पंजाब के लुधियाना से करीब 35 किलोमीटर दूर एक गांव है पक्खोवाल, जहां 55 साल की रुपिंदर कौर ‘कुलराज ऑर्गेनिक फार्मिंग’ चलाती हैं। लंबा-पतला शरीर, उम्र की वजह से हाथों में हल्की झुर्रियां, लेकिन फुर्तीली इतनी कि मेरे पहुंचने पर अपना फार्म दिखाने के लिए खुद चल पड़ती हैं।
कभी सेब के बगीचे को दिखाती हैं तो कभी गुलाब की पंखुड़ियों को अपनी उंगलियों से सहलाती हैं। टहनियों से सूखे पत्तों को अलग करते हुए वो कहती हैं, ‘फल ऐसी चीज है जिसे हर व्यक्ति खाता है। बिना केमिकल वाला मिले तो सोने पर सुहागा। 4 साल पहले गार्डनिंग शुरू की थी। फिर फलों और प्लांट्स को बेचने के अलावा इन फलों को प्रोसेस कर प्रोडक्ट बनाने लगी।’
शुरुआत 3 बीघे जमीन से की थी। आज लगभग 15 बीघे में अलग-अलग वैराइटी के प्लांट्स की फार्मिंग और फलों से बने प्रोडक्ट को बेचकर सालाना 10 लाख की कमाई कर रही हूं। खेत में करीब 200 महोगनी के पेड़ हैं। जो 10 साल बाद तैयार हो जाएंगे। इसकी कीमत प्रति पेड़ 15 लाख रुपए तक है। लोगों के घरों, उनके छतों पर गार्डन सेटअप भी करती हैं।
रुपिंदर पहले हरियाणा के हिसार में रहती थीं, लेकिन कुछ साल पहले एक्सीडेंट में भाई की मौत होने के बाद लुधियाना अपने मायके पूरे परिवार के साथ रहने लगीं।
रुपिंदर अपने लहलहाते फार्म को दिखाते हुए कहती हैं, ‘भाई की मौत के बाद लुधियाना शिफ्ट हो गई। पति कॉलेज में प्रोफेसर थे, जो कुछ दिनों पहले ही रिटायर हुए हैं। तीन बच्चे हैं, जो स्टडी के बाद अलग-अलग राज्यों में सेटल हो गए, जिसके बाद खुद से फार्मिंग करने के बारे में सोचा।’
खेत की मेढ़ पर चलते हुए रुपिंदर शुरुआती दिनों का किस्सा बताती हैं। कहती हैं, ‘मैं घर में अकेले बैठे-बैठे बोर होने लगती थी। मायके की 75 बीघा जमीन थी, जिसे ठेके पर दे रखा था, लेकिन जब खुद खेती करने के बारे में सोचा, तो सारी जमीन वापस ले ली।’
तो आपने क्या 75 बीघा जमीन में अकेले खेती करनी शुरू कर दी? मानों मैं उनकी उम्र को चुनौती दे रही हूं। रुपिंदर मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘नहीं, 3 बीघे में गार्डनिंग शुरू की थी, बाकी में ऑर्गेनिक फार्मिंग। शुरुआत तो गुलाब की खेती से की थी, फिर उसकी पंखुरियों से गुलकंद बनाने लगी।’
बातचीत करते-करते हम दोनों खेत के बीच पहुंचे। सेब, अनार जैसे 40 से ज्यादा फलों के पेड़ चारों ओर दिखाई दे रहे हैं। रुपिंदर कहती हैं, ‘खेती के बारे में कुछ भी पता नहीं था। इंटरनेट को खंगालना शुरू किया। कौन-सा प्लांट कहां मिलेगा। किसकी मार्केट डिमांड ज्यादा है, इन चीजों को समझा। तीन लाख रुपए हसबेंड से लेकर फार्मिंग की शुरुआत की थी।’
वो कहती हैं, ‘गुलाब की खेती के बाद हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से सेब के 250 पौधे मंगवाए थे, लेकिन पहली फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। एक साल तक खुद से एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया।’
खेत में अलग-अलग वैराइटी के प्लांट्स लगाए। इसके बीच में जो खाली जगह बची थी, उसमें सरसों, दलहन, रागी, मूंगफली, काले-सफेद चने, गन्ना, बाजरे, गेहूं जैसे फसलों की खेती शुरू की।
ऑर्गेनिक तरीके से बासमती चावल और काले गेहूं की खेती करने लगी। जिसका मार्केट में प्रति क्विंटल कीमत 12 हजार से 25 हजार रुपए तक है। रुपिंदर कौर टिशू खजूर की भी खेती करती हैं, जिसके एक पेड़ से करीब एक क्विंटल खजूर निकलता है और इसकी मार्केट कीमत 15 हजार प्रति क्विंटल है।
वो कहती हैं, 'राजस्थान से ड्रैगन फ्रूट और टीशू खजूर, उत्तर प्रदेश से बेर, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से कीनू, बाबूगोशा, नाशपति, मौसमी, केला, नींबू, पपीता, हिमाचल से एवोकाडो, अंजीर, आंवला, बेल, कटहल और कैलिफोर्निया से बादाम के पौधे मंगवाए।'
रुपिंदर जिस वक्त मुझसे बात कर रही हैं, कई महिलाएं उनके खेतों में काम कर रही हैं। वो कहती हैं, ‘सेब की पहली फसल बर्बाद होने से मैंने बहुत कुछ सीखा। दरअसल, उस वक्त ना तो मैं ट्रेंड थी और ना ही वर्कर। दरअसल, प्लांट में पेस्टिसाइड नहीं डालने की वजह से फसल बर्बाद हो गई, जिसके बाद मैंने खुद से ऑर्गेनिक खाद बनाने की ठानी। गाय, भेड़, बकरियां पालनी शुरू की। काम करने वाले वर्कर्स को ट्रेनिंग देने लगी। सबसे बड़ी दिक्कत ट्रेंड वर्कर के मिलने की ही होती है।’
रुपिंदर फलों के प्लांट्स बेचने के अलावा फलों को प्रोसेस कर उससे प्रोडक्ट भी तैयार कर बेचती हैं। वो कहती हैं, ‘जब लगा कि फलों को सीधे मार्केट में बेचने से ज्यादा इससे प्रोडक्ट को बेचना फायदेमंद है, तो मैं प्रोडक्ट बनाकर बेचने लगी। गुलाब के फूलों से गुलकंद के अलावा इसके सूखे पत्तों से चाय पत्ती, लेमन ग्राम, गिलोय, चाय मसाला, हरी मिर्च से पेस्ट और पाउडर, आंवला कैंडी, आम पापड़ जैसे प्रोडक्ट बनाकर बेचती हूं।'
रुपिंदर कहती हैं, 'अब तो ये मेरा पैशन और प्रोफेशन, दोनों बन गया है। शुरुआत में जो जानने वाले थे। जैसे- टेलर वाला, कपड़े वाला, दोस्त जिनकी मैं कस्टमर थी, उन्हें ही अपना सामान बेचना शुरू किया। फिर धीरे-धीरे लोगों को ऑनलाइन और ऑफलाइन कॉन्टैक्ट कर पौधे, प्रोडक्ट बेचना शुरू किया। आज इतनी डिमांड है कि मैं सप्लाई नहीं कर पाती हूं।
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