तारीख: 3 मार्च 2002, जगह: गुजरात के रंधीकपुर और देवघर बारिया के बीच पत्थलपाणी का जंगल। 28 फरवरी 2002 की सुबह रंधीकपुर गांव से लोगों ने अलग-अलग टोलियां बनाकर भागना शुरू किया। एक टोली में 5 महीने की प्रेग्नेंट बिलकिस बानो, 9 महीने की प्रेग्नेंट शमीम, 7 साल का सद्दाम और उसकी मां अमीना भी थे। ये 96 घंटों तक रुकते-भागते रहे। पीछे एक भीड़ थी। हाथों में कुल्हाड़ी, हंसिया और तलवारें लिए।
3 मार्च को इस भीड़ ने इन्हें जंगल में घेर लिया। 15 लोगों में से 13 की हत्या कर दी गई। 6 औरतों का गैंगरेप हुआ, 1 दिन की बच्ची को भी नहीं बख्शा। सिर्फ बिलकिस और सद्दाम बचे। सद्दाम इस केस का इकलौता चश्मदीद गवाह है।
केस में दोषी 11 लोगों को 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया। बिलकिस ने रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसकी सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की डिवीजन बेंच कर रही है।
सोमवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है। गुजरात सरकार से कहा कि जिस प्रोसेस से दोषियों को सजा से छूट दी गई, उसकी फाइलें लेकर अगली सुनवाई में पेश हों। अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।
बिलकिस केस के इकलौते गवाह ने जो देखा
सितंबर 2022 में मैंने बिलकिस केस के इकलौते गवाह सद्दाम से बातचीत की थी। सद्दाम अब 28 साल के हैं और 5 साल के एक बच्चे के पिता हैं। सद्दाम डरी-घबराई आवाज में बताते हैं, ‘मैं जब होश में आया तो अम्मी की छाती पर तलवारों के घाव थे। उनके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था। मैं जोर-जोर से चिल्लाया, अम्मी उठो-अम्मी उठो, पर वे नहीं उठीं। वे मर चुकीं थीं।’
सद्दाम शेख ये बताते हुए अपने 4 साल के बच्चे को छाती से थोड़ा और करीब चिपका लेते हैं। फिर सुनाना शुरू करते हैं- ‘27 फरवरी 2002 की देर शाम थी, अंधेरा हो चुका था और मैं दोस्तों के साथ खेल रहा था। 4-5 बड़ी गाड़ियों में भरकर लोग आए थे। वे चिल्ला रहे थे, मारो, जला दो।'
सद्दाम आगे बताते हैं, '28 फरवरी, गुरुवार की सुबह हमले के डर से टोलियों में हम लोग गांव छोड़कर निकल गए। मैं और मेरी मां जिस टोली में थे, उसी में बिलकिस भी थीं। हम लोग 3 दिन तक केसरबाग के जंगलों में करीब 40 किलोमीटर पैदल चल चुके थे। ये 3 मार्च 2002, संडे का दिन था, हमें कुछ लोग हमारी तरफ आते दिखे। उनके हाथ में तलवार, हंसिया, कुल्हाड़ी और लोहे के पाइप थे। वह आकर मारने-काटने लगे। एक बुजुर्ग चाचा थे, उन्होंने हाथ जोड़े कि हमें जाने दो, लेकिन उन्होंने चाचा के सिर पर पाइप मार दिया। वे वहीं गिर गए।’
सद्दाम खुद को संभालते हुए कहते हैं- 'दंगाई सबको मार रहे थे। मेरी अम्मी हाथ पकड़कर मुझे दूसरी तरफ लेकर भागने लगीं। एक दंगाई ने मुझे मेरी अम्मी से छुड़ाकर एक गड्ढे में फेंक दिया। हमारे साथ शमीम भी थीं, जिन्होंने एक दिन पहले ही बच्ची को जन्म दिया था। उन्होंने मेरे सामने शमीम की बच्ची को खाई में फेंक दिया। मेरे ऊपर एक पत्थर रख दिया। इसके बाद मैं बेहोश हो गया।’
'अम्मी जमीन पर पड़ी थीं, चारों तरफ लाशें थीं'
सद्दाम की आवाज फिर सूखने लगी, मैंने कैमरा ऑफ कर लिया। उन्हें तसल्ली दी और कुछ देर बाद फिर बात शुरू की। उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘जब होश आया तो मैं अम्मी के पास गया। अम्मी जमीन पर पड़ी थीं। मैंने उन्हें हिलाया। मैंने कहा- उठो अम्मी-उठो अम्मी, पर वे नहीं उठीं। वहां सब लोग मरे पड़े थे। हम गांव से चले थे, तो बिलकिस भी हमारे साथ थीं, लेकिन होश में आने के बाद मैंने उन्हें नहीं देखा। चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं।’
सद्दाम बताते हैं- ‘उस जगह 6 औरतों के साथ गैंगरेप हुआ जिसमें बिलकिस, मेरी अम्मी अमीना के अलावा 4 और महिलाएं भी थीं। बिलकिस और मुझे छोड़कर सभी लोग मारे गए। दाहोद कैंप में मेरा इलाज हुआ। उसके बाद मैं अपने भाइयों के साथ कैंप में ही रहने लगा।'
'एक दिन मुख्तार मामा वहां आए। वे वहां से मुझे अपने साथ ले आए। मैं उनके साथ रहने लगा। बिलकिस ने दंगों में अपने दो बच्चे खोए। एक पेट में था, तो दूसरी बच्ची साढ़े तीन साल की। अब्बू, अम्मी, दो बहनें, दो भाई। परिवार के और भी लोग हादसे का शिकार हुए। मेरी अम्मी अमीना रिश्ते में बिलकिस की बहन थीं।’
सद्दाम को तो मुआवजा भी नहीं मिला
अहमदाबाद के रहने वाले मुख्तार मोहम्मद बिलकिस की लड़ाई में भी हर कदम पर साथ रहे। मुख्तार मोहम्मद बताते हैं, 'गोधरा के दूसरे दंगा पीड़ितों को मुआवजा मिला, लेकिन सद्दाम को कुछ नहीं। एप्लिकेशन लगाई, पर कुछ हुआ नहीं।'
'सद्दाम ने भी दंगे में अपनी अम्मी खोई। सद्दाम बिलकिस के केस में गवाह बना, तो उस पर मंडराते खतरे को देखते हुए मैंने उसे अपनी अम्मी के पास अहमदाबाद भेज दिया। उसे पढ़ाने की कोशिश बहुत की, पर सद्दाम सदमे में था। उसकी दिमागी हालत ऐसी नहीं थी। वह गुपचुप और सहमा रहता था।’
उदास आंखों वाले सद्दाम कहते हैं, ‘मैं अपनी अम्मी के साथ हमले के डर से गांव छोड़कर निकला था। अम्मी की कोई निशानी भी मेरे पास नहीं। कोई फोटो तक नहीं।’
सद्दाम और बिलकिस की कहानी के मुताबिक भास्कर उन सभी जगहों पर गया, जहां ये सब हुआ था, उन सभी लोगों से मुलाकात की, जो इस कहानी के किरदार हैं…
एक ट्रेन में आग लगाई गई और हजारों घर उजड़ गए
27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात आ रही साबरमती एक्सप्रेस के दो कोच में आग लगा दी गई। इसमें 59 तीर्थयात्री मारे गए। गुजरात में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। गोधरा से करीब 50 किलोमीटर दूर दाहोद का रंधीकपुर गांव भी इसकी चपेट में आ गया।
28 फरवरी, 2002 की सुबह रंधीकपुर गांव की एक बस्ती खाली हो चुकी थी। बूढ़े-बच्चे, औरत-मर्द सब बदहवासी और डर की हालत में काम भर का सामान लेकर खेतों-जंगलों के रास्ते भाग रहे थे। इन्हीं लोगों में 5 महीने की प्रेग्नेंट बिलकिस बानो, 9 महीने की प्रेग्नेंट शमीम, 7 साल का सद्दाम और उसकी मां अमीना भी शामिल थे।
करीब 96 घंटे तक खेतों-जंगलों में रुकते-भागते रहे, लेकिन 3 मार्च 2002 को इस भीड़ ने आखिरकार उन्हें पत्थलपाणी के जंगल में घेर लिया। बिलकिस समेत 6 औरतों का गैंगरेप हुआ। शमीम की एक दिन की बच्ची और बिलकिस की ढाई साल की बेटी भी मार दिए गए 13 लोगों में शामिल थे।
पड़ोसी ही दंगाई बन गए, भागते नहीं तो क्या करते
बिलकिस अपने ससुराल देवघर बारिया से यहां अपने परिवार के साथ ईद मनाने आई थीं। बस्ती में रहने वाले याकूब बताते हैं, हमारे बाप-दादा यहीं के हैं। हमारी जमीन-जायदाद सब यहां है। वे सब (दंगाई) हमारे पड़ोसी हैं। उस दिन पता नहीं क्या हुआ उन सबको?’
‘27 फरवरी 2002 की शाम थी। बस्ती के भीतर एक भीड़ घुस आई। हमारे लाख समझाने पर भी वे नहीं समझे। हम समझ चुके थे, अगर यहां रहे तो जिंदा नहीं बचेंगे। करीब 120 लोगों की एक टोली मेरे साथ थी। बिलकिस का पति भी मेरे साथ था। हम खुशकिस्मत थे कि 3 दिन तक भटकने के बाद हमें प्रोटेक्शन मिल गई और हम गोधरा रिलीफ कैंप तक सही सलामत पहुंच गए। बिलकिस और उसके साथ के 15 लोग हमसे अलग हो गए। वे देवघर बारिया पहुंचने के शॉर्टकट के लिए जंगल के रास्ते निकल गए थे। भीड़ ने उन्हें इसी जंगल में घेर लिया।’
बिलकिस के पति याकूब रसूल कहते हैं, हमें प्रोटेक्शन देने वाली टीम ने भरोसा दिया था कि बाकी लोगों को भी वह जल्द खोजकर कैंप में पहुंचा देंगे, लेकिन बिलकिस मुझे 15 दिन बाद मिली। वह बिल्कुल टूटी हुई थी। मुझे पता चल चुका था कि उसके साथ क्या हुआ। मेरी बेटी शेहला उनके साथ नहीं थी। उन 15 लोगों में से सिर्फ दो लोग बचे थे। एक 7 साल का बच्चा सद्दाम और बिलकिस।’
सुलेमान का पछतावा- ‘काश बिलकिस को रोक लेता’
5 महीने की प्रेग्नेंट बिलकिस बानो अपनी ढाई साल की बेटी के साथ कुआंजर नाम के गांव पहुंची थी। उस वक्त गांव के सरपंच थे सुलेमान। सुलेमान का नौकर शंकर इस केस में कोर्ट में गवाह भी बना। सुलेमान उस दिन यानी 28 फरवरी को याद कर अब तक पछताते हैं। उनकी बूढ़ी आंखों में ये दुख बार-बार नजर आता है। बिलकिस को न रोक पाने का दुख, किसी को मौत से न बचा पाने का दुख।
सुलेमान लड़खड़ाती आवाज में बताते हैं, 'माहौल खराब होने लगा था। मेरे गांव में हिंदू ज्यादा और मुसलमान कम हैं। पुलिस को शायद लगा कि माहौल बिगड़ सकता है, तो वे मुझे गांव से दूर ले गए। घर पर मेरा नौकर शंकर था। उसने मुझ तक खबर पहुंचाई कि रंधीकपुर गांव से कुछ लोग हमारे घर आए हैं।'
'उस टोली में ज्यादातर औरतें और बच्चे ही थे। बिलकिस 5 महीने की प्रेग्नेंट थीं, लेकिन शमीम 9 महीने की प्रेग्नेंट थी। शंकर ने उन्हें समझाया कि यहीं रुक जाएं। उनके लिए इस हालत में ज्यादा चलना ठीक नहीं, लेकिन 4-5 घंटे रुककर वे लोग चले गए। मैं अगर उस दिन यहां होता तो शायद यह हादसा ही न होता। बिलकिस बच जातीं। एक दिन की वह बच्ची भी बच जाती। सब बच जाते।'
सुलेमान और अबेसी खाट का साझा दुख
बिलकिस और उनका परिवार कुआंजर से पैदल-पैदल एक-डेढ़ किलोमीटर चलकर पत्थनपुर गांव पहुंचे। पत्थनपुर आदिवासी गांव है। जब हम यहां पहुंचे तो हिंदी बोलने वाला कोई नहीं मिला। यहां आदिवासी भाषा को मिलाकर गुजराती बोली जाती है।
हम उस वक्त के सरपंच अबेसी खाट के घर पहुंचे। वे बताते हैं, '15 नहीं, करीब 100 लोग यहां आए थे। एक कुएं की तरफ इशारा कर वे कहते हैं, सबने यहां से पानी पिया। हमने उन्हें कुछ खिलाया-पिलाया। काफी लोग निकल गए, लेकिन 15 लोग यहीं रुक गए। एक औरत को बच्चा होने वाला था, उसका दर्द बढ़ता जा रहा था।’
‘कुछ ही घंटों में उस औरत ने एक बच्ची को जन्म दिया। हमने उन्हें जरूरत की सारी चीजें दीं। तीसरे दिन सुबह यानी 3 मार्च 2002 को वे लोग यहां से चले गए। हमने उन्हें बहुत रोका। बिलकिस भी गर्भ से थीं। एक दिन पहले बच्ची पैदा हुई थी, जो अभी पूरे दो दिन की भी नहीं थी और भी छोटे-छोटे बच्चे उनके साथ थे। हम नहीं चाहते थे कि वे लोग यहां से जाएं, लेकिन वे देवघर बारिया पहुंचना चाहते थे।'
अबेसी हमें उस घर तक भी ले गए, जहां वो बच्ची पैदा हुई थी। ये घर किसी नायक का था। उन्होंने कैमरे के सामने आने से मना कर दिया। कहा, 'हमें डर लगता है कि हम कुछ बोले तो हमारे साथ कुछ हो जाएगा।' हालांकि अबेसी खाट ने बाद में चलते वक्त हमसे कहा- ‘मैं नहीं डरता। जहां चाहो आज भी गवाही ले लो। मैं झूठ नहीं बोलूंगा।’ उनकी आंखें निडर थीं।
मां के सामने एक दिन की बच्ची को पत्थर पर पटककर मार डाला
अब मैं उस जगह पहुंचने वाली थी, जहां घटी क्रूरता पर भरोसा करना मुश्किल जान पड़ता है। पत्रकार हूं, लेकिन उससे भी पहले एक औरत। इस क्रूरता के बारे में जो भी सुना-पढ़ा, अब सब सामने था। एक मां, जो अभी प्रसव पीड़ा से उबर भी नहीं पाई थी, जिसने एक दिन पहले बच्ची को जन्म दिया था। उसका गैंगरेप किया गया। उसके सामने ही पत्थर पर पटक कर बच्ची की जान ले ली गई।
5 महीने की प्रेग्नेंट बिलकिस की ढाई साल की बच्ची का हाथ छुड़ाकर उसे खाईं में फेंक दिया गया। उसके साथ गैंगरेप हुआ और पेट में पल रहा बच्चा भी नहीं बच सका। उसने एक दिन में दो बच्चे खो दिए। बिलकिस की मां हलीमा और उनकी दो बहनों का भी गैंगरेप हुआ। अमीना के हाथ से उनके बच्चे सद्दाम को छुड़ाकर खाई में फेंक दिया, फिर उस पर एक पत्थर रख दिया गया।
मैं केसरबाग के उस जंगल पत्थलपाणी में खड़ी थी। यहां कोई गवाही देने वाला नहीं था। मैं उस नदी के करीब गई, जिसके पास ये क्रूरता हुई, उन पत्थरों से भी गुजरी, जहां पटक-पटक कर बच्चों की जान ले ली गई। देर तक सोचती रही कि ये हिंसा और क्रूरता कैसे की गई होगी। तलवारों के जख्म झेल रहीं औरतें और बच्चे कितने चीखे होंगे।
बिलकिस की कहानी ही सुप्रीम कोर्ट में सबसे मजबूत सबूत बनी
सितंबर 2022 में जब मैं वहां पहुंची तो दोषियों के रिहा होने के बाद रंधीकपुर की ये बस्ती 2002 की ही तरह वीरान दिखी। बिलकिस का केस लड़ने वालीं एडवोकेट शोभा गुप्ता बताती हैं- बिलकिस की ये कहानी ही थी, जो सुप्रीम कोर्ट के लिए सबसे बड़ा सबूत बनी। गुजरात पुलिस ने इस कहानी को डाउटफुल बताते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।’
‘सिर्फ बिलकिस की ये कहानी थी, जो उसने डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, NHRC, कई गैर सरकारी संगठन और सबसे अहम उस कैंप में भी दर्ज कराई थी, जहां इस घटना के बाद उसे ले जाया गया था। इन्हीं सबको हमने आधार बनाया, हमारे फैक्ट इतने मजबूत थे कि केस दोबारा खुलवाने में जरा भी दिक्कत नहीं आई। साल 2003 में CBI इन्वेस्टिगेशन का ऑर्डर हो गया था। CBI ने भी बढ़िया काम किया और वहां तक पहुंच गई, जहां शवों को छिपा दिया गया था।’
BJP नेताओं के साथ नजर आ रहे हैं दोषी
11 दोषियों को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत रिहा कर दिया गया था। इनके नाम हैं – जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेश भट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहनिया, प्रदीप मोरढ़िया, बाकाभाई वोहनिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट और रमेश चांदना। रिहाई के बाद एक फोटो सामने आई थी, जिसमें इनका घर लौटने पर माला पहनाकर स्वागत किया जा रहा था।
सितंबर 2022 में हम उन 11 दोषियों के घर भी पहुंचे थे। हालांकि, वे सभी अपने घरों से गायब थे, परिवार के लोगों का कहना था कि सभी लोग रिहा होने के बाद मन्नत मांगने गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले 25 मार्च 2023 को एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें 11 दोषियों में से एक शैलेश चिमनलाल भट्ट दाहोद के BJP के सांसद जसवंत सिंह भाभोर और विधायक शैलेश भाभोर के साथ एक कार्यक्रम में मंच पर बैठा नजर आया। चौंकाने वाली बात ये है कि ये एक सरकारी कार्यक्रम था।
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