आज हम आपको 10 हजार बच्चों की नानी यानी 65 साल की सरला मिन्नी से मिलवाने जा रहे हैं। चौंकिए मत... दरअसल, उन्होंने बच्चों से अपना यह रिश्ता कहानियां सुनाकर कायम किया है। उनके कहने का मतलब है कि उनकी कहानियां बहुत से बच्चे सुनते हैं और वे उन्हें अपनी नानी मानते हैं।
आज के दौर में न्यूक्लियर फैमिली का ट्रेंड हैं, ऐसे में कहानियां सुनने-सुनाने की रिवायत लगभग खत्म सी हो गई है। लेकिन, सरला आज भी इस परम्परा को बखूबी निभा रही हैं। वे मूलत: राजस्थान से हैं और इन दिनों बेंगलुरु में रह रही हैं। अपने 10 हजार से ज्यादा सब्सक्राइबर्स को अपनी कहानियों की 8 से 10 मिनट की क्लिप भेजती हैं। वो मजेदार लहजे में हिंदी और अंग्रेजी में कहानियां सुनाती हैं।
2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है।
4 साल पहले भतीजी ने कहानी रिकॉर्ड कर भेजने को कहा
सरला ने बताया, ‘मैं अपने नाती-पोतो को लंबे अरसे से कहानियां सुना रही हूं। लेकिन, 21 मार्च 2017 से मैं कहानी वाली नानी बन गई। दरअसल, ये तब हुआ जब सूरत में रहने वाली मेरी भतीजी पारुल ने मुझे कहानी रिकॉर्ड करके भेजने को कहा। मैंने कहानी रिकॉर्ड करके भेजी। यह कहानी जहां-जहां पहुंची, वहां इसकी तारीफ हुई। लोगों ने ये भी पूछा कि क्या इस तरह से रोजाना उन्हें ये कहानियां सुनने को मिल सकती हैं? इस तरह कहानी वाली नानी की शुरुआत हुई।
शुरुआत में सरला ने वॉट्सऐप पर 40 से ज्यादा ब्रॉडकास्ट ग्रुप बना लिए थे। उनके इन ग्रुप में 10 हजार से ज्यादा नंबर हो गए। इसके चलते कुछ ही दिन में उनका वॉट्सऐप क्रैश हाे गया। इसके बाद उन्होंने टेलीग्राम पर अपना अकाउंट बना लिया। जिस पर अब वे बच्चों को कहानी भेजती हैं। सरला इसके लिए कोई चार्ज नहीं लेती हैं। बच्चे भी उन्हें वॉइस मैसेज भेजकर बताते हैं कि कहानी कैसी लगी। यही नहीं, कहानी वाली नानी के चर्चे ब्रिटेन, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दुबई जैसे देशों तक हैं। सरला कहती हैं- मैं करीब 45-50 सालों से अपने घर के बच्चों को कहानियां सुना रही हूं। पहले तो मैं वो कहानियां सुनाती थी, जो मुझे याद थीं। अब मैं 350 से ज्यादा कहानियां रिकॉर्ड कर चुकी हूं।
ग्रेजुएशन के 30 साल बाद मॉन्टेसरी कोर्स किया
सरला कहती हैं- मैं फिलॉसिफी एंड साइकोलॉजी में ग्रेजुएट हूं, लेकिन मैंने कभी जॉब नहीं की। फिर शादी हो गई, लेकिन जब बच्चे बड़े होकर बाहर पढ़ने चले गए तो एक खालीपन लग रहा था। फिर मुझे लगा कि मुझे पढ़ाना चाहिए, मुझे बच्चों के साथ ज्यादा अच्छा लगता है। मैंने ग्रेजुएशन के 30 साल बाद मॉन्टेसरी का कोर्स किया। मैंने फर्स्ट क्लास विद डिस्टिंक्शन पास किया, उस कोर्स में मेरी बेटी के उम्र के बच्चे थे। फिर मैंने 6 महीने मॉन्टेसरी में पढ़ाया। फिर ICMAS से अबेकस की ट्रेनिंग ली।
उस वक्त मैं कोलकाता में रहा करती थी। फिर फैमिली बैंगलोर शिफ्ट हो गई। कुछ साल मेरे पास घर की जिम्मेदारियां थीं, तो कुछ नहीं किया। जब कहानी रिकार्ड करने लगी, तो बच्चों ने खूब सपोर्ट किया।
सरला कहती हैं- मैं जो कहानियां भेजती हूं उस पर बच्चों के बहुत सारे वॉइस मैसेज आते हैं। एक बार सीमा से सटे एक गांव से एक पैरेंट ने कॉल कर बताया कि ये कहानियां इतनी हैल्पफुल हैं कि उनके बच्चे घंटों सुनते रहते हैं, इससे उनकी वोकेबलरी, नॉलेज बढ़ती है। वहीं, एक ने लिखा कि मेरे बच्चों के पास दादी-नानी कोई नहीं है, ये कहानियां बच्चों के लिए बेस्ट गिफ्ट हैं। एक तो बहुत मजेदार रिस्पांस था, एक महिला ने लिखा कि मेरे पति की तबियत ठीक नहीं थी, वो थोड़ा डिप्रेस्ड फील कर रहे थे, उन्होंने कहा- कहानी वाली नानी की एक कहानी लगा दो। सरला का कहना है कि चाहें 8 साल के हों या 38 साल के सबको कहानी सुनना अच्छा लगता है।
सरला हर शाम एक से डेढ़ घंटे अपनी स्टोरी को देती हैं। वे हफ्ते में दो बार कहानी रिकॉर्ड करती हैं। मंगलवार को वे हिंदी स्टोरी और शुक्रवार को अंग्रेजी स्टोरी भेजती हैं। एक कहानी भेजने के बाद वे अगले हफ्ते के लिए कहानियां ढूंढना शुरू कर देती हैं। वे एक कहानी के कई वर्जन पढ़ती हैं फिर इम्प्रूवाइज करके अपनी एक कहानी तैयार कर रिकॉर्ड करती हैं। सरला अपने टेलीग्राम चैनल के जरिए खुद ही कहानियां भेजती हूं, यूट्यूब चैनल उनकी भांजी देखती है।
मैं कहती हूं- नानी की कहानी फ्री मिलती है
सरला कहती हैं- मुझे बड़े शहरों से लोगों के कॉल आते हैं कि आप कहानियों के एवज में कोई राशि क्यों नहीं लेती हैं, आजकल तो फ्री में कुछ भी नहीं मिलता है। मैंने उन सबसे कहा कि- कहानी वाली नानी की कहानी फ्री मिलती है। मैं सिर्फ शहरों के ही बच्चों के लिए नहीं बल्कि दूरदराज के गांव के बच्चों तक भी अपनी कहानी पहुंचाना चाहती हूं, ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक कहानी पहुंचे।
एक सुखद अनुभव शेयर करते हुए वो कहती हैं- एक सात साल के लड़के ने मेरी कहानी सुनते हुए अपना एक कहानियों का ब्लॉग तैयार कर लिया है। उसके पेरेंट्स का कॉल आया था वो अब अपनी कहानियां बनाने लगा। अच्छा लगता है जब बच्चे डोरेमोन से निकल कर कहानी पर आ रहे हैं।
सरल के सभी टेक्निकल कामों के लिए उनके बेटे ने उनकी मदद की है। जब उसने देखा कि लोग मेरी कहानियों को पसंद कर रहे हैं तो उसने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया। मुझे ऑडियो रिकॉर्ड करना, ट्रिम करना, इसे सही से लगाना और फिर टेलीग्राम पर अपलोड करना सब बेटे ने ही सिखाया है। आखिर में सरला कहती हैं- इस उम्र में भी मुझे लगता है कि अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है।
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