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एयरटेल के ब्रांड बनने की कहानी:कभी हीरो साइकिल के मालिक से उधार लिए थे 5 हजार रुपए, फिर कैसे बनाया टेलीकॉम साम्राज्य?

2 वर्ष पहले
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'यह उन दिनों की बात है जब लोग चेक का इस्तेमाल काफी कम करते थे। मैं एक बार हीरो साइकिल के संस्थापक ब्रिजमोहन लाल मुंजाल के पास गया और उन्हें 5,000 रुपये का एक चेक लिखने को कहा। उन्होंने इसके लिए तुरंत हामी भर दी। जब मैं वहां से जा रहा था तो उन्होंने मुझसे एक बात कही जो मेरे दिल को छू गई। उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा इसकी आदत मत डालना।'

सुनील मित्तल ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए ये किस्सा सुनाया था। सुनील ने मुंजाल की बात गांठ बांध ली। अपनी मेहनत, लगन और सरकार की नीतियों पर सवार सुनील मित्तल आज 4.36 लाख करोड़ रुपए की एयरटेल कंपनी के मालिक हैं। 35 करोड़ यूजर्स के साथ एयरटेल भारत की दूसरी सबसे बड़ी मोबाइल ऑपरेटर कंपनी है।

हाल ही में अपने सभी प्रीपेड प्लान को 20-25% तक बढ़ाकर एयरटेल चर्चा में है। आज हम एयरटेल के ब्रांड बनने की कहानी लेकर आए हैं...

सड़कों पर सीखे जिंदगी के सबक

सुनील भारती मित्तल का जन्म पंजाब के लुधियाना में 23 अक्टूबर 1957 को हुआ था। उनके पिता सतपाल मित्तल एक राजनेता थे और दो बार सांसद भी चुने गए। सुनील की शुरुआती पढ़ाई मसूरी के विनबर्ग स्कूल में हुई। इसके बाद वो ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में पढ़ने चले गए। सुनील ने 1976 में पंजाब यूनिवर्सिटी के आर्य कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। सुनील का कहना है कि उन्हें कक्षाओं से ज्यादा सड़कों पर जीवन की सीख मिली। लुधियाना का ऐसा माहौल था कि उन्होंने कारोबार करने का फैसला किया।

सब कुछ ट्राई किया, फिर सही चुना

ग्रेजुएशन के फौरन बाद सुनील ने अपने पिता से 20 हजार रुपए उधार लिए और साइकिल पार्ट्स का काम शुरू किया। कुछ दिनों में सुनील को एहसास हो गया कि इस कारोबार की एक सीमा है, लेकिन वो असीमित उड़ान के लिए बने हैं। लिहाजा 1980 में दूसरे बिजनेस मौकों की तलाश में उन्होंने बॉम्बे (अब मुंबई) का रुख किया। सुनील ने अपने भाइयों राकेश और राजन के साथ मिलकर भारती ओवरसीज ट्रेडिंग की स्थापना की। उन्होंने अपने साइकिल के धंधे को बेचकर इंपोर्ट लाइसेंस हासिल कर लिया।

सुनील ने सबसे पहले सुजुकी की डीलरशिप हासिल की और भारत में उनके इलेक्ट्रिक पॉवर्ड जनरेटर्स बेचने लगे। इसमें उन्हें काफी मुनाफा हुआ और कारोबार जमने लगा। वो इस कारोबार में पूरी तरह जम पाते उससे पहले ही 1983 में सरकार ने जनरेटर के निर्यात पर रोक लगा दी। उनका बिजनेस एक झटके में ठप्प पड़ गया।

पुश बटन वाले फोन से टेलीकॉम में एंट्री

सुनील मित्तल का एक थंब रूल है कि वो कुछ ऐसा करते हैं, जो भारत में पहले कभी किसी ने न किया हो। इसी नियम पर चलते हुए उन्होंने 1986 में पुश बटन फोन को इंपोर्ट करने का फैसला किया। वो ताइवान से पुश बटन इंपोर्ट करते और भारत में उन्हें बीटेल ब्रांड के नाम से बेचने लगे। इससे उन्हें बहुत मुनाफा हुआ। 1990 के दशक तक पुश बटन फोन के अलावा वो फैक्स मशीन और अन्य दूरसंचार उपकरण बनाने लगे।

1992 में भारत सरकार ने पहली बार मोबाइल सेवा के लिए लाइसेंस बांटने शुरू किए। सुनील ने इस अवसर को समझा और फ्रेंच कंपनी विवेंडी के साथ मिलकर दिल्ली और आस-पास के इलाकों के सेल्युलर लाइसेंस हासिल किए। 1995 में सुनील मित्तल ने सेल्युलर सेवाओं की पेशकश के लिए भारती सेल्युलर लिमिटेड की स्थापना की और एयरटेल ब्रांड के तहत काम शुरू किया। देखते ही देखते उनके 20 हजार, फिर 20 लाख और फिर 20 करोड़ यूजर्स हो गए।

आक्रामक स्ट्रैटजी से बनी दुनिया की टॉप टेलीकॉम कंपनी

1999 में भारती एंटरप्राइज ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सेल्युलर ऑपरेश बढ़ाने के लिए जेटी होल्डिंग्स का अधिग्रहण किया। 2000 में भारती ने चेन्नई में स्काईसेल कम्युनिकेशन्स का अधिग्रहण किया। इसके बाद 2001 में स्पाइस सेल कोलकाता का अधिग्रहण किया। इसके बाद कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हुई।

2008 में एयरटेल ने भारत में 6 करोड़ कस्टमर्स का आंकड़ा पार किया। उस वक्त एयरटेल का वैल्यूएशन 40 बिलियन डॉलर पहुंच गया था। इससे भारती एयरटेल दुनिया की टॉप टेलीकॉम कंपनी बन गई।

जियो की लॉन्चिंग के बाद डगमगाई एयरटेल

एयरटेल को बड़ी चुनौती 2016 में जियो की लॉन्चिंग के बाद हुई। 2016 के दौर में जियो की लॉन्चिंग के वक्त टेलीकॉम इंडस्ट्री में 8 कंपनियां थीं, जो अब सिमटकर 4 बची हैं। उस वक्त एवरेज कॉलिंग रेट 58 पैसे प्रति मिनट था, जो 2018 में घटकर 18 पैसे और अब उससे भी नीचे आ चुका है। एयरटेल को भी मार्केट के हिसाब से अपनी दरें नीचे लानी पड़ीं।

एयरटेल इंडिया व साउथ एशिया के MD और CEO गोपाल विट्टल का कहना है, ''हमें मुनाफे में आने के लिए करीब 300 रुपए के आरपू पर आना होगा। अभी हम टैरिफ बढ़ाकर 162 रुपए आरपू पर तो आ गए हैं, लेकिन ये नाकाफी है। पानी से सिर बाहर रखने के लिए भी हमें 200 के आरपू पर जाना होगा।''

एयरटेल की हालत खस्ता होने के पीछे एक वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि एयरटेल ने भारतीय कस्टमर्स को हल्के में लिया। जब जियो 4जी स्पेक्ट्रम के लिए कोशिश कर रहा था, तब एयरटेल ने कुछ नहीं किया। एयरटेल भारत में 25 साल से टेलीकॉम सेक्टर में लीडर के तौर पर था। वह अपनी 2जी, 3जी सर्विसेस को सुधारने में लगा रहा। एयरटेल ने 4जी पर काम बहुत देरी से शुरू किया। हालांकि अब हालात में सुधार हो रहा है। एयरटेल न सिर्फ अपना कस्टमर बेस बढ़ा रहा है, बल्कि उसने प्रीपेड टैरिफ प्लान में 25% तक बढ़ोतरी करके मुनाफा में भी आने की कवायद शुरू कर दी है।