मेगा एम्पायरसाइकिल की दुकान से शुरू हुई किर्लोस्कर:वाटर पंप का दूसरा नाम, 72 देशों में सप्लाई, किर्लोस्करवाडी नाम से बसाया फैक्ट्री विलेज

13 दिन पहले
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साल 2018, जुलाई का महीना। 12 बच्चे अपने फुटबॉल कोच के साथ थाईलैंड के चिनांग राय प्रोविंस में घूमने गए। घूमते-घूमते बच्चे एक गुफा में घुसे। बच्चे जब तक कुछ समझ पाते गुफा में घुटनों से ऊपर तक बारिश का पानी भर गया।

वे 17 दिनों तक गुफा में 10 किमी अंदर फंसे रहें। उन्हें बाहर निकालने में थाईलैंड सरकार की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। दुनिया की नजरें उन बच्चों के जिंदा बाहर निकलने पर टिक गईं। तब दुनिया के कई देशों ने बच्चों को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू टीम भेजी। भारत सरकार की तरफ से जो रेस्क्यू टीम भेजी गई, उसके तार भारत की एक कंपनी से जुड़े। और वो कंपनी है…किर्लोस्कर ब्रदर्स ग्रुुप।

बच्चों को बाहर निकालने के लिए थाईलैंड सरकार ने कंपनी के पंप और इंजीनियर्स को बुलाया था। किर्लोस्कर के वाटर पंप के साथ ग्रुप के दो इंजीनियर कुलकर्णी और श्याम शुक्ला भेजे गए थे। आज यही किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड देश में सबसे ज्यादा पंप एक्सपोर्ट करने वाली कंपनी है। एशिया के पंपिंग प्रोजेक्ट्स का सबसे बड़ी कॉन्ट्रैक्टर। फिलहाल ये एम्पायर अपने मुनाफे और कमाई की वजह से चर्चा में है।

आज मेगा एम्पायर में जानिए किर्लोस्कर ब्रदर्स ग्रुप के एम्पायर बनने की कहानी…

लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर ने साइकिल की दुकान से शुरू किया सफर

महाराष्ट्र में 1869 में लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर का जन्म हुआ। यह वो समय था जब 1857 की क्रांति के बाद भारत में अंग्रजों का शासन और सख्त हो गया था। काशीनाथ किर्लोस्कर का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। फिर भी उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।

बचपन में उनका मन मैकेनिकल कामों में लगता था। पेंटिंग का भी शौक था, लेकिन इसमें दिक्कत यह थी कि वो कलर ब्लाइंड थे। इसलिए उन्होंने पेंटिंग छोड़ दी, लेकिन मैकेनिकल ड्रॉइंग की पढ़ाई करते रहे।

पढ़ाई पूरी करने के बाद वे विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट में 45 रुपए के वेतन पर पढ़ाने लगे, लेकिन घर के खर्चों के लिए यह काफी नहीं था। फिर बेलगांव में एक साइकिल की दुकान खोली। जिस रोड पर यह दुकान थी, आज उसे किर्लोस्कर रोड के नाम से जानते हैं।

काशीनाथ और भाई रामुअन्ना ने भूसा कटर बनाने से कंपनी की शुरुआत की

साइकिल की दुकान से जो कमाई हुई उसे जोड़कर काशीनाथ और उनके भाई रामुअन्ना ने विंडमीड एजेंसी, सैमसन विंडमिल्स के साथ साझेदारी किया और पवनचक्की बेचने लगे। पास ही जानवरों के हॉस्पिटल के लिए स्टील के फर्नीचर बेचने लगे। साथ में एक मंदिर में मेटल की कोटिंग का काम करने लगे।

इसी काम के दौरान दोनों भाइयों को मंदिर के ही बगल में एक असेंबली हॉल के निर्माण का काम मिला। हालांकि, इसके बाद भी पैसों की परेशानी खत्म नहीं हुई। फिर भी उन्होंने अपना काम जारी रखा। और सबसे पहले किर्लोस्कर ब्रदर्स ने अपना पहला प्रोडक्ट एक चारा काटने वाला कटर बनाया। ये जल्दी ही फेमस हो गया।

दोनों भाइयों ने फिर लोहे का हल बनाया। यह हल भी किसानों के बीच लोकप्रिय हो गया। इस तरह किर्लोस्कर ब्रदर्स को इस धंधे में एक उम्मीद दिखी। इसके बाद हल बनाने के लिए दोनों ने एक कारखाना भी खोल लिया।

औंध के राजा ने कंपनी के जमीन को बचाया

जिस जमीन पर किर्लोस्कर भाइयों ने कारखाना खोला था, 1908 में बेलगाम नगरपालिका ने उसे खाली करने के लिए कह दिया। जमीन नगरपालिका के निर्माण कार्य के बीच में आ रही थी। तब औंध के राजा बालासाहेब ने उस जमीन के बदले किर्लोस्कर भाइयों को दूसरी जमीन दी। काम आगे बढ़ाने के लिए लोन भी दिया।

बंजर जमीन पर फैक्ट्री लगाने के साथ पूरा गांव बसा दिया

राजा ने जो जमीन दी थी वो पूरी तरह बंजर थी। वहां बिजली, पानी का कनेक्शन नहीं था। रास्ते भी नहीं बने थे। दोनों भाई वहां पहुंचे और काम पर लग गए। अपने साथ 25 मजदूरों को परिवार के साथ लाकर वहां बसाया।

और किसानी के लिए लोगों के औजार बनाने लगे। यह गांव आज भी किर्लोस्करवाड़ी के नाम से जाना जाता है। टाटानगर और जमशेदपुरा के साथ यह भारत के शुरुआती फैक्ट्री विलेज में से एक था।

कंपनी ने 1926 में भारत का पहला डीजल इंजन बनाया

1914 से18 तक दूसरे विश्व युद्ध में किर्लोस्कर भाइयों को कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ा, लेकिन 1920 के बाद काम ने फिर रफ्तार पकड़ी। किसानों के लिए ड्रिलिंग मशीन, कोल्हू और हल के नए मॉडल बाजार में लाए। राज्य सरकारों और स्थानीय निगम के लिए खेती किसानी के मशीन बनाने लगे।

1926 में पूना (अब पुणे) के एक औद्योगिक प्रदर्शनी में इस कंपनी ने भारत में पहला डीजल इंजन और सेंट्रीफ्यूगल पंप दिखाया। मशीन इतनी अच्छी थी कि अंग्रेज अफसरों को विश्वास नहीं हुआ कि ये भारत में बनी है। उन्होंने पूछ लिया इन मशीनों को बाहर से आयात करके तो नहीं लाया गया है।

1927 में काशीनाथ किर्लोस्कर के बेटे शांतनु किर्लोस्कर अमेरिका से मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़कर आए और कंपनी को फैलाने में जुट गए। किसानों के लिए नई तकनीकी से क्रशर मशीन बनाई। और राज्य सरकारों के सिंचाई और पानी से जुड़ी योजनाओं के लिए पंप बनाने लगे।

भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम में शामिल रहने वाली कंपनी भाइयों के झगड़े की भी गवाह

किर्लोस्कर परिवार और उनका कारोबार 2009 तक बिना किसी विवाद के तरक्की करता रहा, लेकिन काशीनाथ किर्लोस्कर की तीसरी पीढ़ी में विवाद पैदा होने लगे। 2009 में शांतनु और उनके बेटे चंद्रकांत के बाद अगली पीढ़ी में कंपनी के शेयर को लेकर एक डीड बना। यह चंद्रकांत के तीन बेटों अतुल, संजय और राहुल के बीच समझौता था।

किर्लोस्कर कंपनी के अलग-अलग ब्रांच को तीनों भाइयों में बांटा गया, लेकिन विवाद नहीं थमा। मामला कोर्ट तक पहुंचा। फिलहाल कंपनी के अलग-अलग हिस्सों और उनके शेयर के बंटवारे का विवाद सुप्रीम कोर्ट में है।

चार महाद्वीपों में फैला है कंपनी का कारोबार

किर्लोस्कर ग्रुप फिलहाल एशिया समेत अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका और मिडिल ईस्ट में फैला हुआ है। इंग्लैंड और मिडिल ईस्टर्न देशों में कंपनी एसपीपी पंप के साथ मार्केट लीडर है। नीदरलैंड्स में भी कंपनी की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट है।

2003 से अमेरिका में एसपीपी पंप और 2014 में सायन्क्रो फ्लो कंपनी के साथ यह बाजार में बड़ी हिस्सेदारी के साथ मौजूद हैं। 2010 में इसने साउथ अफ्रीका में ब्रायबर पंप को टेकओवर कर लिया था। 2012 में इजिप्ट में एसपीपी के साथ मिलकर वहां मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट शुरू किया।

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