनाने के बाद येवगेनी ने अपने रसोई घर से बाहर कदम रखा। अमेरिकी अभियोजकों के मुताबिक, येवगेनी रूस की ट्रोल फैक्ट्री को फंडिंग देने वाली कंपनी इंटरनेट रिसर्च एजेंसी के मालिक हैं। इसका काम सोशल मीडिया पर काल्पनिक नाम से अमेरिका के खिलाफ झूठ फैलाना है।
आरोप है कि इसी कंपनी ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन और हिलेरी क्लिंटन की आलोचना वाले मैसेज किए। यानी एक प्रकार से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 में जब ट्रोल फैक्ट्री का बनाई गई, तो मेन टास्क सोशल मीडिया को उन आर्टिकल और कमेंट्स से भर देना था, जो बताते थे कि नैतिक रूप से भ्रष्ट पश्चिमी देशों की तुलना में पुतिन का शासन ज्यादा अच्छा है।
रूस में भाड़े के सैनिकों यानी वैगनर आर्मी के लिए फंडिंग करते हैं
येवगेनी रूसी सरकार के समर्थन वाले लड़ाकों के खतरनाक ग्रुप वैगनर से भी जुड़े हैं। कई सालों की अटकलों के बाद सितंबर 2022 में खुद येवगेनी ने इसे स्वीकार किया। रूस की प्राइवेट आर्मी कही जाने वाली वैगनर आर्मी को 2014 में बनाया गया था। यूरोपीय संघ और अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के मुताबिक, इस प्राइवेट आर्मी को एक कंपनी की शक्ल में येवगेनी प्रिगोजिन फंड करते हैं। द टाइम्स के अनुसार, यह कानूनी रूप से रजिस्टर्ड कंपनी नहीं है और भाड़े के सैनिक रूसी कानून के तहत अवैध हैं। हालांकि ग्रुप को अभी भी क्रेमलिन समर्थक प्राइवेट आर्मी के रूप में देखा जाता है।
माना जाता है कि वैगनर आर्मी को पहली बार 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद तैनात किया गया था। प्राइवेट आर्मी इससे पहले सीरिया, लीबिया, माली और सेंट्रल अफ्रिकन रिपब्लिक में क्रूर और भयानक मिशनों को अंजाम दे चुका है। यूक्रेन पर हमले से ठीक पहले इसी गुट के लड़ाके पूर्वी यूक्रेन में फॉल्स फ्लैग अभियानों को अंजाम दे रहे थे, ताकि रूस को हमला करने का बहाना मिल सके।
येवगेनी प्रिगोजिन कई सालों तक वैगनर आर्मी के साथ किसी भी इंवॉल्वमेंट से इनकार करते रहे हैं। यहां तक कि जब एक पत्रकार ने वैगनर के साथ उनके जुड़े होने का दावा किया तो उन्होंने उस पर केस कर दिया था।
रूसी सेना के लिए भी चुनौती बन रही है वैगनर आर्मी
संडे गार्जियन लाइव की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन की सीमा से लगे रूसी इलाके बेलगोरोड और कुर्स्क में येवगेनी प्रिगोजिन ने सेना के बराबर का मिलिट्री स्ट्रक्चर खड़ा कर रखा है। यहीं पर वैगनर आर्मी की ट्रेनिंग फैसिलिटी और रिक्रूटमेंट सेंटर भी है। अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी के प्रवक्ता जॉन किर्बी के मुताबिक, येवगेनी प्रिगोजिन की वैगनर आर्मी खुद ही रूसी सेना के लिए एक प्रतिद्वंद्वी शक्ति केंद्र के रूप में उभर रही है।
येवगेनी प्रिगोजिन की तुलना रासपुतिन से की जा रही
कई जानकारों का कहना है कि येवगेनी प्रिगोजिन के प्रभाव क्षेत्र या शक्ति के बारे में कोई सवाल नहीं है। हालांकि यह देखना बाकी है कि क्या वह अपने बढ़ते प्रभाव को राजनीतिक करियर में बदल पाते हैं या नहीं।
ज्यादातर राजनेताओं की तरह येवगेनी भी अपनी महत्वाकांक्षा को कम महत्व देते हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि मैं लोकप्रिय होने के लिए प्रयास नहीं करता। मेरा काम अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य को पूरा करना है। राजनीति में जाने की बात तो दूर है, मेरी कोई राजनीतिक दल बनाने की योजना ही नहीं है। हालांकि, रूस में उनके उभार और क्रेमलिन में उनका बोलबाला होने को बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
रशियन पॉलिटिक्स के एक्सपर्ट और वाशिंगटन स्थिति कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो आंद्रेई कलाश्निकोव कहते हैं कि येवगेनी का प्रभाव रूस के राजा जार निकोलस-2 के दरबार में ग्रेगोरी रासपुतिन जैसा दिखने लगा है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से कई लोग कह रहे हैं कि यह शख्स अगले राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार है।
कहा जाता है कि रासपुतिन में सम्मोहन की ऐसी शक्ति थी, जिसने रूस के शासक को भी अपना गुलाम बना लिया था। रासपुतिन 1906 में पहली बार जार निकोलस के दरबार में पहुंचा। जब रासपुतिन दरबार पहुंचा, तब रानी अलेक्जेंड्रा लंबे वक्त से अपने बेटे के लिए एक वैद्य खोज रही थी। उनके बेटे को हीमोफीलिया था।
राजकुमार को एक जरा सा कट लग जाने पर जान जाने का खतरा बना रहता था। उस वक्त इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था। ऐसे में रासपुतिन ने रानी को भरोसा दिलाया कि राजकुमार को कुछ नहीं होगा। उसने ना जाने ऐसा क्या किया कि कुछ ही दिनों में राजकुमार बिल्कुल ठीक हो गया। इससे शाही दरबार रासपुतिन का मुरीद हो गया।
रूस में अपने खास लोगों को ही सत्ता सौंपने की रवायत
1991 में सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद यानी 31 सालों में रूस में 3 लोग ही राष्ट्रपति बने हैं। 10 जुलाई 1991 को बोरिस येल्तसिन रूस के पहले राष्ट्रपति बने। इसके बाद येल्तसिन ने अगस्त 1999 में व्लादिमिर पुतिन को प्रधानमंत्री बनाया। यह स्पष्ट संकेत था कि राष्ट्रपति येल्तसिन क्रेमलिन यानी देश का नेतृत्व करने के लिए पुतिन को तैयार कर रहे थे। येल्तसिन का कार्यकाल साल 2000 तक था। हालांकि दिसंबर 1999 में उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद व्लादिमिर पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और फिर चुनाव जीतकर 7 मई 2000 को रूस के राष्ट्रपति बने। इसके बाद 7 मई 2008 तक राष्ट्रपति रहे। चूंकि रूस में लगातार कोई भी शख्स दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता था। इस वजह से पुतिन ने 7 मई 2008 को प्रधानमंत्री रहे दिमित्री मेदवदेव को राष्ट्रपति बनाया।
इस दौरान संविधान संशोधन कर सिर्फ 2 बार राष्ट्रपति बनने की सीमा को खत्म कर दिया गया। इसके बाद 7 मई 2012 को पुतिन फिर से रूस के राष्ट्रपति बनते हैं। यानी रूस में सत्ता को अपने करीबी को सौंपने की रवायत चली आ रही है। माना जा रहा है कि पुतिन भी अपने करीबी और रसोइए येवगेनी प्रिगोजिन को अपना उत्तराधिकारी बनाएंगे।
भास्कर एक्सप्लेनर के कुछ और ऐसे ही रोचक आर्टिकल पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें...
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.