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बात बराबरी की:पत्नी अगर पढ़ाई-लिखाई या पैसों में पति से बेहतर है; तो बाहर भले ही उसकी तारीफ हो, लेकिन बंद कमरे में पति की हिंसा झेलनी पड़ेगी

नई दिल्लीएक वर्ष पहलेलेखक: मृदुलिका झा
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झमाझम बारिश के बीच लंदन की थेम्स नदी के पुल पर एक लड़की खड़ी थी। वह टक लगाए नीचे देख रही थी। अचानक उसके शरीर में हरकत हुई, पैर पुल से होते हुए रेलिंग की तरफ बढ़े। छपाक की आवाज के साथ पानी में एक भंवर बना और लड़की डूब रही थी। तभी आयरलैंड से आया एक टूरिस्ट नदी में कूद पड़ा और डूबती लड़की को बचा लिया गया। ये लड़की थी मेरी वॉलस्टोनक्राफ्ट। ब्रिटिश लेखिका और वह पहली औरत, जिसने स्त्री-पुरुष बराबरी की ‘खोज’ की। अब मेरी मरना चाहती थी, क्योंकि उसका पति उसे छोड़ किसी दूसरी के साथ था। मेरी का कसूर ये था कि उसका माथा तेज से दमकता था और जबान रसभरी बातों के अलावा बहस करना भी जानती थी।

खुदकुशी की नाकामयाब कोशिश से पहले मेरी ने एक चिट्ठी लिखी - ‘मेरी गलतियों को मेरे साथ सो जाने दो! तुम्हारी याद में जलता मेरा सिर बहुत जल्द पानी में समाकर ठंडा हो चुका होगा। भगवान हमेशा तुम्हारे साथ रहे..!’ मेरी जिंदा बच गईं। दोबारा कोशिश हुई, लेकिन वे फिर बच गईं। इस दौरान कई स्त्रियों के साथ रह चुके उसके पति ने पूर्व पत्नी को सनकी और मर्दखोर बताते हुए कह दिया कि उसके पास तर्कों के अलावा करने को कुछ और था ही नहीं। वह ठंडी औरत थी, जिसे पढ़ा जा सकता है, लेकिन उससे प्यार नहीं हो सकता।

सच ही है। मेरी तार्किक थीं, अपने पति से कहीं ज्यादा। वे जब बोलती थीं, जो जबान पर अंगूरी मिठास नहीं, बबूल के पेड़ उग आते थे। वे जब लिखतीं तो लावे की नदी बहती थी। अक्सर सफेद रेशमी कपड़ों में रहती मेरी प्यार चाहती थीं, जहां बराबरी हो। यहीं वो गलत थीं। स्त्री तभी प्यारी होती है, जब समर्पित हो। तलवार से गर्दनें काटती औरत किसी मर्द का प्रेम नहीं बन पाती। 18वीं सदी में मेरी के साथ यही हुआ। और 21वीं सदी में बाकी औरतें भी यही झेल रही हैं।

हाल के IIT हैदराबाद और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम की स्टडी बताती है कि जो औरतें अपने से कम रुतबेदार मर्द से शादी करती हैं, वे ऐसी औरतों से 14% ज्यादा घरेलू हिंसा झेलती हैं, जिन्होंने अपने से ज्यादा पैसे वाले और पढ़े-लिखे पुरुष से ब्याह किया हो। स्टडी में 15 से 49 साल की 65 हजार से ज्यादा शादीशुदा भारतीय महिलाओं से बात की गई। सालभर चली इस स्टडी में 27% महिलाओं ने एक साल के भीतर ही मारपीट की शिकायत की, वहीं 5% ने इतने ही समय में पति की यौन हिंसा भी झेली।

भारत के अलावा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया में भी यही ट्रेंड दिखा। यानी बीवी अगर पढ़ाई-लिखाई, सोचने-बोलने या पैसों में शौहर से बेहतर है तो बाहर भले ही वो कितना इतरा ले, ये तय है कि बंद कमरे में उसकी पिटाई होगी। जोड़ियां बनाने वाली किसी साइट पर जाएं तो वहां अलग-अलग पढ़ाई और तबके से ताल्लुक रखने वाले लड़कों में भी एक बात कॉमन दिखेगी- सबको पढ़ी-लिखी और कमाऊ लड़की चाहिए लेकिन पढ़ाई उतनी ही हो, जितने में दिमाग की फफूंद बची रहे। कमाई भी उतनी ही रहे, जितने में लड़की सिरचढ़ी न बन जाए।

हां, सुंदरता अकेली ऐसी चीज है, जहां लड़की को लड़के से ज्यादा दिखने की छूट है। वह फरवरी के आम जितनी ताजी हो, रंग ऐसा, जैसे मक्खन में चुटकी-भर सिंदूर छिड़का हो और होंठ गुलाब की पंखुरी नहीं तो इससे कम भी न हों। लड़के वाले जब पहली दफा लड़की देखने आएं तो वह रसोई में हया की सुर्खी लिए मटर पुलाव पका रही हो और खाने की मेज सजाए तो पांच सितारा के खानसामा भी पानी भरें। खुद को घरेलू साबित करने की ये मशक्कत शादी के बाद भी चलती है। बीवी दफ्तर से घर लौटे तो सांय से रसोई में घुसकर घी चुपड़ी रोटियां पकाए और रात में महंगा मॉइश्चराइजर लगाकर मखमली त्वचा से पति को सुख भी दे सके।

सब दस्तूर के मुताबिक चल रहा था, लेकिन एक गड़बड़ी हो गई। नए जमाने की लड़कियों को स्कूल भेजते हुए उनके घरवाले ये बताना भूल गए कि पढ़ाई उन्हें उतनी ही करनी है, जितने में रस्म पूरी हो जाए। तो लीजिए, लड़कियां स्कूल से कॉलेज, शहर से देशों की सीमाएं छूने लगीं। दफ्तर में सेक्रेटरी और रिशेप्सनिस्ट की नौकरी छोड़कर सीईओ की कुर्सी तक पहुंच गईं। अब ऐसी औरतों से अगर मर्द चिढ़ें तो कुछ गलत भी नहीं।

भूलकर गलत दुनिया में घुस गई स्त्रियों की घरवापसी के लिए मर्द एकजुट हो रहे हैं। इंटरनेट पर एक वेबसाइट है, जिसका नाम है मेन गोइंग देयर ओन वे (MGTOW)। गुस्साए मर्दों की मंडली यहां एक-दूसरे को औरतों से निपटने के गुर सिखाती है। एक मशहूर ब्लॉगर मैट फॉर्ने ने फोरम पर एक आर्टिकल लिखा था- The necessity of domestic violence यानी घरेलू हिंसा क्यों जरूरी है। साल 2020 में इस फोरम पर देश-विदेश के 40 हजार नफरतखोर मर्द जमा हो चुके थे। 50 हजार से ज्यादा टॉपिक थे, जो कमाऊ लड़कियों से नफरत सिखाते थे। साइट के 25 से ज्यादा वीडियो चैनल भी हैं, जिन पर 7 लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं।

इन्हें फॉलो करने वाले लाखों पुरुषों को यकीन है कि औरतें जोंक की तरह उनसे चिपकी हुई हैं और उनकी ताकत सोख रही हैं। अगर उन्हें अपने शरीर से छिटकाकर रसोई में पटक दिया जाए तो पुरुष आजाद हो जाएंगे। वे रोज नई खोज कर सकेंगे, नई कविता लिख सकेंगे और नया संसार बसा पाएंगे- जहां औरतें हों तो लेकिन मर्दों के पीछे, उनका इंतजार करती हुई।

प्रेम में पड़कर खुद को रुई की तरह धुनता देखती स्त्री कमजोर नहीं, वह बस प्रेम में है। इससे पहले कि उसका प्रेम का भरम टूटे, डियर मेन- आप अपनी समझ दुरुस्त कर लें। प्रेम में आप न कम हैं, न आपकी साथिन ज्यादा- ये बराबरी का रिश्ता है। कविता रचने के लिए आपको सताई हुई या कामना से भरी औरत नहीं चाहिए, दफ्तर में गुणा-भाग करती या सब्जियों का थैला लेकर लौटती स्त्री भी कविता से कम नहीं।

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