ये कोरोना की दूसरी लहर का वक्त था। 15 साल तक अपने इलाके का फेमस जर्नलिस्ट रहा शख्स अहमदाबाद के एक बड़े सरकारी अस्पताल के बाहर खड़ा था। एक बूढ़ी औरत बिलख रही थी, उसके जवान बेटे को कोरोना हुआ था।
मेडिकल अफसर ने बेड देने से मना कर दिया था। इस जर्नलिस्ट ने मिन्नतें कीं, लेकिन कुछ नहीं कर पाया। उसे ऐहसास हुआ कि राजनीति में आए बिना वह लोगों की मदद नहीं कर पाएगा। उसने कांग्रेस-BJP और AAP के नेताओं से मुलाकात की।
फिर एक दिन उसका फोन बजा, अरविंद केजरीवाल ने मिलने बुलाया था। मुलाकात हुई, पर मन में अब भी सवाल थे। प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने समझाया तो उसने 14 जून 2021 को आम आदमी पार्टी जॉइन कर ली। केजरीवाल ने शायद वो फोन न किया होता तो आज इसुदान गढ़वी गुजरात में AAP के CM फेस न होते।
AAP ने जब उन्हें CM फेस बनाया तो देश भर में चर्चा हुई कि आखिर ये शख्स है कौन। हालांकि, इसुदान गुजरात खासकर सौराष्ट्र इलाके में अपनी निडर पत्रकारिता के लिए काफी पहले से पहचाने जाते रहे हैं। राजनीति में आने से पहले एक स्थानीय न्यूज चैनल वीटीवी गुजराती पर हर रोज रात 8 से 9 बजे तक उनका शो ‘महामंथन’ आता था।
ये शो काफी मशहूर था, जिसमें आम लोगों से जुड़े मुद्दे उठाए जाते थे। इसुदान को AAP ने द्वारका जिले में आने वाली जाम खंभालिया सीट से उम्मीदवार बनाया है। वे खंभालिया के ही पिपलिया गांव में रहते हैं। इसुदान की कहानी को ढूंढते हुए हम उनके गांव पिपलिया पहुंचते हैं।
150 करोड़ का घोटाला उजागर किया, फिर फेमस हुए
पिपलिया के लोग इसुदान गढ़वी के बारे में जैसे सब जानते हैं। सभी को पता है कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दूरदर्शन से की थी। वहां 2007 से 2011 तक रहे। जब वे ईटीवी गुजराती में थे तो पोरबंदर में रहते हुए उन्होंने किसानों की समस्याओं पर कई न्यूज स्टोरी कीं।
इसुदान ने 2015 में डांग और कापरड़ा में पेड़ों की कटाई में हुए 150 करोड़ रुपए के करप्शन का पर्दाफाश किया था। इसके बाद सरकार को एक्शन लेने पर मजबूर होना पड़ा। गांव के लोग इन कहानियों को ऐसे सुनाते हैं जैसे वो उनका हिस्सा रहे हों।
BJP कार्यकर्ताओं से भिड़े, एक बार अरेस्ट भी हुए
20 दिसंबर 2021 को पुलिस ने उन्हें ड्राई स्टेट में शराब पीने के आरोप में कमलम से हिरासत में लिया था। एक सभा के दौरान AAP और BJP कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। बाद में गुजरात पुलिस ने इसुदान समेत 500 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। FIR के मुताबिक, इसुदान के ब्लड में 0.0545 प्रतिशत अल्कोहल पाया गया था।
उधर इसुदान और AAP ने आरोप लगाया था कि रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की गई है। सितंबर 2021 में सूरत के चर्चित रामदेव पीर मंदिर को तोड़े जाने की घटना के बाद गढ़वी ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। दिसंबर 2021 में पेपर लीक होने के बाद भी इसुदान ने गांधीनगर स्थित BJP ऑफिस के बाहर प्रोटेस्ट किया और फिर गिरफ्तार हुए।
गांव में विकास नहीं, जाति सबसे बड़ा मुद्दा
इसुदान के किस्से खत्म होते हैं तो पिपलिया में भी विकास किनारे होता दिखता है, यहां जाति आधारित वोटिंग पैटर्न नजर आता है। यहां बीते 50 साल से अहीर (यादव) कम्युनिटी के कैंडिडेट ही जीतते आ रहे हैं। सिर्फ एक बार ऐसा हुआ कि इस समुदाय का उम्मीदवार विधायक नहीं बन पाया।
इस बार कांग्रेस और BJP दोनों के कैंडिडेट अहीर कम्युनिटी के हैं। वहीं इसुदान गढ़वी पिछड़ी चारण जाति से ताल्लुक रखते हैं। पिपलिया में इसुदान के पड़ोसी उन्हें सिर्फ इसलिए सपोर्ट कर रहे हैं, क्योंकि वे उनके गांव के हैं।
उनके पड़ोसी कारू भाई कहते हैं- काम तो सब सरकारों ने थोड़ा बहुत किया है, हम इसुदान का सपोर्ट अपने गांव की वजह से कर रहे है। हम ब्राह्मण और गढ़वी तो एक हो चुके हैं, दूसरी कम्युनिटी को भी सपोर्ट करने की अपील कर रहे हैं।
अहीरों की आबादी ज्यादा, होता है भेदभाव
पिपलिया के दारा भाई बताते हैं कि गांव में अहीर समुदाय की आबादी ज्यादा होने से बाकी जाति के लोगों से भेदभाव होता है। छोटे-बड़े हर चुनाव में अहीर कम्युनिटी को टिकट में वरीयता मिलती है। गढ़वी समुदाय को ऐसा सोच लिया गया है, जैसे वे हैं ही नहीं।
गांव की गलियों में घूमने और लोगों से बातचीत के बाद हम इसुदान के घर पहुंचे। यहां हमें इसुदान तो नहीं मिले, लेकिन उनकी पत्नी हीरल से हमारी मुलाकात हुई। उन्हें बात करने के लिए कहा तो बोलीं कि चलिए ऊपर छत पर शूट कर लीजिए। इसुदान को टिकट मिलने पर सवाल किया तो बोलीं- हमें पूरा यकीन है कि यहां के लोग उन्हें ही सपोर्ट करेंगे।
इसुदान के पिता खेती करते हैं। हालांकि गांव में रहने वाले गढ़वी कम्युनिटी के ज्यादातर लोग ब्याज पर पैसे देने का काम भी करते हैं और जमीन-जायदाद से काफी मजबूत हैं। इसुदान ने 2005 में गुजरात विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन का कोर्स किया था। बाद में बतौर पत्रकार वे गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में पॉपुलर हुए।
कांग्रेस कैंडिडेट बोले- AAP हमें डुबोने आई, BJP रेस में नहीं
पिपलिया में घूमने के बाद हम कांग्रेस कैंडिडेट विक्रमभाई अर्जनभाई मडाम से मिलने पहुंचे। वे 2004, 2009 में जामनगर से सांसद बने थे। हालांकि, 2014 का लोकसभा चुनाव अपनी ही भतीजी और BJP नेता पूनम मडाम से हार गए थे। 2017 में वे खंभालिया से विधानसभा चुनाव लड़े और BJP कैंडिडेट कालू चावड़ा को 11 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
विक्रमभाई ने बताया- BJP ने जिन मुलुभाई बेरा को मैदान में उतारा है, उन्हें मैंने 2002 में हराया था। वह चुनाव गुजरात दंगे के बाद हुआ था, जब BJP ने गुजरात में सबसे ज्यादा 127 सीटें जीती थीं।
इसुदान गढ़वी के चुनाव लड़ने और आम आदमी पार्टी की एंट्री के सवाल पर उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी गुजरात में कांग्रेस को डुबोने आई है। AAP फ्री की रेवड़ी का लालच दे रही है। इस लालच में कांग्रेस के वोटर पाला बदल सकते हैं। BJP के वाइट कॉलर वोटर तो AAP के बहकावे में नहीं आने वाले, क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा कुछ होगा नहीं।
इसुदान के बारे में विक्रमभाई का मानना है कि वे मीडिया का फेस हैं। गांव में पॉपुलर भी हैं। उनके चुनाव लड़ने से फर्क तो पड़ेगा, लेकिन कितना, यह अभी नहीं कहा जा सकता। इस सीट पर यादव कम्युनिटी के 52 हजार वोट हैं। अब BJP और कांग्रेस के दोनों ही कैंडिडेट यादव समाज से हैं, ऐसे में वोट बंट जाएंगे। उनके अलावा बाकी के वोटर ही कैंडिडेट की जीत और हार तय करेंगे।
AAP और कांग्रेस कैंडिडेट से मुलाकात के बाद हमारा अगला पड़ाव खंभालिया का BJP कार्यालय था। यहां पार्टी कैंडिडेट मुलुभाई बेरा नहीं मिल पाए। वे प्रचार के लिए निकल गए थे। उनके समर्थक जरूर जुटे हुए हैं।
उन्हीं में से एक मयूर गढ़वी बोले- 2014 में उपचुनाव हुआ था, तब से ही यह सीट कांग्रेस के पास है। लोग देख चुके हैं कि सरकार किसी और पार्टी की और विधायक किसी और पार्टी का हो तो परेशानी होती है। इसलिए इस बार BJP की जीत तय है।
इसुदान गढ़वी के बारे में उनका कहना है कि टीवी स्टूडियो में बैठकर डिबेट करने और जमीन पर काम करने में बहुत फर्क होता है। उन्हें इस चुनाव में अपनी असलियत पता चल जाएगी।
गढ़वी के लिए बेरा और मडाम दोनों चुनौती
इसुदान गढ़वी के लिए कांग्रेस कैंडिडेट विक्रम मडाम और BJP कैंडिडेट मुलुभाई बेरा दोनों ही बड़ी चुनौती हैं। दोनों क्षेत्र के दिग्गज नेता हैं। पिछले 20-25 साल से चुनाव लड़ते आ रहे हैं। सांसद और मंत्री रहे हैं। ऐसे में इन्हें हराना आसान नहीं।
इस सीट पर 1972 से यादव कम्युनिटी का दबदबा है। तब इस समुदाय के हेमंत मडाम ने इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस प्रत्याशी नाकुम को हराया था। हेमंत की बेटी पूनम मडाम अब BJP में हैं और जामनगर से सांसद हैं। हेमंत मडाम लगातार तीन बार इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के तौर पर यहां से जीते थे। 1990 में कांग्रेस इस सीट से तब जीत पाई, जब वे चुनावी रेस में नहीं थे।
खंभालिया में BJP लगातार जीतती रही। यह सिलसिला 2014 के उपचुनाव में टूटा। तब कांग्रेस ने ये सीट जीत ली थी। 2017 के चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी।
इससे पहले हमने PM मोदी के गांव वडनगर और गृहमंत्री अमित शाह के गांव से भी रिपोर्ट की थी, इन्हें आप यहां पढ़ सकते हैं...
11 महीने से बिना विधायक PM मोदी का गांव, पिछली बार हार गई थी BJP
अहमदाबाद से 90 किलोमीटर दूर उंझा विधानसभा का वडनगर गांव। PM मोदी यहीं पले-बढ़े हैं। 2017 के चुनाव में कांग्रेस की आशा पटेल यहां से जीती थीं। 2019 में वे BJP में शामिल हो गईं। दिसंबर 2021 में डेंगू से उनकी मौत हो गई। उनके निधन के बाद से ही विधायक की सीट खाली है।
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अमित शाह का गांव बना कांग्रेस का गढ़, पाटीदार बंटे इसलिए BJP फेल
गृह मंत्री अमित शाह के गांव वाली सीट मानसा में BJP दो बार से हार रही है। पिछली बार पाटीदार आंदोलन इसकी बड़ी वजह रहा। ठाकोर वोटर्स कांग्रेस के पक्ष में हैं, लेकिन BJP के कोर वोटर पाटीदार बंट जाते हैं। PM मोदी के गांव वडनगर से मानसा की दूरी करीब 50 किमी है। यहां वडनगर की तरह सिस्टमेटिक डेवलपमेंट शुरू ही नहीं हो पाया है।
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