बात बराबरी की:मर्दों की नजर में वही औरत महान है, जो नौकरी भी करे, बच्चा भी पैदा करे और उसे अकेले पाले भी

2 महीने पहले
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मनुष्‍य का धरती पर जन्‍म किसलिए हुआ है? चलिए इसे थोड़ा और सरल करके यूं कहते हैं कि पुरुष का धरती पर जन्‍म किसलिए हुआ है? क्‍या इसलिए कि वह बड़ा होकर शादी करेगा। शादी करके फिर बच्‍चे पैदा करेगा, फिर बड़े होने पर उन बच्‍चों की शादी करेगा, फिर उन बच्‍चों के बच्‍चों को गोद में खिलाएगा।

सुनकर हंसी आ रही है न। हंसने वाली बात ही है। शादी, प्रेम, रिश्‍ते, संततियों, यह सब जीवन के सतत क्रम का हिस्‍सा है। ये सब तो होता ही है। बस ये जीवन का पहला और अंतिम मकसद नहीं होता।

मनुष्‍य के जीवन का मकसद तो कुछ और ही था। मकसद था, जो पिछले बीस हजार सालों में मनुष्‍य ने खोजा और पाया। मकसद था जीवन, प्रकृति और विज्ञान के रहस्‍यों की खोज। सेब पेड़ से टूटता है तो धरती पर ही क्‍यों गिरता है, आसमान में क्‍यों नहीं चला जाता।

धरती गोल क्‍यों है, पृथ्‍वी सूर्य का चक्‍कर कैसे लगाती है। दिन-रात कैसे होते हैं, मौसम कैसे बदलते हैं। मनुष्‍य की देह के भीतर एक नया मनुष्‍य कैसे आकार लेता है। मिस्र के पिरामिड कैसे बने, इंसान चांद तक कैसे पहुंचा, इंटरनेट की खोज कैसे हुई।

कितने सारे रहस्‍यों का हल, सवालों के जवाब मनुष्‍य ने ढूंढा, क्‍योंकि मनुष्‍य होने का, जीवित होने का मकसद ही यही है। सॉरी, इस वाक्‍य को फिर से लिखते हैं। मनुष्‍य ने नहीं, पुरुषों ने ढूंढा क्‍योंकि पुरुष होने का बड़ा उद्देश्‍य यही था।

स्‍त्री होने का क्‍या उद्देश्‍य है? औरत का जन्‍म धरती पर किस मकसद से हुआ है?

अभी कुछ दिन पहले असम के मुख्‍यमंत्री हेमंत बिस्‍व सरमा ने कहा कि महिलाओं को 30 साल से पहले शादी कर लेनी चाहिए। 22 से 30 के बीच में बच्‍चे पैदा कर लेने चाहिए क्‍योंकि, ऐसा न करने पर मुश्किल होती है।

ऐसा कहने वाले सरमा साहब पहले नहीं हैं। पुरुष जबसे अपने हथियार और अपने जहाज लेकर धरती की खोज में निकले हुए हैं, तब से वो औरतों को यही सिखाते और बताते रहे हैं कि पुरुष के जीवन का मकसद तो महान काम करना है, लेकिन औरत के जीवन का मकसद महान पुरुषों को जन्‍म देना है।

औरत का यही गुण है, यही संपदा कि वो अपनी देह में कोख लेकर पैदा हुई है और जब तक वो उस कोख में महान पुरुषों को संतानों को धारण नहीं करती, उसका जीवन व्‍यर्थ है।

तो दरअसल ये बात नई नहीं है, बात ये है कि पिछले 20 हजार सालों से यही बात अलग-अलग रूपों में दोहराई जा रही है। अब जब दुनिया बदल रही है, लड़कियों विज्ञान और राजनीति से लेकर ज्ञान और कर्म के हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर खड़ी हैं, तब भी मां की महानता का, कोख की पवित्रता का तमगा उनसे नहीं छूटा है।

मर्द मौके-ब-मौके मुंह खोलकर अपनी जाहिलियत का परिचय दे ही देते हैं। मातृत्‍व का महिमा मंडन सतत जारी रहता है। एक बार को धरती भी गोल-गोल घूमना बंद कर सकती है, लेकिन इन मर्दों के मुं‍ह से मां की महानता का राग बंद नहीं हो सकता।

मर्दवादी समाज ने हजारों सालों से औरतों को जो पट्टी पढ़ाई, अब औरतों उसे उलट रही हैं। मर्दों ने बताया कि औरत की सबसे बड़ी ताकत है बच्‍चा पैदा करना। यह औरत का सबसे महान गुण है और अब औरतें उसी महान काम से पल्‍ला झाड़कर खड़ी हो गई हैं। वो जीवन के बाकी कामों में बराबर का हिस्‍सा मांग रही हैं और मां बनने से इनकार कर रही हैं।

यह कोई कल्‍पना नहीं, बल्कि सचमुच की समस्‍या है। जापान, चीन, स्‍पेन, पुर्तगाल और कोरिया जैसे देशों में बर्थ रेट लो हो गया है। इन नामों में एक बात गौर करने लायक है। ये वो देश हैं, जहां आर्थिक विकास के बावजूद पितृसत्‍ता की जड़ें आज भी बहुत मजबूत हैं। जिन्‍होंने अपनी औरतों को नौकरी और सत्‍ता में तो हिस्‍सेदारी दे दी, लेकिन मर्द की सत्‍ता कमजोर नहीं हुई।

औरत घर से निकलकर बाहर काम करने लगी, लेकिन घर के कामों में मर्द की कोई साझेदारी नहीं हुई। औरत पैसे कमाने लगी, लेकिन घर का मुखिया मर्द ही बना रहा। बच्‍चा पैदा करने से लेकर उसे पालने तक की सारी मेहनत अकेले औरत के हिस्‍से में ही रही।

कुल मिलाकर सशक्तिकरण के नाम पर मर्दों ने औरतों को दोहरे श्रम की चक्‍की में पीस दिया। और अब नतीजा ये कि औरतों को समझ में आ रहा है कि किस तरह उन्‍हें फिर से मूर्ख बनाया गया है। उनका इस्‍तेमाल किया गया है।

अब मक्‍कारी का जवाब अब औरतें इस तरह दे रही हैं कि वो मां बनने से ही इनकार कर रही हैं। इन देशों में सिर्फ चाइल्‍ड बर्थ ही नहीं, बल्कि शादी की दर भी सबसे कम है। युवा लड़कियों को समझ में आ रहा है कि इनके ट्रैप में फंसने का मतलब है, नौकरी भी करो, बच्‍चा भी पैदा करो, फिर उसे अकेले पालो भी। इस काम में कोई मददगार नहीं होगा। सारी जिम्‍मेदारी अकेले औरत की होगी और सारी महानता मर्द की।

मातृत्‍व को महान बताने वाला समाज का दोगलापन इतना गहरा है कि उसने कभी भी इस महान श्रम में मददगार होने की बात नहीं सोची। बच्‍चा पैदा करने के लिए भी अपने कॅरियर, प्रमोशन के साथ समझौता औरत ही करेगी। देश और समाज उसे कोई रियायत नहीं देगा। समाज सिर्फ “मां महान है” कहकर उसे मूर्ख बनाएगा।

तो जनाब, औरत मूर्ख नहीं है। वो चांद तक होकर आई है और उसे आपकी सारी चालाकियां पता चल चुकी हैं। इसलिए वो बच्‍चा पैदा करने से ही इनकार कर रही है। इस हद तक कि अब दुनिया के सामने बिगड़ती डेमोग्राफी का नया संकट खड़ा हो गया है। नए इंसान ही नहीं होंगे तो पुराने कब तक धरती पर राज करेंगे।

मर्द हैं तो क्‍या हुआ, अमर होकर थोड़े न आए हैं। अपनी जमीन-जायदाद, संपदा, विरासत को संभालने के लिए उन्‍हें वारिस तो चाहिए। और वारिस औरत ही पैदा कर सकती है।

लेकिन औरतें तो बच्‍चा पैदा करने से इनकार कर रही हैं। इसलिए मर्दों ने एक बार फिर वो पुराना खटराग शुरू कर दिया है कि मां महान है, 20 से पहले शादी कर लो, 30 से पहले बच्‍चा पैदा कर लो। पति को संतति दे दो, परिवार को वारिस दे दो, देश को भविष्‍य का नागरिक दे दो।

इन सबके बदले में तुम सब औरतों को क्‍या दोगे ?

ठेंगा ?

तुम्‍हारे ठेंगे के लिए अब वो इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाएगी। क्‍योंकि उसे पता है कि बच्‍चा पैदा करना उसका कोई महान गुण नहीं, सिर्फ एक अतिरिक्‍त सलाहियत भर है। हां, उसकी देह में कोख। बस एक एक्‍स्‍ट्रा ऑर्गन है, जो एक नए मनुष्‍य को अपने भीतर धारण कर सकता है।

लेकिन इसके पहले और बाद की सारी जिम्‍मेदारी औरत की अकेले की नहीं है। इस जिम्‍मेदारी में उसे न सिर्फ मर्द का, बल्कि पूरे समाज और देश का साझा चाहिए। तुम्‍हें बच्‍चे चाहिए, तुम्‍हें अपने देश के लिए नागरिक चाहिए तो तुम्‍हें आधा काम करना होगा।

औरत इस झूठी महानता की कीमत अब अकेले चुकाने को तैयार नहीं। वो अब और मूर्ख बनने को तैयार नहीं। पेड़ से गिरता सेब देखकर वो भी खोज सकती थी गुरुत्‍वाकर्षण बल। वास्‍कोडिगामा की तरह निकल सकती है नई दुनिया की खोज में, लेकिन नहीं कर पाई क्‍योंकि तब वो तुम्‍हारे लिए रसोई में खट रही थी, तुम्‍हारे बच्‍चे पैदा कर रही थी।

लेकिन अब नहीं। उन बातों को एक हजार साल बीत चुके हैं। इन एक हजार सालों में औरतें दस हजार साल आगे निकल आई हैं। अब वो महान मर्दों को जन्‍म देने वाली महान कोख होने नहीं, बल्कि खुद महान मनुष्‍य होने के सफर में हैं।

तुम इस सफर का हिस्‍सा हो सको तो चलो, वरना अपनी राह नापो।

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