पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
Install AppAds से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
आज की पॉजिटिव खबर में बात UP के इटावा जिले में रहने वाले शिवम तिवारी की। शिवम टिशू कल्चर तकनीक की मदद से 30 एकड़ जमीन पर कुफरी फ्रायोम वैरायटी का आलू तैयार कर रहे हैं। यह आलू चार इंच लंबा होता है। इसका उपयोग बड़े लेवल पर चिप्स बनाने में किया जाता है। पिछले साल उनका टर्नओवर एक करोड़ रुपए रहा है। हाल ही में उन्होंने कृषि अनुसंधान केंद्र शिमला से भी एक करार किया है। जिसके तहत वे 1000 बीघा जमीन के लिए बीज तैयार करेंगे। इसके बाद यह बीज देशभर में किसानों को भेजा जाएगा।
21 साल के शिवम ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन उनका झुकाव शुरू से खेती की तरफ ही रहा। इसलिए पढ़ाई के बाद उन्होंने नौकरी के लिए कहीं अप्लाई नहीं किया। पिता खेती करते थे तो शिवम भी इंजीनियरिंग के बाद उनके काम में मदद करने लगे।
वे कहते हैं कि पापा पहले भी आलू की खेती करते थे, लेकिन नॉर्मल तरीके से। तब ज्यादा उपज नहीं होती थी। इसके बाद पापा मेरठ के आलू अनुसंधान केंद्र गए। वहां से उन्हें टिशू कल्चर विधि से खेती के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद 2018 में हमने एक्सपर्ट्स को बुलाया और टिशू कल्चर की खेती के लिए लैब बनवाया।
शिवम जब भी गांव आते थे तो खेत पर जरूर जाते थे। वे लैब बना रहे एक्सपर्ट से मिलते थे और उनके काम को समझने की कोशिश करते थे। 2019 में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे गांव लौट आए और पापा के साथ खेती करने लगे।
शिवम के साथ अभी 15 से 20 लोग नियमित रूप से जुड़े हुए हैं। जबकि सीजन में 50 लोग तक उनके खेतों में काम करते हैं। इस खास वैरायटी के लिए उन्हें लाइसेंस भी मिल चुका है। वे UP के साथ साथ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी बीज की सप्लाई कर रहे हैं।
टिशू कल्चर विधि से खेती कैसे होती है?
इस तकनीक में प्लांट्स के टिशूज को निकाल लिया जाता है। फिर उसे लैब में प्लांट्स हॉरमोन की मदद से ग्रो किया जाता है। इसमें बहुत ही कम समय में एक टिशू से कई प्लांट्स तैयार हो जाते हैं। शिवम केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र (CPRI) शिमला से कल्चर ट्यूब लाकर अपनी लैब में पौधे तैयार करते हैं। एक कल्चर ट्यूब पांच हजार रुपए की आती है और उससे 20 से 30 हजार पौधे तैयार होते हैं। इन पौधों से तकरीबन ढाई लाख आलू (बीज) तैयार होते हैं।
शिवम फरवरी में शिमला से आलू के ट्यूबर लाते हैं और अक्टूबर तक उसे लैब में रखते हैं। फिर जो प्लांट्स तैयार होते हैं, उन्हें खेत में लगा देते हैं। करीब 2 से ढाई महीने बाद उससे बीज तैयार हो जाते हैं। जिसे वो मशीन से खुदाई कर निकाल लेते हैं।
टिशू कल्चर खेती के फायदे
टिशू कल्चर विधि से कौन-कौन से प्लांट्स की खेती होती है?
अभी देश में यह विधि बहुत लोकप्रिय नहीं है। इसे लगाने में खर्च भी लाखों में आता है। फिर भी कई किसान इस विधि से खेती कर रहे हैं। नर्सरी में लगने वाले फूल, सजावट के फूल, केला, मेडिसिनल प्लांट्स, आलू, बिट्स, आम, अमरूद सहित कई सब्जियों और फ्रूट्स के बीज को इस विधि से तैयार किया जा सकता है।
कहां से ली जा सकती है ट्रेनिंग?
देश के कई संस्थानों में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। इसके लिए सर्टिफिकेट लेवल से लेकर डिग्री लेवल के कोर्स होते हैं। किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इस संबंध में जानकारी ले सकते हैं। शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र और मेरठ स्थित आलू अनुसंधान केंद्र में किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है। इसके साथ ही कई किसान व्यक्तिगत रूप से भी ट्रेनिंग देते हैं। अगर कोई किसान टिशू कल्चर का सेटअप लगाना चाहे तो अनुसंधान केंद्र मदद करते हैं।
पॉजिटिव- आज समय कुछ मिला-जुला प्रभाव ला रहा है। पिछले कुछ समय से नजदीकी संबंधों के बीच चल रहे गिले-शिकवे दूर होंगे। आपकी मेहनत और प्रयास के सार्थक परिणाम सामने आएंगे। किसी धार्मिक स्थल पर जाने से आपको...
Copyright © 2020-21 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.