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बाल-विवाह के सामने दीवार बनी झुग्गी में रहने वाली रिया:घर में ग्रेजुएशन करने वाली इकलौती, 7 भाई-बहन नाम नहीं लिख पाते

5 महीने पहलेलेखक: नीरज झा
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रिया पासवान पटना के कमला नेहरू स्लम एरिया में रहती हैं। 8 भाई-बहनों में अकेली जो स्कूल गईं। बाकी के लोग अपना नाम तक लिखना नहीं जानते। पिता कुली थे, हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। तब रिया दसवीं में थीं। घर की हालत पहले ही खराब थी, इसके बाद तो दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया। इसके बाद भी रिया ने पढ़ाई नहीं छोड़ी।

आज रिया ग्रेजुएशन कर रही हैं। गांव की महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। इतना ही नहीं अपने इलाके में बाल-विवाह के खिलाफ मुहिम भी चला रही हैं। वे अब तक एक दर्जन बाल-विवाह रुकवा चुकी हैं।

रिया जिस इलाके में रहती हैं, उसकी गलियां इतनी संकीर्ण हैं कि पैदल चलना भी मुश्किल है। दोपहर होने पर भी झुग्गियों के कमरों में अंधेरा ही रहता है। अधिकांश परिवार गरीबी में गुजर-बसर करते हैं।

रिया कहती हैं, इस बस्ती में दर्जनभर से ज्यादा लोग तो कुली का ही काम करते हैं। कुछ कूड़ा बीनने का भी...। मेरे पापा भी कुली थे। मां बताती है कि शादी के बाद वो बिहारशरीफ से पटना कमाने के लिए चले आए थे। उसके बाद यहीं पर बस गए। 2020 में मेरा मैट्रिक का एग्जाम था, उसके कुछ महीने पहले ही हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। अब बड़े भइया पटना जंक्शन पर कुली का काम करते हैं।

वो बताती हैं, अभी ग्रेजुएशन में हूं। घर के बाकी लोग तो नाम लिखना भी नहीं जानते हैं। मैं छोटी थी, तो पापा कहते थे, 'बिना पढ़ाई-लिखाई के कुछ नहीं हो सकता। नहीं पढ़ोगी, तो मेरी तरह तुम्हें भी बोझ उठाने पड़ेंगे।'

मैं चाहती थी कि हॉस्टल में रहकर अच्छी पढ़ाई करूं, लेकिन पैसे के अभाव में एडमिशन नहीं हो पाया। स्लम एरिया के स्कूल से ही 12वीं तक की पढ़ाई की। अभी हाजीपुर के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही हूं।

रिया अपने 7 भाई-बहन में इकलौती हैं, जो पढ़ाई कर रही हैं।
रिया अपने 7 भाई-बहन में इकलौती हैं, जो पढ़ाई कर रही हैं।

रिया बताती हैं, 8वीं क्लास में ही ‘सेव द चिल्ड्रन’ संस्था के साथ जुड़ गई थी। यह संस्था बच्चों के विकास पर काम करती है। हम लोग स्लम में रहने वाली महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से रिलेटेड चीजों को लेकर जागरूक करते हैं।

एक रोज की बात है। हम लोग स्लम में रहने वाली महिलाओं के बीच सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में बता रहे थे। एक कूड़ा बीनने वाली लड़की ने कहा, “जितने पैसे में सैनिटरी पैड खरीदूंगी, उसमें 30 रुपए और मिलाकर एक वक्त का खाना नसीब हो जाएगा।” ये बात मेरे कलेजे में बैठ गई।

'उसी दिन मुझे महसूस हुआ कि सैनिटरी पैड हर महिला के लिए कितना जरूरी है। सरकार तो कहती है कि वो सभी स्टूडेंट्स के अकाउंट में सैनिटरी पैड खरीदने के लिए पैसे भेजती है, लेकिन मुझे आज तक एक रुपया भी नहीं मिला।'

जो लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं, उनका क्या?

रिया अपने स्लम की लड़कियों में पीरियड्स के दौरान बरते जाने वाले ऐहतियात को लेकर जागरूकता फैलाती हैं।
रिया अपने स्लम की लड़कियों में पीरियड्स के दौरान बरते जाने वाले ऐहतियात को लेकर जागरूकता फैलाती हैं।

वो कहती हैं, 'मुझ जैसी हजारों महिलाएं हैं, जिनके लिए हर महीने सैनिटरी पैड की व्यवस्था नहीं हो पाती है। उन्हें इसके बारे में पता भी नहीं है। मैंने इसे करीब से जिया है। हम सुविधाएं मिलने के लिए ही तो सरकार को वोट देते हैं। सरकार सबके लिए काम करती है, महिलाओं को भी सुविधाएं मिलनी चाहिए।'

यह रिया के घर का एक कमरा है। दो कमरे के मकान में उनका पूरा परिवार रहता है। घर में 9 लोग रहते हैं।
यह रिया के घर का एक कमरा है। दो कमरे के मकान में उनका पूरा परिवार रहता है। घर में 9 लोग रहते हैं।

रिया कहती हैं, 'एक सैनिटरी पैड बनाने वाली कंपनी ने मेरी पूरी पढ़ाई का खर्च ऑफर किया। हालांकि, नौकरी की बात झूठी है।'

जिस कमरे में रिया अपनी कहानी सुना रही हैं, गेट पर उनके भाई भोशु पासवान बैठे हुए हैं। वो पिछले कई दिनों से बीमार हैं। पैर और घुटनों में दर्द है, बुखार से शरीर तप रहा है।

पूछने पर वो दबी जुबान में कहते हैं, खुशी तो हुई ही कि मेरी बहन समाज के लिए काम कर रही है।

तो क्या आप लोग खानदानी कुली का काम कर रहे हैं?

'और क्या ही कर सकते हैं। यदि ये काम नहीं करूंगा, तो दूसरा क्या...। ना तो पढ़ा-लिखा हूं और ना ही कहीं जाकर नौकरी-चाकरी कर सकता हूं।'

अपनी लाल रंग की वर्दी दिखाते हुए भोशु कहते हैं, सभी चाहते हैं कि उनके सिर से बोझ उतरा रहे, लेकिन हम लोग रोज सुबह उठकर भगवान से यही दुआ करते हैं कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मिले। स्टेशन पर पैसेंजर्स का अधिक सामान उठाने को मिले।

ये रिया के भाई भोशु हैं, जो कुली का काम करते हैं। वो कहते हैं, दादा भी कुली ही थे, फिर पापा। गरीबी की वजह से जब 12 साल था, तो पापा के साथ सामान ढोने लगा।
ये रिया के भाई भोशु हैं, जो कुली का काम करते हैं। वो कहते हैं, दादा भी कुली ही थे, फिर पापा। गरीबी की वजह से जब 12 साल था, तो पापा के साथ सामान ढोने लगा।

जब उनकी तबीयत बिगड़ी, तब मैं भी कुली का काम करने लगा। 45 साल की उम्र के बाद अधिकांश कुली के घुटने, पैरों में फ्रैक्चर आ जाते हैं। वो बोझ उठाने के लायक नहीं रहते हैं। अभी मेरी 33 साल उम्र है, मेहनत-मजदूरी कर लेता हूं।

घर में तो कोई नहीं पढ़ पाया, अब रिया पढ़ ले तो हमारी गरीबी के बादल थोड़े छंट जाए।

रिया अपने भइया की ओर तसल्ली भरी नजरों से देखते हुए कहती हैं- मुझे सोशल वर्क करना पसंद है। अपने स्लम एरिया की एक दर्जन से ज्यादा नाबालिग लड़कियों की शादी भी मैंने रुकवाई है। मैं पुलिस ऑफिसर बनना चाहती हूं। इसके लिए कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही हूं।

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