अक्टूबर 1950 में कोरिया जंग को शुरू हुए 4 महीने बीते थे। अमेरिकी एयरफोर्स के बी-29 और बी-51 बमवर्षक विमान नॉर्थ कोरिया में तबाही मचा रहे थे। अमेरिकी सेना नॉर्थ कोरिया की सेना को पीछे धकेलते हुए यालू नदी के किनारे पहुंच गई थी।
यह एक तरह से अमेरिकी सेना की चीन बॉर्डर पर दस्तक थी। इसके बाद शुरू हुई इस जंग की असली कहानी। जब चीन के सबसे बड़े नेता माओ त्से तुंग के इशारे पर 2 लाख से ज्यादा चीनी सैनिक एक साथ एक ही मोर्चे पर जंग में कूद गए। इसके बाद जंग की पूरी तस्वीर बदल गई और अमेरिका को भागना पड़ा।
आज ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका एक बार फिर आमने-सामने हैं। इससे पहले इन दोनों सुपर पॉवर्स के बीच सिर्फ एक बार जंग हुई है। आज के भास्कर एक्सप्लेनर में हम 72 साल पुरानी उस खौफनाक जंग का पूरा किस्सा सुना रहे हैं…
सबसे पहले इस तस्वीर को देखिए...
कोरियाई जंग में चीन से सीधे टकराया था अमेरिका
25 जून 1950 को नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया पर हमला कर दिया। इस हमले के साथ ही दुनिया के ताकतवर मुल्क दो धड़ों में बंट गए। एक तरफ चीन और सोवियत रूस, नॉर्थ कोरिया की कम्युनिस्ट सरकार के साथ खड़े थे। वहीं, दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय देश साउथ कोरिया के साथ थे।
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के मुताबिक 3 साल तक चली इस जंग में दोनों तरफ से 28 लाख से ज्यादा सिविलियंस और सैनिक मारे गए या गायब हो गए थे।
आप सोच रहे होंगे कि नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बीच की लड़ाई थी तो चीन और अमेरिका इस जंग में क्यों कूद पड़े...
ये बात भी बताएंगे, लेकिन इससे पहले पढ़िए इस जंग की शुरुआत कैसे हुई…
1904 से पहले एक टापू पर कोरियाई साम्राज्य का शासन था। लोग इसे कोरिया के नाम से जानते थे। कोरिया पर कब्जे के लिए 1894-95 और 1904-05 में जापान और चीन के बीच भयानक युद्ध हुए। इस युद्ध के बाद कोरिया पर जापान का कब्जा हो गया था।
1945 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जापान की हार हुई। जंग खत्म होने के बाद कोरिया को दुनिया के दो ताकतवर देशों ने वहां के लोगों से पूछे बगैर आपस में बांट लिया। इस बंटवारे के लिए 38 डिग्री अक्षांश को बंटवारे की लाइन मान लिया गया। उत्तरी हिस्से को सोवियत संघ ने अपने कब्जे में लिया और दक्षिणी हिस्सा अमेरिका के पास चला गया।
कोरिया कैसे युद्ध के बाद दो हिस्सों में बंटा, इस मैप से समझिए..
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में 1948 में साउथ हिस्से में चुनाव हुए, लेकिन नॉर्थ हिस्से ने चुनाव कराने से इनकार कर दिया था। जिसकी वजह से दो कब्जे वाले क्षेत्रों में अलग कोरियाई सरकारों का गठन हुआ।
वामपंथ के खिलाफ विचार की लड़ाई बनी जंग की वजह
सेकेंड वर्ल्ड वॉर के आखिरी दिनों में मित्र-राष्ट्रों में यह तय हुआ कि जापानी आत्म-समर्पण के बाद सोवियत सेना नॉर्थ कोरिया 38 पैरलल नॉर्थ तक रहेगी, जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ की सेना इस लाइन के साउथ भाग की निगरानी करेगी।
इसके बाद नॉर्थ कोरिया में कोरियाई कम्युनिस्टों के नेतृत्व में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया की सरकार बनी। वहीं, साउथ कोरिया में लोकतांत्रिक तरीके से नेता सिंगमन री के नेतृत्व में सरकार बनी। सिंगमन री कम्युनिस्ट विचारों के विरोधी थे। वे इस विचारधारा को अपने देश में फैलने से रोकना चाहता थे। लिहाजा 25 जून 1950 को नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया पर हमला कर दिया।
अमेरिकी सेना के अधिकारी जनरल मैकऑर्थर ने संभाला मोर्चा
कोरिया में युद्ध शुरू होते ही अब दुनिया की नजर संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UN की ओर गई। अमेरिका ने दबाव डालकर UN में वोटिंग कराई और साउथ कोरिया की सुरक्षा का जिम्मा ले लिया।
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान को सरेंडर कराने वाले अमेरिकी जनरल मैकऑर्थर के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी कोरिया पहुंची। देखते ही देखते खतरनाक नापाम बम के साथ अमेरिकी फाइटर उड़ान भरने लगे। नापाम बम में खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता था, जो इंसान को भाप में बदलने की क्षमता रखता था।
चीन को अमेरिकी सेना का रौद्र रूप डराने लगा फिर जंग में कूदा ड्रैगन
शुरुआती हिचक के बाद चीन ने खुलकर नॉर्थ कोरिया का साथ देना शुरू कर दिया। हालांकि, अभी उसने अमेरिका के खिलाफ सेना नहीं उतारी थी। सोवियत संघ भी नॉर्थ कोरिया को हथियार दे रहा था।
अमेरिकी सेना के बी-29 और बी-51 बमबर्षक विमानों ने नॉर्थ कोरिया के गांवों को तबाह कर दिया था। जनवरी 1951 तक अमेरिकी सेना ने नॉर्थ कोरिया की कम्युनिष्ट सेना को न सिर्फ 38 पैरलल के पीछे धकेला था, बल्कि यालू नदी के करीब पहुंच गई थी। यालू नदी चीन और नॉर्थ कोरिया के बॉर्डर पर है। ऐसे में ड्रैगन को यह डर सताने लगा कि कहीं जनरल डगलस मैकऑर्थर अपनी सेना के साथ चीन की सीमा में न घुस जाएं।
चीन के इसी डर ने उसे जंग में खुलकर उतरने के लिए मजबूर कर दिया। चीनी एयरफोर्स ने अमेरिका को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए MiG-15 फाइटर जेट्स को जंग में उतार दिया। नवंबर के पहले सप्ताह में मिग फाइटर जेट ने अमेरिकी सेना के दिन में किए जाने वाले हमलों को लगभग रोक दिया था।
चीनी सेना के हमले के बाद पीछे लौटने को मजबूर हुई अमेरिकी सेना
इस जंग में लड़ने के लिए चीन के पास कोई मॉडर्न हथियार नहीं थे। अभी एक साल पहले पहले ही तिब्बत और चीन के बीच जंग खत्म हुई थी। मैकऑर्थर के नेतृत्व वाली अमेरिकी सेना चीन की तरफ जिस तेजी से बढ़ रही थी, इसी वजह से चीन के सबसे बड़े नेता माओ का इशारा मिलते ही यालू नदी के किनारे मोर्चा संभाले चीन के 2 लाख से ज्यादा सैनिकों ने अचानक से अमेरिकी सैनिकों पर हमला बोल दिया। उनका हमला इतना एग्रेसिव था कि अमेरिकी सेना को पीछे लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसके बाद अमेरिकी सेना 38 पैरलल पर आकर ठहर गई, जो दोनों देशों के बीच का बॉर्डर था। इसके बाद से ही युद्धविराम के लिए 10 जुलाई 1951 को बातचीत शुरू हुई। हालांकि, इसमें उस वक्त सफलता नहीं मिली।
चीनी सेना के मुंहतोड़ जवाब से गुस्से में तिलमिला उठे डगलस मैकऑर्थर
चीनी सेना के इस जवाब से अमेरिकी सेना के सर्वोच्च अधिकारी डगलस मैकऑर्थर तिलमिला गए। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि चीन अचानक से इतनी कड़ी टक्कर देगा। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद डगलस मैकऑर्थर अमेरिका में हीरो बन गए थे। यही वजह है कि मैकऑर्थर ने चीन के अलग-अलग शहरों में परमाणु बम इस्तेमाल करने का भी फैसला कर लिया था। इस बात की जानकारी जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति को मिली वह हैरान रह गए।
इसके बाद राष्ट्रपति को जानकारी दिए बिना जंग के दौरान बड़े फैसले लेने के आरोप में जनरल मैकऑर्थर को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने पद से बर्खास्त कर दिया।
1953 में अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिलते ही खत्म हुई जंग
जुलाई 1953 में जब ड्वाइट डेविड आइजनहावर अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने कहा कि जंग खत्म करने के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी करना पड़ा तो वो करेंगे। हालांकि, इसके बाद 27 जुलाई 1953 को संधि के लिए सभी पक्ष तैयार हो गए। एक बार फिर से सीमा वही 38 पैरलल तय हुई जो जंग से पहले थी।
आपने पूरी खबर पढ़ ली है, तो आइए अब इस पोल में हिस्सा लेते हैं...
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