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भास्कर एक्सप्लेनर:34 साल बाद बदली नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को ऐसे समझें... इसमें वो सबकुछ है, जो आपको और आपके बच्चों के लिए जानना जरूरी है

3 वर्ष पहलेलेखक: रवींद्र भजनी / कमलेश माहेश्वरी
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  • 34 साल पहले, 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई थी। तीन दशक से इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ
  • नई शिक्षा नीति में GDP का 6% हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च किए जाने का लक्ष्य रखा गया है

केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को नई शिक्षा नीति (National Education Policy 2020) को मंजूरी दे दी है। 1986 के बाद पहली बार यानी 34 साल बाद देश की शिक्षा नीति बदल रही है। इसमें बच्चे के प्राइमरी स्कूल में एडमिशन से लेकर हायर एजुकेशन कर जॉब फोर्स से जुड़ने तक काफी बदलाव किए गए हैं। नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट इसरो के वैज्ञानिक रह चुके शिक्षाविद के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली कमेटी ने बनाया है।

शिक्षा नीति लाने की जरूरत क्यों महसूस की गई?

  • इससे पहले की शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी। उसमें ही संशोधन किए गए थे। लंबे समय से बदले हुए परिदृश्य में नई नीति की मांग हो रही थी। 2005 में कुरिकुलम फ्रेमवर्क भी लागू किया गया था।
  • एजुकेशन पॉलिसी एक कॉम्प्रेहेंसिव फ्रेमवर्क होता है जो देश में शिक्षा की दिशा तय करता है। यह पॉलिसी मोटे तौर पर दिशा बताता है और राज्य सरकारों से उम्मीद है कि वे इसे फॉलो करेंगे। हालांकि, उनके लिए यह करना अनिवार्य नहीं है।
  • ऐसे में यह पॉलिसी सीबीएसई तो लागू करेगी ही, राज्यों में अपने-अपने स्तर पर फैसले लिए जाएंगे। यह बदलाव जल्द नहीं होंगे बल्कि इसमें समय लग सकता है। यह एक प्रक्रिया की शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए।
  • स्कूल शिक्षा के लिए नेशनल करिकुलर फ्रेमवर्क के तौर पर स्कूल करिकुलम (एनसीएफएसई) का ओवरहॉल किया गया था। इसे नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एऩसीईआरटी) करेगा। एनसीएफएसई के आधार पर किताबों का रिवीजन होगा। एनसीईआरटी ने 2014 के बाद से दो बार स्कूल की टेक्स्टबुक का रिवीजन किया है।
बुधवार को नई दिल्ली में नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट के बारे में मीडिया से रूबरू केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल और प्रकाश जावड़ेकर।
बुधवार को नई दिल्ली में नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट के बारे में मीडिया से रूबरू केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल और प्रकाश जावड़ेकर।

और क्या नया और अलग होगा शिक्षा जगत में?

  • नई शिक्षा नीति के तहत तकनीकी संस्थानों में भी आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज के विषय पढ़ाए जाएंगे। साथ ही देश के सभी कॉलेजों में म्यूजिक, थिएटर जैसे कला के विषयों के लिए अलग विभाग स्थापित करने पर जोर दिया जाएगा।
  • कैबिनेट ने एचआरडी (ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट) मिनिस्ट्री का नाम बदलकर मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन करने की मंजूरी भी दी है। दुनियाभर की बड़ी यूनिवर्सिटीज को भारत में अपना कैंपस बनाने की अनुमति भी दी जाएगी।
  • IITs समेत देश भर के सभी तकनीकी संस्थान होलिस्टिक अप्रोच ( समग्र दृष्टिकोण) को अपनाएंगे। इंजीनियरिंग के साथ-साथ तकनीकी संस्थानों में आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज से जुड़े विषयों पर भी जोर दिया जाएगा।
  • देशभर के सभी इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए एक कॉमन एंट्रेंस एग्जाम आयोजित कराए जाने की बात भी कही गई है। यह एग्जाम नेशनल टेस्टिंग एजेंसी कराएगी। हालांकि, यह ऑप्शनल होगा। सभी स्टूडेंट्स के लिए इस एग्जाम में शामिल होना अनिवार्य नहीं रहेगा।
  • स्टूडेंट्स अब क्षेत्रीय भाषाओं में भी ऑनलाइन कोर्स कर सकेंगे। आठ प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं के अलावा कन्नड़, उड़िया और बंगाली में भी ऑनलाइन कोर्स लॉन्च किए जाएंगे। वर्तमान में अधिकतर ऑनलाइन कोर्स इंग्लिश और हिंदी में ही उपलब्ध हैं।
  • नई शिक्षा नीति में GDP का 6% हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में केंद्र और राज्य को मिलाकर GDP का कुल 4.43% बजट ही शिक्षा पर खर्च किया जाता है।

पूरी शिक्षा नीति को समझने के लिए हमने देश के बड़े विशेषज्ञों से संपर्क किया और आपके लिए सरल भाषा में इस नीति को आपके सामने आसान Q&A फॉर्मेट में रख रहे हैं-

Q. स्कूल में पढ़ाई के ढांचे में किस तरह का बदलाव दिखेगा?

पूरी व्यवस्था ही बदल गई है। मौजूदा व्यवस्था में तीन स्तर है और नए सिस्टम में पांच स्तर। यह हर स्तर पर हुनरमंद नई पीढ़ी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल होगी।

इसे ग्राफिक की मदद से इस तरह समझ सकते हैं -

  • मौजूदा सिस्टम में 6 वर्ष का बच्चा कक्षा 1 में आता है। नए सिस्टम में ज्यादा बदलाव नहीं है। लेकिन इसके मूल ढांचे में थोड़ा बदलाव किया है।
  • 6 से 9 वर्ष के बच्चों के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर फोकस होगा। इसके लिए नेशनल मिशन बनेगा। पूरा फोकस होगा कक्षा 3 तक के बच्चों का फाउंडेशन मजबूत बने।
  • कक्षा 5 तक तक आते-आते बच्चे को भाषा और गणित के साथ उसके स्‍तर का सामान्य ज्ञान होगा। डिस्कवरी और इंटरेक्टिवनेस इसका आधार होगा यानी खेल-खेल में सारा सिखाया जाएगा।
  • कक्षा 6-8 तक के लिए मल्‍टी डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। एक्टिविटीज के जरिये पढ़ाएंगे। कक्षा 6 के बच्‍चों को कोडिंग सिखाएंगे। 8वीं तक के बच्चों को प्रयोग के आधार पर सिखाया जाएगा।
  • कक्षा 9 से 12 तक के बच्‍चों के लिए मल्टी-डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। यदि बच्चे की रुचि संगीत में है, तो वह साइंस के साथ म्यूजिक ले सकेगा। केमेस्ट्री के साथ बेकरी, कुकिंग भी कर सकेगा।
  • कक्षा 9-12 में प्रोजेक्‍ट बेस्ड लर्निंग पर जोर होगा। इससे जब बच्‍चा 12वीं पास करके निकलेगा, तो उसके पास एक स्किल ऐसा होगा, जो आगे चलकर आजीविका के रूप में काम आ सकता है।
  • आकाश एजुकेशनल सर्विसेस लिमिटेड के सीईओ आकाश चौधरी के मुताबिक नई व्यवस्था हुनर-आधारित शिक्षा का महत्व बढ़ाएगी। युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ेगी।

Q. बोर्ड परीक्षाओं का क्या होगा?

  • नई शिक्षा नीति में नियमित और क्रिएटिव असेसमेंट की बात कही गई है। कक्षा 3, 5 और 8 में स्कूली परीक्षाएं होंगी। इसे उपयुक्त प्राधिकरण संचालित करेगा।
  • कक्षा 10 एवं 12 की बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी। इनका स्वरूप बदल जाएगा। नया नेशनल असेसमेंट सेंटर ‘परख’ मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा।

Q. ECCE फ्रेमवर्क क्या है, जिसकी चर्चा हो रही है?

  • ECCE का मतलब है अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन। इसके तहत बच्चे को बचपन में जिस देखभाल की आवश्यकता होती है उसे शिक्षा के साथ जोड़ा गया है।
  • NCERT इसके लिए नेशनल कोर्स और एजुकेशनल स्ट्रक्चर बनाएगा। बच्चों की देखभाल और पढ़ाई पर फोकस रहेगा। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और बेसिक टीचर्स को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी।
  • तीन से आठ वर्ष आयु के बच्चों को दो हिस्सों में बांटा है। पहले हिस्से में यानी 3-6 वर्ष तक बच्चा ECCE में रहेगा। इसके बाद 8 वर्ष का होने तक वह प्राइमरी में पढ़ेगा।

Q. ओपन लर्निंग ऑप्शन क्या है?

  • कक्षा 3, 5 और 8 के लिए ओपन लर्निंग का विकल्प रहेगा। ताकि स्कूलों से बाहर रह रहे दो करोड़ छात्रों को फिर पढ़ाई से जोड़ा जा सके। इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा जाएगा।
  • इसके साथ-साथ, कक्षा 10 और 12 के समकक्ष माध्यमिक शिक्षा कार्यक्रम, वोकेशनल कोर्सेस, वयस्क साक्षरता और लाइवलीहुड प्रोग्राम प्रस्तावित है।
  • सभी को पढ़ाई पर बराबरी से हक मिले इसके लिए सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से वंचित ग्रुप्स (SEDG) पर विशेष जोर रहेगा। इसके लिए विशेष फंड रखा जाएगा।

Q. इंटर्नशिप का क्या कंसेप्ट है?

  • फिलहाल शिक्षा का फोकस इस बात पर है कि कैसे लाभ हासिल किया जाए। लेकिन नए सिस्टम में पूरा फोकस व्यवहार पर आधारित शिक्षा पर होगा।
  • स्कूलों में कक्षा 6 से ही व्यवसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी। इसमें इंटर्नशिप भी शामिल होगी। ताकि बच्चों को पास के किसी उद्योग या संस्था में ले जाकर फर्स्ट-हेंड एक्सपीरियंस दिया जा सकेगा।

त्रि-भाषा फार्मूला क्या है?

  • नई शिक्षा नीति में कम से कम कक्षा 5 तक बच्चों से बातचीत का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा/ क्षेत्रीय भाषा रहेगी।
  • छात्रों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को विकल्प के रूप में चुनने का अवसर मिलेगा। त्रि-भाषा फॉर्मूले में भी यह विकल्‍प शामिल होगा।
  • पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प होंगे। कई विदेशी भाषाओं को भी माध्यमिक शिक्षा स्तर पर एक विकल्‍प के रूप में चुना जा सकेगा।
  • भारतीय संकेत भाषा यानी साइन लैंग्वेज को मानकीकृत किया जाएगा और बधिर छात्रों के इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्‍तरीय पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएंगी।

Q. स्कूलों का ढांचा किस तरह बदलेगा?

  • स्कूलों के प्रशासनिक ढांचे को कई स्तरों पर बदला जा रहा है। स्कूलों को परिसरों या क्लस्टरों में बांटा जा सकता है, जो गवर्नेंस की मूल इकाई होगा।
  • राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्वतंत्र स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी बनाएंगे। एससीईआरटी सभी संबंधितों से परामर्श कर स्कूल क्वालिटी असेसमेंट फॉर्मेट बनाएगी।

Q. हायर एजुकेशन के लिए क्या सोचा है?

  • सबसे पहले तो एनरोलमेंट बढ़ाना है। वोकेशनल के साथ-साथ हायर एजुकेशन में एनरोलमेंट 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है। 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ेंगे।
  • कॉलेज में एक्जिट विकल्प होंगे। अंडर-ग्रेजुएट शिक्षा 3-4 वर्ष की होगी। एक साल पर सर्टिफिकेट, 2 वर्षों पर एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों पर ग्रेजुएट डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ ग्रेजुएट।
  • एक एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट की स्थापना की जानी है, जिससे कि इन्हें अर्जित अंतिम डिग्री की दिशा में अंतरित एवं गणना की जा सके।

Q. कॉलेजों/यूनिवर्सिटी का ढांचा किस तरह बदलेगा?

  • चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर समस्त हायर एजुकेशन के लिए हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बनाया जाएगा। यह यूजीसी की जगह लेगा।
  • आईआईटी और आईआईएम के दर्जे की मल्टी-डिसीप्लीनरी एजुकेशन और रिसर्च यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी। यह ग्लोबल स्टैंडर्ड्स को फॉलो करेगी।
  • टॉप बॉडी के रूप में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा, जिसका उद्देश्य हायर एजुकेशन में रिसर्च को एक कल्चर के रूप में विकसित करना और क्षमता बढ़ाना होगा।
  • यूनिवर्सिटी की परिभाषा भी बदलने वाली है। इसमें रिसर्च-फोकस्ड यूनिवर्सिटी से टीचिंग-फोकस्ड यूनिवर्सिटी और डिग्री देने वाले स्वायत्त कॉलेज शामिल होंगे।
  • 15 साल में धीरे-धीरे कॉलेजों की संबद्धता खत्म की जाएगी। उन्हें धीरे-धीरे स्वायत्त बनाया जाएगा। यह कॉलेज आगे चलकर डिग्री देने वाले स्वायत्त कॉलेज बनेंगे या किसी यूनिवर्सिटी से जुड़े कॉलेज।
  • एनसीईआरटी की मदद से एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिए नया और व्यापक नेशनल करिकुलम स्ट्रक्चर तैयार करेगा। पढ़ाने के लिए न्यूनतम योग्यता 4 साल का इंटिग्रेटेड बीएड डिग्री होगी।

Q. ऑनलाइन एजुकेशन और विदेशी यूनिवर्सिटी के लिए क्या है?

  • स्कूल-कॉलेजों के ऑनलाइन एजुकेशन की जरूरतों को पुरा करने के लिए मंत्रालय में एक डिजिटल स्ट्रक्चर, डिजिटल कंटेंट और कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए समर्पित यूनिट बनाई जाएगी।
  • शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए टॉप ग्लोबल रैंकिंग रखने वाली यूनिवर्सिटी या कॉलेजों को भारत में अपनी ब्रांच खोलने की अनुमति दी जाएगी।

Q. नई नीति कब लागू होगी और बदलाव कब दिखेंगे?

  • फिलहाल इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। दरअसल, यह सभी बदलाव अगले कुछ वर्षों में दिखेंगे। इसके लिए कोई समय सीमा भी इस नीति में नहीं दी गई है।
  • इस वजह से यह चिंता भी उठाई जा रही है कि सरकार ने नई शिक्षा नीति में जो वादे किए हैं, वह पूरे हो सकेंगे या नहीं। पहले भी बदलाव की बातें बस्तों से बाहर नहीं निकल सकी थी।

Q. विशेषज्ञों की क्या राय है?

  • ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन का कहना है कि, नई शिक्षा नीति के तहत साइंस के छात्र इतिहास या आर्ट्स के काेई अन्य सब्जेक्ट भी पढ़ सकेंगे। अगर छात्र को इसमें दिक्क्त होती है तो सब्जेक्ट ड्रॉप भी कर सकते हैं। लेकिन, पढ़ाई पूरी होने पर मुख्य सब्जेक्ट यानी आर्ट या साइंस संकाय के आधार पर ही डिग्री मिलेगी। नई शिक्षा नीति में यह बात अहम है कि अब छात्र छठी कक्षा से वाेकेशनल शिक्षा के साथ अप्रेंटिस भी करेंगे। जो छात्र 12वीं के बाद काम-धंधा शुरू करना चाहते हैं, उन्हें अप्रेंटिस से मिले व्यावहारिक ज्ञान से फायदा मिलेगा।
  • NCERT से जुड़ीं शिक्षाविद डॉ. किरण देवेंद्र का कहना है कि अधिकतर बदलाव 2005 में लागू नेशनल कुरिकुलम फ्रेमवर्क में भी थे। लेकिन इन्हें लागू करना बड़ी चुनौती होगी। नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन एजुकेशन की बात है, लेकिन कई लोगों के पास साधन नहीं है। ऐसे में लागू करने से पहले उस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
  • जामिया मिलिया इस्लामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर का कहना है कि पहले से ही SWAYAM जैसे प्लेटफॉर्म ऑनलाइन लर्निंग को बढ़ावा दे रहे हैं। नई शिक्षा नीति के अच्छे परिणाम होंगे। हायर एजुकेशन में सभी शिक्षण संस्थानों के लिए एक रेगुलेटरी बॉडी स्थापित करने का फैसला सराहनीय है। यह बेहद जरूरी था।
  • इतिहासकार एवं शिक्षाविद पुष्पेश पंत कहते हैं कि, नई शिक्षा नीति में बहुत सारी बातें स्पष्ट नहीं है। बदलावों की लेकर जो घोषणाएं हुई हैं, वो नई नहीं हैं। माध्यमिक शिक्षा में 5+3+3+4 पैटर्न लागू करने की बात कही गई है। यानी माध्यमिक शिक्षा अब 12 साल की बजाए 14 साल की होगी। अब सवाल यह है कि इसका विभाजन कैसे होगा? उसपर कहा जा रहा है कि कुछ कक्षाओं का सिलेबस कम करेंगे। लेकिन, ये सारी बातों तो पहली भी कही जा चुकी हैं। प्रोफेसर यशपाल, NCERT के कृष्ण कुमार समेत कई शिक्षाविद पहले भी बस्ते का वजन कम करने की घोषणा कर चुके हैं। समस्या सिर्फ कुरिकुलम कम करने या स्कूल की अवधि बढ़ाने तक ही सीमित नहीं है। समस्या है कि जब तक आप स्कूली शिक्षक का तिरस्कार करते हुए कम तनख्वाह देंगे। शिक्षक मित्र बनाकर बेरोजगारी भत्ते के बराबर मानदेय देंगे, तो वो कैसी इतनी मेहनत करेगा, जिससे इन नीतियों को अमली जामा पहनाया जा सके? भाषा को लेकर की गई घोषणाओं में भी अधिकतर बातें अस्पष्ट हैं।
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