‘हम माता-पिता के प्यार को तब तक नहीं जान सकते जब तक हम खुद माता-पिता नहीं बन जाते।’
- हेनरी वार्ड बीचर
स्पेशल नीड चिल्ड्रन, स्पेशल पेरेंट्स
A. यदि आपने अपने आस-पास या रिलेटिव्स में किसी ऐसे परिवार को देखा है जहां कोई 'स्पेशल नीड' बच्चा है,तो प्रसिद्ध अमेरिकी समाजसेवी और राजनेता हेनरी वार्ड बीचर की उपरोक्त बात को आप समझ पाएंगे।
B. प्रायः ऐसे परिवार में 'पेरेंट्स' के जीवन की सबसे बड़ी 'प्राथमिकता' और जीवन भर की चिंता 'अपना बच्चा' होती है। एक 'स्पेशल नीड' वाले बच्चे का पालन-पोषण करने के लिए, चाहे वह शारीरिक अक्षमता (फिजिकल डिसेबिलिटी) हो, सीखने में देरी हो, भावनात्मक चुनौती हो, या विकासात्मक विकार (डेवलपमेंटल डिसऑर्डर) हो, स्पेशल स्किल्स की आवश्यकता होती है।
C. ऐसे बच्चों को अपने पेरेंट्स से और अधिक देखभाल, अधिक समय, अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। यदि सावधानी और संवेदनशीलता न दिखाई जाए, तो कई बार पेरेंट्स के अपने करिअर, विवाह और अन्य बच्चों के साथ संबंधों को पर भी खतरा आ सकता है।
स्पेशल चिल्ड्रन परिवारों के लिए 6 बेस्ट एडवाइस
1) बच्चों को ये अहसास न होने दें कि वो दूसरों से अलग है: बच्चों को इस बात का कम-से-कम या बिलकुल भी एहसास ना होने दें कि वे दूसरों से अलग हैं। जैसे, बच्चों के सामने 'ओवरकेयर', ओवरप्रोटेक्शन' ना दिखाएं। भले ही आप मन में चिंतित हों उसे दिखने न दें। मुश्किल काम तो है लेकिन इससे बच्चे का आत्मविश्वास तेजी से बढ़ता है। जहां तक संभव हो नॉर्मल परिस्थियों की तरह को बच्चे को सामाजिक फंक्शन्स में ले जाएं। बच्चे को घर में छुपा कर रखना गलत है, और मेरे विचार में अपराध भी। विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता ना हो तो सामान्य स्कूल में ही एडमिशन करवाएं इत्यादि।
2) पर्सनल खुशियों और एम्बिशंस को एडजस्ट करना: सबसे पहली स्थिति जो इन मामलों में आती है वह यह है कि दोनों में से किसी एक पेरेंट को अपने करियर में थोड़ा एडजस्ट करना पड़ता है।
A. हालांकि भारत के अधिक परंपरागत घरों में शायद यह समस्या नहीं है क्योंकि अधिकतर घरों में महिलाएं गृहणी होती हैं और घर पर रह कर कार्य करती हैं फिर भी शहरों में मॉडर्न फैमिलीज में जहां माता-पिता दोनों के अपने करिअर गोल्स होते हैं यह दिखता है।
B. कई भारतीय परिवार आज भी 'संयुक्त' हैं, तो इन घरों में भी स्पेशल बच्चों का लालन-पालन करना थोड़ा आसान हो जाता है। कुछ अनोखा रास्ता तैयार करने की कोशिश करें जिसमें भारतीय परम्परा का 'विजडम ' भी हो मॉडर्न 'साइंटिफिक सोच' भी। ध्यान रखिए 'विशेष परिस्थितियां', 'विशेष समाधान' की मांग करती है।
3) विशेष आवश्यकता वाले परिवार में माता-पिता अपने स्वयं के 'बॉन्ड' को बनाए रखें: 'हस्बेंड' और 'वाइफ' का रिश्ता वैसे ही नाजुक होता है, ऐसे में कई बार 'स्पेशल नीड' बच्चे का लालन-पोषण, इस रिश्ते के लिए चैलेंज हो सकता है।
A. ये समझें कि इस स्थिति से आप दोनों मिलकर ही ऊपर आ सकेंगे, तो किसी भी एक 'पार्टनर' को यह अहसास ना होने दें कि उसे इस स्थिति में ज्यादा 'भुगतना' पड़ रहा हैं, दूसरे को नहीं।
B. ऐसा घर में किए जाने वाले काम के बंटवारे को लेकर, करिअर के मामले अदि में हो सकता है।
C. स्थितियां तब बिगड़ती हैं जब हस्बेंड-वाइफ ऐसी स्थिति के लिए एक दूसरे पर बिना सिर-पैर का दोषारोपण करने लगते हैं।
D. याद रखें इस मामले में आपस में जो भी चर्चा हो वो 'तथ्यों' पर आधारित 'लॉजिकल' कन्वर्सेशन हो। 'हस्बेंड', 'वाइफ' अपने स्वयं के लिए समय निकालें, समय-समय पर साथ में घूमने जाएं और सबसे पहले अपना खुद का 'बॉन्ड' बनाए रखें।
4) जीवन जैसा है उसे वैसा स्वीकार करें, खुश रहें: कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।
A. जो कार्य आप कर सकते हैं वो आप कर ही रहे हैं, और आगे भी करेंगे, फिर उन बातों को लेकर पछतावा या दुःख क्यों जो आपके नियन्त्रण में हैं ही नहीं।
B. अपने आस-पास देखें हर व्यक्ति के जीवन में कुछ समस्या/दुःख दिखाई देगा।
C. कई लोग 'गरीबी' के दलदल में हैं तो कुछ को 'अमीरी' ने अंधा किया हुआ है। आप पाएंगे दूसरों की तुलना में आप के पास कई पॉजिटिव विशेष परिस्थितियां हैं।
D. मैंने ऐसे कई परिवारों को सच्चे मायनों में 'आध्यात्मिक' होते देखा है, केवल यह एक घटना उन्हें जीवन भर के लिए जीवन को देखने सही तरीका सीखा देती है।
5) अपनी खुद की शारीरिक और मानसिक सेहत में कमी न आने दें: मैंने खुद एक मामले को करीब से देखा है जिसमें ऐसे बच्चे के पालन-पोषण में किए गए संघर्ष में 'मदर' अपना स्वयं का मानसिक संतुलन खोने की कगार पर थी। यह उस 'कपल' की आपसी सूझबूझ और मॉडर्न सोच ही थी जिसकी वजह से वे इससे उबर पाए। जब बच्चे के स्थिति थोड़ी 'स्टेबल' हुई, तब तक 'मदर' की उम्र चालीस के आस-पास थी, और थी करिअर से जुडी अधूरी उम्मीदें। ऐसे में 'हस्बेंड' ने 'वाइफ' का सपोर्ट किया उसे 'एमबीए' एंट्रेंस टेस्ट की प्रिपरेशन के लिए भेजा। भले ही उन्होंने किसी कॉलेज में एडमिशन नहीं लिया, लेकिन इसने उनकी स्थिति में कई पॉजिटिव प्रभाव डाले। कुछ सालों बाद जब मुझे वह 'कपल' मिला तो अधिक खुश और संतुष्ट। कहने का अर्थ है कि परिस्थितियों से लड़ते पेरेंट्स को यह नहीं भूलना है कि उनके खुद के शारीरिक और मानसिक सेहत में कोई कमी आए। इसके लिए उन्हें अपनी परिस्थिति के अनुसार कदम उठाने होंगे और आवश्यकता होने पर एक्सपर्ट्स से मदद लेनी होगी।
6) बच्चों की कमजोरियों में ताकत को ढूंढने का प्रयास करें: माइकलएंजेलो (प्रसिद्ध आर्टिस्ट), विन्सेंट वॉन गॉग (प्रसिद्ध चित्रकार), अभिषेक बच्चन (डिस्लेक्सया पीड़ित), संगीतकार रविंद्र जैन (जन्मांध), यूनियन मिनिस्टर, एस जयपाल रेड्डी आदि सभी जन्म से या बचपन से किसी न किसी प्रकार के डिसऑर्डर से ग्रस्त थे और एक 'स्पेशल नीड चाइल्ड' थे। कहने का मतलब है 'स्ट्रेंथ' पर फोकस करें और 'वीकनेस' को मैनेज करें।
आज का 'करिअर फंडा' यह है प्रकृति की सारी रचनाएं सुन्दर हैं, यदि आप उनमें सुंदरता देख नहीं पाते तो कमी आप में है प्रकृति में नहीं!
कर के दिखाएंगे!
इस कॉलम पर अपनी राय देने के लिए यहां क्लिक करें।
करिअर फंडा कॉलम आपको लगातार सफलता के मंत्र बताता है। जीवन में आगे रहने के लिए सबसे जरूरी टिप्स जानने हों तो ये करिअर फंडा भी जरूर पढ़ें...
1) एलेक्जेंडर द ग्रेट के जीवन से लीजिए 4 सबक:वैज्ञानिक सोच और सोशल इंटेलिजेंस से असंभव भी संभव होगा
2) मूवी ‘द ग्रेट एस्केप’ से जीवन के 4 सबक:सबसे मुश्किल हालात में भी लड़ने की इच्छा ही सफलता दिलाएगी
4) GK और GS की तैयारी के लिए 5 पावर कॉन्सेप्ट्स:इन्हें समझिए और हर कॉम्पीटिशन के लिए हो जाइए तैयार
5) खत्म होने वाले हैं ये 5 प्रोफेशन्स:सावधान रहिए, अपने स्किल्स को अपग्रेड कर पाएं जॉब सिक्योरिटी
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.