2 अगस्त 1993 का दिन था। उस वक्त के चुनाव आयुक्त ने 17 पेज का एक आदेश जारी किया। आदेश में लिखा था- जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा।
ये चुनाव आयुक्त थे टीएन शेषन, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट आज पूरी शिद्दत से याद कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संविधान ने मुख्य चुनाव आयुक्त यानी CEC और 2 चुनाव आयुक्तों के जर्जर कंधों पर बहुत से अधिकार दिए हैं। ऐसे में वह टीएन शेषन जैसे मजबूत चरित्र के इंसान को मुख्य चुनाव आयुक्त देखना चाहते हैं। 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि CEC तो कई हुए हैं, लेकिन शेषन जैसे बिरले ही होते हैं।
भास्कर एक्सप्लेनर में हम 1990 से 1996 के बीच भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन के 7 ऐसे किस्से बता रहे हैं, जिनकी वजह से आज उन्हें सुप्रीम कोर्ट याद कर रहा है…
1. शेषन CEC बनने को थे, राजीव गांधी बोले- दाढ़ी वाले को पछताना पड़ेगा
90 के दशक की बात है। वीपी सिंह सरकार गिरने के बाद 10 नवंबर 1990 को कांग्रेस के सपोर्ट से चंद्रशेखर देश के नए प्रधानमंत्री बने। एक महीने बाद केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी देर रात नई दिल्ली के पंडारा रोड पर योजना आयोग के सदस्य टीएन शेषन के घर पहुंचते हैं।
टीएन शेषन जैसे ही घर पर उनका स्वागत करते हैं, स्वामी पूछते हैं- क्या आप भारत का अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे? शेषन का रिएक्शन काफी ढीला होता है। जाहिर है कि वो मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बनना चाह रहे थे, लेकिन स्वामी 2 घंटे तक शेषन को मनाते रहे। आखिर में शेषन बोले- मैं इस बारे में सोचूंगा। दरअसल 60 के दशक में हार्वर्ड में पढ़ाई के दौरान शेषन और स्वामी के बीच गुरु और शिष्य वाला रिश्ता रह चुका था।
सीनियर जर्नलिस्ट के. गोविंदन ने टीएन शेषन की जीवनी ‘शेषन- एन इंटिमेट स्टोरी’ में लिखा- स्वामी के जाने के बाद शेषन ने फौरन राजीव गांधी को फोन करके मिलने का समय मांगा। कुछ देर बाद शेषन राजीव गांधी के घर पहुंचे और इस बारे में सलाह मांगी।
थोड़ी देर बाद राजीव ने उन्हें प्रस्ताव स्वीकार करने की सलाह दी, लेकिन शेषन को विदा करने गेट तक पहुंचे तो राजीव बोले- वो दाढ़ी वाला इंसान उस दिन को कोसेगा, जिस दिन उसने तुम्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला किया था। वो उस समय के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को दाढ़ी वाला कह रहे थे। इसके बाद टीएन शेषन 12 दिसंबर 1990 को देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त बने।
2. जब 1992 में एक-एक राज्य में 50-50 हजार अपराधियों को लेनी पड़ी अग्रिम जमानत
ये वो दौर था जब चुनावों में बाहुबल और धनबल का बोलबाला था। शेषन ने इसका तोड़ निकाला। उन्होंने सभी जिला मजिस्ट्रेटों, पुलिस अफसरों और पर्यवेक्षकों से कह दिया था कि एक भी गलती बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही शेषन ने करीब 50,000 अपराधियों को ये विकल्प दिया था कि या तो वो अग्रिम जमानत ले लें या खुद को पुलिस के हवाले कर दें। अखबारों में छपी कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब एक रिटर्निंग ऑफिसर ने कहा था- हम एक दयाविहीन इंसान की दया पर निर्भर हैं।
3. पहचान पत्र के लिए सरकार हिचकिचाई तो बोले- चुनाव ही नहीं कराऊंगा
चुनाव में वोटर आईडी यानी पहचान पत्र शुरू होने से भी जुड़ा एक रोचक किस्सा है। 1957 में पहली बार यह आइडिया पश्चिम बंगाल सरकार ने दिया था। उनका मानना था कि इससे फर्जी वोटरों पर लगाम लगेगी। ये आइडिया उस वक्त के मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को भी पसंद आया था।
इसके बाद 1961 में कोलकाता की साउथ-वेस्ट लोकसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव के दौरान इसे प्रायोगिक तौर पर आजमाने का फैसला किया गया। इसके तहत वोटर को उसकी फोटोग्राफ वाली एक आईडी दी जानी थी। इस दौरान 3.42 लाख वोटरों में 2.10 वोटरों को फोटो के साथ वाली वोटर आईडी दी गई।
1962 में मुख्य चुनाव आयुक्त वीके सुंदरम ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि वोटर आईडी कार्ड को लागू करना व्यावहारिक नहीं होगा। इससे अकेले कोलकाता में 25 लाख रुपए का खर्च आएगा जो सरकार पर भार बनेगा।
शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद एक बार फिर से फर्जी वोटरों को रोकने के लिए फोटो वाले वोटर आईडी कार्ड बनाने की बात उठी। नेताओं ने यह कहकर विरोध किया कि भारत में इतनी खर्चीली व्यवस्था संभव नहीं है।
इस पर शेषन ने कहा था- अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए, तो देश में कोई चुनाव नहीं होगा। शेषन इस बात पर अड़े हुए थे कि अगर सरकार फोटो वाले मतदान पहचान पत्र लाने में देर करती रहेगी तो वो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के नियम 37 को लगाएंगे, जिसमें कहा गया है कि चुनाव आगे बढ़ाए जा सकते हैं या नहीं भी कराए जा सकते हैं। इसके बाद 1993 में देश में वोटर आईडी की शुरुआत हुई।
4. हिमाचल के राज्यपाल को शेषन की वजह से पद छोड़ना पड़ा
1993 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सतना विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलेशर अहमद के बेटे सईद अहमद को टिकट दिया था। उस समय गुलशेर अहमद हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे। बेटे को टिकट मिलने के बाद गुलशेर अहमद चुनाव प्रचार करने के लिए हिमाचल से सतना पहुंच गए।
राज्यपाल की चुनाव प्रचार करते हुए तस्वीर अखबारों में छपी। चुनाव आयोग ने इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना। इसके बाद गुलशेर काे राज्यपाल का पद छोड़ना पड़ा। वहीं उनका बेटा चुनाव भी हार गया।
लालू प्रसाद यादव को सबसे ज्यादा जीवन में किसी ने परेशान किया, तो वे शेषन ही थे। 1995 का चुनाव बिहार में ऐतिहासिक रहा। लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते। कहते- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे। बिहार में चार चरणों में चुनाव का ऐलान हुआ और चारों बार तारीखें बदली गईं। यहां सबसे लंबे चुनाव हुए।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी एक घटना को याद करते हुए बताते हैं, 'मैं 1996 के बिहार चुनाव में एक पर्यवेक्षक के रूप में तैनात था। शेषन ने मुझसे कहा कि चिंता मत करो कुछ नहीं होगा, सिवाय आपके आसपास बम फटने और गोली चलने के। वास्तव में यही हुआ। मुझसे कुछ ही दूरी पर दो बम धमाके हुए।'
5. ज्योति बसु ने शेषन को पागल कुत्ता कहा था, मुखर्जी को सांसदी गंवानी पड़ी
1993 की शुरुआत में हर्षद मेहता कांड और प्रतिभूति घोटाला यानी सिक्योरिटीज स्कैम सामने आता है। सियासी दबाव के बाद वाणिज्य राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार पी. चिदंबरम को इस्तीफा देना पड़ता है। नरसिम्हा राव सरकार को मंझे हुए नेता की जरूरत थी।
ऐसे में उनकी नजर उस वक्त के योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रणब मुखर्जी पर पड़ती है। प्रणब को वाणिज्य मंत्री बनाया जाता है। चूंकि प्रणब संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, ऐसे में उन्हें मंत्री पद की शपथ लेने के दिन से 6 महीने के भीतर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना अनिवार्य था।
इसी दौरान पश्चिम बंगाल से दो सीटों के लिए राज्यसभा का चुनाव होना था। उस चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल की विधानसभा में कांग्रेस की हैसियत इतनी थी कि वह कम से कम अपने एक कैंडिडेट को राज्यसभा भेज सकती थी। इसके बाद प्रणब मुखर्जी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया।
तभी एक पेंच फंस जाता है। मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन 2 अगस्त 1993 को 17 पेज का आदेश जारी करते हैं। कहते हैं कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, देश में कोई भी चुनाव नहीं होगा। यानी हर दो साल पर होने वाले राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उप चुनाव भी, जिनकी घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक नहीं होंगे।
इसके चलते पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं हो पाए और केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस घटना से उस वक्त के पश्चिम बंगाल के CM ज्योति बसु इतने नाराज हुए कि उन्होंने शेषन को 'पागल कुत्ता' तक कह दिया। वहीं वीपी सिंह ने उस समय कहा था कि हमने पहले कारखानों में लॉक-आउट के बारे में सुना था, लेकिन शेषन ने तो प्रजातंत्र को ही लॉक-आउट कर दिया है।
6. शेषन के बारे में कहा जाता था- राजनेता भगवान से डरते हैं या शेषन से
टीएन शेषन ने देश के आम आदमी को चुनाव आयोग की ताकत का एहसास कराया। 90 के दशक में शेषन के बारे में एक लाइन बोली जाती थी- राजनेता या तो भगवान से डरते हैं या फिर शेषन से। उनके सख्त होने की बानगी उनके ही एक बयान से समझी जा सकती है। 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद शेषन ने कहा था, ‘आई ईट पॉलिटीशियंस फॉर ब्रेक फॉस्ट’ यानी मैं नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खाता हूं।
उम्मीदवारों के खर्च पर लगाम हो या फिर सरकारी हेलिकॉप्टर से चुनाव प्रचार के लिए जाने पर रोक शेषन ने ही लगाई। दीवारों पर नारे, पोस्टर चिपकाना, लाउडस्पीकरों से शोर, प्रचार के नाम पर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले भाषण देना, उन्होंने सब पर सख्ती की।
एक बार टीएन शेषन ने अपना परिचय बताते हुए कहा था कि मैं इंसानों की उस प्रजाति का हिस्सा हूं जिन्हें पालघाट ब्राह्मण कहा जाता है। इनकी चार किस्में पाई जाती हैं। रसोइया, धोखेबाज, सिविल सर्वेंट और संगीतकार। मैं समझता हूं कि मुझमें थोड़ी बहुत ये सारी खूबियां हैं। मैं अच्छा खाना बनाता हूं, मैं थोड़ा बहुत धोखेबाज भी हूं, मैं सिविल सर्वेंट हूं, मैं संगीतकार भले ही नहीं हूं, लेकिन संगीत की समझ मेरे अंदर हैं।
7. राजीव गांधी की हत्या के बाद सरकार से बिना पूछे लोकसभा चुनाव स्थगित करा दिए
चुनाव आयोग को इंडिपेंडेंट बॉडी बनाने में भी उनका योगदान रहा है। इसकी बानगी उनके इस फैसले से समझी जा सकती है। राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्होंने उस वक्त की सरकार से बिना पूछे लोकसभा चुनाव स्थगित करा दिए थे। शेषन ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे याद है कि जब मैं कैबिनेट सचिव था तो प्रधानमंत्री ने मुझे बुला कर कहा कि मैं चुनाव आयोग को बता दूं कि मैं इस दिन चुनाव करवाना चाहता हूं। तब मैंने उनसे कहा कि हम ऐसा नहीं कर सकते। हम चुनाव आयोग को सिर्फ ये बता सकते हैं कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है।'
इस दौरान उन्होंने बताया कि पहले मुख्य चुनाव आयुक्त, कानून मंत्री के ऑफिस के बाहर बैठ कर इंतजार करते थे कि उन्हें कब अंदर बुलाया जाए। इसी वजह से मैंने तय किया कि मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। हमारे ऑफिस में पहले सभी लिफाफों पर लिख कर आता था, चुनाव आयोग भारत सरकार। मैंने उन्हें साफ कर दिया कि मैं भारत सरकार का हिस्सा नहीं हूं।
उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह को भी नहीं बख्शा था। मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश में BJP की सरकारों को भंग करने के बाद पीवी नरसिम्हाराव सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में शुमार अर्जुन सिंह ने कहा इन राज्यों में चुनाव एक साल बाद होंगे। शेषन ने तुरंत प्रेस विज्ञप्ति जारी कर याद दिलाया कि चुनाव की तारीख मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बल्कि चुनाव आयोग तय करता है।
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