डालमिया सीमेंट की कामयाबी की कहानी:साइकिल से मार्केटिंग, इंप्लॉइज को फ्रीडम; कार्बन फुटप्रिंट घटाया ताकि पॉल्यूशन कम हो

5 महीने पहलेलेखक: कुशान अग्रवाल
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ये पीछे लकी दीवार। बहुत लकी। शुभ शुभ शुभ। वाह वाह वाह। बहुत लकी, बहुत लकी। मेरे को कैसे पता... मैं बिल्डिंग बनाता।

ये ऐड है डालमिया सीमेंट का। वहीं डालमिया सीमेंट जो 1939 से अनगिनत दीवारों को मजबूती दे रहा है।

'Unicorn Dreams with कुशान अग्रवाल' में आज हमारे साथ हैं डालमिया भारत ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर पुनीत डालमिया। बातें डालमिया भारत की जर्नी और कामयाबी के शिखर तक पहुंचने की। तो चलिए शुरू करते हैं…

कुशान: आपने डालमिया भारत सीमेंट कब जॉइन किया था? शुरुआती दिनों में किन चीजों पर फोकस किया?

पुनीत डालमिया: मैंने 1997 में MBA करने के बाद डालमिया भारत जॉइन किया। तब पिताजी का कहना था कि हमारी कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग और एफिशिएंसी बेहतर है। तुम मार्केटिंग पर फोकस करो। इसलिए मैंने मार्केटिंग से शुरुआत की।

पिताजी चाहते थे मेरा ग्राउंड कनेक्ट बढ़िया हो, क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन महंगा होने की वजह से सीमेंट की सेल प्लांट से 300 किलोमीटर एरिया में ही हो पाती है। इसलिए मैं दिल्ली से तमिलनाडु शिफ्ट हो गया, जहां हमारी फैक्ट्री थी। यहां आने के बाद स्कूटर, ट्रेन और साइकिल से अलग-अलग जगहों पर जाकर मार्केट के बारे में जाना। लोगो से मिला।

इससे हमारा ग्राउंड कनेक्ट बना और यह भी पता चला कि किन ग्राहकों को सीमेंट की ज्यादा जरूरत है।

कुशान: डालमिया भारत के ग्रोथ के लिए आपने क्या किया?

पुनीत डालमिया: जब मैंने जॉइन किया था तब कंपनी बहुत प्रॉफिटेबल और मजबूत थी, लेकिन हम छोटे लेवल पर थे। दो साल काम करने के बाद मैंने पिताजी से कहा कि हमें कंपनी का विस्तार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसकी रिपोर्ट बनाओ। जब मैंने रिपोर्ट बनाई तब पता चला कि कंपनी को एक्सपैंड करने के लिए 400-500 करोड़ रुपए लगेंगे।

फिर पिता जी ने मुझसे पूछा कि इस प्रोजेक्ट पर काम कौन करेगा। मैंने बताया कि मैं काम करूंगा। तब मेरे पास अनुभव ज्यादा नहीं था। पिता जी ने कहा कि पहले आप खुद को प्रूव करिए।

उन्होंने मुझे 2 करोड़ रुपए दिए और कहा कि इससे कुछ करके दिखाओ। मैंने अपनी कंपनी छोड़ दी और अपने IIT के कुछ दोस्तों के साथ ‘Jobsahead.com’ नाम से एक कंपनी बनाई। 5 साल काम करने के बाद 2004 में इसे 40 करोड़ में ‘Monster.com’ को बेच दी।

इसके बाद पिताजी ने मुझे काम करने के लिए फ्रीडम दिया। हमने 400-500 करोड़ रुपए इन्वेस्ट किया और कंपनी को एक्सपैंड किया।

कुशान: सीमेंट इंडस्ट्री में बहुत-सी कंपनियां हैं। मार्केट लीडर बने रहने और खुद को भीड़ से अलग रखने के लिए आपने कौन-सी स्ट्रैटेजी अपनाई?

पुनीत डालमिया: सीमेंट इंडस्ट्री में 30-40 कंपनियां हैं। मैंने देखा कि हर कंपनी के पास सिमिलर टाइप का सीमेंट प्लांट है। मैंने रियलाइज किया कि मार्केट में ब्रांड और डिस्ट्रीब्यूशन बनाने के लिए हम थोड़ा बहुत ही अलग कर सकते हैं। इससे भी 5-6% से ज्यादा प्रीमियम नहीं मिलेगा।

मैंने कंपनी का कल्चर बेहतर करने और बेस्ट लोगों को अट्रैक्ट करने पर जोर दिया। मैंने अपने इम्प्लॉइज पर ट्रस्ट किया, उन्हें फ्रीडम दिया, जैसा मुझे पिता जी ने फ्रीडम दी थी। ताकि वे अपना फुल पोटेंशियल दे सकें। लोग इससे ही सीखते हैं। इस वजह से अच्छे-अच्छे लोगों ने बड़ी-बड़ी कंपनियां छोड़कर डालमिया ग्रुप को जॉइन किया, क्योंकि उन्हें यहां जॉब सैटिस्फैक्शन मिला।

सीमेंट इंडस्ट्री में कार्बन ज्यादा जनरेट होता है। हम चाहते थे कि पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे। इसलिए हमने कार्बन फुटप्रिंट लो रखने पर फोकस किया।

कुशान: डालमिया सीमेंट अब जेपी सीमेंट को एक्वायर कर रहा है। इसके पीछे आपका मेन मोटिवेशन क्या है?

पुनीत डालमिया: अभी डालमिया सीमेंट का फुटप्रिंट साउथ, ईस्ट और नॉर्थ-ईस्ट में है। हम चाहते थे कि भारत में जहां-जहां ग्रोथ हो रही है, हम उन मार्केट्स को कवर कर सकें। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में बहुत ग्रोथ दिख रहा है। हम इस ग्रोथ को कैप्चर करना चाहते हैं। इसलिए हमारी स्ट्रैटेजी में जेपी के प्लांट्स फिट बैठते हैं।

कुशान: डालमिया भारत ने सरकार के ‘अडॉप्ट ए हेरिटेज’ स्कीम के तहत रेड फोर्ट को ‘अडॉप्ट’ किया था। इसके पीछे क्या स्ट्रैटेजी थी, इसमें आगे और क्या करने वाले हैं आप?

पुनीत डालमिया: जब हम किसी दूसरे देश के मॉन्युमेंट को देखते हैं, तो उसका बहुत ही खास एक्सपीरिएंस होता है। जैसे इजिप्ट का पिरामिड है। वहां मॉडर्न तकनीकों से बहुत अच्छे म्यूजियम्स, लाइट साउंड शो जैसी चीजें बनाई गई हैं।

मैं दिल्ली में ही पला-बढ़ा, लेकिन बचपन में एक बार से ज्यादा रेड फोर्ट नहीं गया था। जब गवर्नमेंट ने ये स्कीम निकाली, तब मुझे लगा कि दिल्ली वालों और टूरिस्ट्स को रेड फोर्ट हेरिटेज में उसी तरह का एक्सपीरिएंस मिलना चाहिए, जैसा कि विदेशों में मिलता है।

यह संस्कृति मंत्रालय के साथ पहला पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप है। हमने इसमें तीन चीजें बनाई हैं-

  • एक मॉडर्न तकनीक से बना म्यूजियम, जिसका नाम ‘रेड फोर्ट सेंटर’ है।
  • रेड फोर्ट की सामने की दीवार पर लेजर शो, जिसका नाम ‘मातृ भूमि' है, जिसमें भारत की 5000 साल की यात्रा को दिखाया गया है।
  • 10 जनवरी को हम एक नया लाइट एंड साउंड शो लॉन्च कर रहे हैं, जिसका नाम ‘जय हिंद’ है। इसमें लाइव एक्टर्स के साथ लाल किले के इतिहास और भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मॉडर्न तरीके से दिखाया गया है। इसमें अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज दी है।

कुशान: क्या कभी ऐसा वक्त आया जब आपको लगा हो कि बस अब बहुत हो गया? यदि हां तो उस मुश्किल वक्त से निकलने के लिए आपने क्या किया?

पुनीत डालमिया: जीवन और काम में हमेशा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। मुझे लगता है कि जिस चीज में आपको खुशी मिलती है, जो आपका पैशन है, वो चीज आपको कभी बोझ नहीं लगती। मुझे अपना काम बहुत पसंद है और मैं हर सिचुएशन को सीखने के नजरिए से देखता हूं। मुझे लगता है कि बाहर के हालात चाहे जैसे भी हों, अंदर से खुद को कमजोर नहीं करना चाहिए।

इसलिए मुझे ऐसा कभी लगा नहीं कि बस अब बहुत हो गया। हां, ऐसा जरूर लगा कि चलो और अच्छा करते हैं, सीखते है, हार्ड वर्क करते हैं।

कुशान: सीमेंट इंडस्ट्री में कौन-कौन सी मुश्किलों को फेस करना पड़ता है। बिजनेस के लिहाज से इसमें आने वाले दिनों में किस तरह की संभावनाएं हैं?

पुनीत डालमिया: सीमेंट इंडस्ट्री में कोल, डीजल और पावर बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता। इनकी लागत पर हमारा कंट्रोल नहीं है। इसी तरह एनर्जी फ्यूल कॉस्ट पर भी हमारा कंट्रोल नहीं है। रूस-यूक्रेन जंग की वजह से इन चीजों के दाम बढ़ गए हैं। इसके बाद भी हमने कस्टमर्स पर बोझ नहीं बढ़ाया। इससे हमारा प्रॉफिट भी कम हो गया है।

आने वाले दिनों में दो संभावनाएं दिखती हैं-

  • हम एक वर्टिकली इंटीग्रेटेड मॉडल बनाएं, जिसमें सारी चीजें हमारे पास हों और हम पूरी सप्लाई चेन को कंट्रोल कर पाएं। हालांकि, यह आसान नहीं है। इसमें बहुत अधिक इन्वेस्ट करना पड़ेगा। साथ ही दुनिया बहुत स्पेशलिस्ट होती जा रही है। कोई दूसरा, जो उस चीज पर फोकस करता है, हमसे बेटर काम कर सकता है।
  • सीमेंट दुनिया का 7% CO2 (कार्बन डाई ऑक्साइड) जनरेट करता है। डालमिया का CO2 फुटप्रिंट, दुनिया की सभी सीमेंट कंपनियों में से सबसे कम है। हम सीमेंट इंडस्ट्री में पहली कंपनी हैं, जिसने अनाउंस किया है कि 2040 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाएंगे।

कुशान: आजकल कुछ कंपनियां ईकोफ्रेंडली सीमेंट ला रही हैं। इसको लेकर आपका क्या प्लान है?

पुनीत डालमिया: हमारा कार्बन फुटप्रिंट इस इंडस्ट्री में सबसे कम है। हमारे ज्यादातर प्रोडक्ट ईकोफ्रेंडली हैं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। अमूमन एक टन सीमेंट बनाने में 0.7 टन CO2 जनरेट होता है। वहीं डालमिया का एक टन सीमेंट बनाने में 0.46 टन CO2 जनरेट होता है। यह करीब 30% कम है।

हमारी एक प्रोडक्ट डेवलपमेंट टीम है, जो लगातार साइंटिफिक रिसर्च करती रहती है। ताकि हम और कम कार्बन का सीमेंट बनाएं और रिन्यूएबल एनर्जी पर ज्यादा काम कर सकें। मसलन हम जो भी पावर कंज्यूम करते हैं, उसमे कोयला बहुत जलता है। इसे कम करने के लिए हम सोलर पावर पर काम कर रहे हैं।

कुशान: भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर अभी दूसरे देशों से कैसे अलग है? क्या यह तेजी से डेवलप हो रहा है?

पुनीत डालमिया: पहले भारत में दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सड़कें, एयरपोर्ट्स और रेलवे की स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन अब इस पर तेजी से काम हो रहा है। पहले के मुकाबले भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर काफी बेहतर हुआ है।

गांव-गांव तक सड़कें बन गई हैं। हाइवे बेहतर हो गए हैं। पहले सड़कें बारिश में खराब हो जाती थीं, लेकिन अब इसे सीमेंट से बनाया जा रहा है। जिससे लंबे समय तक सड़कें खराब नहीं होती हैं। छोटे शहरों में भी अब एयरपोर्ट्स बन रहे हैं।

मैं कुछ दिन पहले खजुराहो गया था, वहां बहुत अच्छा एयरपोर्ट है। मध्य प्रदेश के रीवा में भी एयरपोर्ट बन रहा है। बाकी शहरों में भी ऐसे काम चल रहे हैं। इससे रूरल कनेक्टिविटी बढ़ेगी।

इसी तरह रेलवे लाइन्स भी हर जगह पहुंच गई हैं। बड़े शहरों में मेट्रो बन रहे हैं। इस वजह से दुनिया भारत को मैन्युफैक्चरिंग पावर हाउस के रूप में देख रही है। कंपनियां इन्वेस्टमेंट बढ़ा रही हैं। इससे आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में जॉब्स भी क्रिएट होंगे।

कुशान: आप देश के यंग एंटरप्रेन्योर्स को क्या पर्सनल और बिजनेस टिप्स देना चाहेंगे?

पुनीत डालमिया: पर्सनल लेवल पर एक सुझाव देना चाहता हूं कि हमेशा पॉजिटिव सोच रखें। उसी से आपको अच्छी दिशा मिलेगी और जो आप करेंगे उससे बेहतर रिजल्ट मिलेगा। निगेटिव थॉट से एनर्जी बिखर जाती है। उन्हीं लोगों से दोस्ती रखें जो पॉजिटिव सोचते हों।

जहां तक बिजनेस टिप्स की बात है, मैंने अपने 25 साल के एक्सपीरिएंस में देखा है कि बुद्धि या IQ से ज्यादा जरूरी हिम्मत और साहस का रोल होता है। खुद को कम्फर्ट जोन से निकालें। थोड़ा रिस्क लें। जिस चीज को करने में डर लग रहा हो, उसमें खुद को पुश करें।

कुशान: आपकी हॉबीज क्या है? आप फ्री टाइम में क्या करना पसंद करते हैं?

पुनीत डालमिया: खाली वक्त में मुझे अपनी फैमिली के साथ टाइम स्पेंड करना पसंद है। अपने बच्चों को मैं ज्यादा वक्त देता हूं। मुझे स्पिरिचुअल किताबें पढ़ने का शौक है। इसके साथ ही जब मुझे समय मिलता है तो बैडमिंटन, टेबल टेनिस जैसे स्पोर्ट्स खेलना पसंद करता हूं।

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