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कुछ दिन पहले सरकार और असली ट्विटर के बीच तनातनी हो गई। तनातनी इस बात पर हुई कि सरकार ने ट्विटर को 1,178 अकाउंट्स ब्लॉक करने को कहे थे। ये वो अकाउंट्स थे, जिन पर सरकार को शक है कि ये पाकिस्तान या खालिस्तानी समर्थक या विदेशियों के हैं और इन अकाउंट्स से किसान आंदोलन के दौरान लॉ एंड ऑर्डर को खतरा है। पर ट्विटर ने अकाउंट्स ब्लॉक करने से मना कर दिया। ट्विटर ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा कि सरकार ने जिस आधार पर अकाउंट्स को ब्लॉक करने को कहा है, वो भारतीय कानूनों के अनुरूप नहीं है। सरकार ने इस पर आपत्ति जताई कि जब ट्विटर और सरकार के बीच बात होनी थी, तो ब्लॉग क्यों लिखा गया?
इस पूरी तनातनी का फायदा मिला Koo ऐप को। क्योंकि उसके डाउनलोड्स हफ्तेभर में ही 20 गुना बढ़ गए। वेबसाइट पर भी 50 गुना ट्रैफिक बढ़ गया। Koo को देशी ट्विटर भी कहा जा रहा है। क्योंकि ये भी ट्विटर की तरह ही माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट है। जब ट्विटर और सरकार के बीच ठनी, तो कई केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं, सेलेब्रिटीज समेत नीति आयोग जैसे सरकारी विभाग भी Koo पर आ गए। उन्होंने लोगों से अपील की कि वो इस देशी ऐप के साथ जुड़ें।
Upon the request of Twitter seeking a meeting with the Govt., the Secretary IT was to engage with senior management of Twitter. In this light a blog post published prior to this engagement is unusual. Govt. will share its response soon.
— Ministry of Electronics & IT (@GoI_MeitY) February 10, 2021
लेकिन ये Koo है क्या?
ये तो बता ही चुके हैं कि Koo ट्विटर की तरह ही माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट है। इस ऐप को पिछले साल ही मार्च में लॉन्च किया गया था। इसे बेंगलुरु की बॉम्बीनेट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने बनाया है। ऐप को भारत के ही अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिद्वतका ने डिजाइन किया है।
इस प्लेटफॉर्म पर आप 400 कैरेक्टर में अपनी बात रख सकते हैं। चाहें तो एक मिनट के वीडियो या ऑडियो में भी अपनी बात कह सकते हैं। ये ऐप अभी हिंदी, अंग्रेजी समेत कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मराठी में मौजूद है। आने वाले समय में कंपनी इसमें संस्कृत समेत 12 भाषाओं का सपोर्ट भी जोड़ने की तैयारी कर रही है।
जब ट्विटर था, तो Koo की जरूरत क्यों?
इस बारे में ऐप के को-फाउंडर मयंक बिद्वतका बताते हैं कि हमारे देश की आबादी 130 करोड़ के आसपास हैं। यहां ट्विटर के यूजर दो-ढाई करोड़ होंगे। इनमें भी ज्यादातर यूजर्स अंग्रेजी में ही ट्वीट कर रहे हैं। जबकि हमारे देश में 90% आबादी अंग्रेजी में बात ही नहीं करती।
वो कहते हैं कि लोग हिंदी, तमिल, तेलुगु जैसी अलग-अलग भाषाओं में बात करते हैं। इसलिए हम चाहते थे कि ऐसा माइक्रोब्लॉग शुरू करें, जो भारतीय भाषाओं में हो, ताकि सभी उससे जुड़ सकें और अपनी भाषा में बात रख सकें।
मयंक बताते हैं कि Koo पर कई ऐसे फीचर्स भी हैं, जो ट्विटर में नहीं हैं। जैसे- हमारे ऐप पर आपको लैंग्वेज सिलेक्शन का ऑप्शन मिलता है। आप जो लैंग्वेज सिलेक्ट करेंगे, आपको सब कुछ उसी लैंग्वेज में दिखेगा। एक की-बोर्ड भी है। इसमें हिंदी सिलेक्ट की, तो हिंदी में ही लिख सकेंगे। अगर आप अंग्रेजी में भी लिख रहे हैं, तो भी हिंदी में ही लिखाएगा। मान लीजिए आपने अंग्रेजी में लिखा Kaise Ho, तो वो हिंदी में ही लिखा आएगा कैसे हो।
इसके अलावा हमारे ऐप में एक पीपुल फीड भी है, जहां पर आपको सारे यूजर्स दिखते हैं और आप उनको फॉलो कर सकते हैं। ये ट्विटर में नहीं है। वहां आपको सब सर्च करना पड़ता है।
Koo को लेकर तीन विवाद भी आ गए
1. डेटा लीक का आरोप
फ्रांस के हैकर एलियट एंडरसन ने ट्वीट करके आरोप लगाया है कि Koo यूजर्स का डेटा लीक हो रहा है। उसका दावा है कि लोगों की ईमेल आईडी, डेट ऑफ बर्थ, मैरिटल स्टेटस, मोबाइल नंबर लीक हो रहा है। इस पर Koo के को-फाउंडर अप्रमेय राधाकृष्ण का कहना है कि जो डेटा पहले से ही पब्लिक है, उसे डेटा लीक करार देना सही नहीं है।
वहीं, सिक्योरिटी रिसर्चर अविनाश जैन बताते हैं कि एलियट ने जो दावा किया है, उसमें थोड़ी सच्चाई भी है और थोड़ा झूठ भी। अविनाश बताते हैं कि ये सही है कि Koo में लूपहोल हैं, जिससे आप किसी दूसरे यूजर का डेटा देख सकते हैं।
वो कहते हैं कि Koo में हर यूजर को एक आईडी असाइन होती है। मान लीजिए मेरी आईडी है 1234 और अगर मैं इस आईडी को बदलकर 12345 कर दूं। और 12345 आईडी आपको असाइन है, तो मैं आपका डेटा देख सकता हूं। अविनाश बताते हैं कि मैंने खुद रिसर्च करके बहुत से लोगों की डेट ऑफ बर्थ, ईमेल आईडी देखी है।
Koo में एक लूपहोल ये भी है कि इसमें रेट लिमिटिंग नहीं है। यानी, आप कितनी बार भी आईडी चेंज कर सकते हो, उससे आपकी IP या आप ब्लॉक नहीं होगे। अगर मैं चाहूं तो एक मिनट में कितनी ही बार आईडी चेंज करके डेटा निकाल सकता हूं। उनका कहना है कि इसके जरिए सिर्फ ईमेल आईडी और डेट ऑफ बर्थ ही देख सकते हैं, लेकिन जेंडर, मैरिटल स्टेटस और नाम नहीं देख सकते, क्योंकि ये यूजर के हाथ में ही है कि वो इस डेटा को पब्लिक करना चाहता है या नहीं।
2. चीन से कनेक्शन
ट्विटर पर जब #KooApp ट्रेंड हो रहा था, तब कुछ ऐसे लोग भी थे, जो इस ऐप का कनेक्शन चीन से भी जोड़ रहे थे। उनका कहना था कि इसमें चीन का पैसा लगा है। ये बात सही भी है। मयंक भी इस बात को मानते हैं। वो कहते हैं कि ढाई साल पहले चीन की शून वेई कैपिटल ने हमारी कंपनी में माइनोरिटी स्टेक खरीदे थे, लेकिन अब हम उसका स्टेक बिकवा रहे हैं।
मयंक कहते हैं कि हम भारतीय हैं और ये हमारा ऐप है, इसलिए ये पूरी तरह से भारतीय है। चीन की किसी कंपनी के स्टेक खरीदने भर से हमारी कंपनी चीनी नहीं हो जाती। वो कहते हैं कि जियो में फेसबुक ने स्टेक खरीदे हैं, तो इसका मतलब ये नहीं हुआ कि जियो अमेरिकी कंपनी हो गई।
3. राइट-विंग कनेक्शन
Koo में सरकार बहुत दिलचस्पी दिखा रही है। केंद्रीय मंत्रियों और सरकारी विभाग के Koo पर आने की वजह से इसे राइट-विंग ऐप भी बोला जा रहा है। इसका एक कारण ये भी है कि इसका ज्यादातर सपोर्ट वही कर रहे हैं, जो भाजपा समर्थक हैं।
इस बारे में मयंक कहते हैं कि हमारा ऐप ओपन प्लेटफॉर्म है। हम आइडियोलॉजी या पार्टी देखकर यूजर नहीं जोड़ रहे हैं। वो इस बात को भी नकारते हैं कि उनके ऐप पर सिर्फ एक आइडियोलॉजी के यूजर्स हैं।
वहीं, अप्रमेय कहते हैं कि हमारा मकसद यूजर्स को बेस्ट एक्सपीरियंस देना है। हमारा सिस्टम लेफ्ट-राइट नहीं समझता। हमारा कोई पॉलिटिकल कनेक्शन नहीं है। हम पूरी तरह से नॉन-पॉलिटिकल हैं।
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