श्रीलंका, पाकिस्तान, तुर्किये, अर्जेंटीना…इन सभी देशों में क्या कॉमन है? ये सभी देश आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। और इन सभी देशों को मुश्किल से उबरने के लिए कर्ज चीन ने दिया है।
आर्थिक मुश्किलों से निपटने के लिए गरीब या मिडिल इनकम देशों को लोन देने के मामले में अब चीन, इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड यानी IMF से कॉम्पिटिशन करने लगा है।
2021 में चीन और IMF दोनों ने ही मुश्किल में फंसे देशों को कर्ज दिया। IMF का दिया हुआ कर्ज चीन से सिर्फ 28 बिलियन डॉलर ही ज्यादा था। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यही रफ्तार कायम रही तो चीन कुछ दिनों में IMF से ज्यादा कर्ज बांट रहा होगा।
लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। दूसरे देशों को कर्ज बांट रहे चीन में प्रॉविंशियल गर्वनमेंट्स यानी राज्य सरकारें खुद कर्ज में दबी हैं।
हाल के वर्षों में चीन ने दुनिया में करीब 240 बिलियन डॉलर यानी 19.75 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बांटा है। जबकि चीन के अपने डेटा के मुताबिक 2022 के अंत तक उसकी 31 राज्य सरकारों पर कुल 5.1 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 420 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था।
IMF के आंकड़ों के मुताबिक चीन की राज्य सरकारों पर कर्ज तो 9.5 ट्रिलियन डॉलर, यानी करीब 782 लाख करोड़ रुपए है।
जानिए, खुद की कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था के बावजूद दूसरे देशों को लोन बांटने में चीन का आखिर क्या फायदा है? और क्या इस तरह की कर्ज की अर्थव्यवस्था दुनिया को ज्यादा अस्थिर करेगी?
पहले समझिए, चीन के अपने राज्यों को बुरा हाल क्यों
जरूरी सेवाओं पर खर्च में कटौती कर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए लोन ले रहीं चीन की राज्य सरकारें
2010 के बाद से चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ने लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को बढ़ाने की नीति अपनाई है।
इसका नतीजा ये है कि चीन के हर राज्य में मुख्य शहर ही नहीं, टियर-2 और टियर-3 शहर भी हाई स्पीड रेल, हाईवे और हाउसिंग प्रोजेक्ट्स जैसे मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर तेजी से खर्च बढ़ा रहे हैं।
मगर कोविड के दौरान चीन में जिस तरह से सख्ती बरती गई, उससे अर्थव्यवस्था अब तक उबर नहीं पाई है।
हालत ये है कि कई शहरों में इंडस्ट्रियल पार्क और विशाल हाउसिंग सोसायटीज बनकर तैयार हैं और खाली पड़ी हैं।
मगर कम्युनिस्ट पार्टी का एजेंडा बिना किसी विरोध के लागू करने वाली राज्य सरकारें इस मंदी के बावजूद इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश कम नहीं कर रही हैं। इसके लिए चीन के सरकारी बैंक राज्य सरकारों को लोन दे रहे हैं।
लोन के बोझ में दबी राज्य सरकारें खर्च मैनेज करने के लिए नागरिकों के लिए जरूरी ट्रांसपोर्टेशन, हेल्थ कवर और रोजगार गारंटी जैसी सेवाओं के खर्च में कटौती कर रही हैं।
देखिए, चीन के 6 सबसे विवादित मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट
जो जितने बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बनाए वो कम्युनिस्ट पार्टी का उतने ही करीब
इकोनॉमिक आउटपुट के लिहाज से चीन के सबसे बड़े राज्य गुआंगडोंग ने घोषणा की है कि वह 2023 तक 1530 इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर 1.2 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 99 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगा।
हेनान प्रॉविंस ने घोषणा की है कि वह 2500 इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर 261 बिलियन डॉलर यानी करीब 22 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगा।
हेनान प्रॉविंस के शहर शांगक्यू की स्थिति ये है कि शहरी एडमिनिस्ट्रेशन ने लिए हुए लोन का ब्याज चुकाने पर अपने रेवेन्यू का करीब एक तिहाई यानी 1 बिलियन डॉलर खर्च किया है।
जमीन बेचने पर निर्भर हैं शहरों की सरकारें…मगर अब ये बाजार मंदा पड़ा
चीन में सारी जमीन पर सरकार का स्वामित्व होता है। शहरी सरकारों के लिए इस जमीन की बिक्री ही आय का सबसे बड़ा जरिया होता है।
अब तक ये व्यवस्था ठीक चलती भी रही है। 2010 के दशक में चीन की शहरी सरकारों को पूरी दुनिया में आदर्श माना जाता था। ये सरकारें अपने खर्च के लिए खुद संसाधन जुटातीं और विकास भी अपने दम पर करती थीं।
मगर कोविड के दौर ने इन सरकारों की हालत बिगाड़ दी है। चीन की सख्त ‘जीरो कोविड’ पॉलिसी के पालन में इन शहरी सरकारों ने अपनी सारी कमाई लॉकडाउन, टेस्टिंग और क्वारेंटाइन को मैनेज करने में खर्च कर दी।
लॉकडाउन की वजह से उद्योग बंद पड़े थे और शहरी सरकारों की कमाई घटती जा रही थी। यही नहीं, लॉकडाउन की अनिश्चितता की वजह से डेवलपर्स ने भी जमीन खरीदने से हाथ पीछे खींच लिए।
अब इन शांगक्यू जैसे शहरों की सरकारों के लिए सामान्य नागरिक सेवाओं का खर्च उठाना भी मुश्किल होता जा रहा है।
शहरों में बेसिक नागरिक सुविधाएं भी बंद हो रही हैं
शांगक्यू दिक्कतों से जूझने वाला अकेला शहर नहीं है। शांगक्यू उन 20 शहरों में शामिल है जहां नागरिकों को दी जाने वाली बस सेवाएं अब बंद हो गई हैं।
वुहान समेत कई शहरों में सरकारों ने लोगों को मिलने वाले हेल्थ इंश्योरेंस कवर में कटौती कर दी है। कई शहरों में सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह में कटौती की गई है।
बीजिंग से सटे हेबेई प्रांत में तो ये स्थिति आ गई कि सरकार नागरिकों को घर पर हीटिंग के लिए दी जाने वाली गैस सब्सिडी नहीं दे पाई। पिछले जाड़े में यहां नागरिक ठंड से ठिठुरने को मजबूर हो गए।
चीन के सोशल मीडिया में लोग इस बात पर गुस्सा जता रहे हैं कि हेल्थ केयर और पेंशन जैसी बेसिक सुविधाओ के बजाय सरकार ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर खर्च कर रही है जो किसी के काम नहीं आ रहे हैं।
चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही 2021 में 16.21 करोड़ लोगों में 54 बिलियन डॉलर यानी करीब 4.45 लाख करोड़ रुपए बतौर बेसिक पेंशन बांटे गए। यानी हर पेंशनर कौ औसतन सिर्फ 28 डॉलर (2300 रुपए) की मासिक पेंशन मिली।
अब समझिए, क्यों अपने राज्यों की बदहाली के बावजूद दूसरे देशों को कर्ज बांटने में जुटा है चीन
2010 में चीन दूसरे देशों को कोई कर्ज नहीं देता था…2021 में 40.5 बिलियन डॉलर का कर्ज सिर्फ डूबती अर्थव्यवस्थाओं को
दूसरे देशों को कर्ज बांटने की नीति पर चीन ने 2010 के बाद से काम करना शुरू किया है। अमेरिकी विशेषज्ञ इसे चीन का ‘कर्ज जाल’ कहते हैं।
हालांकि चीन ने हमेशा ही अपनी कर्ज नीति को सही बताया है। चीन दूसरे देशों को इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए लोन देता है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रोजेक्ट्स में चीन अपने इंजीनियर, अपने वर्कर और अपनी मशीनरी का इस्तेमाल करता है। यानी कर्ज लेने वाले देश की इकोनॉमी को इस प्रोजेक्ट से कोई फायदा नहीं मिलता। स्थानीय लोगों को कोई रोजगार नहीं मिलता।
चीन का कहना है कि वह जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए देशों को कर्ज देता है जो उनकी तरक्की के लिए जरूरी होते हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश सालों से ऐसे विकास का वादा तो करते रहे हैं, लेकिन कभी किसी ने कुछ नहीं किया।
इन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से कर्ज लेने वाले देशों की कमाई कम ही होती है। ज्यादातर ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स या तो चीन के अपने काम के होते हैं या फिर सिर्फ सफेद हाथी साबित होते हैं।
इन प्रोजेक्ट्स के लिए लिया हुआ कर्ज ही इन देशों को मुश्किल में फंसाता है और फिर मुश्किल से उबारने के नाम पर चीन ही इन्हें और कर्ज देता है।
2010 में चीन ने डूबती अर्थव्यवस्थाओं को कोई कर्ज नहीं दिया था। 2014 में 10 बिलियन डॉलर कर्ज दिया और 2021 में ये राशि बढ़कर 40.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई।
चीन के कर्ज पर ब्याज दर ज्यादा, मगर शर्तें आसान
जिस भूमिका में आज चीन आना चाहता है, उसमें कभी अमेरिका हुआ करता था। 1990 और उससे पहले तक IMF के अलावा सिर्फ अमेरिका ही था जो डूबती अर्थव्यवस्थाओं को लोन देने में आगे था।
मगर अमेरिका ने आखिरी बार 2002 में उरुग्वे को 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था।
आज स्थिति ये है कि 2021 में चीन ने मुश्किल में फंसे देशों को को 40.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 3.30 लाख रुपए का कर्ज दिया था। IMF ने 2021 में मुश्किल में फंसे देशों को 68.6 बिलियन डॉलर यानी करीब 5.64 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया।
चीन इस तरह के कर्ज पर करीब 5% की दर से ब्याज लेता है। अमेरिका भी पहले ऐसे कर्ज पर 4.8% की दर से ब्याज लेता था।
IMF की ब्याज दर इससे कम, करीब 2% होती है। लेकिन ये कर्ज देने से पहले IMF कई कड़ी शर्तें लागू करता है। इनके तहत कर्ज लेने वाले देश को कई कड़े आर्थिक फैसले लेने पड़ते हैं।
इसकी तुलना में चीन की शर्तें आसान होती हैं। इसीलिए कई देश मुश्किल वक्त में चीन से कर्ज लेना ज्यादा मुफीद मानते हैं।
कर्ज के बहाने अपनी करंसी मजबूत कर रहा है चीन…कर्जदार देश साथ भी निभाते हैं
मुश्किल में फंसे देशों को चीन अपनी करंसी में ही कर्ज देता है। इससे चीन को तीन तरह से फायदा होता है।
उसका कर्ज चुकाने के लिए देशों को अपने फॉरेन करंसी रिजर्व में चीन की करंसी बढ़ानी पड़ती है। इससे ग्लोबल करंसी मार्केट में चीन की करंसी को मजबूती मिलती है।
कर्ज लेने वाले देश को बाकी के कर्ज डॉलर से चुकाने होते हैं। इससे उसके फॉरेक्स रिजर्व में डॉलर घटता जाता है। यही नहीं, चीनी करंसी का इस्तेमाल वो चीन का सामान खरीदने में ही कर पाता है।
यानी इस करंसी को खर्च करने के लिए उसे चीन से ही आयात बढ़ाना पड़ता है।
चीन को उम्मीद है कि इस तरीके से वो ग्लोबल मार्केट में सबसे बड़े एक्सपोर्टर की अपनी हैसियत और ज्यादा मजबूत कर पाएगा। साथ ही डिमांड बढ़ने से उसकी घरेलू इकोनॉमी में भी तेजी आएगी।
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