वडनगर और मानसा, गुजरात के दो गांव-कस्बे, जिनके बीच 50 किलोमीटर की दूरी है। गृहमंत्री अमित शाह 1964 में जब मानसा में पैदा हुए तो तब PM नरेंद्र मोदी की उम्र 14 साल थी। 1964 के ही दिसंबर में संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के तत्कालीन गृहमंत्री जीएल नंदा ने एक साल के अंदर जम्मू कश्मीर से धारा-370 खत्म करने का वादा किया था।
हालांकि, ये वादा वडनगर और मानसा के सामान्य परिवारों में पैदा हुए इन 2 लड़कों ने 55 साल बाद 2019 में पूरा किया। किसे पता था कि 50 किलोमीटर के दायरे में पैदा हुए ये दो लड़के आज देश के 2 सबसे बड़े पदों पर बैठे होंगे।
2017 वह साल था, जब वडनगर (उंझा सीट) और मानसा दोनों ही जगह BJP को कांग्रेस के हाथों हार मिली थी। मानसा में तो ये लगातार दूसरी बार हुआ था। वडनगर की पहचान PM नरेंद्र मोदी के नाम से होती है। इसी तरह मानसा की पहचान अमित शाह के नाम से है। उनका पुराना घर और इष्ट देवी का मंदिर यहीं है।
जब हम यहां पहुंचते हैं तो डेवलपमेंट के लिहाज से एक बड़ा फर्क नजर आता है। एक तरफ जहां वडनगर को गांव कहने में हिचकिचाहट होती है, वहीं मानसा अब तक ट्रेन कनेक्टिविटी जैसी बेसिक सुविधाओं से भी दूर है।
यहां कांग्रेस ने इस बार भी ठाकोर कम्युनिटी से आने वाले मोहन सिंह ठाकोर (बाबूजी) को मैदान में उतारा है। 2012 में हुए उपचुनाव में उन्होंने BJP कैंडिडेट डीडी पटेल को 8 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।
दूरी 50 किमी, डेवलपमेंट में कई साल पीछे
मानसा में दाखिल होते ही यह देश का एक सामान्य गांव नजर आता है। यहां वडनगर की तरह ऊंची-ऊंची इमारतें नहीं हैं। वडनगर की तरह सिस्टमेटिक डेवलपमेंट शुरू ही नहीं हो पाया है। मानसा गुजरात की राजधानी गांधीनगर से बीजापुर की तरफ जाने वाले स्टेट हाईवे पर बसा है।
30 हजार से ज्यादा आबादी वाला यह गांव आज भी ट्रेन कनेक्टिविटी से दूर है। यहां से करीब 40 किमी दूरी पर महेसाणा जंक्शन है। गांधीनगर से भी मानसा की दूरी 30 किमी के आसपास है। ट्रेन से सफर करने के लिए यहां के लोगों को इन दो जगहों में से एक तक जाना होता है। वे चाहते हैं कि मानसा तक ट्रेन आए। इसके अलावा यहां वडनगर जैसी सड़कें, होटल और रेस्टोरेंट भी नजर नहीं आते।
थोड़ा आगे बढ़िए, कोई भी बता देगा अमित भाई का घर
मानसा में दाखिल होते ही संकरी गलियों में दोनों तरफ बने घर दिखते हैं। हम वह घर देखना चाहते हैं, जहां अमित शाह पैदा हुए थे। हम यहां चाय बेच रहे रामदास से उनके घर के बारे में सवाल करते हैं। वे तुरंत हाथ से इशारा करते हुए कहते हैं, थोड़ा आगे जाइए। कोई भी घर तक ले जाएगा।
अमित शाह का बचपन इसी गांव में बीता। स्कूली पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई। हम आगे बढ़ते हैं तो हमारी मुलाकात BJP कार्यकर्ता पप्पू व्यास से होती है। पप्पू से पूछते हैं तो वे सब काम छोड़कर उठ खड़े होते हैं और कहते हैं- चलिए मैं आपको साहब का घर दिखाता हूं।
हम अब अमित शाह के इस पुराने घर के सामने खड़े हैं। ये घर किसी हवेली की तरह नजर आता है। दो मंजिला इमारत में लकड़ियों की ऐसी नक्काशी है कि कई साल बाद भी उन पर आंखें टिकी रह जाती हैं। हालांकि, इमारत काफी पुरानी हो चुकी है।
गांव की सबसे बड़ी हवेली थी शाह का घर
यहां हमें महेंद्र रज्जू सिंह रावत मिलते हैं। रावत कभी अमित शाह के साथ स्कूल में पढ़ते थे। 1975 से 1980 के बीच की यादें उनके जेहन में अब भी ताजा हैं। वे बताते हैं- अमित भाई पांच बहनों के इकलौते भाई और सबसे छोटे थे। 80 के दशक में शाह परिवार बिजनेस की वजह से मानसा से अहमदाबाद शिफ्ट हो गया। परिवार के साथ अमित भाई भी चले गए।
महेंद्र सिंह रावत के मुताबिक अमित शाह हर नवरात्रि के दूसरे दिन गांव आते हैं। घर के सामने ही बने मंदिर की तरफ इशारा करते हुए महेंद्र कहते हैं- ये उनकी इष्टमाता हैं। इनकी पूजा के लिए अमित शाह कई साल से आ रहे हैं।
शाह का घर फिर से बन रहा, 38 लाख रुपए में लाइब्रेरी का रेनोवेशन
महेंद्र सिंह बताते हैं कि अमित भाई का पुराना घर टूटने वाला है और नया घर एकदम पुराने जैसा ही बनाया जा रहा है। घर की जो पुरानी लकड़ी है, वह भी इसमें इस्तेमाल की जाएगी। घर के पिछले हिस्से से काम शुरू भी हो चुका है।
गांव के सेंटर में एक बड़ी लाइब्रेरी बनी हुई है। गांव वाले कहते हैं इस लाइब्रेरी में अमित भाई पढ़ने आते थे। उनका सपना था कि इसे रेनोवेट किया जाए। कुछ महीने पहले ही नई लाइब्रेरी का इनॉगरेशन हुआ है। इसके रेनोवेशन में करीब 38 लाख रुपए खर्च हुए हैं और अब यह पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड हो चुकी है।
अमित शाह ने 24 जुलाई को मानसा में सरदार पटेल सांस्कृतिक भवन और लाइब्रेरी का उद्घाटन किया था। शाह ने इस दौरान कहा था- यह मेरा गांव है। मेरे पूर्वज 1361 में यहां आए थे, मैंने इस लाइब्रेरी में पढ़ाई की थी, इसकी इमारत टूट रही थी और इसे फिर से बनवाकर मुझे बेहद खुशी हो रही है।
शाह के गांव में आखिर क्यों हार रही है BJP
जैसे ही मैं ये सवाल करता हूं एक मिनट के लिए महेंद्र सिंह रावत चुप हो जाते हैं। इसी बीच पप्पू व्यास बोलने लगते हैं- बिना फॉर्मेलिटी के सच बता दूं क्या? पिछली बार BJP को पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी ने ही हरा दिया था। पाटीदार समुदाय के दो कैंडिडेट्स आपस में भिड़ गए थे। वोट बंट गए और कांग्रेस जीत गई। हम पूछते हैं, इस बार भी तो ऐसा हो सकता है? तो जवाब मिलता है- इस बार नहीं होगा।
गांव में घूमने के बाद हम मानसा मार्केट की तरफ बढ़ते हैं। दोनों तरफ किराना, फल-सब्जियों और कपड़ों की दुकानें नजर आती हैं। एक किराने की दुकान पर बैठे भावेश चौधरी से बात की तो बोले- मानसा में इस बार BJP ही जीतेगी। कांग्रेस दो बार से जीत रही है, लेकिन विकास नहीं हुआ। इसकी वजह है कि राज्य में BJP की सरकार आती है, यहां ध्यान नहीं दिया जाता।
हालांकि, कपड़ा व्यापारी अभिमन्यु की राय अलग है। वे कहते हैं- मानसा में ठाकोर कम्युनिटी कांग्रेस को सपोर्ट करती है। इस बार भी कांग्रेस के जीतने के चांस ज्यादा लग रहे हैं, क्योंकि ठाकोर एक हैं और पाटीदार फिर बंटे नजर आ रहे हैं।
ठाकोर और पाटीदार समुदाय के पास सबसे ज्यादा सियासी ताकत
मानसा में सबसे ज्यादा पॉपुलेशन पाटीदार कम्युनिटी की है। इनके करीब 45 हजार वोट हैं। ठाकोर करीब 42 हजार, राजपूत 30 हजार और चौधरी करीब 23 हजार हैं। ब्राह्मण और बनिया पॉपुलेशन काफी कम है। ऐसे में हर पार्टी की कोशिश होती है कि पाटीदार और ठाकोर वोट एक तरफ गिर जाएं। ये दो कम्युनिटी किसी भी कैंडिडेट को जिता सकती हैं।
2017 में यहां कांग्रेस के सुरेश कुमार पटेल ने BJP के अमित भाई चौधरी को सिर्फ 524 वोटों से हराया था। 2012 में अमित चौधरी कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और उन्होंने BJP के डीडी पटेल को 8,028 वोटों से हराया था। ये आंकड़े बताते हैं कि मानसा में जीत-हार काफी कम मार्जिन से होती है। इससे पहले के तीन विधानसभा चुनावों में BJP ने जीत हासिल की थी, लेकिन तब भी जीत का मार्जिन 10 हजार तक नहीं पहुंच पाया था।
कांग्रेस ने ‘बाबूजी’ को टिकट दिया, पाटीदारों में उनकी अच्छी पैठ
कांग्रेस कैंडिडेट मोहन सिंह ठाकोर (बाबूजी) को टिकट मिलने से मानसा में इस बार फिर कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी। ठाकोर कम्युनिटी में मोहन सिंह की अच्छी पैठ है। वहीं, BJP एक बार फिर डीडी पटेल को मैदान में उतार सकती है।
पटेल पाटीदार कम्युनिटी से आते हैं और पाटीदारों की आबादी ठाकोर से भी ज्यादा है। ये BJP के पारंपरिक वोटर भी हैं। हालांकि, 2012 के उपचुनाव में मोहन सिंह ठाकोर की जीत ने सारे समीकरण फेल कर दिए थे।
पिछले चुनाव में मानसा की तरह ही वडनगर सीट भी कांग्रेस ने जीती थी, इस रिपोर्ट में पढ़िए वहां का हाल...
11 महीने से बिना विधायक PM मोदी का गांव, पिछली बार हार गई थी BJP
अहमदाबाद से 90 किलोमीटर दूर उंझा विधानसभा का वडनगर गांव। PM मोदी यहीं पले-बढ़े हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस की आशा पटेल यहां से जीती थीं। 2019 में वे BJP में शामिल हो गईं। दिसंबर 2021 में डेंगू से उनकी मौत हो गई। उनके निधन के बाद से ही विधायक की सीट खाली है।
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