बिलकिस बानो केस के गवाह इम्तियाज घांची को धमकी मिली है। आरोप 15 अगस्त को रिहा हुए केस के 11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह पर है। ये मामला 15 सितंबर का है। इम्तियाज ने 19 सितंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, मानवाधिकार कार्यालय, दाहोद DM और SP को एक एप्लिकेशन भेजी है। इसमें धमकी और जान का खतरा होने की बात कही।
इसके बाद 23 सितंबर को SP और DM ऑफिस से एप्लिकेशन के बारे में मालूम किया तो जवाब मिला कि इस तरह का कोई कागज अब तक नहीं मिला है। इसकी पुष्टि के लिए भास्कर ने दाहोद DM और SP ऑफिस फोन किया तो पता चला SP छुट्टी पर हैं। DM ने कहा कि हमें ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली।
मुझे बुलाया और कहा- अब भागने की बारी तुम्हारी है: इम्तियाज
‘15 सितंबर की शाम मैं रंधीकपुर से देवघर बारिया जा रहा था। रास्ते में पीपलोद गांव पड़ता है। वहां रेलवे क्रॉसिंग है। तब करीब 8 बजे होंगे। मैं वहां से गुजर रहा था कि राधेश्याम ने मुझे बुलाया। वह अपनी कार से और मैं बाइक से था। मैं डरते-डरते उसके पास गया। उसने पूछा- सब ठीक है। मैंने कहा- हां, सब ठीक है। फिर उसने कहा, तुमने इतना सब किया, हमारा क्या बिगाड़ लिया। हम तो अब बाहर हैं। अब भागने की बारी तुम्हारी है। अब तुम्हें भगा-भगाकर मारेंगे।’
इम्तियाज को 2019 में भी मिली थी धमकी
भास्कर ने बिलकिस बानो मामले की ग्राउंड रिपोर्ट करते वक्त इम्तियाज से मुलाकात की थी। वे बिलकिस के ससुराल देवघर बारिया में दंगा पीड़ितों के लिए बने कैंप में मिले थे। उन्होंने तब भी डर जाहिर किया था। कहा था कि पैरोल पर बाहर आने पर दोषी गांव के लोगों को धमकाते थे।
घांची ने बताया था कि दोषियों में शामिल गोविंद भाई नई एक बार पैरोल पर आया था, तो उसने हमारे बच्चों को धमकाया और बदसलूकी की। मुझे भी धमकाया। मैंने 30 सितंबर 2019 को थाने में शिकायत दी, कई चक्कर काटे, पर कुछ नहीं हुआ।
रिपोर्ट करते वक्त भास्कर की टीम राधेश्याम शाह के घर भी गई थी। वहां हमें बताया गया कि वे मन्नत मांगने उज्जैन गए हैं।
रंधीकपुर में बिलकिस का पड़ोसी था इम्तियाज
इम्तियाज घांची बिलकिस के मायके रंधीकपुर में रहते थे। उनका घर बिलकिस के पड़ोस में था। दोषियों के रिहा होने पर गांव के कुछ परिवारों को छोड़कर बाकी सभी बिलकिस की ससुराल देवघर बारिया में बने कैंप में रहने चले गए। घांची भी अपने परिवार के साथ वहीं रह रहे हैं। वह रोज रंधीकपुर काम करने जाते हैं।
भास्कर ने इस मामले में धमकाने के आरोपी राधेश्याम मोहनदास शाह से बात करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई।
DM बोले- लिखित शिकायत मिली तो सुरक्षा दिलवा सकते हैं
इम्तियाज की मदद कर रहे सोशल वर्कर रज्जाक बारिया कहते हैं- हम कितने भी कागज दें, वे कभी दफ्तर में निगरानी में नहीं आते। यही हमेशा से होता रहा है। रज्जाक बिलकिस बानो केस में भी एक्टिव रहे हैं।
इसके बाद हमने पीड़ित की एप्लिकेशन की पड़ताल शुरू की। सबसे पहले DM दाहोद हर्षित गोसावी को फोन किया। जवाब मिला कि अब तक हमारे पास कोई एप्लिकेशन नहीं पहुंची है। न कोई देने आया और न ही रजिस्ट्री से कोई चिट्ठी आई है।
हमने पूछा- एप्लिकेशन मिलने के बाद आप क्या कदम उठा सकते हैं? इस पर DM ने जवाब दिया- हम मामले की स्थिति को समझने के बाद उन्हें सुरक्षा मुहैया करवा सकते हैं। इसके लिए हमारे पास आरोप लगाने वाले का लिखित में कोई कागज चाहिए। इसके बाद हमने SP दफ्तर में पूछताछ की। वहां पता चला SP हितेश कुमार एच. जोयसर 22 सितंबर से छुट्टी पर हैं।
क्या रंधीकपुर से इम्तियाज घांची नाम के किसी व्यक्ति ने SP ऑफिस में कोई एप्लिकेशन दी है? जवाब में एक नंबर मिला। उस नंबर पर फोन किया तो यह नंबर टाउन इंस्पेक्टर का था। उन्होंने कहा कि इस तरह की एप्लिकेशन का विभाग दूसरा है। अब तक मेरी जानकारी में ऐसी कोई एप्लिकेशन नहीं है।
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1. दंगाइयों के हमले के इकलौते चश्मदीद सद्दाम ने बताया- उस दिन क्या हुआ था
ये 3 मार्च 2002, संडे का दिन था। हमें कुछ लोग हमारी तरफ आते दिखे। उनके हाथ में तलवार, हंसिया, कुल्हाड़ी और लोहे के पाइप थे। वह आकर मारने-काटने लगे। मेरी अम्मी हाथ पकड़कर मुझे दूसरी तरफ लेकर भागीं। तभी किसी ने मुझे अम्मी से छुड़ाकर एक गड्ढे में फेंक दिया। मेरे ऊपर एक पत्थर रख दिया। इसके बाद मैं बेहोश हो गया। तब 7 साल के रहे सद्दाम को ये सब याद है। इस बारे में बताते हुए सद्दाम उसी बच्चे की तरह नजर आते हैं, जिसके सामने उसकी अम्मी की लाश पड़ी है।
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2. सुलेमान-अबेसी नहीं भूले वह दिन, बिलकिस को रोक लेते तो 13 जिंदगियां बच जातीं
28 फरवरी 2002 की सुबह दाहोद के रंधीकपुर गांव की एक बस्ती खाली हो चुकी थी। बूढ़े-बच्चे, औरत-मर्द सब बदहवासी और डर की हालत में खेतों-जंगलों के रास्ते भाग रहे थे। पीछे एक भीड़ थी। हाथों में कुल्हाड़ी, हंसिया और तलवारें लिए। उनसे बचकर बिलकिस की टोली कुआंजर और पत्थनपुर में रुकी थी। यहां तब सरपंच रहे सुलेमान और अबेसी के यहां उन्हें पनाह मिली। दोनों को अब भी अफसोस है कि वे उन लोगों को गांव में नहीं रोक पाए। ऐसा किया होता तो 13 लोग जिंदा होते।
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3. रिहा हुए दोषियों के परिवार बोले- हम भी बर्बाद हुए, हमारी कोई नहीं सुनता
रंधीकपुर में बिलकिस बानो का मायका है। बिलकिस की बस्ती में करीब 75 घर हैं, लेकिन लोग बमुश्किल चार-पांच घरों में ही हैं। बाकी के दरवाजों पर लटकते ताले। रिहा किए गए 11 गुनहगार भी अपने-अपने घरों से गायब हैं। ज्यादातर मन्नत मांगने निकले हैं। एक दोषी बाका भाई खीमा के बेटे से हमने पूछा पिता के बारे में पूछा तो उसने जवाब दिया- मुझे कुछ याद भी नहीं। मेरी तो जिंदगी बर्बाद हो गई। मीडिया ने तब से पीछा ही नहीं छोड़ा। हमसे ऐसे मिलने आते हैं, जैसे हम कोई अजूबा हों।
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4. बिलकिस की आजादी क्यों छीनी जाए, उनके दोषियों के आसपास पुलिस तैनात हो
बिलकिस बानो का केस लड़ने वालीं एडवोकेट शोभा गुप्ता ने गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को गलत बताया है। उनका कहना है कि कई लोग कह रहे हैं कि बिलकिस को सुरक्षा देनी चाहिए, लेकिन मेरा सवाल है कि बिलकिस की आजादी क्यों छीनी जाए? जब तक गुनहगारों की रिहाई कैंसिल नहीं होती, तब तक क्यों न उनके चारों तरफ 4-4 पुलिस वाले खड़े कर दिए जाएं। इससे वे लोग बिलकिस को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे।
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