मां! मैं भी अब अपना पाठ बंद करना चाहता हूं, सारा सवेरा तो पुस्तक पढ़ते-पढ़ते ही बीत गया, और तुम कहती हो अभी तो बारह ही बजे हैं!
मान भी लो अभी अधिक देर नहीं हुई, तो तुम ये क्यों नहीं सोचतीं कि दोपहर हो गई है, जब तुम कहती हो अभी केवल बारह ही बजे हैं?
जब बारह बजे का समय रात्रि को भी आ सकता है, तो जब बारह बजते हैं दिन में, तो रात्रि क्यों नहीं आ जाती?
- रवींद्र नाथ टैगोर, अपनी कविता 'क्रिसेंट मून' में
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बड़े सपने, छोटे बच्चे
आज अनेक पेरेंट्स अपने बच्चों को प्रोफेशनल करिअर में सफल होते देखना चाहते हैं। उसका एक परिणाम होता है क्लास 7 और 8 से टफ कोचिंग जॉइन करवा देना। उसके बाद एक मशीन की तरह बच्चा लगा रहता है, और केवल एक दिशा में चलने को बाध्य हो जाता है। इसका बच्चे पर काफी लोड पड़ता है, और एक प्रश्न नेचुरल है - क्या ये सही हो रहा है?
इस प्रश्न का उत्तर हां भी है और ना भी। अंततः यह बच्चे पर निर्भर करता है। आइए समझते हैं।
सबसे पहले तो ये देखें कि ऐसे कौन से एग्जाम्स हैं जिसकी तैयारी के लिए बच्चों को इस छोटी उम्र से टफ कोचिंग में भेजा जाता है। उत्तर आप जानते हैं – अधिकतर इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी। इंडिया में इनके अलावा इतनी टफ तैयारी और किसी एग्जाम के लिए नहीं होती।
अबोध बच्चे
क्लास 7 या 8 में पढ़ने वाले स्टूडेंट की उम्र होती है 13 या 14 वर्ष। ये वर्ष किसी भी व्यक्ति की लाइफ के शायद सबसे महत्वपूर्ण होते हैं क्योकि यह समय शारीरिक बदलावों (फिजिकल चेंजेस) का होता है। इस उम्र में जो मेजर एफर्ट पेरेंट्स को करना चाहिए वो है कि विभिन्न सब्जेक्ट्स में बच्चे की उत्सुकता, इंटरेस्ट बना रहे और उसकी एनर्जी क्रिएटिवली चैनलाइज होती रहे। इसके लिए स्टूडेंट का अपने इंटरेस्ट के कामों में व्यस्त रहना जरूरी है - खाली दिमाग शैतान का घर।
समस्या की जड़
प्रॉब्लम यही है - मोस्ट पेरेंट्स बच्चों के इंटरेस्ट को नहीं समझ पाते, या समझ कर भी उस मामले में कुछ कर नहीं पाते। ये समस्या खास-तौर से मिडिल क्लास में है। भारत में मिडिल क्लास फैमिलीज में प्रायः कमाने की जिम्मेदारी केवल पिता की होती है। महिलाओं का वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन रेट भारत में वैसे ही पिछले 15 सालों में तेजी से गिरकर 19.5% ही रह गया है,जो सऊदी अरब से भी कम है।
इस कारण दो या तीन बच्चों वाले ऐसे परिवारों में परिवार का मुखिया फाइनेंशियली बहुत प्रेशर में होता है, और वो नहीं चाहता कि उसके द्वारा कमाया गया एक भी पैसा वेस्ट हो।
तो अब, पेरेंट्स अपनी कमाई को उसी राह पर खर्च करना चाहते हैं, जो उन्हें सबसे सेफ और सिक्योर नजर आती है। लाखों फैमिलीज के लिए इसका मतलब है मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढाई। अब बच्चे पर प्रेशर बनाया जाता है कि किसी सब्जेक्ट विशेष को वो ले, और पढ़े, बिना ये जाने समझे की बच्चे का इंटरेस्ट है भी या नहीं। और इस आशा से जल्दी टफ कोचिंग की शुरुआत करवाते है कि निवेश किए धन का रिजल्ट मिले। यही समस्या की जड़ है।
ब्राइट साइड
यदि स्टूडेंट का एक्चुअल इंटरेस्ट ही इन सब्जेक्ट्स में है और उसी फील्ड में ही उसे आगे बढ़ना है तो ऐसा करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है, लेकिन प्रॉब्लम तब है जब स्टूडेंट उन सब्जेक्ट्स में अच्छा नहीं, या फिर उस क्षेत्र में करियर बनाने की इच्छा उस में नहीं।
बच्चों पर दबाव
पेरेंट्स को यह समझना होगा कि बिना इंटरेस्ट के किया गया काम स्टूडेंट्स के लिए बोझ होता है, वे उस में कोई इंटरेस्ट नहीं ले पाते। एक दिन के 24 घंटों में से स्कूल के 6 घंटे, और ट्रेवल टाइम के 1.5 घंटों को मिला लें तो बचते हैं काम के 7 घंटे ही। इसका परिणाम ये होता है कि बहुत से स्टूडेंट्स कोचिंग में नींद निकलते दिखते हैं।
तो पेरेंट्स क्या करें
तीन काम
1) अपने बच्चों की गतिविधियों में रुचि दिखाएं। केवल 'हां, 'ना' में उत्तर दिए जाने वाले प्रश्नों के बजाय, थोड़ी ज्यादा बात करें। जैसे, ‘उनका दिन कैसा रहा?’, ‘स्कूल में सबसे बढ़िया चीज क्या हुई?’, ‘उनके दोस्तों के बारे में पूछे’, ‘ऐसे ही गपशप करें’, कई दूसरे मुद्दों जैसे फिल्मों, ट्रेंडिंग खबरों, मौसम आदि की बात करें।
2) उनकी राय का सम्मान करें, भले ही आप उनसे सहमत न हों। इस तरह वे खुल कर आप से बात कर पाएंगे, और आप उनके बारे अधिक सही निर्णय कर पाएंगे।
3) पड़ोसी के बच्चे से अपने बच्चे को तुलना कर न देखें।
यदि बच्चे की रुचि सचमुच इन विषयों को पढ़ने में ही है और उसे और किसी चीज का इंटरेस्ट नहीं है तो फिर एक अर्ली स्टार्ट एक अच्छी स्ट्रेटेजी हो सकती है।
तो करिअर फंडा यह है कि 'बहुत अर्ली ऐज से कोचिंग बच्चे की कैलिबर और इंटरेस्ट पर डिपेंड करता है’।
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