पंथमंदिर का पुजारी पत्नी का बनाया खाना नहीं खाता:कोर्ट-कचहरी नहीं, न्याय के लिए मंदिर में लिखित याचिका, दावा-3 करोड़ लोगों की मन्नतें पूरी

3 महीने पहलेलेखक: मनीषा भल्ला
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‘’मैं शैफाली शर्मा, नोएडा सेक्टर 18 से यहां आई हूं। मुझे बैंक के साथ धोखाधड़ी केस में झूठा फंसाया गया है। केस गाजियाबाद कोर्ट में चल रहा है। मेरे ऊपर कई FIR हुई हैं। मेरा परिवार काफी परेशान है। मेरे सारे खाते सील कर दिए गए हैं। आशीर्वाद दीजिए कि जल्द से जल्द न्याय मिले।’’

‘’मैं मनोज, एक लड़की से 5 साल से प्यार करता हूं। हमारी कास्ट अलग है। हम दोनों शादी करना चाहते हैं, लेकिन लड़की के घर वाले तैयार नहीं हैं। वे मुझे धमकी दे रहे हैं। मेरे ऊपर केस भी कर दिया है। समझ नहीं आता क्या करूं। जल्द से जल्द न्याय दिलवाइए।’’

स्टांप पेपर पर लिखी ये अर्जियां किसी अदालत में नहीं, बल्कि उत्तराखंड के गोलू देवता के मंदिर में लगाई गई हैं। पूरा मंदिर ऐसी अर्जियों और घंटियों से भरा है। दीवारों पर एक इंच भी जगह खाली नहीं है। मान्यता ये कि यहां जिसकी अर्जी सुन ली गई, उसकी हर कोर्ट में जीत होती है।

गोलू देवता का मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के घोड़ाखाला गांव में करीब 1600 मीटर ऊंची पहाड़ी पर है।
गोलू देवता का मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के घोड़ाखाला गांव में करीब 1600 मीटर ऊंची पहाड़ी पर है।

आज पंथ सीरीज में इन्हीं गोलू देवता की कहानी जानने मैं पहुंची दिल्ली से करीब 390 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के नैनीताल…

सुबह का वक्त। कुमाऊं की पहाड़ियों से होकर पहले काठगोदाम और फिर भीमताल होते हुए घोड़ाखाला पहुंची। घोड़ाखाला दो वजहों मशहूर है। एक सैनिक स्कूल और दूसरा गोलू देवता का मंदिर।

चीड़ के पेड़ों से ढकी पहाड़ियों से देखने पर शहर किसी प्लेट में रखे सुंदर फूल सा दिखाई पड़ता है। यहां से जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ती हूं, मंदिर की घंटियों की गूंज तेज होती जाती है।

जगह-जगह प्रसाद और चमचमाती घंटियों की दुकानें। हाथ में घंटी और मन्नतों की चिट्ठियां लिए लोगों की लंबी कतार। यहां से करीब 35 सीढ़ियां चढ़कर मैं मंदिर पहुंचती हूं। मंदिर में घुसते ही ऊपर, नीचे, दाएं-बाएं जहां तक मेरी नजर जाती है, घंटियां ही घंटियां नजर आती हैं।

इतनी घंटियां जिसकी गिनती करना मुमकिन नहीं है। मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां तीन करोड़ से ज्यादा घंटियां हैं। और कमोबेश इतनी ही मन्नतों की चिट्ठियां। कई घंटियां एकदम काली हो चुकी हैं। जिन्हें देखने से पता चलता है कि सालों पहले से यहां लोग घंटियां चढ़ा रहे हैं।

मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां करीब 3 करोड़ घंटियां हैं। इनमें कई घंटियां सालों पुरानी हैं।
मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां करीब 3 करोड़ घंटियां हैं। इनमें कई घंटियां सालों पुरानी हैं।

गर्भ गृह में चांदी की दो मूर्तियां हैं। एक गोलू देवता की और दूसरी उनकी मां कालिंका की। गोलू देवता सफेद घोड़े पर सवार हैं। उनके हाथ में धनुष-बाण और सिर पर पगड़ी। यहां के लोग इन्हें भगवान शिव का अवतार मानते हैं।

मंदिर का मुख्य पुजारी सालों से एक ही परिवार से रहा है। फिलहाल रमेश जोशी यहां के मुख्य पुजारी हैं। वे बताते हैं, ‘मंदिर में घंटी चढ़ाने का चलन कहां से शुरू हुआ, मुझे नहीं पता। मेरे पूर्वज बताते थे कि मुगलों के जमाने से ही यहां घंटियां चढ़ाई जाती रही हैं।

1936 में रामपुर के नवाब ने पांच किलो की घंटी चढ़ाई थी। इसके बाद 1951 में अंग्रेजों ने 25 किलो की घंटी चढ़ाई। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भी यहां घंटी चढ़ा चुके हैं।

सबसे भारी घंटी एक श्रद्धालु ने चढ़ाई थी, जो 1500 किलो की थी। इसे नीचे से ऊपर पहाड़ पर ले जाना संभव नहीं था। इसलिए 50-50 किलो की 30 घंटियां बनाकर चढ़ाई गईं। यहां पर 700 किलो की एक घंटी भी है।’

पूरे मंदिर परिसर में जहां तक नजर जाती है, सिर्फ घंटियां ही घंटियां दिखती हैं।
पूरे मंदिर परिसर में जहां तक नजर जाती है, सिर्फ घंटियां ही घंटियां दिखती हैं।

रमेश जोशी बताते हैं, ‘गोलू देवता को बटुक भैरव भी कहा जाता है। बटुक भैरव भगवान शिव के अंशावतार हैं। हम लोग इन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजते हैं। अगर किसी ने किसी पर झूठा केस किया है, किसी का मामला अदालत में है, तो वह अपनी अर्जी लेकर गोलू देवता की शरण में आता है।

ज्यादातर लोग अपनी अर्जी स्टांप पेपर पर लिखवा कर लाते हैं। जबकि कुछ लोग चिट्ठियों में भी मन्नतें लिखकर लाते हैं। न्याय मिलने के बाद लोग वापस आते हैं और यहां घंटियां चढ़ाते हैं।’

मैंने पूछा क्या वाकई न्याय मिल जाता है?

रमेश जोशी जवाब देते हैं- बिल्कुल न्याय मिलता है। न्याय मिलने के बाद ही लोग यहां घंटियां चढ़ाते हैं। ये 3 करोड़ों घंटियां लोगों ने तो ही चढ़ाई है।’

यहां लोग स्टांप पेपर या चिट्ठियों में अपनी अर्जी लिखकर लाते हैं। कोर्ट, कचहरी, मार-पीट, प्यार-मोहब्बत हर तरह की अर्जी यहां देखने को मिल जाएगी।
यहां लोग स्टांप पेपर या चिट्ठियों में अपनी अर्जी लिखकर लाते हैं। कोर्ट, कचहरी, मार-पीट, प्यार-मोहब्बत हर तरह की अर्जी यहां देखने को मिल जाएगी।
कुछ इस अंदाज में गोलू देवता के दरबार में लोग अपनी लिखित याचिका लगाते हैं।
कुछ इस अंदाज में गोलू देवता के दरबार में लोग अपनी लिखित याचिका लगाते हैं।

मंदिर में धूणे के पास नंदलाल जी ढोल पर थाप दे रहे हैं। वह जागर पर जाते हैं और वहां ढोल बजाते हैं।

मैंने पूछा जागर क्या होता है?

वे बताते हैं, ‘किसी व्यक्ति पर जागर आता है। इसका मतलब है कि उस व्यक्ति के शरीर में गोलू देवता की आत्मा प्रवेश करती है। इसके बाद लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते हैं। गोलू देवता खास विधि-विधान से उन समस्याओं से राहत दिलाते हैं।

इसके लिए एक खास दिन तय किया जाता है। जिस पर जागर आता है और जो परेशानी से छुटकारा चाहता है, दोनों को पूरे दिन उपवास रहना होता है। शाम में कार्यक्रम तय किया जाता है।

गाय के गोबर से आसन को लीपा जाता है। उस पर गोमूत्र का छिड़काव किया जाता है। ढोल, नगाड़े और कई तरह के साज बजाए जाते हैं। जब वह व्यक्ति हिलने लगता है, तो समझा जाता है कि उसमें गोलू देवता प्रवेश कर गए हैं।

परिवार उनसे अपनी मुश्किलें बताता है। इसके बाद वे उसका समाधान बताते हैं। यह कार्यक्रम करीब 20 मिनट तक चलता है। जागर खत्म होने के बाद उस व्यक्ति को दक्षिणा दी जाती है।’

गोलू देवता की प्रतिमा। एक हाथ में धनुष-बाण और दूसरे हाथ में तलवार लिए सफेद घोड़े पर सवार हैं।
गोलू देवता की प्रतिमा। एक हाथ में धनुष-बाण और दूसरे हाथ में तलवार लिए सफेद घोड़े पर सवार हैं।

मंदिर के पुजारी के लिए भी खास तरह के नियम हैं। जिसका पालन हर हाल में करना ही होता है। पुजारी रमेश जोशी बताते हैं, ‘हम अपना भोजन या तो खुद बनाते हैं या मां के हाथ का बना भोजन खाते हैं। बहन, बेटी और पत्नी के हाथ का बना खाना नहीं खाते हैं। उस खाने को अपवित्र माना जाता है।'

रसोई में खाना खाने के बाद उस स्थान को गाय के गोबर से लीपा जाता है। जितनी बार खाना खाया जाता है, उतनी बार लीपा जाता है।

गोलू देवता को लेकर एक किंवदंती भी है। इतिहासकार और कुमाऊं संस्कृति के एक्सपर्ट चारू शर्मा उनकी कहानी बताते हैं।

''कत्यूरी राजवंश के राजा झालुराई की सात रानियां थीं, लेकिन कोई संतान नहीं। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने कई नदियों में स्नान किया, दान दिए, देवताओं की उपासना की, लेकिन पुत्र नहीं हुआ। एक दिन राजा ने कुछ ज्योतिषाचार्यों को अपने महल में बुलाया। ज्योतिषियों ने कहा कि पुत्र प्राप्ति के लिए राजा को एक और शादी करनी होगी।

एक रात सपने में राजा ने देखा कि कालिंका नाम की सुंदर कन्या नीलकंठ के पहाड़ पर बैठी है। सुबह राजा सेना के साथ उस दिशा में निकल पड़े। उन्होंने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। कालिंका ने राजा को एक साधु से आज्ञा लेने के लिए कहा। राजा उस कन्या के बताए हुए साधु के पास गए। साधु ने राजा को कालिंका से शादी के लिए आज्ञा दे दी।

बाकी सात रानियों को कालिंका पसंद नहीं आईँ। वह हमेशा उन्हें राजा की नजरों में गिराना चाहती थीं। कुछ समय बाद कालिंका गर्भवती हुईँ। इससे सातों रानियां और परेशान हो गईं। जैसे ही प्रसव का समय नजदीक आया, रानियों ने राजा से कहा कि कालिंका के लिए पुत्र को देखना ठीक नहीं होगा। उन लोगों ने कालिंका की आंखों पर पट्टी बांध दी।

कालिंका ने पुत्र को जन्म दिया। रानियों ने उसके पुत्र को अलग-अलग तरीकों से मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह बच जाता। रानियों ने पुत्र की जगह कालिंका के पास सिलबट्टा रख दिया और राजा से कहा कि इसने सिलबट्टे को जन्म दिया है। राजा बहुत निराश हुए।

उधर सातों रानियों ने कालिंका के बेटे को टोकरी में रखकर एक नदी में बहा दिया। वो टोकरी एक मछुआरे को मिली। मछुआरे को कोई संतान नहीं थी। वह उसे अपना बेटा मानकर पालने लगा। मछुआरे ने लड़के का नाम गोलू रखा। गोलू बड़ा हुआ, तो घोड़ा लेने की जिद करने लगा। मछुआरे के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह घोड़ा खरीद सके। उसने लकड़ी का घोड़ा लाकर उसे दे दिया।

एक दिन गोलू नदी में अपने घोड़े को पानी पिलाने की कोशिश कर रहा था। वहां राजा की सात रानियां भी पहले से थीं। गोलू को ऐसा करते देख वे हंसने लगीं कि लकडी का घोड़ा पानी पीता है क्या। गोलू ने कहा कि अगर एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है, तो लकड़ी का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता।

यह बात राजा तक पहुंची, तो उन्होंने गोलू को बुलाया। राजा ने गोलू को डांटते हुए कहा कि पागल हो... लकड़ी का घोड़ा कभी पानी पी सकता है क्या? गोलू ने राजा को बताया कि कालिंका उसकी मां है। राजा ने उसे साबित करने के लिए कहा। गोलू ने कहा कि अगर कालिंका का दूध खुद निकलकर उसके मुंह में आ जाएगा, तो मान लीजिएगा कि मैं ही उसका पुत्र हूं।

रानी को बुलाया गया। रानी गोलू के सामने आईं, तो वैसा ही हुआ जैसा गोलू ने दावा किया था। राजा ने कालिंका से माफी मांगी और सातों रानियों को जेल में डाल दिया, लेकिन यह बात गोलू को पसंद नहीं आई।

उसने रानियों को छोड़ने के लिए कहा। राजा ने उसकी बात मान ली और आगे से किसी भी मामले में उसे ही फैसला सुनाने का अधिकार दे दिया। इसके बाद गोलू राजकुमार बन गया। गांव-गांव जाकर लोगों को न्याय दिलाने लगा।

धीरे-धीरे गोलू पूरे इलाके में मशहूर हो गया। आगे चलकर वह राजा बने और न्याय दरबार लगाकर लोगों की अर्जी सुनने लगे। इस तरह वहां के लोगों की आस्था उनमें बढ़ती गई और उन्हें एक देवता के रूप में पूजा जाने लगा।''

अब पंथ सीरीज की ये दो कहानियां भी पढ़िए...

1. इंसान का मांस और मल तक खा जाते हैं अघोरी:श्मशान में बैठकर नरमुंड में भोजन, कई तो मुर्गे के खून से करते हैं साधना

रात 9 बजे का वक्त। जगह बनारस का हरिश्चंद्र घाट। चारों तरफ सुलगती चिताएं। आग की लपटें और उठते धुएं से जलती आंखें। कोई चिता के पास नरमुंड लिए जाप कर रहा, तो कोई जलती चिता से राख उठाकर मालिश, तो कोई मुर्गे का सिर काटकर उसके खून से साधना कर रहा है। कई ऐसे भी हैं, जो इंसानी खोपड़ी में खा-पी भी रहे हैं। इन्हें देखकर मन में सिहरन होने लगती है।

ये अघोरी हैं। यानी जिनके लिए कोई भी चीज अपवित्र नहीं। ये इंसान का कच्चा मांस तक खा जाते हैं। कई तो मल-मूत्र का भोग करते हैं। पंथ सीरीज में आज कहानी इन्हीं अघोरियों की…(पढ़िए पूरी खबर)

2. रात 12:30 बजे होती है निहंगों की सुबह:सुबह बकरे का प्रसाद बंटता है, घोड़ा इनके लिए भाई जान है और गधा थानेदार

अमृतसर के अकाली फूला सिंह बुर्ज गुरुद्वारे में चहल-पहल है। सिख छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी की 'बंदी छोड़ दिवस' का जश्न मना रहे हैं। आस-पास की सड़कें ब्लॉक हैं। भारी बैरिकेडिंग की गई है। घोड़े टाप दे रहे हैं, नगाड़े बज रहे हैं। बोले सो निहाल, सतश्री अकाल, राज करेगा खालसा आकी रहे न कोय… के जयकारे लग रहे हैं। नीले रंग के खास चोगे और बड़ी सी पग धारण किए लोग तलवारबाजी कर रहे हैं। ये निहंग सिख हैं। (पढ़िए पूरी खबर)