अंदाज कुछ अलग है मेरे सोचने का, सबको मंजिल का शौक है और मुझे सही रास्तों का
- अज्ञात
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सभी स्कूल टीचर्स और स्टूडेंट्स के लिए संदेश- अच्छी मूवीज से हम अच्छी-अच्छी बातें सीख सकते हैं, है ना? तो आइए, आज मैं आपसे ऐसी ही एक मार्मिक मूवी की बात करूंगा।
पीटर वियर द्वारा निर्देशित डेड पोएट्स सोसायटी (Dead Poets’ Society) 1989 में रिलीज हुई एक इंस्पायरिंग फिल्म है जो एक रूढ़िवादी स्कूल (वेल्टन एकेडमी) और एक नए इंग्लिश टीचर - मिस्टर कीटिंग के बारे में है। 1959 के टाइम पीरियड पर सेट यह एक फिक्शनल फिल्म है। कई अन्य पुरस्कारों के अलावा फिल्म ने बाफ्टा अवार्ड फॉर बेस्ट फिल्म और बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीन प्ले का ऑस्कर अवार्ड भी जीता है।
अत्यधिक अनुशासन बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता
मिस्टर कीटिंग अपने छात्रों को इंडिपेंडेंट थिंकर (स्वतंत्र विचारक) बनाने के उद्देश्य से अपरंपरागत टीचिंग मेथड्स के साथ प्रयोग करना चाहते हैं, जिन्हें स्कूल के कड़क हेडमास्टर गेल नोलान पसंद नहीं करते। इसी प्रयास में टीचर कीटिंग अपने एक स्टूडेंट (नील पेरी) जो वास्तव में एक्टर बनना चाहता है – लेकिन पिता उन्हें देश के सबसे अच्छे कॉलेज में पढ़ने भेजना चाहते हैं – को एक्टर बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस बात पर नील पेरी के पिता उसे वेल्टन एकेडमी से निकाल कर एक मिलिट्री एकेडमी में एडमिशन करवा देते हैं। इस बात से निराश नील अपने पिता की रिवाल्वर से ही आत्महत्या कर लेता है। स्कूल के कड़क हेडमास्टर प्रयास करते हैं कि नील की आत्महत्या का दोष मिस्टर कीटिंग पर मढ़ा जाए।
डेड पोएट सोसाइटी मूवी के पांच जरूरी लेसन
1) विषय के रूप में 'हयूमैनिटीज' का महत्व: साइंस और मैथ्स के दीवाने स्कूल्स, पेरेंट्स और स्टूडेंट्स के लिए ये फिल्म हयूमैनिटीज सब्जेक्ट्स (भाषा, इतिहास, राजनीति-शास्त्र) का महत्व बताती है। फिल्म में टीचर कीटिंग अपने स्टूडेंट्स को बताते हैं कि इंडस्ट्री, बैंकिंग, मिलिट्री इत्यादि सभी जीवन को आसान, आरामदायक और सुरक्षित बनाते हैं, लेकिन 'कविता, सौंदर्य, रोमांस, प्रेम ... ये वो चीजें हैं जिनके लिए हम जिंदा रहना चाहते हैं।' ये चीजे हमारे लाइफ से हटा दी जाएं तो जिंदगी के मायने ही खत्म हो जाएंगे।
2) छात्रों को किसी विशेष करिअर स्ट्रीम के लिए मजबूर करना: अपने सपनों पर कार्य न करने के लिए जीवन बहुत छोटा है - हम में से कई अपने सपनों को पूरा करने के लिए सही समय का इंतजार करते हैं। लेकिन जीवन उतना बड़ा नहीं है। स्कूल्स और पेरेंट्स को ये बात समझनी चाहिए कि लाइफ स्टाइल, फाइनेंशियल सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है अपनी पसंद का काम करते हुए खुश रहना। बीच का रास्ता निकला जा सकता है कि किस तरह हम अपनी पसंद का काम करते हुए एक अच्छी, सेफ और रेस्पेक्टफुल जिंदगी जिएं।
3) बच्चों के साथ कम्युनिकेशन (बातचीत): बातचीत एक-दूसरे को समझने की चाभी होती है - एक आदर्श छात्र और बेटे, नील पेरी को पता चलता है कि उसका जुनून कहीं और है और यह उसके पिता की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है, लेकिन जब उनके पिता नहीं मानते, तो इसके गंभीर परिणाम हुए। नील एक ऐसा निर्णय लेता है जो सभी को तबाह कर देता है। यह समझदारी से ना किए गए कम्युनिकेशन के कारण हुआ। स्टूडेंट्स को अपनी बात अपने पेरेंट्स और स्कूल के सामने रखने में हिचकना नहीं चाहिए। स्टूडेंट्स ऐसा तभी कर पाएंगे जब उन्हें सपोर्टिंग माहौल मिले।
4) लीक से हटकर सोचना-नजरिए में बदलाव: कभी-कभी हम कितनी भी कोशिश कर लें, हम पाते हैं लाइफ में वैसा नहीं हो रहा जैसा चाहा था। दृष्टिकोण में बदलाव के लिए मिस्टर जॉन कीटिंग अपने स्टूडेंट्स को मेज के ऊपर खड़े हो कर आस-पास देखने को कहते हैं। नजरिए में बदलाव आपके पूरे जीवन को बदल सकता है। वही पुरानी सांसारिक चीजों को अलग नजरिए से देखने की कोशिश करें। क्योंकि कभी-कभी हम जिस बदलाव की तलाश कर रहे होते हैं वह कोई नया काम, नया शहर या नया व्यक्ति नहीं होता है; कभी-कभी यह बदलाव वह होता है जिसे हमें अपने अंदर लाने की जरूरत होती है कि हम दुनिया को कैसे देखते हैं।
5) एक्शन जरूरी है: टीचर कीटिंग अपने छात्रों से कहते हैं 'Seize the day', अर्थात आज ही है जो सब कुछ है। बात करना, सपने देखना ठीक है, लेकिन अंत में आपको सफलता तो एक्शन से ही मिलेगी। जब तक आप विचारों को क्रियान्वित नहीं करेंगे तो बात करना, योजना बनाना और रणनीति बनाना तो रिजल्ट देने से रहे। स्कूल्स और पेरेंट्स को स्टूडेंट्स में एक्शन (कार्रवाई) को प्रोत्साहित करना चाहिए।
फिल्म देखने पर अन्य सबक जैसे अपने दोस्तों के प्रति वफादारी, अधिक आत्मविश्वासी होना और उच्च आत्मसम्मान रखना सीखना, राजनीति और दोषारोपण के नुकसान आदि भी लिए जा सकते हैं।
तो आज का करिअर फंडा यह है कि एक अंधी दौड़ में पैसे वाले करियर के पीछे भागना मूर्खता है। और हां, कविताएं खूब पढ़िए।
कर के दिखाएंगे!
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