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इनसाइड स्टोरी:अखिलेश यादव और चंद्रशेखर की बात क्यों टूटी? गठबंधन नहीं होने से किसे होगा ज्यादा नुकसान

एक वर्ष पहलेलेखक: पूनम कौशल

अखिलेश यादव और चंद्रशेखर रावण के बीच चुनावी गठबंधन लगभग तय हो चुका था। सीटों पर बात बन गई थी। दोनों नेताओं का साथ फोटो भी खिंच गया था। शनिवार को गठबंधन की घोषणा होनी थी, लेकिन चंद्रशेखर रावण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा, 'अखिलेश को दलितों का वोट नहीं चाहिए। वहां हमारा सम्मान नहीं हुआ।'

इस तरह बनती-बनती बात बिगड़ गई और गठबंधन नहीं हो सका। समाजवादी पार्टी और आजाद समाज पार्टी के बीच गठबंधन ना होने की एक वजह जहां सीटों को लेकर मतभेद है, वहीं दूसरी वजह ये है कि चंद्रशेखर रावण को लग रहा है कि अखिलेश ने उन्हें पूरा सम्मान नहीं दिया।

शनिवार सुबह चंद्रशेखर अखिलेश कैंप की तरफ से फोन का इंतजार कर रहे थे, लेकिन उनसे संपर्क नहीं किया गया। इसके बाद चंद्रशेखर ने प्रेसवार्ता करके अखिलेश से नाराजगी का इजहार कर दी। समाजवादी पार्टी से जुड़े एक करीबी सूत्र के मुताबिक हाल के दिनों में अखिलेश यादव और चंद्रशेखर रावण के बीच दो मुलाकातें हुईं। समाजवादी पार्टी चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी को गठबंधन में दो सीटें देने के लिए तैयार हो गई थी। चंद्रशेखर रावण कम से कम तीन सीटें चाहते थे।

समाजवादी पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक, "अखिलेश यादव इस तीसरी सीट को देने के लिए भी तैयार हो जाते अगर बात आगे बढ़ती तो, लेकिन बात बीच में ही टूट गई।" गठबंधन की वार्ता टूटने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने कहा, "रामपुर मनिहारन के साथ-साथ गाजियाबाद की एक सीट भी उन्हें दे दी गई थी, उसके बाद उन्होंने किसी को फोन मिलाया और कहा कि मेरा संगठन मेरे खिलाफ है, मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। हमारे बीच ये बात हुई थी।"

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण अपनी पार्टी आजाद समाज पार्टी के गठन के बाद से ही राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई बार वे उत्तर प्रदेश में संघर्ष का चेहरा भी बनें और दलितों के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। उनके पीछे दलितों का एक वर्ग भी खड़ा हुआ है, लेकिन उन्हें मायावती ने कभी कोई तवज्जों नहीं दी। इसलिए चंद्रशेखर के करीबी उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की सलाह दे रहे थे।

चंद्रशेखर के करीबी रहे और अब उनका साथ छोड़ चुके एक रणनीतिकार कहते हैं, "चंद्रशेखर के साथ जो लोग शुरुआत से थे उनमें से अधिकतर अब जा चुके हैं। उनके शुभचिंतकों ने उन्हें सपा से गठबंधन की सलाह दी थी ताकि वो कुछ सीटें जीतकर लखनऊ में अपना ठिकाना बना सकें।"

चंद्रशेखर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा है कि वो बीते एक महीने दस दिन से अखिलेश से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें तवज्जो नहीं दी गई।
चंद्रशेखर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा है कि वो बीते एक महीने दस दिन से अखिलेश से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें तवज्जो नहीं दी गई।

चंद्रशेखर के करीबी रहे एक और सूत्र के मुताबिक, "बीती रात हमने उनसे बात की थी और कहा था कि गठबंधन में जो मिल रहा है ले लो, इससे राजनीतिक अस्तित्व बनेगा। चंद्रशेखर तीन सीटों पर सहमत थे, लेकिन अखिलेश का उनके पास फोन ही नहीं आया।"

वे नोएडा की दादरी सीट, सहारनपुर की सुरक्षित सीट रामपुर मनिहारन और मेरठ साउथ सीट चाहते थे। बातचीत में वो गाजियाबाद सीट के लिए तैयार हो गए थे।

वहीं चंद्रशेखर से जुड़े लोगों का ये भी कहना है कि अखिलेश ने उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जो वो चाहते थे। चंद्रशेखर के एक करीबी के मुताबिक अखिलेश ने एक बार उन्हें दफ्तर बुलाया और मुलाकात तक नहीं की। चंद्रशेखर इससे भी आहत हुए थे। उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंसमें भी कहा है कि वो बीते एक महीना दस दिन से अखिलेश से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें तवज्जों नहीं दी गई।

वहीं समाजवादी पार्टी के एक नेता के मुताबिक, "चंद्रशेखर को पूरा सम्मान दिया जा रहा था। बात बनती तो तीन सीटें भी दी जा सकती थी। उनके पास अभी कोई राजनीतिक ढांचा नहीं है, कोई विधायक या सांसद नहीं है, फिर भी उन्हें सम्मान के साथ गठबंधन में शामिल किया जा रहा था। उन्होंने ही बात तोड़ दी।"

आरएलडी फैक्टर?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की आरएलडी (राष्ट्रीय लोक दल) समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। जो सीटें चंद्रशेखर को दी जातीं वो आरएलडी के कोटे से ही निकलतीं। ऐसे में आरएलडी को मनाना भी अखिलेश के लिए एक काम होता। सपा के एक सूत्र बताते हैं, “अखिलेश यादव ने आरएलडी को मना लिया था। बात बनती तो चंद्रशेखर को गठबंधन में एडजस्ट कर लिया जाता।”

क्या अब चुनाव लड़ पाएंगे चंद्रशेखर?
चंद्रशेखर के एक करीबी कहते हैं, “वो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ते तो निश्चित तौर पर उनके एक दो विधायक जीतने की संभावना थी। हो सकता है उनके सभी उम्मीदवार भी जीत जाते, लेकिन अकेले अपने दम पर उम्मीदवार जिताने की संभावना अभी नहीं है। उनके सभी शुभचिंतकों ने उन्हें गठबंधन में जाने की सलाह दी थी।”

जानकारों का मानना है कि चंद्रशेखर से गठबंधन नहीं होने से इस बार के चुनाव में कुछ सीटों पर सपा को दलित वोटों का नुकसान जरूर होगा।
जानकारों का मानना है कि चंद्रशेखर से गठबंधन नहीं होने से इस बार के चुनाव में कुछ सीटों पर सपा को दलित वोटों का नुकसान जरूर होगा।

उत्तर प्रदेश चुनावों में अब बहुत अधिक समय नहीं रह गया है। पश्चिमी यूपी में तो एक महीने के भीतर ही चुनाव हो जाएंगे। ऐसे में चंद्रशेखर के पास चुनावों की तैयारी के लिए बहुत समय नहीं हैं। वे ये मान कर चल रहे थे कि समाजवादी पार्टी से उनका गठबंधन हो जाएगा।

अखिलेश के समीकरणों पर होगा असर?
उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करने के लिए नए समीकरण बिठा रहे अखिलेशव यादव के लिए चंद्रशेखर के साथ गठबंधन दलित वोट हासिल करने में अहम साबित हो सकता था। अब ये बात टूट चुकी है और चंद्रशेखर अखिलेश के खिलाफ बयान दे चुके हैं। इससे अखिलेश की उम्मीदों को झटका तो लगेगा ही।

चंद्रशेखर की भीम आर्मी का उत्तर प्रदेश के दलितों, खासकर युवाओं पर खासा प्रभाव रहा है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़ और आगरा क्षेत्र में भीम आर्मी का खास प्रभाव है। वे सहारनपुर से हैं जहां 20 फीसदी से अधिक दलित वोट हैं। सहारनपुर जिले में सात विधानसभा सीटें हैं जिन पर चंद्रशेखर का सहयोग निर्णायक साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में करीब बीस प्रतिशत दलित वोट हैं। ये वोटबैंक मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ रहा है। पिछले कुछ सालों में चंद्रशेखर ने दलितों में पैठ बनाई थी और अपना एक समर्थक वर्ग खड़ा किया था।

यदि चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी के साथ आते तो प्रदेश की सत्ता में बदलाव की चाह रखने वाला दलित वोट भी गठबंधन के साथ आ सकता था, लेकिन अब ये बात बिगड़ चुकी है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को ही होगा।