पूरा ब्रिटेन महारानी एलिजाबेथ-II के अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुटा है। महारानी के निधन के बाद उनके सबसे बड़े बेटे चार्ल्स- III ब्रिटेन के राजा बने हैं। वहीं, एक बड़ा तबका ऐसा है जो 'नॉट माई किंग' कहते हुए न केवल उनका विरोध कर रहा है, बल्कि पूरी राजशाही को ही खत्म करने की मांग कर रहा है।
इस भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कि आखिर क्यों उठ रही है ब्रिटेन में राजशाही को खत्म करने की मांग, इसकी प्रमुख 5 वजहें क्या हैं...
ब्रिटेन में राजशाही को खत्म करने की मांग कई सालों से उठ रही है। मांग करने वालों का तर्क है कि लोकतंत्र के युग में राजशाही गैरजरूरी है।
ब्रिटेन में राजशाही को खत्म करने की मांग के पीछे लोगों के 5 प्रमुख तर्क हैं:
1. राजपरिवार की चकाचौंध पर सालाना क्यों करें 1000 करोड़ रुपए खर्च
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक रॉयल फैमिली ने जून 2022 में बताया कि 2021-22 में ब्रिटेन के शाही परिवार पर वहां की जनता के टैक्स के 10.24 करोड़ पाउंड, यानी करीब 940 करोड़ रुपए खर्च हुए। ये 2020 में रॉयल फैमिली पर खर्च हुए 8.63 करोड़ पाउंड, यानी करीब 793 करोड़ रुपए खर्च से 17% ज्यादा है।
इनमें से राजपरिवार की यात्राओं पर 45 लाख पाउंड, यानी करीब 41 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए, जो पिछले साल के मुकाबले 40% ज्यादा है। यानी शाही परिवार पर हर साल ब्रिटेन के आम लोगों के टैक्स का अरबों रुपए खर्च होता है। इसी वजह से कई लोग राजशाही को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
ब्रिटेन में राजपरिवार पर खर्च होने वाले पैसे को सोवरेन ग्रांट या संप्रभु अनुदान कहा जाता है। ब्रिटेन की 6.8 करोड़ की आबादी में से हर नागरिक को सोवरेन ग्रांट यानी राजघराने पर करीब 120 रुपए खर्च उठाना पड़ता है। सॉवरेन ग्रांट का इस्तेमाल राजा-रानी और उनके घर के कामों, आधिकारिक शाही यात्राओं और शाही महलों के रखरखाव जैसे कामों में किया जाता है।
पिछले साल महारानी के आधिकारिक निवास स्थान बकिंघम पैलेस में हुए बदलाव और प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मर्केल के पुराने घर फ्रॉग कॉटेज की मरम्मत का खर्च भी सॉवरेन ग्रांट के पैसे से ही हुआ था।
20 साल पहले महारानी की मां के अंतिम संस्कार पर खर्च हुए थे 40 करोड़ रुपए
महारानी एलिजाबेथ-II के अंतिम संस्कार का पूरा खर्च ब्रिटिश टैक्स पेयर्स के पैसे से होगा। यह रकम कितनी होगी, अभी तक इसका खुलासा ब्रिटिश सरकार ने नहीं किया है। सरकार का कहना है कि वह कुछ दिनों में इस बारे में जानकारी देगी।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2002 में महारानी एलिजाबेथ-II की मां के अंतिम संस्कार में करीब 50 लाख डॉलर, यानी 40 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इस बार इससे कहीं ज्यादा खर्च का अनुमान है।
यही नहीं ब्रिटेन में राजपरिवार के किसी व्यक्ति के गद्दी पर बैठने, यानी उसकी ताजपोशी का भी लाखों पाउंड का पूरा खर्च आम लोगों के पैसों से ही होता है।
2. आम नागरिक संपत्ति बच्चों को देने पर 40% टैक्स देते हैं, राजपरिवार को छूट क्यों?
ब्रिटेन में राजशाही के हालिया विरोध की एक और प्रमुख वजह है- इनहेरिटेंस टैक्स या उत्तराधिकार टैक्स।
दरअसल, हर ब्रिटिश नागरिक को उस संपत्ति पर 40% का उत्तराधिकार टैक्स देना होता है, जिसकी कीमत 3.25 लाख, पाउंड यानी करीब 30 करोड़ रुपए से ज्यादा हो, लेकिन किंग चार्ल्स को अपनी मां महारानी एलिजाबेथ-II से विरासत में मिली संपत्ति पर भी एक भी पैसे का टैक्स नहीं देना पड़ा।
ऐसा इसलिए, क्योंकि 1993 में ब्रिटेन के तब के प्रधानमंत्री जॉन मेजर और राजपरिवार के साथ हुए समझौते के अनुसार, राजा से उनके उत्तराधिकारी के पास जाने वाली संपत्ति पर विरासत टैक्स नहीं लगेगा।
राजपरिवार को मिली इस विशेष छूट को लोग आम लोगों के साथ भेदभाव बताते हुए विरोध कर रहे हैं।
3. सबसे पुराना लोकतंत्र हमारा, तो हम राजशाही क्यों ढोएं?
राजशाही के आलोचकों का कहना है कि अब ब्रिटेन को राजशाही की जरूरत ही नहीं है। ये उपनिवेशवाद का अवशेष मात्र रह गया है। इसके पीछे उनका तर्क है कि जब ब्रिटेन के पास पहले से ही देश को चलाने के लिए जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं और राजा या रानी के पास असल में ताकतहीन अधिकारी रह गए हैं, तो राजशाही पर हर साल अरबों रुपए खर्च करके हासिल क्या हो रहा है?
दरअसल, ब्रिटेन में संवैधानिक राजशाही है। वहां राजा या रानी हेड ऑफ स्टेट होता है, लेकिन सरकार की असली शक्तियां जनता द्वारा चुने जाने गए प्रधानमंत्री के पास होती हैं। प्रधानमंत्री ही ब्रिटेन में हेड ऑफ गवर्नमेंट होता है।
ब्रिटेन में राजा या रानी को प्रधानमंत्री को नियुक्त करने, सदन का सत्र बुलाने और भंग करने, कानूनों पर हस्ताक्षण करने चुनावों की घोषणा करने जैसे अधिकार हैं, लेकिन इनमें से कोई भी काम वह अपनी मर्जी से नहीं बल्कि जनता द्वारा चुनी गई संसद या सरकार की सलाह पर ही कर सकता है।
सीधे शब्दों में कहें तो ब्रिटेन में राजा राज करता है, शासन नहीं।
4. अगर राजशाही को ढोना भी पड़े, तो सिर्फ राजा-रानी हो, पूरा खानदान नहीं
ब्रिटेन में एक तबका ऐसा भी है, जो राजशाही को बनाए रखने का समर्थक है, लेकिन बेहद सीमित तरीके से। इनकी सलाह है कि ब्रिटेन में राजा और रानी और उनके ही बच्चों तक ही राजशाही की प्रथा को सीमित कर देनी चाहिए। ब्रिटेन को दर्जनभर राजकुमार और राजकुमारियों की जरूरत नहीं है।
रॉयल फैमिली की आधिकारिकी वेबसाइट के मुताबिक, ब्रिटेन राजपरिवार के उत्तराधिकारियों की मौजूदा लिस्ट में 23 लोग शामिल हैं। वर्तमान राजा चार्ल्स-III और रानी कैमिला को मिलाकर मौजूदा रॉयल फैमिली की लिस्ट में शामिल लोगों की संख्या 25 और कुल मिलाकर 27 है।
इन सभी का खर्च ब्रिटेन के टैक्स पेयर्स के पैसे किया जाता है। इनमें से ज्यादातर को ये सुविधा केवल रॉयल फैमिली में जन्म की वजह से मिल रही है, जबकि ब्रिटेन की सरकार या सार्वजनिक कामों में उनका योगदान न के बराबर है।
5. गुलामी, शोषण का प्रतीक है राजशाही
स्कॉटलैंड भले ही एक एक देश है, लेकिन वह भी ब्रिटेन का हिस्सा है और उसके हेड ऑफ स्टेट भी ब्रिटेन के राजा या रानी ही होते हैं। स्कॉटलैंड का एक तबका ऐसा भी है, जो राजशाही को फिजूलखर्ची और घूमने-फिरने के जरिए के रूप में देखता है।
2021 में आई BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'स्कॉटलैंड के एक निवासी का कहना था- 'हमें बस वो इसलिए याद आते हैं कि उन पर हमारा पैसा खर्च होता है, या जब उनमें से किसी की मौत हो जाती है। वो खुद को स्कॉटलैंड की अलग-अलग जगहों के स्वामित्व की उपाधि देते हैं और यहां अपनी निजी रियासत में छुट्टियां मनाने आते हैं, लेकिन वो इसके बदले में कुछ नहीं देते। ब्रिटेन की राजशाही परंपरा का कोई मतलब नहीं है।
द न्यूज वीक की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एक स्कॉटिश का कहना है- ‘राजशाही की जड़ें उस ब्रिटिश साम्राज्य से जुड़ी हैं, जिसका इतिहास दुनियाभर में लाखों लोगों के खिलाफ हिंसा, उनके उत्पीड़न और गुलामी से भरा रहा है। सैकड़ों सालों से शाही परिवार का इस अत्याचारी विरासत के साथ अटूट रिश्ता रहा है। खास बात ये है कि राजपरिवार ने कभी भी उस दुखद अतीत को लेकर न माफी मांगी न उसे स्वीकारा।’
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