दीपावाली के ठीक एक दिन बाद 25 अक्टूबर को, यानी आज सूर्य ग्रहण लग रहा है। इसे कई लोग अशुभ मान रहे हैं। हालांकि, विज्ञान इसे सिर्फ एक खगोलीय घटना मानता है। आज से 417 साल पहले साइंटिस्ट जोहांस केपलर ने पता लगाया कि सूर्य ग्रहण एक वैज्ञानिक घटना है। वहीं, 103 साल पहले यूनाइटेड किंगडम के रहने वाले सर आर्थर एडिंगटन ने विज्ञान के जरिए ग्रहण को एक खगोलीय घटना साबित किया था।
ऐसे में आज भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि सूर्य ग्रहण क्या है? सूर्य ग्रहण के पीछे का साइंस क्या है? ग्रहण से पहले लगने वाला रिंग ऑफ फायर क्या होता है?
सबसे पहले एक ग्राफिक्स में सूर्य ग्रहण के बारे में जानिए…
अब जानते हैं कि सूर्य ग्रहण होता क्या है?
गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से पृथ्वी और सभी दूसरे ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 365 दिनों में एक चक्कर लगाती है।
जबकि चंद्रमा एक उपग्रह है, जो पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने में चंद्रमा को 27 दिन लगते हैं। चंद्रमा के चक्कर लगाने के दौरान कई बार ऐसी स्थिति बनती है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, तो सूर्य की रोशनी धरती तक नहीं पहुंच पाती है। इसे सूर्यग्रहण कहते हैं।
ज्यादातर सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन होते हैं, क्योंकि तब चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है। हर 18 महीने में दुनिया के किसी न किसी हिस्से में सूर्य ग्रहण जरूर लगता है।
तस्वीर में सूर्य ग्रहण को समझिए….
ग्रहण मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं..
1. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse): जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढंकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढंके तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है। इस दौरान सूर्य के केवल एक छोटे हिस्से पर अंधेरा छा जाता है।
2. वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse): वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है। इस दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढंक नहीं पाता है, और उसका केवल कुछ हिस्सा दिखाई देता है।
3. पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse): पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है। यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है।
कहीं पूर्ण सूर्य ग्रहण और कहीं आंशिक सूर्य ग्रहण लगने की क्या वजह है?
एक हिस्से में पूर्ण सूर्य ग्रहण और दूसरे हिस्से में आंशिक सूर्य ग्रहण लगने की मुख्य वजह पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया है। ये 2 तरह की होती हैं…
पहला: प्रच्छाया (Umbra): सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आने से जिस जगह पर सबसे ज्यादा चंद्रमा की छाया होती है। जहां बिल्कुल अंधेरा होता है। उसे प्रच्छाया या छायागर्भ भी कहते हैं। यहां से पूर्ण सूर्य ग्रहण नजर आता है।
दूसरा: उपछाया (Penumbra): जहां आंशिक रूप से चंद्रमा की छाया पड़े, उसे उपछाया कहते हैं। उपछाया से देख रहे दर्शकों को आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखाई देता है।
तस्वीरों में प्रच्छाया और उपछाया को देखिए…
ग्रहण के दिन रिंग ऑफ फायर बनना क्या होता है?
कई बार सूर्य ग्रहण को देखने पर लगता है, उसके चारों ओर जलती हुई आग का एक गोला बना हुआ है। अब समझते हैं ऐसा होता क्यों है…
दरअसल, चंद्रमा पृथ्वी के आसपास एक अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाता है। इस वजह से पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी हमेशा घटती-बढ़ती रहती है। जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूर होता है, उसे एपोजी (Apogee) कहते हैं और जब सबसे नजदीक होता है तो उसे पेरिजी (Perigee) कहते हैं।
जब सूर्यग्रहण के वक्त चंद्रमा एपोजी की वजह से चंद्रमा का आकार सामान्य के मुकाबले कुछ छोटा दिखाई देता है। अपने इस छोटे आकार की वजह से चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढंक नहीं पाता है और चंद्रमा की सतह के किनारों से कुछ रोशनी धरती पर आती रहती है। धरती से देखने पर ये लाल गोले जैसी दिखाई देगी। इसे ही रिंग ऑफ फायर कहते हैं।
जोहान्स केपलर ने सबसे पहले रिंग ऑफ फायर को नोटिस किया
ब्रिटिश खगोलशास्त्री सर ऑर्थर एडिंगटन की रिसर्च से करीब 300 साल पहले 1605 में जर्मन गणितज्ञ और खगोलशास्त्री जोहान्स केपलर ने देखा कि सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के चारों ओर एक चमकीला सर्कल नजर आता है।
केपलर ने अपनी रिसर्च के बाद बताया था कि ग्रहण के वक्त सूर्य से आने वाली रोशनी चंद्रमा से टकराकर लौटती है। इसी वजह से ऐसा नजर आता है।
केपलर की खोज के करीब 119 साल बाद 1724 में फ्रांसीसी-इतालवी खगोलशास्त्री जियाकोमो फिलिपो मराल्डी ने यह पता लगाया था कि सूर्य ग्रहण के दौरान ऐसी अंडाकार चमकीली आभा सिर्फ सूर्य को घेरती है, चंद्रमा को नहीं।
सूर्य ग्रहण के दौरान गुब्बारे में भरे जाने वाली हीलियम समेत 3 मुख्य वैज्ञानिक खोज
सूर्य ग्रहण के दौरान 3 अहम खोज हुई है। आइए एक-एक करके इन तीनों ही वैज्ञानिक खोज के बारे में जानते हैं…
पहला: 18 अगस्त 1868 की बात है। इस दिन सूर्य ग्रहण के अवसर पर पियरे जेनसेन और नॉर्मन लॉकयर ने पहली बार टेलीस्कोप की मदद से पीले रंग की एक रेखा क्रोमोस्फियर में देखी थी। क्रोमोस्फियर सूर्य के चारों ओर 400 किलोमीटर से 2,100 किलोमीटर के बीच की परत को कहते हैं।
आगे चलकर पता चला कि इसका नाम हीलियम है। गु्ब्बारों में भरे जाने वाला हीलियम दुनिया का दूसरा सबसे हल्का तत्व है। गंधहीन और विषहीन होने की वजह से इसे नोबेल गैस भी कहा जाता है।
दूसरा: चौथी शताब्दी से ही खगोलशास्त्रीय पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पता करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन, 2150 साल पहले सूर्य ग्रहण के दौरान एक यूनानी खगोलशास्त्रीय हिप्पारकस ने इस बारे में अपनी गणना से जानकारी हासिल की थी। उन्होंने देखा कि उत्तर पश्चिमी तुर्की में चंद्रमा ने पूरी तरह के सूर्य को ढंक लिया था, जबकि 1000 किलोमीटर दूर मिस्र में चंद्रमा सिर्फ 80% सूर्य को ही ढंक पाया था।
सामान्य ट्रिग्नोमेट्री का इस्तेमाल करके हिप्पारकस ने पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पता की थी। इसी का परिणाम है कि आज हम जानते हैं कि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 3,85,000 किलोमीटर है।
तीसरा: 1605 में खगोलशास्त्री जोहान्स केपलर ने जब ग्रहण के वक्त सूर्य के चारों ओर बनने वाली चमकीली आभा के बारे में पता किया था। तभी उन्होंने पता कर लिया था कि चंद्रमा से टकराकर सूर्य की किरणें इसलिए लौटती हैं क्योंकि चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है। यहां से ही चंद्रमा के वायुमंडल के बारे में पता चला।
एक साल में कितनी बार सूर्य ग्रहण हो सकता है?
ज्यादातर एक साल में 2 बार सूर्य ग्रहण होता है। अधिक से अधिक ये संख्या 5 तक जा सकती है, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है।
नासा के मुताबिक पिछले 5 हजार साल में सिर्फ 25 साल ऐसे रहे हैं जब एक साल में 5 बार सूर्यग्रहण पड़े। आखिरी बार 1935 में सालभर के अंदर 5 बार सूर्यग्रहण पड़े थे। अगली बार ऐसा 2206 में होगा।
वैसे कोई भी सूर्य ग्रहण पृथ्वी के केवल कुछ इलाकों में ही दिखता है। मान लीजिए भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण दिख रहा है तो इस वक्त यूरोप में आंशिक सूर्य ग्रहण दिख सकता है।
ग्रहण से जुड़े अंधविश्वास और वैज्ञानिक सच …
पहला: सूर्य ग्रहण के समय नंगी आंख से सूर्य को नहीं देखना चाहिए
कुछ लोगों का मानना है कि सूर्य ग्रहण के दौरान हानिकारक किरणें पैदा होती है जो अंधेपन का कारण बन सकती है। NASA के मुताबिक ये सही नहीं है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के ऊपरी परत से विद्युत चुम्बकीय विकिरण निकलती है। वैज्ञानिकों ने सदियों तक इस विकिरण का अध्ययन किया है। लाखों किलोमीटर दूर होने की वजह से पृथ्वी पर इसका असर नहीं पड़ता है। हालांकि, सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढंक लेता है। ऐसे में सूर्य ग्रहण खत्म होते ही सूर्य से आने वाली चमकदार किरणें रेटिना को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए सूर्य ग्रहण के दौरान नंगी आंखों से सूर्य को नहीं देखने की हिदायत दी जाती है।
दूसरा: गर्भवती महिलाओं को घर से नहीं निकलना चाहिए
NASA इसे भी एक मान्यताओं पर अधारित एक मिथक मानता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रहण के दौरान सूर्य के ऊपरी सतह कॉरोना से निकलने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन हम तक नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर भी गर्भ में पल रहे बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ता है।
तीसरा: ग्रहण के दौरान पहले से बना खाना खराब हो जाता है
ग्रहण के दौरान खाना खराब होने की बात को मानने से NASA इनकार करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रहण के दौरान खाना, पीना और दैनिक गतिविधियों को करना पूरी तरह से सुरक्षित है।
चौथा: सूर्य ग्रहण किसी अशुभ की ओर इशारा करता है
NASA इसे मानने से इनकार करता है। साइंटिस्ट इस तरह की बातों को मनोवैज्ञानिक कन्फर्मेशन बायस कहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हम आमतौर पर सूर्य ग्रहण को भले ही याद नहीं रखते हैं, लेकिन जब इसके साथ ही कोई घटना घटती है तो हम इसे लंबे समय तक याद रखते हैं।
उदाहरण के लिए 1133 ईसा पूर्व में सूर्य ग्रहण के बाद इंग्लैंड के राजा हेनरी प्रथम की मौत की बात लोग अब तक करते हैं, लेकिन ग्रहण के बाद जो अच्छा हुआ वह लोगों को याद नहीं है।
पांचवां: उत्तरी या दक्षिणी ध्रुवों पर पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं लगता है
वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि एक आम धारणा है कि पृथ्वी के उत्तरी या दक्षिणी ध्रुवों पर पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं होता है। NASA के साइंटिस्ट का मानना है कि ये स्थान दुनिया के दूसरे हिस्सों से अलग नहीं हैं और यहां भी सूर्य ग्रहण लगता है। आखिरी बार 20 मार्च 2015 को उत्तरी ध्रुव पर भी पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा गया था। इसके अलावा 23 नवंबर, 2003 को दक्षिणी ध्रुव पर भी अंतिम बार पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा गया था।
भास्कर एक्सप्लेनर के नॉलेज बढ़ाने वाले कुछ और ऐसे ही रोचक आर्टिकल हम नीचे पेश कर रहे हैं...
24 अक्टूबर को दीपावली और 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा है। हर साल दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि 25 अक्टूबर की शाम आंशिक सूर्य ग्रहण होगा।
इन दो पर्वों के बीच सूर्य ग्रहण और बुध, गुरु, शुक्र, शनि का अपनी-अपनी राशि में होना, ऐसा योग पिछले 1300 सालों में नहीं बना है। ये ग्रहण भारत के अधिकतर हिस्सों में दिखेगा। इस कारण इसका सूतक रहेगा, सभी धार्मिक मान्यताओं का पालन किया जाएगा। दिवाली की रात पूजन के बाद लक्ष्मी जी की चौकी सूतक लगने से पहले हटा लें या 25 को ग्रहण खत्म होने के बाद हटाएं।
2. हिजाब पर सुप्रीम बहस:वकील- स्कूलों में पगड़ी, तिलक, क्रॉस पर रोक नहीं तो हिजाब पर क्यों? SC में 6 दिनों की रोचक दलीलें
मुस्लिम लड़कियां स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहन सकती हैं या नहीं, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 10 दिन जबर्दस्त बहस हुई। शुरुआती 6 दिन के करीब 19 घंटे की पूरी जिरह को हमने पढ़ा और समझा। इस बहस में तिलक, पगड़ी और क्रॉस का भी जिक्र आया। कुरान का भी जिक्र आया और संविधान का भी। शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध रहे या नहीं? अब इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी
हिजाब मामले पर कोर्ट में शुरुआती 6 दिनों में हुई बहस की रोचक दलीलें और न्यायाधीशों की सख्त टिप्पणियों के साथ ही विवाद की कहानी जानने के लिए पढ़ें।
14 अक्टूबर यानी शुक्रवार को बंगाल की खाड़ी में INS अरिहंत पनडुब्बी तैनात थी। भारतीय नौसेना के अधिकारियों के ट्रिगर दबाते ही इस पनडुब्बी से K-15 SLBM मिसाइल लॉन्च हुई, जिसने 750 किलोमीटर दूर टारगेट को तबाह कर दिया। रक्षा मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि भारत अब पानी के अंदर से भी परमाणु हमला करने में सक्षम है। इस तरह भारत दुनिया का छठा ‘न्यूक्लियर ट्रायड’ देश बन गया है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि SLBM मिसाइल क्या है? इससे कैसे भारत की परमाणु क्षमता बढ़ी है? साथ ही भारत के ‘न्यूक्लियर ट्रायड’ बनने के मायने को भी जानेंगे।
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