शाम का वक्त! मवेशियों की सानी-पानी कर रही थी कि तभी पड़ोसी आया और बाल पकड़कर खींचते हुए मुझे पीटने लगा। वो चाह रहा था कि मैं उसकी लुगाई के शरीर से निकल जाऊं। मैं दर्द और गुस्से से चीख रही थी। उस रोज मरते-मरते बच तो गई, लेकिन गांव छोड़ना पड़ा। ब्याह करके जहां 50 साल गुजारे, अब मैं उस जगह के लिए डायन हूं। लुगाइयों के शरीर में घुसने वाली, बच्चों को खाने वाली, खेत सुखाने वाली।
करीब 65 साल की कजरी देवी की आंचल की ओट वाली आंखों में तकलीफ से भी पहले जो दिखाई देता है, वो है सूनापन। जहां पूरी जिंदगी बिताई, आखिरी दिनों में एक दाग लेकर उससे दूर होने की तड़प। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के उलेला गांव की कजरी पर सालभर पहले डायन होने का आरोप लगा। इसके बाद से सब बदल गया।
दोपहरी में अचार-पापड़ के लिए इकट्ठा होने वाली औरतें घर आने से बचने लगीं। तीज-त्योहार सूने जाने लगे, लेकिन इन सबसे ऊपर था जान का खतरा। कजरी को गांव छोड़ना पड़ा। अब वे बूंदी जिले में अपनी बेटी-जमाई के घर रहती हैं।
दिल्ली से उदयपुर होते हुए करीब 1260 किलोमीटर का सफर तय कर हम उनके नए ठिकाने पहुंचे। ये तालाब गांव है। करीब 500 मकानों वाले गांव में हमारी गाड़ी के घुसते ही लोग मुस्तैद हो गए। पता चला कि वे डरे हुए हैं क्योंकि हम 'बिजली विभाग वालों की तरह' दिख रहे हैं। कई लोग कहते हैं, वापस लौट जाओ, रास्ता काफी खराब है।
हम नीचे उतरकर झाड़-झंखाड़ हटाते हुए आगे बढ़ते हैं। ये रुकावटें गांव वाले ही डालते हैं, ताकि बिजली विभाग वाले उनकी चोरियों तक न पहुंच सकें।
कजरी का घर गांव से भी बाहर खेतों के बीच है, जहां से एक किलोमीटर तक कोई मकान नहीं। उनके बेटे मोतीलाल माली कहते हैं- मैंने खूब सोच-समझकर मां को यहां छोड़ा। न वो लोगों के बीच रहेगी, न अफवाह फैलेगी। एक बार कोई लुगाई डाकन कहलाने लगी तो मरते तक वो वही रहती है। उसके शरीर का जख्म भर जाएगा तो भी डाकन शब्द अब उसके पीछे रहेगा। और जान का भी डर है। एक बार मारने की कोशिश हुई, फिर मार ही न दें।
क्या हुआ था?
हमारा सवाल खत्म होने से पहले ही कजरी मेवाड़ी में बताने लगती हैं- शाम के समय पड़ोसी घर आया।
वो बहुत गुस्से में था और मुझे डाकन बोलते हुए चीख रहा था। मैंने कहा कि मैं डाकन नहीं हूं। मेरे तो बाल-बच्चे भी हैं, पोत-पतोह भी! वो तब भी नहीं माना और मुझे मारने-पीटने लगा। उसका कहना था कि मैं खुद को डाकन मान लूं और उसकी लुगाई के शरीर से निकल जाऊं। मेरे बार-बार मना करने पर वो और भड़क गया और मुझे खींचते हुए कच्चे कुएं तक ले जाकर वहां धक्का दे दिया।
गिरते हुए कजरी देवी ने दाएं हाथ से कुएं का पाइप पकड़ लिया। गांववालों ने उन्हें बचा तो लिया, लेकिन डाकन के आरोप से नहीं बचा सके।
वाकया 5 अक्टूबर 2021 का है। घटना के बाद जख्मी कजरी देवी को कुएं से निकालने का वीडियो भी वायरल हुआ था, लेकिन इससे भी ज्यादा जो बात फैली, वो ये कि डोकरी (कजरी) के पास शैतानी ताकत है। वो अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए जवान लुगाइयों के शरीर में घुस जाती है और तरह-तरह की मांग करती है।
कजरी अपना टूटा हुआ बायां हाथ दिखाकर कहती हैं- दाएं से ही सब करती हूं। ये अब बेकार हो चुका।
पास में उनकी बेटी मीना बाई बैठी हैं। गर्मी से रोते दुधमुंहे बच्चे को हाथ का पंखा झलते हुए बताती हैं- लोग तो मुझे भी डायन कहते थे। शादी के बाद 20 साल तक कोई बच्चा नहीं हुआ, तब सब मुझसे डरने लगे। लुगाइयां पास नहीं आती थीं कि मैं उन्हें कुछ कर दूंगी। सास भी मुझसे बचती थी कि मैं जादू न कर दूं।
मैं बच्चे की तरफ इशारा करते हुए पूछती हूं- और अब? ‘अब क्या! डायन बने 20 साल बीत गए।’ हंसते हुए मीना बोलती हैं। उनका भी कहीं खास आना-जाना नहीं है।
कजरी के बेटे मोतीलाल वहां अकेले ऐसे शख्स थे, जिन्हें हिंदी आती थी। वे सिलसिलेवार सारी घटना बताते हुए आखिर में बोल पड़ते हैं- मां को लगभग मार ही दिया था। अब यहां जैसे भी है, जिंदा है। वैसे वही अकेली नहीं, डायन का अंधविश्वास (वे इसे परंपरा बोलते हैं) पूरे जिले में है। लुगाई अकेली हो, बूढ़ी हो, या बाल-बच्चे न हों तो पड़ोसी शक करते हैं। कोई बीमार हो जाए, या गाभिन गाय का दूध सूखे, सब उसी औरत को घेरकर पीटते हैं।
बता दें कि देश में डायन प्रथा के खिलाफ सख्त कानून होने के बावजूद भीलवाड़ा में आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक अकेले इसी जिले में साल 2015 में डायन के शक में जान से मारने के 25 मामले आए। वहीं देशभर में साल 2000 से 2016 के बीच 2 हजार 5 सौ से ज्यादा औरतों की जान ले ली गई। इन औरतों पर पास-पड़ोस को शक था कि वे अपनी शैतानी ताकत से उनका नुकसान कर रही हैं। बांसवाड़ा और उदयपुर में भी डायन के शक में औरतों का इलाज किया जाता है।
कथित डायनों का ‘इलाज’ करने वालों को लोकल बोली में भोपा कहते हैं। आमतौर पर ये कोई पुरुष होता है, जो लुगाई को पीटकर, उसके बाल छीलकर, या गर्म लोहे से दागकर उसके अंदर के शैतान को मारता है। हर शनिवार को भोपा अपनी दुकान सजाकर बैठ जाते हैं और डायनों को ठिकाने लगाते हैं।
अरावली की छोटी-बड़ी पहाड़ियों से घिरे तालाब गांव से जब हम निकले तो तेज बारिश होने लगी। टैक्सी रोकते-बढ़ाते हुए जब हम कजरी देवी के असल गांव उलेला पहुंचे, हवा में गीलेपन की महक घुलने लगी थी। अंधेरा होने से पहले जिससे, जो पूछना हो, पूछ लीजिए। आज मंगलवार भी है। डायनों का दिन! - मेरे लोकल साथी ने कहा। हम उस कुएं पर पहुंचे, जहां कजरी देवी को धक्का दिया गया था। घास और छोटे पौधे उसकी कच्ची पाट पर उग आए थे। मैं नीचे झांकती हूं, लेकिन डर से तस्वीर नहीं ले पाती।
यहीं कजरी देवी के पड़ोसी लखन खड़े थे। वे कहते हैं- हमने तो अम्मा को सालों से देखा। कहीं से डाकन नहीं लगतीं वो। तो डाकन कैसे लगती हैं, आपने कभी देखा है। इस पर वे हंसते हुए कहते हैं- हां शनिवार के शनिवार कई लुगाइयां हनुमान मंदिर पहुंचती हैं। वे डाकन हो सकती हैं। पर हमने कभी नहीं देखा, किसी को जादू-टोना करते।
बगल में ही वो मकान है, जहां की लुगाई रानी देवी पर भाव आते हैं! भाव यानी डायन। जब हम वहां पहुंचे, रानी चूल्हे पर रोटियां सेंक रही थीं। धुएं से धुंधलाई आंखें मिचमिचाते हुए वे कहती हैं- भाव आता है तो मुझे कुछ याद नहीं रहता। बस, इतना पता है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद से डायन मुझमें आने लगी। अब 5 साल से ज्यादा हुए, वो 20 से भी ज्यादा बार आ चुकी।
भाव आने पर ये एकदम बदल जाती है- वहीं बैठे हुए शंभूनाथ याद करते हैं। वे इस महिला के देवर हैं। शंभूनाथ के मुताबिक बीते कई सालों से रानी डायन के कारण बीमार रह रही है। भाव आते ही उसका चेहरा भयानक हो जाता है, दौड़ने और काटने लगती है, जोर-जोर से सिर हिलाने लगती है। वे कहते हैं- तब इसको देखकर कोई भी डर जाए। मैडम, आप भी!
मैं रानी की तरफ देखती हूं। लंबे, इकहरे शरीर की वो महिला मोटी-मोटी रोटियां थाप रही है। आंखें चूल्हे की तरफ। बीच-बीच में हमारी तरफ ताक लेती है। चेहरे पर ऐसा कुछ भी नहीं, जिससे डर लग आए। इधर शंभूनाथ कह रहे हैं- डायन इसके शरीर में घुसकर अपनी इच्छा पूरी करवाती है। ये कभी 5 हजार की लिपस्टिक मांगती है, कभी महंगा कागज। कभी कपड़े मांगती है, कभी विदेशी खाना।
हमारे पास दो वक्त की रोटी नहीं, लेकिन सालों से इसके लिए महंगे सामान खरीद रहे हैं- दबी हुई आवाज में वे कहते हैं।
मैं चोर-नजरों से घर के हालात देखने की कोशिश करती हूं। बिना पलस्तर का ईंटों वाला मकान। मेन गेट और बाउंड्री की जगह कांटों की बाड़। ओसारे में कपड़े झूल रहे हैं। वहीं बर्तन रखे हैं। 35 साल की रानी देवी को पिछले साल दिमाग के डॉक्टर के पास भी ले जाया गया। वहां बिजली के झटके खाकर डायन डरी और अब तो वो गांव में भी नहीं- शंभूनाथ बता रहे हैं।
तो अब तो डायन-डाकन का कोई डर नहीं? डर तो अब भी है। गांव की दसेक लुगाइयां हैं, जो डायन बन रही हैं- ये बताते हुए वे मुझे टोकते हैं- आप बार-बार ये शब्द मत बोलिए। शाम का समय है और मंगलवार भी।
नोट : स्टोरी में शामिल सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं।
(इंटरव्यू कोऑर्डिनेशन- रावत प्रवीण सिंह)
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