भास्कर एक्सप्लेनरहिरोशिमा पहुंचे मोदी, यहीं गिरा था पहला परमाणु बम:70 हजार लाशों के बीच महज 72 घंटे में शहर के उठने की कहानी

14 दिन पहले
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6 अगस्त 1945 की सुबह। मारियाना द्वीप से उड़ान भरकर अमेरिकी बमवर्षक विमान ‘एलोना गे’ जापान के शहर हिरोशिमा के ऊपर पहुंच चुका था। ठीक सवा आठ बजे इस विमान से इतिहास का पहला परमाणु बम गिरा दिया गया। 43 सेकेंड हवा में रहने के बाद ‘लिटिल ब्वॉय’ हवा के बीच में ही फट गया।

मशरूम के शेप में एक बड़ा आग का गोला उठा और आस-पास का तापमान 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। विस्फोट से इतनी तेज हवा चली कि 10 सेकेंड में ही ये ब्लास्ट पूरे हिरोशिमा में फैल गया। 70,000 लोग चंद मिनटों में मारे गए, इनमें से कई लोग तो जहां थे वहीं भाप बन गए।

इस घटना के 78 साल बाद जापान के हिरोशिमा शहर में दुनिया के अमीर देशों के संगठन ‘G7’ की बैठक हो रही है। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बतौर गेस्ट शामिल होने पहुंच चुके हैं।

हिरोशिमा की तबाही की कहानी आपने पहले भी पढ़ी-सुनी होगी। आज हम बताएंगे हिरोशिमा के बनने की कहानी। 6 अगस्त 1945 को परमाणु धमाका होने के अगले 24 घंटे, 48 घंटे और 72 घंटे में कैसे ये शहर वापस खड़ा होने लगा।

धमाके के 24 घंटे के भीतर…

पानी की सप्लाई शुरू हुई

बम गिरने की जगह से करीब 2.8 किलोमीटर दूर, शहर में वाटर सप्लाई की मुख्य बिल्डिंग मौजूद थी। बम गिरने के बाद पंप हाउस की छत और दीवारें गिर गईं। लेकिन तब तक यह पंप जिस रिजर्वॉयर में पानी सप्लाई करते थे, वह पूरी तरह भरा हुआ था। पंप को दोबारा चालू करना जरूरी था, वरना ये स्रोत सूख जाता।

जापान के स्थानीय अखबार चुगोकू शिंबुन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी हालात में वाटर सप्लाई डिवीजन में इंजीनियर कुरो होरिनो तबाह हो चुके पंप पर पहुंचे। वहां उन्होंने हैवी ऑयल से चलने वाले बैकअप पंप को खोजकर चालू कर दिया।

51 साल के होरिनो खुद शरीर पर कई जगह जले हुए थे, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाया। उनकी बहादुरी भरी तेज-तर्रार कार्यशैली की वजह से हिरोशिमा रिजर्वॉयर सूखने से बच गया और शहर में पानी की कमी नहीं हो पाई।

हिरोशिमा के वाटर सप्लाई डिवीजन में इंजीनियर कुरो होरिनो तबाह हो चुके पंप को ठीक करते हुए। (स्केच रिप्रेजेंटेशनः गौतम चक्रबर्ती)
हिरोशिमा के वाटर सप्लाई डिवीजन में इंजीनियर कुरो होरिनो तबाह हो चुके पंप को ठीक करते हुए। (स्केच रिप्रेजेंटेशनः गौतम चक्रबर्ती)

हालांकि पुराने पंपों को चालू करने में चार दिन लग गए। पानी की आपूर्ति को बिना रुकावट बनाए रखने के लिए बाद में सप्लाई पाइपों की मरम्मत का बड़ा काम सामने आया, जिसे अगले कुछ सालों में पूरा किया गया।

बिजली वापस आई

हिरोशिमा पीस इंस्टीट्यूट के मुताबिक, शहर के उजीना इलाके और रेलवे स्टेशन के आसपास 7 अगस्त को बिजली चालू कर दी गई। वहीं आग से बचे रह गए 30 फीसदी घरों में भी बिजली दोबारा चालू हो गई। जबकि 1945 में नवंबर के महीने तक सभी घरों में दोबारा बिजली पहुंच गई थी।

पुलिस स्टेशन बना राहत केंद्र

बम जिस जगह गिरा, उसके दो वर्ग किलोमीटर के दायरे में सबसे ज्यादा तबाही हुई थी। लेकिन कंक्रीट के बने हिगाशी पुलिस स्टेशन की बिल्डिंग बच गई, जिसे 24 घंटे के भीतर ही "नर्व सेंटर फॉर रिसर्च एंड रेस्क्यू एंड रिलीफ ऑपरेशन" में बदल दिया गया। तेजी से यहां घायलों और रेडिएशन से प्रभावित लोगों को इलाज के लिए लाया जाने लगा।

धमाके के 48 घंटे के भीतर…

कार सर्विस और बिजली आपूर्ति शुरू

स्काई हिस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक, शहर की एक लाइन पर बम गिरने के एक दिन बाद ही ट्रेन और कार सर्विस चालू कर दी गई। वहीं हिरोशिमा स्टेशन से पड़ोसी शहर योकोगावा तक जाने वाली लाइन 8 अगस्त को चालू कर दी गई, ताकि राहत प्रयासों में तेजी लाई जा सके।

हिरोशिमा में परमाणु हमले के 48 घंटे के भीरत चालू हुई स्ट्रीट कार सर्विस। तस्वीर में तबाही के मंजर के बीच एक पैदल यात्री और एक साइकिल सवार दिख रहा है। (तस्वीरः विकिमीडिया कॉमंस)
हिरोशिमा में परमाणु हमले के 48 घंटे के भीरत चालू हुई स्ट्रीट कार सर्विस। तस्वीर में तबाही के मंजर के बीच एक पैदल यात्री और एक साइकिल सवार दिख रहा है। (तस्वीरः विकिमीडिया कॉमंस)

धमाके के 72 घंटों के भीतर…

बैंक ऑफ जापान ने काम शुरू किया

परमाणु हमले में बैंक ऑफ जापान की हिरोशिमा ब्रांच के 18 कर्मचारी और फायनेंस ब्यूरो के दर्जन भर कर्मी मारे गए थे। इसके बावजूद, 8 अगस्त को दो दिन बाद बैंक ने फिर से काम करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, बैंक ने 11 दूसरे बैंकों को भी अपनी इमारत में जगह दी, जिनकी इमारतें जमींदोज हो चुकी थीं।

बैंक ऑफ जापान की बिल्डिंग शहर की चुनिंदा कंक्रीट इमारतों में से एक थी, इसलिए बची रह गई। फोटो परमाणु धमाके के बाद की है। (सोर्सः Peacetourism.com)
बैंक ऑफ जापान की बिल्डिंग शहर की चुनिंदा कंक्रीट इमारतों में से एक थी, इसलिए बची रह गई। फोटो परमाणु धमाके के बाद की है। (सोर्सः Peacetourism.com)

धमाके के 10 साल बाद... वापस खड़ी हुईं ज्यादातर इमारतें

हिरोशिमा में राहत कार्यों और रिकवरी में कई संस्थानों और सेवाओं ने अहम भूमिका निभाई। हालांकि हिरोशिमा को पहले की तरह दोबारा खड़े होने में सालों लग गए। 1949 से रिकवरी का यह क्रम तेजी से शुरू हुआ था, जब जापानी सरकार ने हिरोशिमा के लिए एक विशेष कानून लागू किया था। इस कानून के जरिए सरकारी और सैन्य जमीन का एक बड़ा हिस्सा शहर के विकास के लिए उपलब्ध करवाया गया।

युद्ध के तुरंत बाद हिरोशिमा के विकास में सबसे बड़ी समस्या धन था। बाद के सालों में जापान की जबरदस्त उन्नति का लाभ शहर को मिला। परमाणु हमले में शहर की 92% इमारतों को नुकसान हुआ था, मलबा हटाकर इन्हें भी दोबारा खड़ा कर लिया गया। दस साल बाद, 1955 में हिरोशिमा की आबादी वापस साढ़े चार लाख हो चुकी थी।

आज कैसे हैं हिरोशिमा के हालात

आज हिरोशिमा 12 लाख की आबादी वाला शहर है। हिरोशिमा मोटरव्हीकल्स, फूड प्रोसेसिंग और मशीनरी से संबंधित इंडस्ट्री का आज बड़ा केंद्र है। दिलचस्प है कि आज शहर की औद्योगिक और घरेलू बिजली जरूरत का एक चौथाई परमाणु ऊर्जा से ही पूरा होता है।

जिस जगह ओनोला गे ने बम गिराया था, आज वहां तीन एकड़ में बड़ा पीस कॉम्प्लेक्स है, जिसमें मेमोरियल पार्क, म्यूजियम और दूसरी चीजें हैं। बम ने जिस 1.6 किलोमीटर के इलाके को पूरी तरह तबाह किया था, आज वहां ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स मौजूद हैं। डाउनटॉउन नाम से जाना-जाने वाला यह इलाका शहर का मुख्य केंद्र है।

हिरोशिमा की तस्वीर आज किसी दूसरे बड़े जापानी शहर की तरह ही है। इन सबके बावजूद शहर ने अपनी आपबीती की यादों को भी सहेजकर रखा है। हिरोशिमा पीस म्यूजियम में आज भी हमले से जुड़ी चीजें और तस्वीरें पूरी कहानी बयां करती नजर आती हैं...

ग्राउंड जीरो के आसपास का इलाका, जहां बम गिरने के बाद लगभग सभी बिल्डिंग्स जमींदोज हो गईं। तस्वीर में जो बची बिल्डिंग्स हैं उनमें एटम डोम के सामने होंकावा एलिमेंटरी स्कूल है। जिसके ऊपर सफेद रंग का बड़ा पोस्टर लगा हुआ है।
ग्राउंड जीरो के आसपास का इलाका, जहां बम गिरने के बाद लगभग सभी बिल्डिंग्स जमींदोज हो गईं। तस्वीर में जो बची बिल्डिंग्स हैं उनमें एटम डोम के सामने होंकावा एलिमेंटरी स्कूल है। जिसके ऊपर सफेद रंग का बड़ा पोस्टर लगा हुआ है।
ग्राउंड जीरो से महज 700 मीटर दूर स्थित कैंफर ट्री (कपूर के पेड़) ना केवल इस त्रासदी में खड़े रहे, बल्कि आज फल-फूल भी रहे हैं। अपने-आप में आश्चर्य इस पेड़ को हिरोशिमा का सिटी ट्री कहा जाता है।
ग्राउंड जीरो से महज 700 मीटर दूर स्थित कैंफर ट्री (कपूर के पेड़) ना केवल इस त्रासदी में खड़े रहे, बल्कि आज फल-फूल भी रहे हैं। अपने-आप में आश्चर्य इस पेड़ को हिरोशिमा का सिटी ट्री कहा जाता है।
हिरोशिमा स्थित गेनबाकु डोम (एटम डोम)। विस्फोट में बची रह गई कुछ कंक्रीट बिल्डिंग्स में से एक। इमारत का बाहरी हिस्सा टूट गया था। आज यह बीते वक्त की एक अहम यादगार है।
हिरोशिमा स्थित गेनबाकु डोम (एटम डोम)। विस्फोट में बची रह गई कुछ कंक्रीट बिल्डिंग्स में से एक। इमारत का बाहरी हिस्सा टूट गया था। आज यह बीते वक्त की एक अहम यादगार है।
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