पहला भारतीय जो हार्वर्ड स्टूडेंट यूनियन का प्रेसिडेंट बना:12 साल की उम्र तक स्कूल नहीं गया , 16 साल में मां को खोया

8 महीने पहलेलेखक: नीरज झा
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कुछ रोज पहले की दो खबर पढ़िए...

  • पटना के प्रेम कुमार को अमेरिका के एक कॉलेज ने 2.5 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप दी। प्रेम दलित समुदाय से आते हैं और उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। पिता कभी स्कूल नहीं गए।
  • तेलंगाना की श्रेया लक्काप्रगदा को अमेरिका के एक कॉलेज ने 2.7 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप दी। श्रेया किसान परिवार से आती हैं। मां अपने भाई के यहां रहकर उन्हें पढ़ा रही थीं।

गरीब, सामान्य परिवार से दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में पढ़ने जा रहे ऐसे दर्जनों बच्चों के उदाहरण गूगल करने पर आपको मिल जाएंगे। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे संभव हो रहा है?

दरअसल, इस तरह के बच्चों को ट्रेनिंग देकर टॉप यूनिवर्सिटीज में स्कॉलरशिप पर दाखिला दिलवाने का काम कर रही है ‘डेक्सटेरिटी ग्लोबल ग्रुप’। इसके फाउंडर और CEO हैं शरद विवेक सागर।

पिछले दिनों शरद ने इस फोटो के साथ सोशल मीडिया पर हाई स्कूल में मॉनिटर से लेकर हार्वर्ड में प्रेसिडेंट बनने तक के सफर का जिक्र किया, तो एक बार फिर से उनकी चर्चा होने लगी।
पिछले दिनों शरद ने इस फोटो के साथ सोशल मीडिया पर हाई स्कूल में मॉनिटर से लेकर हार्वर्ड में प्रेसिडेंट बनने तक के सफर का जिक्र किया, तो एक बार फिर से उनकी चर्चा होने लगी।

2020-21 में शरद को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन का प्रेसिडेंट चुना गया था। 50 से ज्यादा देशों के 1200 से अधिक स्टूडेंट्स ने शरद को वोट दिया। हार्वर्ड के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी भारतीय को प्रेसिडेंट चुना गया।

शरद कहते हैं, 'बिहार से होने की वजह से कभी ताना तो नहीं सुनना पड़ा, लेकिन कई लोग कहते थे- अरे! एक बिहारी की इतनी अच्छी इंग्लिश कैसे हो सकती है? मैं उनसे कहता था- नहीं, बिहार के लोग भी अच्छी अंग्रेजी बोल सकते हैं।

शरद के नाम दर्जनों रिकॉर्ड दर्ज हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलने से लेकर फोर्ब्स 30 अंडर 30 और कौन बनेगा करोड़पति (KBC) में बतौर एक्सपर्ट शामिल होने तक। ये उपलब्धियां शरद ने 30 साल से कम उम्र में हासिल की हैं।

हालांकि इस सफर में शरद पर गमों का पहाड़ भी टूटा। वे बताते हैं, 16 साल की उम्र में मां को खो दिया। जब 24 साल का हुआ, तो भाई की भी मौत हो गई। वो MIT बोस्टन जाने वाले बिहार के पहले स्टूडेंट थे। उन्हें दूसरा 'रामानुजन' भी कहा जाता है।

शरद को भी लोग 21वीं सदी के ‘विवेकानंद’ के तौर पर जानते हैं। पूछने पर मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है। हां… उन 100 लोगों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा हूं, जिन्हें लेकर स्वामी विवेकानंद कहते थे कि मुझे ऐसे 100 लोग दे दो, मैं दुनिया का कायाकल्प कर दूंगा।'

शरद स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस जैसे विचारकों को फॉलो करते हैं। उनके घर की दीवारों पर इन विचारकों के विचार लिखे हैं।
शरद स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस जैसे विचारकों को फॉलो करते हैं। उनके घर की दीवारों पर इन विचारकों के विचार लिखे हैं।

शरद अपनी कहानी में लौटते हैं। बताते हैं, देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव जीरादेई में पैदा हुआ। यह सीवान जिला में आता है। पापा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की ग्रामीण शाखा में थे। गांव में उस वक्त कोई अच्छा स्कूल नहीं था, तो 12 साल की उम्र तक किसी स्कूल में एडमिशन नहीं हुआ। ​​​​​​

मम्मी-पापा को मेरी पढ़ाई-लिखाई की चिंता होती थी, इसलिए घर पर ही न्यूजपेपर, मैगजीन आने लगा। न्यूजपेपर एक दिन पुराना होता था।

पापा की पोस्टिंग बिहार के छपरा, सीवान, मीरगंज… जैसे शहरों में होती रहती थी। जब 12 साल का था, तो मम्मी के साथ पटना शिफ्ट हो गया। इसके बाद मेरा स्कूल में एडमिशन हुआ। ये 2002-03 की बात है। उसके बाद 12वीं तक की पढ़ाई यहीं हुई। पापा हफ्ते में एक दिन मिलने के लिए पटना आते थे।

जब हाईस्कूल में था तो सोशल सब्जेक्ट्स, क्विज, डिबेट्स में काफी दिलचस्पी होने लगी। न्यूजपेपर में पढ़ता था कि कोई बच्चा विदेश पढ़ने जा रहा है, किसी ने इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन जीता है, तो मैं सोचता था कि ये बच्चे विदेश पढ़ने कैसे गए होंगे? क्या प्रोसेस होता है? लगता था कि मैं भी इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन के लिए जाऊं। इन सारी चीजों को मैं डायरी में लिख लेता था।

2008 का साल बीत रहा था। विदेश में पढ़ने के लिए जाने की तैयारी करने लगा। कॉम्पिटिशन्स में पार्टिसिपेट करने लगा। ज्यादातर बच्चे बड़े घरों के ही होते थे। सामान्य बच्चों को टॉप यूनिवर्सिटी, कॉलेज का नाम तक पता नहीं होता था, तैयारी करना तो दूर की बात है।

16 साल की उम्र में शरद ने ‘डेक्सटेरिटी ग्लोबल ग्रुप’ नाम से एक NGO की शुरुआत की थी।
16 साल की उम्र में शरद ने ‘डेक्सटेरिटी ग्लोबल ग्रुप’ नाम से एक NGO की शुरुआत की थी।

वो कहते हैं, सामान्य बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मिले। इस पर काम करने लगा, लेकिन अगले साल यानी 2009 में मां का निधन हो गया। वो मुझे कहा करती थीं- देश के लिए, समाज के लिए काम करूं। यही सोचकर मैं अपने नए सफर पर निकल पड़ा। घर पर खाना बनाने के लिए मेड आने लगी।

2012-13 में 12वीं के बाद अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी से 4 करोड़ की स्कॉलरशिप मिली। वहां ग्रेजुएशन करने चला गया। 2016 में 160 साल के इतिहास में पहला इंडियन ग्रेजुएट स्पीकर बना। कह सकता हूं कि मेरी और मेरे NGO की ग्रोथ एक साथ हुई।

मुझे आज भी याद है कि जब पापा को यूनिवर्सिटी में बुलाया गया था, तो जवाब में उन्होंने कहा- मैं बिहार से ही अपने बेटे को बोलते हुए सुन लूंगा। ये भी दिलचस्प है कि मैंने 200 से ज्यादा कॉम्पिटिशन जीते हैं। 6 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ कि मैं स्टेज पर हूं और पापा सामने बैठे हों।

मैं इस मामले में सौभाग्यशाली था कि घर वालों ने कभी ये नहीं कहा कि तुम डॉक्टर बनो, इंजीनियर बनो। बस इतना कहते थे कि शिक्षा से अपने समाज के लिए जो कर सकते हो, करो। विचार बड़ा होता है, तभी काम बड़ा हो सकता है। अपने काम से बड़ा कोई नहीं है। सचिन तेंदुलकर मास्टर ऑफ क्रिकेट हैं, लेकिन वो हमेशा सर्वेंट ऑफ क्रिकेट रहे हैं।

2016 का साल था। मेरा ग्रेजुएशन कम्प्लीट हो चुका था। उधर उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का दूसरा कार्यकाल खत्म हो रहा था। उन्होंने दुनियाभर के 200 यंग लीडर्स को बुलाया था, जिसमें मैं भी एकमात्र भारतीय था। हमारी 90 मिनट की बातचीत हुई थी।

2016 में भी शरद को हार्वर्ड में एडमिशन के लिए ऑफर आया था, लेकिन ग्रेजुएशन कम्प्लीट करने के बाद वो भारत लौट आए।
2016 में भी शरद को हार्वर्ड में एडमिशन के लिए ऑफर आया था, लेकिन ग्रेजुएशन कम्प्लीट करने के बाद वो भारत लौट आए।

शरद बताते हैं, लौटने के बाद अपने NGO के लिए काम करने लगा। विदेश पढ़ने के लिए जाने का सपना भी इसीलिए था कि अच्छी चीजें सीखकर वापस देश लौट आऊं। देश के बच्चों को एजुकेट करूं।

फिर 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना की वजह से ऑनलाइन मोड में आ गई थी, तब मैंने हार्वर्ड में एडमिशन ले लिया। 2021 में पढ़ाई पूरी करने के बाद फिर से अपने देश लौट आया हूं।

अब तक मेरे संस्थान के जरिए स्टूडेंट्स को दुनियाभर की अलग-अलग टॉप यूनिवर्सिटीज से 114 करोड़ की स्कॉलरशिप मिल चुकी है। गरीब परिवार के बच्चे भी विदेशों में जाकर पढ़ रहे हैं। हर साल 70 लाख बच्चे हमारे साथ जुड़ते हैं। हम उन्हें टॉप यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए ट्रेंड करते हैं।

आपकी संस्था बच्चों को स्कॉलरशिप कैसे दिलवाती है?

देशभर के स्टूडेंट्स के लिए एजुकेशन लेवल पर जितनी भी अपॉर्चुनिटी हैं- स्कॉलरशिप, नेशनल-इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन, कॉन्फ्रेंस, वर्कशॉप... हर महीने के पहले रविवार को हम स्कूलों और बच्चों तक पहुंचाते हैं। बच्चों को स्टडी मटेरियल भी देते हैं।

शरद डेक्सटेरिटी से जुड़ने वाले बच्चों को अलग-अलग कॉम्पिटिशन के लिए प्रैक्टिस करवाते हैं।
शरद डेक्सटेरिटी से जुड़ने वाले बच्चों को अलग-अलग कॉम्पिटिशन के लिए प्रैक्टिस करवाते हैं।

वो बताते हैं, इसे ऐसे समझिए कि जब एक गांव का बच्चा पहली बार इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन में बैठता है, तो उसे पता नहीं होता है कि निबंध कैसे लिखना है। हम इस तरह की सभी प्रैक्टिस करवाते हैं। हर टॉपिक को 10 से 12 सवालों के साथ सॉल्व करवाते हैं। क्विज करवाते हैं। मैंने भी खुद को ऐसे ही तैयार किया है।

आप KBC में सबसे कम उम्र के एक्सपर्ट के तौर पर जा चुके हैं, कभी पार्टिसिपेंट बनने का मन नहीं हुआ?

जब छपरा में था तब लोग मेरे बारे में बातें किया करते थे। कहते थे- इसे KBC में जाना चाहिए, लेकिन हमारे घर का टीवी तो 2002 से ही खराब पड़ा था। जब एक्सपर्ट के रूप में KBC जॉइन किया, तभी मैंने पहली बार ये शो देखा।

KBC से कैसे बुलावा आया?

एक शाम ट्विटर पर मैसेज आया कि मुझे एक्सपर्ट के तौर पर KBC में जॉइन कराना चाहते हैं। जब शो में कनेक्ट हुआ तो एक्टर अमिताभ बच्चन ने कहा- ये शरद सागर हैं। हमेशा नीले रंग की शर्ट और ब्लैक पैंट पहनते हैं। विवेकानंद से प्रेरित हैं।

मैंने देखा कि कैसे इतनी बड़ी शख्सियत सामने वाले का सम्मान के साथ इंट्रोडक्शन करवा रही है। शायद यही बात एक इंसान को बड़ा बनाती है।

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