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लखनऊ के मड़ियांव इलाके के फैजुल्लागंज में एक ऑनलाइन कबाड़ी की शॉप है, जिसमें स्क्रैप भरे हुए हैं। ये दुकान सिविल इंजीनियर ओमप्रकाश की है। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान ही ओमप्रकाश ने नौकरी छोड़कर अपना बिजनेस शुरू करने का फैसला लिया था। आज उनके फैसले को पंख लग गए हैं। लखनऊ से शुरू हुआ उनका काम अब धीरे-धीरे पूरे यूपी में फैल रहा है। इससे हर महीने उनकी 50 हजार रुपए की कमाई भी हो रही है।
29 साल के ओमप्रकाश बताते हैं कि 2014 में मैंने हरदोई पॉलिटेक्निक से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद एक कंपनी में मेरी जॉब लग गई। कुछ दिन लखनऊ में काम किया। फिर वाराणसी में मुझे साइट इंचार्ज बना कर भेज दिया गया। इस दौरान सैलरी बहुत नहीं थी। जब मैंने जॉब छोड़ी तो 30 हजार रुपए महीने ही मुझे मिलते थे। जॉब के दौरान ही मेरे मन में खुद का कुछ करने का ख्याल अक्सर आता रहता था। हालांकि तब कुछ तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करना है।
वे कहते हैं कि साइट पर काम करने के दौरान मुझे स्क्रैप मैनेजमेंट का काम करना पड़ता था। ऐसे में जो स्क्रैप खरीदने आते थे, वे लोग उल्टे-सीधे दाम पर स्क्रैप ले जाते थे। यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई। मुझे लगा कि इस सेक्टर में अपना बिजनेस किया जा सकता है। इसके बाद 2019 में मैंने ट्रायल बेसिस पर lucknowkabadiwala.com नाम से एक वेबसाइट बनवा ली। हालांकि इस पर काम नहीं शुरू किया।
लॉकडाउन में घर आया तो लौट कर नौकरी पर नहीं गया
ओमप्रकाश बताते हैं कि 2020 में जब कोरोना के केस बढ़ने लगे, तब मैं छुट्टी लेकर घर आ गया। उसके कुछ दिनों बाद ही लॉकडाउन लग गया। ये खाली वक्त मेरे लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इससे मुझे सोचने-समझने का मौका मिल गया। अपने आइडिया को लेकर परिवार के लोगों से बात की। सबकी एकमत राय थी कि शुरुआत करो। फिर मैंने जून 2020 से काम करना शुरू कर दिया। तब मेरे साथ दो लोग काम करते थे। बाद में जब काम आगे बढ़ा तो मैंने इनकी संख्या बढ़ाई। आज मेरे साथ पांच लोगों की टीम काम करती है।
कुछ अपनी सेविंग लगाई, कुछ उधार लिया
ओमप्रकाश कहते हैं कि काम शुरू करने से पहले मैंने मार्केट रिसर्च किया। हालांकि कोई सही जानकारी हासिल नहीं हो सकी। इस काम में सबसे बड़ी दिक्कत थी कि कोई फिक्स रेट नहीं होता। जैसा ग्राहक मिला, वैसे तय हो गया। इस कमी को देखते हुए ही मुझे ऑनलाइन कबाड़ खरीदने का आइडिया आया था। कभी किसी ने सोचा था क्या कि खाना भी ऑनलाइन मिलेगा। इसी तर्ज पर मैंने lucknowkabadiwala.com शुरू किया। काम की शुरुआत में 5 से 6 लाख के फंड की जरूरत थी। कुछ मेरी एफडी और सेविंग्स थी। कुछ पैसे उधार लिए और कुछ परिजनों से मदद मिली और काम शुरू हो गया।
कैसे करते हैं काम?
ओमप्रकाश ने कबाड़ के हर सामान की प्राइस लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल दी है। अगर किसी को अपना कोई पुराना या खराब सामान कबाड़ वाले को देना है तो उसके लिए ओमप्रकाश की वेबसाइट बेहतर विकल्प है। वह उनकी वेबसाइट पर जाकर या फोन के माध्यम से अपने सामान के बारे में जानकारी दे सकता है। उस व्यक्ति से बातचीत के बाद ओमप्रकाश की टीम उसके घर पहुंचती है और बाकायदा इलेक्ट्रॉनिक तौल मशीन से तौल कर कबाड़ की खरीदी होती है।
इसके साथ ही ओमप्रकाश ऐसे लोगों से भी सामान की खरीदी करते हैं जो कबाड़ी ठेला लेकर चलते हैं। इस काम में सोशल मीडिया से उन्हें बहुत मदद मिली है। वे बताते हैं कि हमने अब खुद का एक गोदाम बना लिया है, उसमें ज्यादा से ज्यादा कबाड़ खरीद कर भरना शुरू कर दिया है।
ओमप्रकाश कबाड़ के सामान खरीदने के बाद बड़े व्यापारियों या बड़ी कंपनियों को सप्लाई कर देते हैं। इससे उन्हें जो पैसे मिलते हैं, उसे अपने साथियों को सैलरी देने और अपने बिजनेस को बढ़ाने में खर्च करते हैं। इसके बाद भी वे हर महीने 50 हजार रुपए का मुनाफा कमा लेते हैं।
शुरुआत में घाटा हुआ तो परिजनों ने साथ दिया
ओमप्रकाश कहते हैं कि शुरुआत में काफी घाटा हुआ। इतना घाटा कि मैं जितनी सैलरी पाता था, उतना भी नहीं कमा पा रहा था। पूरा पैसा साथियों की सैलरी, दुकान, गोदाम और गाड़ी का किराया देने में निकल जाता था। शुरुआती दो-तीन महीनों में ही मैं निराश होने लगा तो परिजनों ने संभाला। उन्होंने भरोसा दिया कि जल्द ही सब अच्छा होगा। दिवाली तक मैंने अपना उधार चुका दिया और अब 50 हजार से ज्यादा अपनी कमाई कर लेता हूं।
अगले साल तक पूरे यूपी में फैलाना है बिजनेस
ओमप्रकाश कहते हैं कि मेरा टारगेट है कि अब यह कॉन्सेप्ट पूरे यूपी में ले जाना है। मुझे लखनऊ में बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। ग्राहक हमारी पारदर्शिता से खुश रहता है। पारदर्शिता ही सब जगह की दिक्कत है। ऐसे में हम अब यूपी में फ्रेंचाइजी बांटेंगे।
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