3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बाबा अमरनाथ की यात्रा पर इस बार मिनटों में तबाही मचाने वाले स्टिकी बम का खतरा है। 43 दिन लंबी चलने वाली यह यात्रा दो साल बाद हो रही है। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 के हटने के बाद भी यह पहली यात्रा है। एक दिन पहले राजस्थान के उदयपुर में हुई टेलर की हत्या से देश में आतंकी खतरे का रिस्क बढ़ गया है। ऐसे में अमरनाथ यात्रा को लेकर भी पुलिस प्रशासन हाई अलर्ट पर आ गया है।
कश्मीर के इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार ने भास्कर को कन्फर्म किया कि इस साल स्टिकी बम और ड्रोन अटैक दो बड़े खतरे हैं, लेकिन इन दोनों से बचने का पूरा प्लान भी तैयार है। ड्रोन का जवाब तो हवा में ही दिया जाएगा। मौके पर तैनात आर्मी अफसर ने ये भी कहा कि उदयपुर की घटना के बाद चैलेंज बढ़ गया है, लेकिन अभी सब कुछ कंट्रोल में है।
30 जून से 11 अगस्त तक चलने वाली अमरनाथ यात्रा के लिए अब तक 3 लाख से ज्यादा लोग रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। यात्रा दो साल बाद हो रही है, इसलिए श्रद्धालुओं का आंकड़ा पुराने रिकॉर्ड तोड़ते हुए 8 लाख तक पहुंच सकता है।
यात्रा की कवरेज के लिए भास्कर की टीम मौके पर मौजूद है। पहली स्टोरी में अमरनाथ यात्रा से जुड़ी सिक्योरिटी की पूरी तस्वीर हम आपके सामने रख रहे हैं।
सबसे पहले जानिए, उन दो खतरों के बारे में जो इस बार चिंता का सबब हैं…
खतरों से निपटने के लिए तैयारी क्या है….
अमरनाथ यात्रा में पहली बार केंद्र की 350 कंपनियां तैनात की गई हैं। इनमें सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज यानी CAPF के 40 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात किया गया है।
तीन लेवल की सिक्योरिटी, पहाड़ और जंगल पर आर्मी
IG कुमार के मुताबिक यात्रा को तीन लेवल की सिक्योरिटी से कवर किया जाएगा। रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) के लिए CAPF और जम्मू कश्मीर पुलिस ने मिलकर तैयारी की है।
ऊंची पहाड़ियों और घने जंगलों को सुरक्षित रखने का जिम्मा आर्मी का है। सभी लिंक रोड्स भी पूरी तरह सिक्योर होंगे।
यात्रा की निगरानी ड्रोन्स, CCTV कैमरे के जरिए की जा रही है। वहीं जरूरी ठिकानों पर शार्प शूटर्स और स्नाइपर्स की भी तैनाती की गई है।
NDRF, UTSDRF और MRT को भी क्रिटिकल लोकेशंस पर तैनात किया गया है। यात्रा में शामिल होने वाले व्हीकल्स और यात्रियों के लिए RFID टैग दिया गया है। जम्मू कश्मीर पुलिस के अलावा भी केंद्रीय बलों की 350 कंपनियां तैनात की गई हैं।
कौन सी फोर्स कहां तैनात?
अलग-अलग ग्रिड की, अलग-अलग जिम्मेदारी
हर जिले को अलग जोन और सेक्टर में बांटा
पुख्ता सिक्योरिटी के लिए हर जिले को अलग-अलग जोन और सेक्टर्स में बांट दिया गया है। जोन में एसपी रैंक के अफसर की तैनाती की गई है। सेक्टर में DSP रैंक के तीन से चार अफसर तैनात हैं। इमरजेंसी के लिए क्विक रिस्पॉन्स टीम (QRT) का गठन किया गया है।
किस सुरक्षाबल के पास कौन सी जिम्मेदारी?
एक्सपर्ट व्यू : पहलगाम या बालटाल के बाद असली चुनौती
जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP SP वेद कहते हैं कि अमरनाथ यात्री पहले आकर जम्मू के बेस कैंप में रुकते हैं। इन बेस कैंप्स से ही सिक्योरिटी का सिलसिला शुरू हो जाता है। यहां से पूरी सिक्योरिटी से होते हुए यात्रा पहलगाम या बालटाल के बेस कैंप तक पहुंचती है, जहां से असल यात्रा शुरू होती है। पहलगाम के बाद चंदनवाड़ी और शेषनाग जैसे कैंप्स की सिक्योरिटी पर भी खासा जोर होता है।
हाल की आतंकी वारदातों को देखते हुए इस बार की अमरनाथ यात्रा में ड्रोन अटैक का खतरा बढ़ गया है। ड्रोन पर आतंकी पेलोड लगाकर हमला कर सकते हैं। गाड़ियों और बसों पर छोटे स्टिकी बम भी एक बड़ा सिक्योरिटी थ्रेट है। आतंकी आसानी से इसे प्लांट कर सकते हैं और ये घातक साबित होते हैं।
पहलगाम और बालटाल के पहाड़ी रास्तों पर जहां ट्रैकिंग होती है, वहां पर भी सिक्योरिटी कवर लगाने की जरूरत होती है, क्योंकि हमने देखा है कि 90 के दशक में भी ऊंची पहाड़ियों पर अटैक हुए थे।
राज्य के DGP ही अलग-अलग सिक्योरिटी फोर्सेज की टीम्स को हर जिले के SSP के पास डिप्लॉय करते हैं। ROP यानी रोड ओपनिंग पार्टी में अहम रोल आर्मी, CRPF और BSF का होता है। वहीं जनरल एडमिनिस्ट्रेशन के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस तैनात होती है।
आतंकियों की बॉडी अब फैमिली को नहीं दी जाती
आईजी विजय कुमार कहते हैं, 5 अगस्त 2019 के बाद से पुलिस या सुरक्षाबलों की फायरिंग किसी नागरिक की मौत नहीं हुई है। जनाजे या दफनाने के दौरान आतंकियों को ग्लैमराइज किए जाने के ट्रेंड पर भी हमने रोक लगा दी है।
धारा 370 हटाए जाने के बाद से अब तक कश्मीर में 500 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। सैकड़ों की तादाद में आतंकियों के लिए काम करने वाले ओवर ग्राउंड वर्कर्स पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। सड़कों पर होने वाली हिंसा और हड़तालें अब बंद हो गई हैं। एनकाउंटर साइट्स पर होने वाली पत्थरबाजी बंद हो गई है।
आतंकियों की बॉडी अब फैमिली को नहीं दी जाती है और अंतिम संस्कार आतंकियों के गांव में नहीं होता है। आतंकियों का अंतिम संस्कार अब बॉर्डर जिलों में परिवारवालों, पुलिस और मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में किया जाता है।
5 अगस्त 2019 के बाद से नागरिकों और सुरक्षाबलों पर होने वाले आतंकी हमलों में लगातार कमी आई है। हालांकि हाल में आतंकियों ने कुछ हिंदू नागरिकों और नॉन लोकल्स की हत्या की है, लेकिन हिंसा काबू में रही है।
वहीं दूसरी तरफ 13 कश्मीरी मुसलमानों को भी आतंकियों ने मारा है। हम ये कह सकते हैं कि इस साल अब तक 6 हिंदुओं और 13 मुसलमानों को आतंकियों ने मारा है। दूसरी तरफ हमने इस साल 120 आतंकियों को मौत के घाट उतारा है।
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