रोलेक्स… लग्जीरियस वॉच ब्रांड। जो पिछली एक सदी से दुनियाभर के लोगों के लिए अमीरी का एक स्टेटस सिंबल है। रोलेक्स की सबसे बड़ी खासियत ये है कि हालात या मौसम कैसे भी हो इसकी घड़ियों पर उसका कोई असर नहीं पड़ता।
रोलेक्स की घड़ियों की समंदर की गहराइयों से लेकर माउंट एवरेस्ट जैसी ऊंची चोटियों पर टेस्टिंग की जाती है। बर्फ से लेकर हवा, रेस ट्रैक से लेकर रेगिस्तान तक हर टेस्ट में रोलेक्स की घड़ियां सटीक रहती हैं। कंपनी हर साल 10 लाख घड़ियां बनाती है। फेडरर से लेकर कोहली तक इन घड़ियों के फैन हैं।
फिलहाल रोलेक्स बच्चों की घड़ियां बनाने वाली एक कंपनी की वजह से चर्चा में है। कंपनी ने इंग्लैंड की 'ऑयस्टर एंड पॉप' को रीब्रांड यानी अपना नाम बदल लेने के लिए कहा है। क्योंकि रोलेक्स के एक सेगमेंट की घड़ी से इसका नाम मिलता-जुलता है।
आज मेगा एम्पायर में जानिए रोलेक्स की कहानी और उससे जुड़ी रोचक बातें…
रोलेक्स लंदन से शुरू हुई लेकिन विश्वयुद्ध के कारण स्विट्जरलैंड में शिफ्ट हुई
रोलेक्स कंपनी को शुरू करने के पीछे दो लोग हैं- हैंस विल्सडॉर्फ और अल्फ्रेड डेविस। हालांकि मुख्य भूमिका हैंस विल्सडॉर्फ की रही। विल्सडॉर्फ ने पहले घड़ियों का काम सीखा। फिर 1905 में लंदन में अपनी कंपनी खड़ी की। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के कारण विल्सडॉर्फ लंदन छोड़कर जिनेवा चले गए और रोलेक्स का हेडक्वार्टर 1919 में स्विट्जरलैंड बन गया।
एक वक्त ऐसा था जब डॉलर-तेल से ज्यादा रोलेक्स पर भरोसा था
1970 के दशक में आर्थिक अनिश्चितता का दौर आया। एक तरफ जहां अमेरिका के डॉलर से विश्वास डगमगाया तो वहीं दूसरी ओर कच्चे तेल से भी भरोसा कम हो गया। इसी समय कुछ लोगों ने रोलेक्स की घड़ियों को कमोडिटी के तौर पर देखना शुरू किया। डीलर्स स्विट्जरलैंड में रोलेक्स की घड़ियां खरीदते और इटली में जाकर उसे बेच देते। फिर इटली के लोग लग्जरी घड़ियां पहनकर अमेरिका और दुनिया के दूसरे कोनों में जाते, जहां वे उसे कई गुना दामों पर बेच देते।
20 से ज्यादा भी ज्यादा कड़े टेस्ट से गुजरती हैं रोलेक्स घड़ियां
रोलेक्स की घड़ियां कार क्रेश टेस्ट से भी कड़े करीब 20 टेस्ट से गुजरती है। तब जाकर एक घड़ी तैयार होती है। इसे तैयार होने में लगभग एक साल का वक्त लगता है। आज दुनियाभर में कई लोग रोलेक्स का कलेक्शन करते हैं। 2017 में न्यूयॉर्क में हुई रोलेक्स की नीलामी के बाद से घड़ियों की नीलामी का अपना एक अलग बाजार खड़ा हो गया है। लोग इन्हें पुरानी पेंटिंग्स की तरह निवेश के तौर पर देख रहे हैं।
कंपनी के लोगो में झलकता है ब्रिटिश एम्पायर के प्रति सम्मान
भारत में जुलाई 2008 में आए इस ब्रांड के लोगो के पीछे एक रोचक बात छिपी है। मौजूदा समय में रोलेक्स अपने नाम के अलावा अपने लोगो की वजह से भी काफी फेमस है। रोलेक्स के लोगो में एक क्राउन है। विल्सडॉर्फ ने रोलेक्स के लोगो के लिए इस क्राउन को ब्रिटिश एम्पायर के प्रति सम्मान दिखाने के लिए रखा था। इसके अलावा इसकी एक सिस्टर ब्रांड भी है जिसका नाम ‘Tudor’ है। ये नाम ‘Tudor’ परिवार के नाम पर रखा गया था, ये वो शाही परिवार था जिसने 1485 से 1603 तक इंग्लैंड पर शासन किया था।
रोलेक्स की घड़ियां इतनी महंगी क्यों?
रोलेक्स नाम सुनकर आपके मन में कभी न कभी तो आया ही होगा कि बाकी घड़ियों की तरह समय ही तो बताती है…फिर इतनी महंगी क्यों? दरअसल, रोलेक्स अपनी घड़ियों में सबसे महंगे स्टील के अलावा गोल्ड, प्लेटिनम का भी इस्तेमाल करती है। बाकी घड़ियों में जहां 316 एल स्टील होता है, तो रोलेक्स में 940 एल स्टील होता है। वहीं इसके डायल में व्हाइट गोल्ड का इस्तेमाल होता है। नंबर भी स्पेशल कांच के प्लेटिनम से तैयार होते हैं। रोलेक्स अपनी घड़ियों में इस्तेमाल करने के लिए सोने का उत्पादन (18 कैरेट) खुद अपनी फैक्ट्री में करती है। ऐसा करने वाली यह अकेली घड़ी कंपनी है।
142 करोड़ रुपए की सबसे महंगी रोलेक्स
हॉलीवुड अभिनेता पॉल न्यूमैन की ‘रोलेक्स कॉस्मोग्राफ डेटोना' घड़ी अक्टूबर 2017 में 17.8 मिलियन डॉलर में नीलाम हुई थी। आज के हिसाब से यह वैल्यू 142 करोड़ रुपए है। 1968 मॉडल की यह घड़ी पॉल की पत्नी ने उन्हें तोहफे में दी थी, उन्होंने इसके पीछे ‘ड्राइव मी केयरफुली’ उकेरा था।
रोचक: रोलेक्स घड़ियों में 10 बजकर 10 मिनट का टाइम क्यों सेट रहता है
आपने जब भी किसी शोरूम या गूगल पर रोलेक्स घड़ियों को देखा होगा तो उसमें टाइम 10 बजकर 10 मिनट ही देखा होगा। क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? इस स्पेशल टाइम के पीछे कई तरह के किस्से प्रचलित हैं। दरअसल, रोलेक्स शुरूआती दौर में अपनी घड़ियों का टाइम 8:20 पर सेट रखती थी। लेकिन उन्होंने इसे जल्दी ही बदल दिया क्योंकि उनको लगा कि 8 बजकर 20 मिनट पर सुइयों की स्थिति से एक दुखी चेहरे की आकृति बनती है। फिर जाकर 10 बजकर 10 मिनट वाले टाइम को चुना गया क्योंकि इससे एक इंसानी मुस्कान जैसी आकृति बनती है। साथ ही जब घड़ी की सुई 10:10 पर होती है तो सुइयों की मदद से 'V' का निशान बनता है जो कि विक्ट्री का सिंबल है। घड़ी खरीदते वक्त लोगों के लिए ये एक प्रेरणा का कारण हो सकता है।
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