ए लवली डे फॉर क्रिकेट, ब्लू स्काई एंड जेंटल ब्रीज
द इंडियंस आर अवेटिंग नाउ, टू प्ले द वेस्टइंडीज ...
द क्रिकेटर्स कम ऑन द फील्ड, दे ऑल लुक वेरी स्मार्ट ...
ईरापल्ली प्रसन्ना, जीजीभॉय एंड वाडेकर ...
इट वाज गावस्कर,
द रियल मास्टर,
जस्ट लाइक अ वॉल,
वी कुडन्ट आउट गावस्कर एट ऑल, नॉट एट ऑल,
यू नो द वेस्टइंडीज कुडन्ट आउट गावस्कर एट ऑल ...
संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा में स्वागत!
मुझे बताइए क्या क्रिकेट की दुनिया में कभी ऐसा हुआ है कि आपका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी आपसे बुरी तरह हार जाने के बाद आपके सम्मान में गाना बना दे?
ये एक बार हुआ है, सिर्फ एक बार - सुनील गावस्कर के सम्मान में, वेस्ट इंडीज में, जब भारत 1971 में टेस्ट सीरीज 1-0 से जीत गया।
1971 का साल भारत के क्रिकेट प्रेमियों के दिलों-दिमाग पर एक सुनहरी छाप की तरह है। भारतीय क्रिकेट टीम ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड दोनों को उनके ही देश में हराया, पहली बार। ऊपर लिखे शब्द केलिप्सो सिंगर विलार्ड हैरिस ने भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए पांच टेस्ट मैचों की सीरीज पर बनाए गए गाने के हैं। 1962 में वेस्टइंडीज में 0-5 से हारने के बाद, भारत ने 1971 में यह सीरीज 1-0 से जीती।
लिटिल मास्टर जिन्दाबाद।
सुनील गावस्कर के क्रिकेटिंग जीवन से 5 बड़े सबक
1) अपनी कमजोरी अपने दिमाग में होती है, हरा दो उसे: सुनील गावस्कर की कम हाइट उनके लिए एक बड़ी समस्या बन सकती थी, लेकिन उन्होंने उसे अपनी स्ट्रेंथ बना लिया। कैसे? उन्होंने बाउंसर गेंदों के लिए बॉम्बे में खूब प्रैक्टिस की, और जब वे वेस्ट इंडीज के मैदान पर उतरे, तो उस प्रैक्टिस ने उनका साथ दिया। हालांकि, उनके अपने शब्दों में 'इंडीज के खतरनाक गेंदबाज सबसे भयंकर बाउंसर फेंकते थे, लेकिन मैं डटा रहा'। ये मेन्टल बैलेंस सुनील को 'लिटिल मास्टर' बना गया।
2) दर्द के आगे जीत है: आखिरी टेस्ट में, सुनील भयंकर दांत के दर्द से गुजर रहे थे, और दवाई भी लेना मना था (नींद आ जाती)। उस दर्द को भुलाकर, सुनील ने सीरीज का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया, और आज भी उस दर्द को याद करते हैं!
3) उपलब्ध संसाधनों में परफॉर्म करना: दौरे की शुरुआत से ही भारतीय टीम कई प्रॉब्लम्स से गुजर रही थी। सुनील गावस्कर की उंगली में चोट थी, जिस कारण वे सीरीज का पहला मैच नहीं खेल पाए थे। गुंडप्पा विश्वनाथ भी चोटिल थे। टीम के सबसे सीनियर खिलाडी पटौदी ने 'पर्सनल कारणों' से टीम के साथ जाने से मना कर दिया था। और जमैकन एयरपोर्ट अधिकारियों की गलती से भारतीय खिलाड़ियों को उनके प्लेइंग किट पहले गेम से कुछ घंटे पहले ही मिल पाए, जिससे शुरुआत में काफी दिक्कतें आई। लेकिन किसी भी बाधा ने सुनील का मनोबल नहीं तोड़ा।
4) बिग गेम माइंडसेट: आप कितनी भी नेट-प्रैक्टिस कर लें, आखिर में आपको मैदान में हजारों के सामने परफॉर्म कर के ही नाम कमाना पड़ता है। उसके लिए, आपका माइंड एकदम 'बिग गेम' के लिए तैयार होना चाहिए। परीक्षा हाल में भी, ऐसे ही, आपको परफॉर्म करना पड़ता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने कितने मॉक टेस्ट दिए हैं।
5) इतिहास गया, वर्तमान हाथ में है, भविष्य उसी से लिखा जाएगा: अजीत वाडेकर, सुनील गावस्कर, एकनाथ सोलकर, दिलीप सरदेसाई, सलीम दुरानी आदि ने कैसे इंडीज को उनके ही देश में हरा दिया इसकी कहानियां सुनते-सुनते मैं बड़ा हुआ हूं। उस समय वेस्ट इंडीज को वेस्टइंडीज में हराना 'मिशन इम्पॉसिबल' था। उस दौरे तक, 1932 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने के बाद से, भारत ने 116 मैचों में से केवल 15 मैच जीते थे। विंडीज की तरफ गैरी सोबर्स, रोहन कन्हाई और क्लाइव लॉयड जैसे दिग्गज थे। भारत के लिए विदेशी जमीन पर खेलना हमेशा से चुनौती रही है। एक नए कैप्टन अजित वाडेकर की लीडरशिप में एक ऐसा खिलाड़ी जिसे बड़ी उम्मीदों के साथ भारतीय टीम में लिया गया था, वो सुनील गावस्कर था। 21 वर्षीय सुनील के पास कोई अंतरराष्ट्रीय अनुभव नहीं था, पर उन्होंने अपना टेस्ट डेब्यू इस तरह किया, जैसा किसी ने देखा न था। अंतिम टेस्ट मैच में, उन्होंने 124 और 220 रन बनाए और उस समय प्रत्येक पारी में शतक बनाने वाले केवल दूसरे भारतीय बल्लेबाज बने। पांच मैचों की सीरीज में उन्होंने 154.80 की औसत से 774 रन बनाए। 'यू नो द वेस्ट इंडीज कुडन्ट आउट गावस्कर एट ऑल' लाइन अमर हो गई!
तो संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा यह है कि अपने अंदर छुपे लिटिल मास्टर को हमें बाहर निकालना चाहिए और कमजोरी को लेकर रोने के बजाय उसे स्ट्रेंथ बनाना चाहिए।
कर के दिखाएंगे!
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