बात बराबरी की:आलिया को कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांटने वाले रणबीर से क्यों नहीं पूछते कि 7 महीने में तुम पापा कैसे बन गए?

7 महीने पहले
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आलिया भट्ट और रणबीर कपूर के घर में एक नन्‍ही मेहमान आई है। मौका खुशी का है, तो खुशी की बातें होनी चाहिए, लेकिन क्‍या आपको पता है कि उस नन्‍ही परी के जन्‍म के कुछ ही घंटों बाद गूगल और ट्विटर समेत पूरे सोशल मीडिया पर क्‍या ट्रेंड कर रहा था।

आलिया भट्ट की शादी और फिर उसकी डिलिवरी की तारीख। 7 महीने में बच्‍ची का जन्‍म। आलिया भट्ट प्रेग्‍नेंट बिफोर मैरिज।

और ये बातें मुहल्‍ले की बूढ़ी औरतें, घरों की दादियां-नानियां, दुनिया से खिसियाए और जमाने भर का बहीखाता रखने वाले फुरसतिए लोग नहीं कर रहे थे। ये बातें सोशल मीडिया और मीडिया में पढ़े-लिखे, हैशटैग ‘रिस्‍पेक्‍ट विमेन’ हैशटैग ‘सेव डॉटर’ हैशटैग ‘जेंडर बराबरी’ के नाम से दिन में बयालीस ट्वीट करने वाले लोग कर रहे थे।

आलिया भट्ट के आखिरी पीरियड की तारीख से लेकर उसने कब सेक्‍स किया होगा, कब प्रेग्‍नेंट हुई होगी, फिर कब शादी की और अब कब बच्‍चा पैदा किया, सबकुछ का हिसाब लोगों को चाहिए था।

सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं, मीडिया में भी ये काम हो रहा था। शादी से पहले प्रेग्‍नेंट होने वाली सेलिब्रिटीज की लिस्‍ट जारी की जा रही थी। नेहा धूपिया से लेकर दीया मिर्जा तक एक लंबी फेहरिस्‍त थी। ऐसी सेलिब्रिटी महिलाओं की, जिनकी शादी और प्रेग्‍नेंसी का बहीखाता इन लोगों ने संभालकर रखा था।

हालांकि ये लिस्‍ट उन्‍होंने महानता और प्रगतिशीलता की लिस्‍ट बताकर जारी की थी, लेकिन उन्‍हें समझ नहीं आया कि ये प्रगतिशील लिस्‍ट भी दरअसल उतनी ही स्‍त्रीद्वेषी, अहंकारी और मर्दवादी लिस्‍ट है, जितनी मुहल्‍ले के अंकल-आंटियों की लिस्‍ट हुआ करती है।

हालांकि मीडिया और सोशल मीडिया का ये स्‍त्रीद्वेषी चेहरा हम पहली बार नहीं देख रहे हैं। ये विकृत चेहरा नेहा धूपिया की शादी और बच्‍चे के जन्‍म के वक्‍त भी दिखा था, दीया मिर्जा के वक्‍त भी और आगे भी बार-बार देखने को मिलेगा।

थोड़े सभ्‍य लोग सफाइयां पेश कर रहे हैं, “अरे हम तो तारीफ ही कर रहे थे।” कोई इनसे पूछे कि भइया क्‍यों कर रहे हो तारीफ। चांद पर जाकर आए हैं क्‍या या नोबेल प्राइज जीत लिया है। बच्‍चा ही तो पैदा किया है। बात खुशी की है। बधाई दो, अपने घर जाओ। इसे अनैतिक या महान, कुछ भी बताने की जरूरत ही क्‍यों है।

क्‍योंकि सवाल ये नहीं है कि शादी के पहले प्रेग्‍नेंट होने और शादी के 7 महीने में बच्‍चे के जन्‍म को आप प्रगतिशील कदम बताकर अपना सलाम ठोंके, सवाल ये है कि इस बारे में किसी को, कुछ भी क्‍यों बोलना चाहिए। अपनी जबान खोलनी ही क्‍यों चाहिए।

एक औरत कब प्रेग्‍नेंट होगी, किससे प्रेग्‍नेंट होगी, कब बच्‍चा पैदा करेगी, शादी के बाद करेगी, शादी के पहले करेगी, शादी के साथ करेगी, शादी के बिना करेगी, शादी के अंदर करेगी, शादी के बाहर करेगी, शादी के 9 महीने में करेगी, शादी के 9 साल में करेगी या कभी नहीं करेगी, ये सब उसका और सिर्फ उसका फैसला है। दुनिया कौन होती है इसमें अपनी झूठी और प्रपंची तारीफों की नाक घुसाने वाली।

औरतों को आपसे कुछ भी नहीं चाहिए। न चरित्रवान होने का सर्टिफिकेट, न प्रगतिशील होने का तमगा। उन्‍हें बस अपने मन का होने की आजादी चाहिए। उतनी जगह चाहिए, जहां आपकी नाक से टकराए बगैर वो सहजता से सांस ले सके। जिससे चाहे प्रेम कर सकें, जिसके साथ चाहे सो सकें, जिसके साथ चाहे बच्‍चा पैदा कर सकें।

इन सारी टिप्‍पणियों, नुक्‍ताचीनी के पीछे सिर्फ मर्दवाद और स्‍त्रीद्वेष ही है। वो और भी ज्‍यादा खतरनाक हो जाता है, जब वो महानता की चाशनी में लिपटकर आता है।

मर्दवाद की नींव ही औरत के शरीर को नियंत्रित करने पर टिकी हुई है। एक महान देश (अमेरिका) ने अभी चंद महीने पहले पूरे देश में अबॉर्शन पर बैन लगा दिया। एक दूसरा महान पड़ोसी देश (चीन) औरतों से कह रहा है कि विवाह और परिवार संस्‍था का सम्‍मान करो, क्‍योंकि उनके यहां शादी और चाइल्‍ड बर्थ रेट ऐतिहासिक निचले स्‍तर पर पहुंच गया है।

एक और महान देश (जापान), जो पर कैपिटा इनकम के मामले में दुनिया के टॉप 20 देशों में है, लेकिन औरतों की बराबरी के मामले में 116वें नंबर पर।

हर देश की सत्‍ता पर मर्दों का राज है और मर्दों का राज टिका ही इस बात पर है कि औरत के शरीर पर मालिकाना हक किसका है। वो किस मर्द की प्रॉपर्टी है, वो किस मर्द के साथ सोएगी, किस मर्द के साथ बच्‍चा पैदा करेगी, ये सारी बातें मर्द ही तय करेंगे। मर्द ही सही-गलत, नैतिक-अनैतिक के सारे नियम बनाएंगे, मानदंड तय करेंगे और औरतें उन‍ नियमों का पालन करेंगी।

मर्दों के लिए कोई नियम नहीं होगा। वो सबसे ऊपर, सबसे महान सिर्फ औरतों की लगाम अपने हाथ में रखेंगे। औरतें आज्ञा मानेंगीं। मर्दवाद फलेगा-फूलेगा, मर्दों की सत्‍ता मजबूत होगी।

और जब औरतें मर्दों की गिरफ्त से बाहर निकलकर अपनी देह की लगाम अपने हाथों में लेने लगती हैं, अपने शरीर से जुड़े फैसले खुद करने लगती हैं, बिना शादी के बच्‍चा पैदा करने, शादी के बाद भी अबॉर्शन करवाने का अधिकार मांगती हैं तो अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के जज बैठकर अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगा देते हैं।

सोशल मीडिया पर मर्द आलिया भट्ट की प्रेग्‍नेंसी की तारीख काउंट करते हैं और संसार की औरतों को चरित्र का प्रमाण पत्र बांटने लगते हैं।

सवाल सारे औरतों से ही किए जाते हैं। कहीं रणबीर कपूर का नाम ट्रेंड नहीं कर रहा। शादी से पहले आलिया के सेक्‍स और प्रेग्‍नेंसी पर नजरें तिरछी करने वाले रणबीर के बारे में एक शब्‍द नहीं बोल रहे। वो मर्द जो है। मर्द को सौ खून माफ।

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