‘’मैं तब पहली क्लास में थी। मां और नानी बाहर गई थीं। पापा ने घर में अकेला देख मुझे दबोच लिया। मेरे कपड़े उतारकर गंदी हरकतें करने लगे। मैं दर्द से चीख रही थी…पापा प्लीज छोड़ दो, प्लीज छोड़ दो पापा, लेकिन उन्होंने मुझे बेड के नीचे पटक दिया। पुरजोर जबरदस्ती की। जितना हो सका मैंने हाथ-पांव चलाने की कोशिश की, फिर बेहोश हो गई। होश आया तो अस्पताल में थी, हर अंग पर जख्म थे, पट्टी लगी थी।
अब मैं 20 साल की हूं, लेकिन वो खौफनाक मंजर नहीं भूल पाती। जब कभी अकेले किसी मर्द को देखती हूं, कांपने लगती हूं। जब अपने बाप ने ही मुझे नोचा, तो दूसरों पर भरोसा करने की हिम्मत कहां से जुटाऊं?’’
इतना कहते-कहते देश की एक नामी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली शालिनी बच्चों की तरह बिलख-बिलख कर रोने लगती हैं। शालिनी की तरह ही देश में हर तीसरी रेप विक्टिम के पीछे उनके अपने ही भाई-बाप या फैमिली मेंबर हैं।
इनमें से ज्यादातर बच्चियां लोक-लाज और फैमिली प्रेशर के चलते विरोध नहीं कर पातीं, विरोध करती भी हैं, तो घर वाले ही उसे दबा देते हैं या उन पर यकीन ही नहीं करते। ये कोई सुनी-सुनाई बात नहीं है, सरकारी आंकड़े चीख-चीख कर ऐसा बताते हैं। आज ब्लैकबोर्ड सीरीज में कहानी इन्हीं बच्चियों की…
दिल्ली का एक पॉश इलाका। लंबी-लंबी सिसकियों के बीच टूटते हुए शब्द और गालों को भिगोते आंसू। 20 साल की शालिनी जब बात करती हैं, तो लगता है कोई 6-7 साल की बच्ची है, लेकिन जैसे ही अपनी कहानी बयां करती हैं, मेरे शरीर में सिहरन पैदा होने लगती है।
शालिनी बताती हैं, 'मुझे ना वो साल याद है ना अपनी उम्र। बस इतना याद है कि बड़ी बहन छठी क्लास में थी और मैं फर्स्ट क्लास में। मेरी छुट्टी बड़ी बहन से दो घंटे पहले हो जाती थी। मां और नानी भी जॉब करती थीं। जब मैं घर लौटती तो पड़ोस की आंटी मेरा दरवाजा खोल देती थीं।
उस दिन स्कूल से आने के बाद मैं दाल खा रही थी। तभी पापा अंदर आए। उन्हें देखकर मैं सहम गई, क्योंकि वे मम्मी को बहुत मारते थे। उन्होंने मुझे गले लगाया। मेरा शरीर सहलाने लगे। कहने लगे अब तुम्हारी मां को नहीं मारूंगा।
इसके बाद वे मुझे गलत तरीके से टच करने लगे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद मेरे कपड़े उतारने लगे। अपने भी कपड़े उतार दिए। मैं गिड़गिड़ा रही थी, जोर-जोर से रो रही थी, लेकिन वे नहीं रुक रहे थे। उन्होंने वॉशरूम की टंकी खोल दी। टीवी की आवाज तेज कर दी। टीवी पर शायद गाने चल रहे थे। उस शोर में मेरी चीखें दब गईं।
वे मुझे उठा-उठाकर पटक रहे थे। शायद मार देना चाहते थे। फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता। बस इतना याद है जब आंख खुली तो अस्पताल में थी। वहां मम्मी, नानी और कुछ पुलिस वाले थे। पुलिस मुझसे सवाल पर सवाल कर रही थी, लेकिन मैं सिर्फ रो रही थी।
उस दिन के बाद मैंने खेलना छोड़ दिया। हर टाइम गुमसुम बैठी रहती थी। पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगता था। इसकी वजह से मैं क्लास फोर्थ में फेल हो गई। आज भी मैं इयरफोन में गाने नहीं सुनती। कहीं से पानी गिरने की तेज आवाज आती है, तो डर जाती हूं।
शालिनी कुछ देर रुकती हैं। खुद को संभालने की कोशिश करती हैं। लंबी सांस लेकर कहती हैं- ‘उस दिन के बाद मैंने उसका चेहरा कभी नहीं देखा। वह जाहिल इंसान है। मैं उससे नफरत करती हूं। अफसोस है कि उसे सजा नहीं दिला पाई।’
मैंने पूछा सजा क्यों नहीं मिली उसे?
शालिनी जवाब देती हैं, ‘वह आदमी टीचर था। मां को पढ़ाता था। दोनों में प्यार हो गया और दोनों ने शादी कर ली। कुछ साल बाद पता चला कि वो पहले से शादीशुदा है। तब तक मेरी बड़ी बहन पैदा हो गई थी और मैं गर्भ में थी।
इसके बाद दोनों का रिश्ता खराब होने लगा। वह आदमी मुझे पेट में ही मार देना चाहता था, पर मां उससे अलग रहने लगी। उन्होंने उस आदमी से तलाक ले लिया। मुझे आज भी समझ नहीं आता कि मां ने उस दरिंदे को जेल क्यों नहीं भिजवाया।
जो मेरे साथ हुआ, मैं नहीं चाहती किसी और बच्चे के साथ हो। मैंने डायरी के पन्नों पर अपना गुस्सा निकालने की कोशिश की। कई डायरियां भर दीं, फिर लगा मेरे शब्द मुझे फिर से उस दुनिया में ले जाते हैं, जहां से मैं भागना चाहती हूं।
अब मैं डायरी नहीं लिखती, कॉलेज के असाइनमेंट लिखती हूं, ताकि कुछ बन सकूं, कुछ कर सकूं। ऐसे लोगों को कम से कम कानून के रास्ते सजा दिला पाऊं।'
इसके बाद मुझे पांच साल की बच्ची मीनू से मिलने जाना था, जिसके पिता ने यौन शोषण किया था। दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में जब मैं उस बच्ची के घर पहुंची, तो वह दुनिया से बेखबर अपने खिलौनों से खेल रही थी। जैसे ही उसके सामने उसके पापा का जिक्र आया, वह डर गई। उसके आंखों से आंसू टपकने लगे।
मां की गोद में सिर छुपाते हुए मीनू कहती है, ‘पापा नहाते हुए वॉशरूम का दरवाजा खोल देते थे। अपने कपड़े उतार देते थे। मुझे गलत तरीके से छूते थे। बहुत बुरा लगता था मुझे।’
बच्ची ने स्कूल की टीचर से ये बात बताई। तब से उसकी मां अपने तीन बच्चों के साथ अलग रहती है, लेकिन बच्ची के मन से पिता की दहशत नहीं निकली है। वो आदमी बार-बार बच्ची को उठा ले जाने की धमकी देता रहता है।
इसी डर से सितंबर के बाद से बच्ची ने स्कूल भी जाना बंद कर दिया है। ये पूछने पर कि वो स्कूल क्यों नहीं जाती, तो वो तुतलाती आवाज में कहती हैं, ‘वो (पिता का नाम) उठाकर ले जाएगा।’
मीनू की मां का पहला पति शराबी था। उससे उन्हें एक बेटा था। कुछ साल बाद उन्होंने उसे छोड़ दिया और इस आदमी से शादी कर ली। तब उसने वादा किया था कि वह उस बच्चे की भी देखभाल करेगा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
मीनू की मां बताती हैं, ‘वह आदमी मेरे बेटे का भी यौन शोषण करता था, लेकिन मैं चुप रही। जब वह बेटी के साथ गंदी हरकतें करने लगा, तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। पहले मैंने सोचा कि मुझे जीना ही नहीं है, फिर बच्चों का चेहरा देखकर मैं उससे अलग हो गई। तीन बच्चे हैं, समझ नहीं आता कैसे उनकी देखभाल करूंगी। वह आदमी आज भी धमकी देता है कि बेटी को उठा ले जाऊंगा।’
इन दो लड़कियों से मिलने के बाद मेरी मुलाकात एक ऐसी महिला से हुई, जिसने बचपन में हुई यौन हिंसा के बारे में खुलकर लिखा है। उनकी कविता का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वह महिला हैं शोभा अक्षरा।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद की रहने वाली शोभा का यौन शोषण उनके रिश्ते के भाई ने किया था। तब वो 7वीं में थीं, लेकिन आज भी उस घटना को याद करके सिहर उठती हैं।
शोभा बताती हैं, ‘तब मैं एक रिश्तेदार के घर गई थी। दस साल बड़े कजिन भाई के अलावा घर पर कोई नहीं था। उनसे मेरी देखभाल करने के लिए कहा गया।
मैं खुश थी कि भैया के साथ टाइम स्पेंड करूंगी। उस दिन मैं उनके साथ खेल रही थी।
खेल-खेल में उन्होंने मुझे छूना शुरू किया। मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा है। जब मेरे शरीर को झिंझोरा तो मुझे दर्द हुआ। मैंने उन्हें धक्का भी दिया, लेकिन अपने शरीर से अलग नहीं कर पाई। बाद में घर वालों को ये बात बताई, लेकिन उन्होंने बात दबा दी। उल्टा मुझे ही डांटने लगे।
अब मैं इस पर खुलकर लिखती और बोलती हूं, ताकि इस दर्दनाक दौर से गुजरने वाली लड़कियों को आगे आने का हौसला मिले। जब तक इस बारे में बात नहीं होगी, लड़कियां खुलकर नहीं बोलेंगी, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।’
शोभा बताती हैं, ‘मैं टूट चुकी थी। हमेशा उस हादसे से निकलने की कोशिश करती थी, लेकिन नहीं निकल पाती थी। मैं ये सोचती तो थी कि मुझे पढ़ना है, लेकिन वो घटना मुझ पर हावी होती रहती थी।
लड़कियों को घर की औरतें ही बताती हैं कि पति और भाई की इज्जत उनकी इज्जत है। वो औरतें जो जानती हैं कि बेटी के साथ पति, बेटे या भाई ने गलत किया, लेकिन कुछ बोलती नहीं हैं। मेरी मां ने मुझे बहुत हिम्मत दी, लेकिन कार्रवाई की बात पर वो भी पीछे हट गईं।’
दिल्ली पुलिस के 2020 के एक डेटा के मुताबिक 44% मामलों में रेपिस्ट विक्टिम के फैमिली मेंबर या रिलेटिव्स थे। इनमें से 26% विक्टिम के परिचित, 12% भाई या पिता और 12% दोषी विक्टिम के पड़ोसी थे। ये वे आंकड़े हैं, जिनमें विक्टिम ने हिम्मत करके केस दर्ज करवाया। ज्यादातर मामले तो बाहर ही नहीं आ पाते हैं। ऐसे मामलों में विक्टिम पर इतना प्रेशर होता है कि वह या तो चुप बैठ जाती है या उसे जबरन चुप करा दिया जाता है।
नोट- शालिनी और मीनू बदले हुए नाम हैं।
अब ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये दो स्टोरीज भी पढ़िए
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2. पति जेल ना जाए, इसलिए देवर से संबंध बनाने पड़े:बहनोई संग हलाला से मना किया तो तलाक दिया; ये कैसा तीन तलाक कानून
तीन तलाक कानून बने तीन साल हो गए, लेकिन इस तरह के तलाक खत्म नहीं हो रहे। पति को जेल जाने से बचाने के लिए महिलाओं को कभी देवर से हलाला करना पड़ रहा, तो कभी बहनोई से। इसके बाद भी उनका शौहर उन्हें रखने को तैयार नहीं है। कई महिलाओं का हाल आधी विधवाओं की तरह हो गया है। ना वे पति के साथ रह सकती हैं, ना ही उन्हें कोई मेंटेनेंस मिल रहा। (पढ़िए पूरी खबर)
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