'इसलिए हम आजाद हैं’ सीरीज की पांचवीं कहानी में पढ़िए दांडी यात्रा और नमक के काले कानून का अंत...
6 अप्रैल 1930 की सुबह गांधीजी सोकर उठे, तो उनके चेहरे पर दांडी यात्रा की 26 दिनों तक 386 किलोमीटर चलने की थकान नहीं थी। गुजरात के दांडी नाम के छोटे से गांव में देशभर से आए करीब 50 हजार लोग मौजूद थे। सभी की निगाहें 61 साल के इस बुजुर्ग पर टिकी हुईं थीं। गांधी उठे और अपनी तेज चाल में समुद्र के तट की तरफ निकल गए। उनके साथ हजारों लोग भी पीछे-पीछे चल दिए।
अंग्रेज पहले से ही तैयार थे। उन्होंने देर रात ही कई मजदूरों को लगाकर समुद्र तट पर जमा नमक और रेत को मिलाकर कीचड़ बना दिया था। ये देखकर गांधीजी के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आई। उधर जीभूभाई केशवलजी नाम के एक शख्स ने पहले ही कुछ नमक छिपा कर रख दिया था। इसी से बापू ने एक चुटकी नमक उठाया और कहा- ‘’इसके साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला रहा हूं।’’ एक रात पहले ही गांधीजी सैफी विला में ठहरकर उन्हें ‘हिंदू नेता’ कहने वालों को भी जवाब दे चुके थे।
समुद्र किनारे दांडी गांव वही है, लेकिन अब नमक नहीं
जब मैं दांडी पहुंचता हूं तो ये गांव अब किताबों और तस्वीरों वाले दांडी से एकदम अलग नजर आता है। सबसे पहले मैं उस जगह पहुंचता हूं, जहां एक चुटकी नमक से गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार की बुनियाद में नमक डाल दिया था। अब भौगोलिक स्थिति बदल गई है। अब यहां नमक नहीं बनता है।
बीते दिनों नवसारी में आई बाढ़ के चलते समुद्र तट पर भी काफी गंदगी नजर आती है। हालांकि स्थानीय लोग बताते हैं कि ये सब प्राकृतिक है। आमतौर पर इस जगह का अच्छे से रखरखाव किया जाता है। इसके लिए दांडी गांव के लोगों ने ही एक समिति बनाई हुई है, जो टूरिस्टों से चंदा लेती है और उस पैसे का इस्तेमाल बीच की साफ-सफाई और अन्य कामों में करती है।
1882 में इंडियन सॉल्ट एक्ट बना, नमक बनाने पर 6 महीनों की जेल
1835 में नमक पर टैक्स लगाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने नमक आयोग बनाया। आयोग ने सरकार को सलाह दी कि भारत में बनने वाले नमक पर टैक्स लगाना चाहिए, ताकि ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे वाले भारत में ब्रिटेन के लिवरपूल में बने नमक का निर्यात बढ़े।
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छीनकर सीधे अपने हाथ में ले लिया। 1882 में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन सॉल्ट एक्ट बनाकर नमक बनाने, उसके ट्रांसपोर्टेशन और कारोबार पर पूरी तरह कब्जा कर लिया।
इस कानून के तहत नमक बनाने पर 6 महीने की जेल, संपत्ति जब्त और भारी जुर्माना लगाया जाता था। बॉम्बे सॉल्ट एक्ट की धारा 39 के मुताबिक नमक पर टैक्स वसूलने वाले अधिकारी किसी घर या परिसर में घुसकर तलाशी ले सकते थे। मतलब ये कि नमक सिर्फ सरकारी डिपो में ही बनाया जा सकता था।
1922 में भारत में ब्रिटिश सरकार ने नमक पर टैक्स दोगुना कर दिया
नवंबर 1922 को बासिल ब्लैकेट ब्रिटिश भारत में वित्त सदस्य नियुक्त हुए, तो उन्होंने नमक पर लगने वाला टैक्स दोगुना कर दिया। तबके भारत की विधायिका (Legislative Assembly of India ) ने इस प्रस्ताव को नकार दिया, लेकिन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने स्पेशल पावर का इस्तेमाल कर इस विधेयक को पास कर दिया।
तब भारत में एक मन यानी करीब 40 किलो नमक की कीमत 10 पैसे होती थी। उस पर सरकार 20 आने यानी 1.25 रुपए टैक्स वसूलती थी।
गांधी के लिए दांडी के बोहरा मुसलमानों ने अपने गुरु का घर खोला
दांडी यात्रा पर किताब लिखने वाले 93 साल के धीरूभाई बताते हैं कि गांधीजी 5 अप्रैल 1930 को दांडी के समुद्र तट के पास सैफी विला पहुंचे थे। तब गांव में 460 लोग रहते थे। गरीबी बहुत थी। गांव वालों की चिंता यही थी कि वे गांधीजी का स्वागत कैसे करेंगे।
गांव के ही बोहरा समुदाय के मुसलमानों ने अपने गुरु सैयदना ताहिर सैफुद्दीन का बंगला गांधीजी के लिए खोल दिया था। गांधीजी ने एक रात सैफी विला में ही गुजारी। इससे उन्होंने उन लोगों को मैसेज भी दिया था जो कहते थे कि वे मुस्लिम गांवों में नहीं जाते, नहीं ठहरते। आज भी सैफी विला में गांधीजी के इस्तेमाल किए गए बर्तन रखे हुए हैं।
गांधी के साथ थे गुजरात से लेकर तमिलनाडु तक के सत्याग्रही
बापू 12 मार्च 1930 को 78 लोगों के साथ दांडी यात्रा पर निकले थे। इन सभी लोगों को गांधीजी ने खुद इंटरव्यू लेकर चुना था। इनकी उम्र तकरीबन 16 से 25 साल थी। इनमें 32 गुजरात प्रांत के, 6 कच्छ के, 4 केरल के, 3 पंजाब के, 2 बंबई के और सिंध, नेपाल, तमिलनाडु, आंध्र, उत्कल, कर्नाटक, बिहार व बंगाल से एक-एक सत्याग्रही शामिल थे।
यात्रा के दौरान गांधीजी ने 11 नदियां पार की थीं। उन्होंने सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था।
उधर ब्रिटिश सरकार 12 से 31 मार्च तक देशभर में 95,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी। इनमें सी. राजगोपालचारी और पंडित नेहरू भी शामिल थे। बापू ने 6 अप्रैल को दांडी में नमक कानून तोड़ा और इसी के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हो गई। धीरे-धीरे देश के बाकी हिस्सों में भी आंदोलन फैल गया। ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 में गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते से खत्म हो गया।
गांधी पर नजर रखते-रखते अंग्रेज अफसर ही बन गया गांधी का भक्त
धीरूभाई पटेल इस यात्रा से जुड़ा एक और किस्सा सुनाते हैं। वे बताते हैं कि दांडी यात्रा के दौरान बापू पर नजर रखने के लिए एक क्लास-1 अधिकारी को तैनात किया गया था। उसका पूरा नाम तो मुझे याद नहीं, लेकिन सरनेम देसाई था।
देसाई को दांडी यात्रा के 6 महीने बाद रिटायर होना था, लेकिन वो गांधीजी से इतना प्रभावित हुआ कि उससे पहले ही इस्तीफा दे दिया। देसाई को लगने लगा कि उन्होंने गांधी पर नजर रखकर पाप किया है।
दांडी के लोग आज भी गांधीवादी, चुनाव से नहीं सर्वसम्मति से चुने जाते हैं सरपंच
दांडी के लोग आज भी गांधीवादी आदर्शों के मुताबिक ही जिंदगी बिता रहे हैं। यहां हर तरह की सुविधाएं हैं। पक्की सड़कें हैं। अच्छे स्कूल-कॉलेज हैं। गांव में पंचायत चुनाव कभी नहीं होते। लोग सर्वसम्मति से सरपंच नियुक्त कर लेते हैं।
दांडी में रहने वाली शकुंतलाबेन पटेल बताती हैं कि गांधीजी के यहां पहुंचने से पहले पुलिस गांव के लोगों को धमकाने आती थी, लेकिन गांववालों ने अपने घरों के दरवाजे आंदोलनकारियों के लिए खोल दिए थे। यहां पहुंचे 50 हजार लोगों के खाने-पीने का इंतजाम किया गया था। जिसके चलते इलाके के 22 गांवों से 240 लोगों को पुलिस ने जेल भेज दिया।
दांडी के सत्याग्रह संग्रहालय में आज भी बनता है नमक
दांडी में अब प्राकृतिक नमक नहीं बनता, लेकिन राष्ट्रीय स्मारक में कृत्रिम रूप से नमक तैयार किया जाता है। ताकि टूरिस्ट देख सकें कि नमक बनता कैसे है। टूरिस्ट यहां से नमक भी खरीदकर ले जाते हैं।
भारत सरकार ने 2019 में सैफी विला के ठीक सामने समुद्र तट के किनारे एक शानदार राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक का निर्माण भी करवाया है। स्मारक में दांडी यात्रा की मूर्तियां हैं। इसके अलावा गांधी के आत्मनिर्भरता के विचारों के मुताबिक सोलर ट्री भी लगाए गए हैं। यहां रोजाना प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाता है।
पटेल और नेहरू नहीं थे तैयार, लेकिन बापू ने उठा लिया था झोला
गांधीजी ने जब नमक सत्याग्रह का फैसला किया तो नेहरू, पटेल समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इसका विरोध किया था। उनका मानना था कि अंग्रेज गांधीजी को फिर से जेल में डालने का मौका तलाश रहे हैं। हालांकि, गांधीजी की जिद के आगे दोनों को झुकना पड़ा। सरदार पटेल ने ही दांडी मार्च का नेतृत्व किया।
बापू दो बैग लेकर साबरमती आश्रम से निकले थे। एक थैले में उनके रोजाना के जरूरत का सामान था और दूसरे थैले में जेल का सामान रखा था। उन्होंने कहा था- मुझे कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। हो सकता है कि मैं जीवित भी न रहूं, लेकिन ये सत्याग्रह पूरा होना चाहिए।
गांधी-इरविन समझौते से समुद्र किनारे वालों को मिला नमक बनाने का हक
5 मार्च 1931 को लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मलेन हुआ और गांधी-इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ, जिसे 'दिल्ली पैक्ट' भी कहते हैं। इसके साथ ही सविनय अवज्ञा आंदोलन खत्म कर दिया गया।
अंग्रेजों ने जो शर्तें मानी:
कांग्रेस ने जो शर्तें मानी:
रेफरेंस:
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