प्लास्टिक वेस्ट को मैनेज करना हम सबके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इससे पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही कूड़े के ढेर पर कई जिंदगियां भी दम तोड़ देती हैं। कई मवेशी कचरा खाकर बीमार हो जाते हैं, उनकी जान चली जाती है। कई बार तो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे भी इसका शिकार हो जाते हैं। इस परेशानी को कम करने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में रहने वाले आदित्य बांगर ने एक पहल की है।
12वीं में पढ़ने वाले 17 साल के आदित्य प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रहे हैं। फिलहाल हर दिन वे 10 टन प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकिल कर रहे हैं। अपनी इस पहल से वे न सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से छुटकारा दिला रहे हैं, बल्कि इससे कमाई भी कर रहे हैं। एक साल के भीतर ही उन्होंने एक करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर हासिल किया है।
पहली बार चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर बनते देखा
आदित्य एक बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। अपने आइडिया को लेकर वे कहते हैं कि जब मैं 10वीं में था, तब परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए चीन जाने का मौका मिला। वहां मुझे उन जगहों पर जाने का मौका मिला जहां प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार किए जा रहे थे। मुझे वह काम पसंद आया और यही से मेरी दिलचस्पी इसमें बढ़ने लगी। मुझे लगा कि यह काम अगर मैं सीख लूं तो अपने देश में भी इस तरह की पहल की जा सकती है। इसके बाद मैं वहां काम कर रहे लोगों से मिला। उनसे बातचीत की और उनके काम करने की प्रोसेस को समझा।
इसके बाद साल 2019 में आदित्य वापस इंडिया लौट आए। उन्होंने अपने घर में इस आइडिया को लेकर बात की। चूंकि परिवार पहले से बिजनेस से जुड़ा हुआ था, इसलिए आदित्य को भी आसानी से इसकी इजाजत मिल गई। उन्होंने चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रही कंपनियों से कॉन्टैक्ट किया और वहां से रिसाइकिल करने वाली मशीनें मंगाई। इसके बाद भीलवाड़ा में ही उन्होंने अपना सेटअप जमाया और प्रोडक्शन यूनिट शुरू की। इसके लिए उन्हें पिता की कंपनी से फंड मिला था।
सेटअप तो जमा लिया, पर कोविड के चलते एक साल काम रोकना पड़ा
आदित्य कहते हैं कि हमने पूरी तैयारी कर ली थी। काम शुरू करने ही वाले थे कि कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया और हमें काम बंद करना पड़ा। करीब एक साल तक हमारा काम बंद रहा। इस बीच खाली वक्त का उपयोग मैंने नए आइडिया जेनरेशन के रूप में किया। इंटरनेट पर वेस्ट मैनेजमेंट संबंधी ढेर सारे वीडियो देखे, जानकारी जुटाई। साथ में अपनी पढ़ाई भी करता रहा। फिर जनवरी 2021 में कोरोना के मामले कम हुए और लॉकडाउन में ढील दी गई। बाजार और ऑफिस धीरे-धीरे खुलने लगे। नौ महीने पहले हमने भी फिर से कोशिश की और 'ट्रैश टू ट्रेजर' नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।
कैसे करते हैं काम? कहां से लाते हैं प्लास्टिक वेस्ट?
आदित्य बताते हैं कि हम अभी सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल कर रहे हैं। इसके लिए हम लोकल लेवल से लेकर नगर निगम तक से वेस्ट कलेक्ट करते हैं। कई छोटे वेंडर्स से हमारा टाइअप है, जिन्हें हम पैसे देकर प्लास्टिक खरीदते हैं, फिलहाल हम लोग हर दिन 10 टन प्लास्टिक रिसाइकिल कर रहे हैं। हालांकि यह हमारी डिमांड के मुताबिक कम है। हम जल्द ही प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन को बढ़ाने वाले हैं। जैसे-जैसे लोगों को हमारे काम के बारे में पता चल रहा है, वैसे-वैसे हमारा काम आगे बढ़ रहा है।
प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार करने की प्रोसेस को लेकर वे बताते हैं कि सबसे पहले हम वेस्ट को कलेक्ट करने के बाद उसे कैटेगराइज करते हैं। इसके बाद सभी बॉटल से ढक्कन निकालते हैं और उन्हें क्लीन करने के बाद ड्राय करते हैं। फिर मशीन की मदद से उसे महीन क्रश कर लेते हैं। इसके बाद इसे केमिकल वॉश करते हैं और मशीन की मदद से मेल्ट कर लेते हैं। मेल्ट होने के बाद हम इसे कुछ घंटों के लिए ठंडा होने के लिए छोड़ते हैं। ठंडा होने के बाद यह फाइबर के रूप में तब्दील होता है। इसके बाद प्रोसेसिंग करके इससे फैब्रिक तैयार किया जाता है।
आदित्य के मुताबिक एक किलो प्लास्टिक वेस्ट से लगभग 800 ग्राम फाइबर तैयार होता है। अभी वे हर दिन 8 टन फाइबर तैयार कर रहे हैं। फिलहाल वे ब्रांड-टू-कस्टमर यानी B2C मॉडल पर काम नहीं कर रहे हैं। उनके यहां जितना भी फाइबर तैयार होता है, वे एक कंपनी को सीधे बेच देते हैं। जो आगे इससे कपड़े और बाकी चीजें तैयार करती है। अभी आदित्य की टीम में 200 लोग काम करते हैं।
करियर के लिहाज से इस फील्ड में बेहतर स्कोप
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60% हिस्सा भारत डालता है। जबकि अभी करीब एक चौथाई प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल्ड किया जा रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अभियान चला रही हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) के तहत देश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
अगर कोई इस सेक्टर में करियर बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को समझना होगा। उसकी प्रोसेस को समझना होगा। इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकारें ट्रेनिंग कोर्स भी करवाती हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई इंडिविजुअल भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।
अगर आप भी वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम करना चाहते हैं तो ये दो स्टोरी आपके काम की है
असम में रहने वाले संजय गुप्ता वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम कर रहे हैं। स्विट्जरलैंड की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर वे पिछले तीन साल से भारत में वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम कर रहे हैं। असम में वे घर-घर जाकर लोगों के यहां से कचरा कलेक्ट करते हैं और फिर उससे ऑर्गेनिक खाद तैयार करते हैं। 100 से ज्यादा लोगों को उन्होंने रोजगार से जोड़ा है। वे खुद भी लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। (पढ़िए पूरी खबर)
दिल्ली में रहने वाली कनिका आहूजा भी उनमें से एक हैं, जो न सिर्फ कचरे की समस्या से छुटकारा दिलाने की पहल कर रही हैं, बल्कि इससे इकोफ्रेंडली बैग, पर्स, फैब्रिक प्रोडक्ट और हैंडीक्राफ्ट आइटम्स की मार्केटिंग करके सालाना 50 लाख रुपए की कमाई भी कर रही हैं। उन्होंने 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है। पढ़िए पूरी खबर)
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