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ग्राउंड रिपोर्टकुत्तों ने बेटों को नहीं मारा, नुकीली चीज के घाव:एक फैमिली के 2 बच्चों की मौत बनी मिस्ट्री, न हमला देखा न सुना

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: वैभव पलनीटकर
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दिल्ली के वसंत कुंज में 3 दिन में एक ही परिवार के दो बच्चों की मौत हो गई। माना गया कि उन पर आवारा कुत्तों ने हमला किया था। अब ये केस उलझता जा रहा है। बच्चों की मां सुषमा ने आरोप लगाया है कि कुत्ते के काटने से मौत की बात झूठ है, उन्हें नुकीली चीज से मारा गया था।

उधर, घटना को 10 दिन गुजर गए, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं आई है। दिल्ली की महापौर शैली ओबेरॉय ने भी इस मामले में शक जाहिर किया है।

वसंत कुंज इलाका काफी पॉश माना जाता है। चमचमाती चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर, ऊपर से गुजरती मेट्रो, आलीशान घर और बड़े-बड़े मॉल यहां की पहचान है। यहीं एक सिंधी बस्ती भी है। वसंत कुंज के बड़े-बड़े घरों में काम करने वाले ज्यादातर लोग यहीं रहते हैं।

इन्हीं में सुषमा भी हैं, जो तीन बच्चों के साथ रहती थीं। सुषमा के 7 साल के बेटे आनंद की 10 मार्च और 5 साल के बेटे आदित्य की 12 मार्च को लाश मिली। पुलिस का दावा है कि दोनों की मौत कुत्तों के काटने से हुई है।

सुषमा के तीनों बेटे- 9 साल का अंश (बाएं), 5 साल का आदित्य (बीच में) और 7 साल का आनंद (दाएं)। इनमें आदित्य और आनंद की मौत हुई है।
सुषमा के तीनों बेटे- 9 साल का अंश (बाएं), 5 साल का आदित्य (बीच में) और 7 साल का आनंद (दाएं)। इनमें आदित्य और आनंद की मौत हुई है।

मां, जिसने तीन दिन में दो बेटे खो दिए
मैं इस झुग्गी में पहुंचा, तब सुबह के 11 बजे थे। बस्ती में सन्नाटा था, लेकिन पास ही एक झुग्गी के कमरे में 8-10 बच्चे खेल रहे थे। मैंने बच्चों से पूछा- बाहर तो खाली मैदान है, धूप भी नहीं, तो अंदर क्यों खेल रहे हो? जवाब मिला- ‘पीछे जंगल में कुत्ता है, वो काट लेगा। हमारे माई-बाप ने बाहर निकलने से मना किया है।’

बच्चों से मिलने के बाद मैं सुषमा के घर पहुंचा। सुषमा अपने कच्चे मकान के पीछे पड़ी खाली जगह में एक कबाड़ हो चुके सोफे पर बैठी थीं। मैंने झिझकते हुए बच्चों का जिक्र किया, वे बोलना शुरू करती हैं- ‘मेरे पति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। मैं ब्यूटी पार्लर में काम करती हूं। 10 मार्च को सुबह करीब 9 बजे बजे थे, हम नाश्ता-पानी कर चुके थे।'

'मेरा बीच वाला (मंझला) बेटा आनंद घर के सामने खेल रहा था, कुछ देर बाद वो नहीं दिखा। मुझे लगा कि मेरी दीदी के यहां खेलने गया होगा। मैंने दीदी को फोन लगाकर पूछा कि बाबू आपके यहां है क्या? उन्होंने कहा कि आनंद तो यहां आया ही नहीं। सुनते ही मेरा जी झक्क से उड़ गया। फिर उधर से मेरी बड़ी बहन और इधर से मैं दोनों चिल्लाते हुए पूरी बस्ती में आनंद को ढूंढने लगे।’ वे चुप हो जाती हैं।

मारे गए बच्चों की मां सुषमा कहती हैं, 'यहां बस्ती में पूरा-पूरा दिन मेरे बच्चे खेलते रहते थे, लेकिन कभी डर तक नहीं लगा। अचानक कुत्ते इतने खतरनाक कैसे हो गए।
मारे गए बच्चों की मां सुषमा कहती हैं, 'यहां बस्ती में पूरा-पूरा दिन मेरे बच्चे खेलते रहते थे, लेकिन कभी डर तक नहीं लगा। अचानक कुत्ते इतने खतरनाक कैसे हो गए।

‘घाव ऐसे थे जैसे पेचकस से घोंपा हो, कुत्ते के काटने के नहीं लगे’
पास ही बैठी बच्चों की ताई संजू बताती हैं, ‘मुझे करीब 11 बजे फोन आया। हमने 3 बजे तक खूब ढूंढा, उसके बाद 100 नंबर पर कॉल किया। पुलिस आई, उन्होंने करीब आधे घंटे से ज्यादा ढूंढा। हम लोग जहां ढूंढ चुके थे, वहीं पर पुलिस को उसकी लाश मिली। उसके घाव काले पड़ चुके थे, लग रहा था कि कई घंटे पहले ये सब हुआ होगा।’

12 मार्च को दूसरे बेटे की लाश मिली, कुत्तों की आवाज नहीं सुनी
पहले बेटे की कहानी खत्म हुई तो सुषमा ने फिर बोलना शुरू किया, 12 मार्च को सुबह करीब 8 बजे का वक्त था। सुबह-सुबह पुलिसवाले मंझले बेटे के केस के सिलसिले में पूछताछ करने आए थे। मैं उनसे बात करने लगी, तभी छोटा बेटा आदित्य शौच के लिए जंगल की तरफ चला गया।

10 मिनट भी नहीं हुए थे और जंगल की तरफ गए कुछ लोगों ने बताया कि वहां आदित्य की लाश पड़ी है। लाश के आसपास कुछ कुत्ते भी दिखे थे, लेकिन हमने कुत्तों को काटते नहीं देखा। आदित्य की कमर के पास के कपड़े फटे हुए थे, कमर का मांस निकल गया था। मैं वहां पहुंची तो वो जिंदा था, उसके शरीर में हलचल थी। पुलिसवालों ने बताया कि रास्ते में उसने दम तोड़ा।’

'कैसे मान लूं कि कुत्तों के काटने की वजह से मौत हुई'
बच्चों की मां सुषमा पुलिस के दावों पर शक जाहिर करती हैं। वे कहती हैं- ‘मैं 6 महीने से यहां रह रही हूं, काम पर भी जाती हूं, मैंने कभी कुत्तों के आतंक या उनके इतने खूंखार होने के बारे में नहीं सुना। कुत्ते के काटने का कोई मामला यहां नहीं हुआ।’

सुषमा के घर के सामने एक NGO भी काम करता है। लोग बताते हैं कि इस NGO में पढ़ाई होती है और खाना बांटा जाता है। इस जगह पर हमेशा 70-80 बच्चे मौजूद रहते हैं।

‘हमें कब मिलेगी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, क्यों हो रही देरी’
सुषमा कहती हैं- ‘अगर सब कुछ साफ है तो बच्चों की मौत के इतने दिन बाद भी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट क्यों नहीं दी गई। मैंने दोनों बेटों की लाश देखी है। ऐसा लग रहा था कि किसी नुकीली चीज से मारा गया है। छोटे वाले बेटे को तो मैंने अपने हाथों में उठाया था, उसके पेट से आंतें तक बाहर आ गई थीं। वो घर से निकला और 15 मिनट के अंदर इतना सब कैसे हो गया, हमें नहीं समझ आ रहा।’

‘कुत्तों ने एक ही परिवार के दो बच्चों को मारा, ये चौंकाने वाला है’
सुषमा की जेठानी संजू बताती हैं ‘मैं यहां कई साल से रह रही हूं। यहां आसपास सैकड़ों बच्चे खेलते हैं, लेकिन इस तरह का कुछ पहले कभी नहीं हुआ। पिछले 15 साल में मैंने कुत्तों के जानलेवा हमले के बारे में नहीं सुना। मुझे ये बात सबसे ज्यादा हैरान कर रही है कि तीन दिन में परिवार के दो बच्चों को कुत्तों ने कैसे मार दिया। अगर कुत्ते हमलावर हो भी गए हैं, तो किसी और पर हमला क्यों नहीं हुआ।’

झुग्गी में शौचालय नहीं, इसलिए जंगल में जाते हैं लोग
बस्ती में रह रहे 30 साल के शिवा ढोल बनाने और बजाने का काम करते हैं। वे बताते हैं, ‘झुग्गियों में शौचालय नहीं है, इसलिए पीछे जंगल में शौच के लिए जाना होता है। वहां कुछ कुत्ते हैं। इस घटना के बाद से लोगों के मन में खौफ आ गया है।’

पास की एक झुग्गी में कुछ बच्चे खेल रहे थे, मैंने पूछा कि क्या आसपास के कुत्ते काटने को दौड़ते हैं, तो जवाब मिला कि हां कभी-कभार काटते हैं। जंगल की तरफ कई सारे कुत्ते हैं, इसलिए वहां जाने में डर लगता है।

कुत्ते के नाम पर असल कातिल ना छूट जाए, जांच जरूरी है: PFA
पीपुल्स फॉर एनिमल (PFA) की टीम ने भी वसंत कुंज की रंगपुरी शिव बस्ती में अपनी फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजी थी। PFA की ट्रस्टी अंबिका शुक्ला ने बताया ‘वहां जो घटना हुई है और जो बताई जा रही है, वो बिल्कुल अलग है। मां ने खुद बताया है कि उन्होंने बच्चों के शरीर पर ना तो कोई निशान देखा, न किसी कुत्ते को नोंचते हुए देखा।'

'10 मार्च को पहले बच्चे का शव मिला था, तब तक कुत्ते के काटने की बात नहीं आई थी। 12 मार्च को दूसरे बच्चे का शव मिला, तब कुत्ते के हमले की बात कही गई। इस मामले की अच्छे से जांच की जरूरत है। ऐसा न हो कि कुत्ते के नाम पर असली कातिल बच निकले।’

SHO बोले- हमें कुछ भी कहने के लिए मना किया है
वसंत कुंज साउथ के SHO संजीव कुमार से मैंने इस केस की जांच के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘इस मामले में हमें कुछ भी कहने से मना किया गया है। DCP साहब ही बात करेंगे।’

इसके बाद मैंने साउथ वेस्ट दिल्ली के एडिशनल DCP राजीव कुमार से बात की। उन्होंने बताया कि ‘हम अभी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल एक डॉक्टर बाहर गए हैं, उनके लौटने पर ही पीएम रिपोर्ट आएगी। शुरुआती जांच में कुत्ते के काटने का पता चला है। हमने केस में कई लोगों से पूछताछ कर ली है, पास में कोई CCTV कैमरा नहीं है, आस-पास जो भी CCTV कैमरे हैं, उनकी फुटेज भी खंगाल चुके हैं, लेकिन कोई लीड नहीं मिली है।’

पुलिस का दावा- बॉडी पर दिखने वाले निशान 100% कुत्ते के काटने के
दिल्ली पुलिस के अधिकारी ने बताया कि ‘बॉडी पर दिखने वाले निशान 100% कुत्ते के काटने के ही हैं। पिछले कुछ दिनों में MCD ने वहां कुत्तों के लिए काफी कार्रवाई की है। हमें पहले बच्चे की मौत के मामले में कोई सबूत नहीं मिला, इसलिए हमने धारा 302 के तहत केस दर्ज किया है। दूसरे केस में हमें दो प्रत्यक्षदर्शी मिले हैं। दूसरे वाले बच्चे की मौत हुई, तो हमारे सब इंस्पेक्टर महेंदर दूसरे केस की जांच के सिलसिले में उसी इलाके में थे। तभी उन्होंने कुत्तों की और बच्चों के चिल्लाने की आवाज सुनी।’

डॉग बाइट के मामले साउथ दिल्ली में सबसे ज्यादा
पिछले तीन साल के दौरान दिल्ली में डॉग बाइट के कुल 44,444 मामले MCD ने रिकॉर्ड किए हैं। सबसे ज्यादा केस साउथ दिल्ली में हैं, ईस्ट दिल्ली दूसरे नंबर पर है। इसी दौरान साउथ, नॉर्थ और ईस्ट MCD ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, वह यूनिफाइड MCD की रिपोर्ट से बिल्कुल अलग है। 2020 में तब की साउथ MCD के सेंट्रल, वेस्ट, नजफगढ़ और साउथ जोन को मिलाकर कुत्तों के काटने के 10,383 मामले आए।

इस दौरान नॉर्थ MCD के 6 जोन में कुत्तों के काटने के 7,157 मामले दर्ज किए। इसके अलावा ईस्ट MCD के दो जोन से 17 हजार मामले दर्ज किए गए थे, ये MCD के आंकड़ों से काफी ज्यादा हैं। दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या जानने के लिए पहली बार 2012 में डॉग सेंसस कराया गया था। तब दिल्ली में कुत्तों की संख्या करीब 2 लाख पाई गई थी।

बीते 10 साल से दोबारा उनकी गिनती नहीं की गई। पिछले 5 साल में कुत्तों के काटने से दिल्ली में 37 लोगों की मौत हुई है।

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