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करिअर फंडा'द परस्यूट ऑफ हैप्पीनेस' मूवी से लें 5 लाइफ लेसंस:हमेशा खुशी खोजते रहें, अपने सपने न मरने दें

8 महीने पहले
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वह प्रदीप जो दिख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है। थक कर बैठ गए क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।

- रामधारी सिंह दिनकर

करिअर फंडा में स्वागत!

जीवन जीना सिखाती एक सरल, शानदार हॉलीवुड मूवी

हॉलीवुड मूवी 'द परस्यूट ऑफ हैप्पीनेस' (The Pursuit of Happiness) की भावना भी रामधारी सिंह दिनकर की इस कविता की तरह ही है। 'द परस्यूट ऑफ हैप्पीनेस' सफल अमेरिकी व्यवसायी ‘क्रिस गार्डनर’ (विल स्मिथ) की वास्तविक कहानी बताती है, जो एक समय होमलेस हो गया था और लगभग भिखारी बन चुका था, लेकिन वो परिस्थिति से लड़ता रहा और जीता।

क्या आपने ये मूवी देखी है?

क्रिस की शादी टूट जाती है (पत्नी बेटे को क्रिस को सौंप कर अलग हो जाती है) क्योंकि क्रिस अच्छा सेल्समेन तो है लेकिन उसने सारा पैसा एक नए प्रकार के ‘पोर्टेबल मेडिकल स्कैनर’ पर लगा दिया, और इनकम उतनी तेजी से नहीं हो पाती। अब संघर्षों की डेली सीरीज शुरू होती है जो क्रिस को तोड़ने के लिए काफी है लेकिन वो टूटता नहीं।

फिल्म में जीवन के बहुत सबक हैं जो सभी के लिए आवश्यक हैं। मैंने इस फिल्म को अब तक कई बार देखा है और मुझे हमेशा जीवन के संघर्ष में से नई चीजें सीखने की हिम्मत मिली है।

'द परस्यूट ऑफ हैप्पीनेस' से जीवन के लिए 5 सबक

1) अपने सपने की रक्षा करें: फिल्म के एक सीन में क्रिस अपने बेटे से कहते हैं, ‘कभी किसी की यह बात मत सुनो कि तुम कुछ नहीं कर सकते, यहां तक कि खुद मेरी भी। आपके पास अपना एक सपना है, आपको उसकी रक्षा करनी होगी। जब लोग खुद कुछ नहीं कर सकते, तो वे कहते हैं कि आप भी ऐसा नहीं कर सकते। तुम्हें कुछ चाहिए, तो जाओ उसे प्राप्त करो।’

क्रिस गार्डनर कभी हिम्मत नहीं हारता और अपना सपना पूरा करने की पूरी कोशिश करता है। जब उसके द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों में से एक चोरी हो जाता है, तो वह उसे फिर प्राप्त करने की पूरी कोशिश करता है। काम पर जाते वक्त पहले दिन, वह एक कार से टकरा जाता है और सड़क पर अपना जूता खो देता है, फिर भी वह समय से काम पर पहुंच जाता है।

2) खुशियों की राह असफलताओं से भरी हुई है: कवि सोहन लाल द्विवेदी के शब्दों में ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।’ ‘नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है, चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।’ फिल्म से मैंने जो महत्वपूर्ण सबक सीखा उनमें से एक यह है। फिल्म में हम देखते हैं क्रिस ने सफलता हासिल करने से पहले कई तकलीफदेह पड़ाव पार किए। कार बेचनी पड़ी, पत्नी ने उसे छोड़ दिया, वह बेघर हो गया, उसका व्यवसाय वास्तव में काम नहीं कर रहा था, उसे अपने बेटे की देखभाल खुद करनी थी… मतलब असफलताएं अनंत थीं। इसी तरह यदि आप अभी अपने जीवन में सुख की खोज में और अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़ी असफलताओं का सामना कर रहे हैं, तो आप सही रास्ते पर हैं।

2006 में आई इस फिल्म में क्रिस गार्डनर का किरदार विल स्मिथ और उसके बेटे का किरदार विल स्मिथ के ही बेटे जेडेन स्मिथ ने निभाया था।
2006 में आई इस फिल्म में क्रिस गार्डनर का किरदार विल स्मिथ और उसके बेटे का किरदार विल स्मिथ के ही बेटे जेडेन स्मिथ ने निभाया था।

3) कड़ी मेहनत और स्मार्ट सोच: गार्डनर एक ऐसा व्यक्ति था जिसने कई गलतियां कीं। उन्होंने अपने जीवन की बचत को एक ऐसे उत्पाद में इन्वेस्ट कर दिया जिसे ग्राहकों द्वारा अक्सर अस्वीकार किया जा रहा था। कड़ी मेहनत से परिणाम नहीं मिलने पर स्मार्ट सोच काम आती है।

गार्डनर चतुर व्यक्ति था और गणित में अच्छा था। कड़ी मेहनत के बावजूद जब उसके उत्पाद नहीं बिकते तो वे अपने मूल कौशल का उपयोग करना शुरू करता है और परिणाम दिखने लगते हैं। डीन विटर (जहां उसे नौकरी मिलती हैं) के अधिकारियों में से एक के लिए रूबिक क्यूब को हल करने का कार्य उसे एक साक्षात्कार कॉल दिलाता है। अपनी इंटर्नशिप के दौरान, दूसरों के विपरीत, उसने अपने बेटे को डे-केयर से लाना पड़ता और बेघरों के लिए आश्रय में जगह पाने के लिए वो दौड़ता था। इसका मतलब कि वो काम तेजी से खत्म करना चाहता था।

4) अप्रत्याशित स्वीकार करें: जीवन अप्रत्याशित है! हम सोचते क्या हैं, और होता क्या है। इंग्लिश में कहा गया है 'मेन प्रोपोसेस एंड गॉड डिस्पोसेस' अर्थात हम शायद ही ऐसे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं जहां सब कुछ हमारी अपेक्षाओं के अनुसार आकार ले। लेकिन जितना अधिक आप वास्तविकता को स्वीकार कर सकते हैं उतना ही आप कठिन रास्तों को पार कर सकते हैं। इस फिल्म में, क्रिस एक-एक करके सब कुछ खो देता है - अपनी इंटर्नशिप साक्षात्कार से ठीक पहले की रात जेल में बितानी पड़ती है। फिर भी, इन सभी कमियों के साथ हम देखते हैं कि क्रिस एक सुखी जीवन का सपना देख रहा है और उसके लिए वह दिन-रात काम करता है।

5) खुशी की खोज कभी खत्म नहीं होती: वास्तविकता का सामना कीजिए, मनुष्य लालची हैं। जब भी हम कुछ हासिल करते हैं तो हमें खुशी का अनुभव होता है, लेकिन अगले दिन हम और अधिक चाहते हैं। खुशी की हमारी परिभाषाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। छोटे बच्चे को खिलौनों में खुशी मिलती है, बड़े होने पर वह खुशी कार और घर में बदल जाती है। जैसे-जैसे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं, हम अपनी खुशी की परिभाषाओं को बदलते जाते हैं।

कई बार, जब आप जीवन का ऐसा लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं जो आपको खुशी देता है, तो खुशी की वह छोटी सी अनुभूति बहुत ही कम समय की होती है। अपने लक्ष्य की यात्रा ही वह खूबसूरत हिस्सा है जिससे हमेशा खुशी मिल सकती है जिसमें लर्निंग्स, उतार-चढ़ाव, असफलताएं, सब कुछ शामिल है। ऐसा करना आपको एक इंसान के रूप में विकसित करता है, मंजिल तक पहुंचना तो ठीक है मंजिल के लिए सफर ही सुहाना हो जाता है।

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