एक हसीन बाला...मधुबाला...आ रही है दिलों की धड़कन बढ़ाने। तो साहेबान-मेहरबान, तैयार हो जाएं, हुस्न की रानी के स्वागत के लिए!' शराब के नशे में डूबी आवाज की इस अनाउंसमेंट के साथ ही स्टेज की भड़कीली रोशनी में कई लड़कियां दिखती हैं। गाढ़े मेकअप के साथ शरीर पर झीने कपड़े। लगभग तीन दशक तक डांस लाइन में काम कर चुकी रेखा रानी कहती हैं- ‘सलवार-सूट पहनी लड़की को कोई नहीं पूछता। कपड़े जितने कम, पैसे उतने ज्यादा।’
कुछ रोज पहले महाशिवरात्रि के मौके पर राजस्थान के बारां में डांसर्स बुलाई गईं। छबड़ा कस्बे में अश्लील गानों पर थिरकती इन लड़कियों के साथ छेड़खानी हुई। इस मामले पर मचा हंगामा शांत भी नहीं हुआ था कि तभी होली पर ऐसा ही एक और वाकया सामने आ गया। दरअसल प्रतापगढ़ जिले में होली उत्सव के दौरान हरियाणवी और रशियन महिला डांसर्स बुलाई गईं और अश्लील गानों पर घंटों डांस कराया गया।
ये वाकये इक्का-दुक्का नहीं। देश के पूर्वी हिस्से में शादियों में अश्लील नाच-गाने की परंपरा पुरानी है। इन वेडिंग डांसर्स की जिंदगी नरक से कम नहीं होती। गहरी लिपस्टिक और लाली-पावडर की मोटी परत के नीचे दर्द की बेहद स्याह कहानियां छिपी होती हैं।
दैनिक भास्कर ने इस दर्द को कुरेदने की कोशिश की ताकि नाचनेवालियों की जिंदगी का ये हिस्सा हम जैसे ‘सभ्य’ लोगों के सामने आ सके। बिहार के रोहतास जिले की रेखा रानी इसमें हमारी मदद करती हैं। 30 सालों तक वेडिंग डांसर रह चुकी रेखा अब शादियों में गाती हैं, क्योंकि नाचने की उम्र बीत चुकी। वे कहती हैं- जिसकी जवानी ढल गई उस औरत की डिमांड खत्म। वो डांस ग्रुप से निकाल दी जाती है, फिर चाहे भूखे मरे।
चलिए रेखा की कहानी, उन्हीं की जुबानी पढ़ते हैं...
सन अस्सी की बात होगी, जब मेरी मां बिजली रानी बिहार में पहचानी जाने लगीं। नाम जैसी ही थिरकन थी उनकी देह में। ऐसा नाचतीं कि बिजली की कौंध भी फीकी पड़ जाए। मां पटना में रहतीं, बुलावे पर दिल्ली भी जातीं। मैं पढ़ाई कर रही थी। बाकी बच्चों की तरह खेलती-कूदती और उन्हीं जैसे सपने देखती, डॉक्टर-टीचर बनने के, लेकिन मैं बाकी बच्चों से अलग थी क्योंकि मेरी मां नाचनेवाली थी। जैसे-जैसे शरीर पर उभार आने लगे, आसपास के लोगों की नजरें बदलने लगीं। जिन्हें चाचा-मामा बोलती थी, वही मुझे औरत की तरह देखने लगे। मैं डरकर मां से चिपक गई, लेकिन बता नहीं सकी।
धीरे-धीरे पढ़ाई छूट गई और मैंने भी डांस शुरू कर दिया। इस लाइन में आई, तब एक के बाद एक कई ताले खुलते चले गए। स्टेज पर भड़कीले डांस करती लड़की की कोई इज्जत नहीं होती। उसे कोई भी छू सकता है, कोई भी कहीं पकड़ सकता है और जिसका मन चाहे, उससे जबर्दस्ती कर सकता है। लड़की मना करे तो या तो उसका काम छिनता है, या फिर जिंदगी।
बीते दिसंबर में भोजपुर में ऐसा ही हादसा हुआ। शादी में डांस करने पहुंची लड़कियों से बारातियों ने रात बिताने की मांग की। उन्होंने मना कर दिया और लौटने लगीं। वो रास्ते में ही थीं कि पीछे से तेज रफ्तार गाड़ी आई और उसमें बैठे लोग दनादन गोलियां चलाने लगे। दो लड़कियां घायल भी हो गईं। वो अब भी अस्पताल में हैं। जितने पैसे थे, सब खर्च हो चुके। लौटेंगी तो लंगड़ाते पैरों या जख्मी चेहरे के साथ शायद ही कोई काम मिले। दो साल पहले चांदनी नाम की एक डांसर की इसी गोली चलाई में मौत हो गई। अब उसके परिवार को पूछनेवाला भी कोई नहीं।
हिफाजत के बंदोबस्त पर रेखा बोलती हैं, मजबूरी में सब नाच रही हैं। कोई नाच के बीच स्टेज पर चढ़ आता है। कोई कमर पकड़ता है, कोई सीना। कोई-कोई चूमने लगता है। तब खुद ही डील करना होता है। गुस्सा करेंगे तो भूखों मरेंगे। शांति से सब मैनेज करते हैं। कभी कुछ बहुत ही गड़बड़ हो जाए तो परदा गिराना होता है लेकिन 'वेडिंग ऑर्गेनाइजर' ऐसा कम ही करते हैं। ऐसा करने से उनका नाम खराब होता है। लोग कहते हैं कि उसकी नचनियाओं के बड़े नखरे हैं। फिर अगली शादी में ‘इनवाइट’ नहीं आता।
लड़कियों की सेफ्टी के लिए अब नया इंतजाम हुआ है। उन्हें लोहे के बड़े-बड़े पिंजरों में बंद कर दिया जाता है, ताकि कोई नोंच-खसोट न सके। पिंजरे के नीचे चक्के लगे होते हैं, जिसे बारात के साथ-साथ घुमाया जाता है। डांस लाइन के नए-पुराने हर ट्रेंड को जानती रेखा बताती हैं कि बारात के साथ जाने वाली लड़कियों के लिए ये चलन निकला।
बाराती अक्सर नशे में होते हैं और भड़कीला डांस करती लड़की को देखते ही उसे पकड़ने की कोशिश करने लगते हैं। डरी हुई लड़कियां अगर डांस रोकेंगी तो बाराती भड़क जाएंगे और पैसे नहीं मिलेंगे, इसलिए ही पिंजरे का ट्रेंड आया।
डांसरों पर दबाव रहता है कि वो भड़कीले गानों पर नाचें और कपड़े भी बदन-दिखाऊ ही पहनें। शुरू-शुरू में सब घबराती हैं। झीने कपड़े पहनने को तैयार नहीं होती हैं, फिर आदत हो जाती है। खुद ही दुकान जाकर चोली और हॉट पैंट खरीदती हैं। जालीदार कपड़े लेती हैं ताकि स्किन दिखे। ट्रांसपरेंट गाउन होता है, पेट दिखता है, बैकलेस होता है। इससे पैसे ज्यादा मिलते हैं। डांस करते हुए स्टेज पर चढ़ आए बाराती या दूसरे लोग ऐसी लड़कियों पर ज्यादा पैसे लुटाते हैं। इन पैसों में से आधा मैनेजर लेता है, बाकी डांसर को मिलता है।
एक बार मैंने एक डांसर को बदन ढंकने को कहा तो उसने तड़ाक से कहा- शरीर ढंकेंगे तो सड़क पर आ जाएंगे। तेजी से बोलकर वो रो पड़ी। मैं चुप हो गई। हम सब एक ही दर्द जीती हैं, लेकिन इतना सब भी उस तकलीफ के आगे कुछ नहीं, जो हमारे बच्चे झेलते हैं। जब सारी दुनिया अपने घर में, अपने लोगों के बीच सोई होती है, डांसर लड़कियां अधनंगी होकर भद्दे म्यूजिक पर अनजान लोगों के सामने ठुमके लगाती हैं। इनमें कई अकेली मांएं भी होती हैं। वो अपने बच्चे को किसी के भरोसे छोड़कर रातभर नाचती हैं। बच्चा दूध के लिए रोता है। बदन पर तेल मालिश नहीं होती। मां का कलेजा दुखता तो है, लेकिन वो कुछ कर भी नहीं पाती।
रेखा लरजती हुई आवाज में कहती हैं- हर मां चाहती है कि उसका बच्चा उस पर गर्व करे, लेकिन हम अपने पेशे को किसी राज की तरह छिपाकर रखती हैं कि कहीं बच्चा नफरत न करने लगे। हम चाहती हैं कि जो गंदगी हमने झेली, वो कभी उनको न छुए।
शादी-ब्याह तो साल के कुछ ही महीने चलता है, फिर बाकी वक्त में डांसर्स क्या करती हैं? सवाल पर रेखा कहती हैं- कोई खुशकिस्मत रहे तो मॉल में काम मिल जाता है। बाकी लड़कियां जगराता या दूसरे त्योहारों पर डांस करने जाती हैं। कहने को ये धार्मिक मौके होते हैं लेकिन नाचनेवालियों को देखकर सबकी नीयत डोल जाती है। आखिर में वही डांस होता है, जो हमारी पहचान बन चुका है।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.