दुनियाभर में चिप शॉर्टेंज बनी हुई है। इसके साइडइफेक्ट भी दिखने लगे हैं। इसके चलते हाल ही में टेस्ला के Model 3 और Model Y की कई कारों में USB पोर्ट नहीं मिले। इन कारों को USB-C पोर्ट बिना डिलीवर किया गया। दावा है कि कार के रियर-सीट USB पोर्ट गायब हैं। कार मालिकों ने वायरलेस चार्जिंग के काम न करने की भी शिकायत की है।
लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट में चिप इस्तेमाल होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये संकट कितना बड़ा है। फिलहाल ये संकट खत्म होता नहीं दिख रहा है। इससे निपटने के लिए अलग-अलग तरह के प्रयास हो रहे हैं।
एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि अगले साल के मध्य में ये कमी दूर हो सकती है। जब इसकी सप्लाई बढ़ेगी। हर कोई ये पूछ रहा है कि आखिर ये सप्लाई चेन टूटी कैसे? इसे सुधरने में इतना वक्त क्यों लग रहा है? अलग-अलग देश इस शॉर्टेज को दूर करने के लिए क्या कर रहे हैं? आइये जानते हैं...
सेमीकंडक्टर चिप क्या हैं?
कार, वॉशिंग मशीन, स्मार्टफोन से लेकर आपके रेफ्रिजरेटर तक चिप पर निर्भर हैं, जिन्हें सेमीकंडक्टर कहते हैं। सेमीकंडक्टर एक तरह से किसी गैजेट का दिमाग है, जो उसे चलाता है। सिलिकॉन के बने सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रिसिटी के अच्छे कंडक्टर होते हैं। इन्हें माइक्रोसर्किट्स में फिट किया जाता है, जिसके बिना इलेक्ट्रॉनिक सामान और गैजेट्स चल ही नहीं सकते।
सभी एक्टिव कॉम्पोनेंट्स, इंटिग्रेटेड सर्किट्स, माइक्रोचिप्स, ट्रांजिस्टर और इलेक्ट्रॉनिक सेंसर इन्हीं चिप्स से बने होते हैं। ये चिप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, एडवांस्ड वायरलेस नेटवर्क्स, ब्लॉकचेन एप्लिकेशंस, 5G, IoT, ड्रोन, रोबोटिक्स, गेमिंग और वियरेबल्स का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।
चिप की एकाएक शॉर्टेज क्यों हुई?
यह शॉर्टेज कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन का एक साइड इफेक्ट है। इसकी शुरुआत 2020 में ही हो गई थी। शुरू में प्रोडक्ट्स की डिमांड कम थी, इस वजह से इनकी कमी महसूस नहीं हुई। गैजेट्स की डिमांड बढ़ते ही चिप अरेंज करना मुश्किल होता गया।
चिप शॉर्टेज का असर किन पर पड़ रहा है?
भारत में भी चिप फैक्ट्री लगाने की कोशिशें हो रही हैं क्या?
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि चिप प्लांट लगाने में कई खतरे हैं। देश में पहले भी इस तरह के प्लांट लगाने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन लॉन्ग टर्म विजन नहीं होने के कारण ये सभी फेल रहे। इसकी वजह खराब प्लानिंग और सरकार की पहल की कमी रही है।
इस वक्त सरकार भी सेमीकंडक्टर की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने को प्रोत्साहित कर रही है। यहां तक की इस तरह की फैक्ट्रियां लगाने पर सरकार की ओर से टैक्स में भी राहत का प्रवधान है। हाल ही में टाटा ग्रुप ने सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में उतरने का ऐलान किया है।
पिछले साल अमेरिकी चिप मेकर कंपनी माइक्रॉन टेक्नोलॉजी ने ऐलान किया था वो भारत में अपना एक्सिलेंस सेंटर और स्टोरेज सिस्टम बनाएगी। माइक्रॉन एपल को सेमीकंडक्टर सप्लाई करने वाली मेजर कंपनी है। फिलहाल चंडीगढ़ में ISRO की और बेंगलुरु में DRDO की चिप फैक्ट्री है।
चिप संकट की वजह से दुनिया में क्या बदल रहा है?
चीन के साथ कई देशों के टकराव और ग्लोबल चिप क्राइसेस ने दुनिया का ध्यान सेमीकंडक्टर क्राइसेस की ओर खींचा है। अमेरिका दुनिया के बड़े चिप मैन्युफैक्चरर्स में एक है। इस दौर में उसकी कोशिश इस सेगमेंट का लीडर बनने की है। इसके जरिए वो चिप के लिए ताइवान और दक्षिण कोरिया पर निर्भरता को भी कम करना चाहता है। चीन का ताइवन के साथ मौजूदा टकराव भी चिप संकट की वजह से सुर्खियों में है।
इस वक्त दुनिया में ताइवान की TSMC और दक्षिण कोरिया की सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग की लीडर कंपनियां हैं। आपदा के इस दौर में अमेरिकी कंपनियां अवसर निकाल रही हैं। अमेरिका की चिप बनाने वाली कंपनी इंटेल एरिजॉना में दो नई चिप फैक्ट्रियां बनाने जा रही है। इसके लिए कंपनी 20 बिलियन डॉलर खर्च करेगी। इनमें अमेजन, क्वॉलकॉम समेत दूसरी कंपनियों के डिजाइन किए चिप भी बनाए जाएंगे।
कंसल्टेंसी फर्म एलिक्स पार्टनर्स का कहना है कि इस संकट की वजह से अकेले ऑटोमोटिव इंडस्ट्री को ही 2021 में 210 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा। इसी वजह से अमेरिकी कार कंपनियां फोर्ड और GM अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए खुद चिप डेवलपमेंट करने की तैयारी में है।
चिप मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में अभी क्या हो रहा है?
एपल और क्वॉलकॉम जैसे बडे़ ब्रांड ARM आर्किटेक्चर का इस्तेमाल करके खुद चिप डिजाइन करते हैं, लेकिन उसे ताइवान की TSMC जैसी कंपनियों से आउटसोर्स करते हैं। ताइवान की TSMC दुनिया की सबसे बड़ी चिम मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी है।
इंटेल जो अपनी चिप खुद डिजाइन और मैन्यूफैक्चर करती है, उसने में संकट के दौर में TSMS से चिप मैन्यूफैक्चरिंग की आउटसोर्सिंग शुरू की है।
ये संकट कब तक खत्म होगा?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगले साल मार्च के बाद चीजें सामान्य होना शुरू होंगी। इंटेल, सैमसंग और TSMC सभी ने पिछले कुछ महीनों में नई फैक्ट्रियां लगाने का ऐलान किया है। जिन्हें बनने में सालों लग सकते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये संकट लंबा खिंच सकता है। ऐसे में हालात और बिगड़ सकते हैं।
कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि 2023 तक भी चिप शॉर्टेज बनी रह सकती है। इससे कई देशों में आर्थिक रिकवरी की उम्मीदों को झटका लग सकता है। प्रमुख देशों में क्लाउड कंप्यूटिंग से जुड़े एडवांसमेंट और 5G सर्विसेस का लॉन्च टल सकता है।
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